मूर्खता दिवस पर कुछ विचार / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 01 अप्रैल 2019
आज मूर्खता दिवस मनाया जाता है। यह उत्सव पश्चिम से आया प्रतीत होता है, क्योंकि हमारे पास हास्य का यह माद्दा ही नहीं है कि हम हंसी-मजाक में ही सही स्वयं को मूर्ख कह सकें। संस्कृत भाषा में लिखे नाटकों में विदूषक का पात्र होता है, जो अत्यंत महत्वपूर्ण बातें कहता है। शेक्सपियर के नाटकों में एक पात्र ऊपरी तौर पर मूर्खता की बात करता है। शेक्सपियर का 'क्लाउन' ग्रीक साहित्य की जोकर अवधारणा के निकट है। ज्ञातव्य है कि रंगमंच संसार में प्रतीक स्वरूप दो मुखौटे प्रस्तुत किए जाते हैं। एक मुखौटा हंसता हुआ तो दूसरे की आंख में आंसू हैं। राज कपूर ने अपनी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' में इसी बात को एक अलग आयाम देते हुए बिम्ब ऐसा रचा है जो आंसू के मध्य से देखी गई मुस्कान की तरह दिखता है। जब हम बेतहाशा हंसते हैं तो आंख से पानी गिरने लगता है, जिसे आंसू नहीं कह सकते, क्योंकि वह शरीर की एक स्थिति से निकला पानी है।
आंसू का स्वाद नमकीन होता है। मनुष्य का ह्रदय सागर के समान है शायद इसीलिए आंसू में नमक का स्वाद होता है। एक कहावत है मगरमच्छ के आंसू, जो अपना स्वार्थ साधने के लिए जबरन बहाए जा रहे हैं। उनमें नमक नहीं होता। सुबोध मुखर्जी ने सायरा बानो और जॉय मुखर्जी अभिनीत 'अप्रैल फूल' नामक फिल्म बनाई थी, जिसने आईएस जौहर अभिनीत पात्र छाया हुआ रहता है। उसके पास गजब का विट था। अपने दृश्य वह स्वयं ही लिखता था । आईएस जौहर प्राय: मूर्ख पात्र को केंद्र में रखते थे। उन्होंने हॉलीवुड की 'नॉक ऑन वुड' से प्रेरित किशोर कुमार अभिनीत 'बेवकूफ' नामक फिल्म बनाई।
हमारे अधिकांश फिल्मकार विदेशी प्रेरणा से देसी मनोरंजन गढ़ते रहे हैं परंतु जौहर की 'बेवकूफ' पर मुकदमा कायम हुआ और 50 लाख डॉलर की मांग की गई। अदालत के बाहर आईएस जौहर अपने साथ 50 वर्षों की तमाम फिल्मों के लाभ-हानि के प्रमाणिक दस्तावेज लेकर पहुंचे और उन्होंने अमेरिकन फिल्मकार को विश्वास दिलाया कि 50 लाख डॉलर इन तमाम फिल्मों के जमाजोड़ से भी कई गुना अधिक है। अमेरिकन फिल्मकार ने यथार्थ को समझकर अपना मुकदमा वापस ले लिया। एक बार आयकर अधिकारियों ने उनके घर छापा मारा तो उन्होंने फोन पर रेस्तरां से खाने-पीने का सामान बुलाया और ऊंची आवाज में कहा कि कोने में रखी अलमारी में 10 लाख रुपए हैं। बीयर पीने और भोजन छककर करने के बाद अलमारी खोली तो उसमें कुछ नहीं मिला।
जौहर ने बवाल खड़ा किया कि पैसे अधिकारी ले चुके हैं। रेस्तरां में किए गए फोन से यह बात साबित भी हो जाएगी। अधिकारी बड़ी मुश्किल से मामले को रफा-दफा कर के खाली हाथ और भरा हृदय लेकर चले गए। यह घटना बहुत पुरानी है। आज अधिकारी जागरूक और सक्षम है। वह पंचों के सामने पहले अपनी तलाशी देते हैं। दरअसल, आयकर सरकार के हाथ एक कोड़ा है। सारे भारत में आयकर विभाग के वातानुकूलित भवन है और सबको किराए पर उठाने से प्राप्त आय वसूले गए आयकर के समान या थोड़ी-सी कम हो सकती है। सत्ता चाहे किसी भी दल के हाथ आए। कोई अपने हाथ का कोड़ा खोना नहीं चाहता। अक्षय कुमार और कटरीना कैफ अभिनीत एक फिल्म में दोनों पात्र एक-दूसरे को मूर्ख बनाते रहते हैं और इसी प्रक्रिया में वे एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं। मुलाकातों के सिलसिले में लड़की यह समझती है कि उसका प्रेमी अत्यंत बुद्धिमान है और लड़के को लगता है कि प्रेमिका मधुबाला के समान सुंदर है।
शादी सारे मुगालतों को नष्ट कर देती है। प्राय: प्रेम का भ्रम भी रचा जाता है ताकि वह भ्रम ही जीवन का संबल हो जाए। मनुष्य के पास स्वयं को घर में रखने की अपार कुवत है। पागलों के इलाज के लिए पागलखाना है, मुसाफिरों के आराम के लिए मुसाफिरखाना होता है परंतु मूर्खों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है वे समाज में बेरोकटोक स्वतंत्र घूमते हैं। उनके सिर पर सींग नहीं है कि आप उन्हें पहचान लें। यह बात संतोषप्रद है कि छूूने या साथ भोजन करने से यह रोग फैलता नहीं है। संस्कृत जानने वाले महान ब्रिटिश कवि टीएस एलियट ने लिखा है...'इट्स द फूल हू थिंक्स दैट ही इज टर्निंग दी व्हील ऑफ टाइम/ ऑन विच ही इज नथिंग बट ए स्माल पार्ट'। एलियट की एक पंक्ति है, 'अप्रैल इज द क्रूयलेस्ट मंथ/ ब्रीदिंग लीलक्स आउट ऑफ द डेड लैंड/ मिक्सिंग मेमोरी एंड डिज़ायर/ स्टिरिंग डल रूट्स विद स्प्रिंग रैन'। इसी मौसम में पलाश लाल रंग के हो जाते हैं। अप्रैल चुनाव का माह भी है।