मूर्ख-महामूर्ख / सुधा भार्गव
एक चांडाल था। सब उसे छोटी जाति का जंगली समझते थे क्योंकि वह मुर्दाघाट पर काम करता। धूल-मिट्टी और धुएँ से भरी जगह पर उसके कपड़े गंदे हो जाते–फिर वह उन्हीं को पहने रहता। कोई कुछ भी कहे पर था होशियार और धर्म की बातों की जानकारी रखता था।
वह अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था। एक बार उसने अपने पति से कहा–आम खाने की मेरी बहुत इच्छा कर रही है। -इस समय तो आम का मौसम नहीं हैं कोई और खट्टा फल खा लो। -मैं तो आम ही खाऊँगी वरना जान दे दूँगी। -मैं आम तुम्हारे लिए आसमान से भी तोड़कर ला सकता हूँ पर प्रिय वह मुझे दिखाई तो दे। -ऐसा करो तुम राजा के बाग में जाकर आम तोड़ लाओ. वहाँ तो बारहों मास रसीला आम डाली से लटका रहता है।
राजा के बाग में घुसना मज़ाक न था। हर समय कड़ा पहरा रहता था। पर चांडाल अपनी पत्नी की खुशी के लिए बिना आनाकानी किए दिन छिपते ही बाग की ओर चल दिया।
चौकीदार की नजरों से किसी तरह छिपकर वह बाग में घुस गया। आम का पेड़ खोजते–खोजते आधी रात बीत गई पर उसे आम न मिला। उसने सोचा-पेड़ पर चढ़ कर थोड़ी कमर सीधी कर लूँ। सुबह होते ही चल दूंगा।
उसने खुद को पत्तों से ढक लिया। थका–मांदा तो था ही, बस नींद की गोद में लुढ़क गया।
चिड़ियों की चहचहाट से वह सुबह जागा तो देखा–कुछ दूरी पर आम के पेड़ की छाया में राजा कुर्सी पर बैठा है और पुरोहित जी नीचे बैठे हुए उसको मंत्र सिखा रहे हैं। वह फुर्ती से पेड़ से उतर कर उन दोनों के पास आकर खड़ा हो गया और बोला–महाराज, मैं मूर्ख हूँ और आप भी मूर्ख, पर यह गुरु तो महामूर्ख है।
राजा चकित-सा चांडाल की ओर देखने लगा और पूछा–यह कैसे? -राजन मैं इसलिए मूर्ख हूँ क्योंकि पत्नी के कहे में आकर यहाँ आमों की चोरी करने चला आया और सजा पाने से भी न डरा। पुरोहित जी गुरु बने आपको मंत्र सिखा रहे हैं। सिखाने वाला सीखने वाले से हमेशा श्रेष्ठ होता है इसलिए उसका आसन भी ऊंचा होना चाहिए जो उसके प्रति आदर का प्रतीक है। मगर यहाँ तो उल्टी गंगा बह रही है। गुरु नीचे बैठा है और शिष्य ऊपर। इसलिए मैंने आपको मूर्ख कहा। पुरोहित तो महामूर्ख है ही। धर्म का ज्ञाता, राज्य के धार्मिक काम कराने वाला खुद ही अधर्म के रास्ते पर है। -तुम तो बड़े बुद्धिमान हो। यदि चांडाल नहीं होते तो तुम्हें अपना गुरु बना लेता। -क्षमा करें यदि आपको बुरा लगे। बुद्धि ऊंच–नीच का भेदभाव नहीं रखती। वह तो किसी के भी दिमाग में आसन जमा कर बैठ सकती है। -यह भी तुम ठीक कहते हो। मैं अपनी आँखों से ही देख रहा हूँ। आज से तुम ही राजपुरोहित हुए और तुम्हीं मुझे धर्म के अनुसार शिक्षा दोगे।
उस दिन से राजा नए गुरु से शिक्षा प्राप्त करता हुआ मंत्र सीखने लगा। वह हमेशा नीचे आसान पर बैठता और उसके प्रति आदर की भावना रखता।