मूषक सवार गणेशोत्सव और चीन का ड्रेगन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :26 अगस्त 2017
बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक गणेश उत्सव का प्रारंभ किया था और इस मंच से देश के स्वतंत्रता संग्राम का संदेश अवाम तक पहुंचाया जाता था। अपने घरों में गणेश उत्सव हमेशा मनाया जाता था परंतु सार्वजनिक स्वरूप का शुभारंभ तिलक ने ही किया। आर्थिक खाई ने उत्सवों को भी बांट दिया है। अवाम और विशेषकर मध्यम वर्ग गणेशोत्सव मनाता है और अमीर परिवार नवरात्रि मनाते हैं, जमकर डांडिया खेला जाता है। कुछ युवा तीन माह पूर्व ही ड्रेस डिज़ाइनर से नौ दिनों के लिए नौ पोशाक बनाने पर लाखों रुपए खर्च करते हैं। सारी रात डांडिया खेला जाता है। विगत कुछ वर्षों से अमेरिका में बसे भारतीय गुजरात से डांडिया विशेषज्ञों को लाखों डॉलर का मेहनताना देकर अमेरिका बुलाते हैं। डांडिया बड़े व्यवसाय का रूप ले चुका है। नवरात्रि उत्सव माता की पूजा-आराधना का समय है और डांडिया रास का एक हिस्सा, जिसे करना आराधना का भाग नहीं है। श्रीकृष्ण की रासलीला के नाम पर यह खेल रचा गया है।
आर्थिक खाई अनेक सामाजिक कुरीतियों को जन्म देती है। इसी से भविष्य में वर्ग संघर्ष प्रारंभ हो सकता है। संपदा का भौंडा प्रदर्शन सांस्कृतिक खोखलेपन को उजागर करता है। नारायण तिवारी की अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर अभिनीत 'टॉयलेट-एक प्रेम कथा' का केंद्र घरों में टॉयलेट की आवश्यकता नहीं होते हुए इस पर केंद्रित है कि हमने अपनी संस्कृति की गलत परिभाषा प्रचलित कर दी है, जिसने कुरीतियों को जन्म दिया है। संस्कृति के भव्य भवन के तलघर में कुरीतियों के चमगाड़द उलटे लटके रहते हैं, अंधविश्वास के जाले फैले हैं। दिन के उजाले में संस्कृति के भवन की खिड़कियों से प्रकाश और ताजी हवा के झोंके निरंतर चलते हैं परंतु रात के अंधकार में तलघर के प्राणी भवन में विचरण करते हैं। अत: जिन लोगों ने यह भवन दिन में देखा है, उनकी सांस्कृतिक अवधारणा तथ्यपरक है और जिन्होंने रात में इस भवन को देखा है, उन्हें कुरीतियों पर यकीन हो जाता है। मोटेतौर पर दिन तर्कप्रधान और रात अंधविश्वास को महत्व देता है।
फिल्म में यह भी उजागर किया गया है कि टॉयलेट निर्माण के लिए सरकार द्वारा दिए गए धन में भ्रष्टाचार हुआ है। इस मुहीम में करोड़ों रुपए डूब गए हैं। उत्तर प्रदेश में दो हजार नौ सौ करोड़ रुपए का घपला हुआ है। बोफोर्स घोटाला मात्र 64 करोड़ का हुआ था परंतु उसका बवाल आज तक जारी है और इस तथ्य को भी नज़रअंदाज किया जा रहा है कि करगिल की जीत में बोफोर्स ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। इसका तात्पर्य यह नहीं कि किसी भी प्रमाण या किस्म के भ्रष्टाचार का बचाव किया जा रहा है। सारे ही प्रकरण समान रूप से समाज के ढांचे को तोड़ते हैं, इसलिए निंदनीय है। मुद्दा यह है कि सरकार परिवर्तन से घपले बंद नहीं हुए हैं। प्रचार-तंत्र ने ऐसी विचार प्रणाली की स्थापना कर दी है कि एक दल के राज्य में महंगाई कष्टकारक लगती है और दूसरे के राज्य में इसे सहज रूप से सहा जाता है गोयाकि अवाम के शॉक सहन करने की शक्ति का भी बंटवारा हो चुका है। अनेक विभाजन हमारे समाज की उर्वरक जमीन में बो दिए गए हैं। फसलें लहलहा रही हैं परंतु उनका बसंत आने में कुछ समय और शेष है। कैफी अाज़मी से क्षमायाचना सहित, 'ये खेल कब से है जारी, 'पिछड़े' सभी बारी बारी।'
विविधता और सिंथेसिस भारतीय संस्कृति की ताकत रही है और वर्तमान की व्यवस्था इन्हीं दो गुणों को खत्म करके विचार का रेजीमेंटेशन करने पर आमादा है। सहिष्णुता को कट्टरपन से विस्थापित किया जा रहा है और मोटेतौर पर भारत को गैर-भारतीय स्वरूप में ढाला जा रहा है! चीन इसी अवसर के इंतजार में था और अब उसने अपना माल दुनिया के सभी देशों के बाजार में पहुंचा दिया है।
अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश के अनेक व्यवसाय व उद्योगों के शेयर भारी मात्रा में चीन गुमनाम एजेंसियों के माध्यम से खरीद चुका है और अमेरिका में अर्जित लाभ का बड़ा भाग उसके पास पहुंच रहा है। ब्रिटेन और यूरोप के देश भी चीन की सम्पत्ति से चलाए जा रहे हैं। वॉलस्ट्रीट हो या दलाल स्ट्रीट या लंदन का शेयर मार्केट, सभी अपरोक्ष रूप से चीन के अधीन होते जा रहे हैं। जापान और जर्मनी सबसे कम प्रभावित देश हैं। विश्व की शतरंज पर चीन ने अपने मोहरे बड़ी चतुराई से जमा दिए हैं। खिलाड़ी भले ही 'शह' देकर खुश हो रहे हैं परंतु 'मात' चीन ही दे रहा है।
चीन के विकास तंत्र का ढांचा उन्होंने इस तरह बनाया है कि अपने विशाल भूखंड के एक हिस्से पर सारा निवेश करके उसे विकसित किया और उसके लाभांश से दूसरे हिस्से का नंबर आया। इस तरह हिस्से दर हिस्से पूरे चीन के विकास की सौ वर्षीय योजना बनाई गई थी। आज चीन का एक विकसित हिस्सा न्यूयॉर्क से अधिक भव्य एवं अधिक विकसित है और अन्य हिस्से आज भी 16वीं सदी में हैं परंतु कुछ ही दशकों में पूरा चीन एक-सा विकसित हो जाएगा। हमने विकास की नहर को सहस्त्र भागों में बांटकर धारा के प्रवाह को ही प्रभावहीन बना दिया है। चीन अपना फोकस कभी नहीं खोता। उसने लंका का समुद्र क्षेत्र खरीद लिया है, अब वहां आने वाले या वहां से जाने वाले हर पानी के जहाज का जजिया कर चीन के खजाने में जमा हो रहा है।
यह भी गौरतलब है कि चीन और भारत का विगत समय एक सा था। वह भी भारत की तरह रियासतों में बंटा हुआ था, परंतु चीन ने सारे विभाजन ध्वस्त करके स्वयं को एक एकीकृत और मजबूत देश बना लिया है। हमारे हुक्मरान चीन के भाग्य विधाताओं की तुलना में अबोध बच्चों की तरह हैं जो समुद्र किनारे पड़े शंख और सीपियों से मन बहला रहे हैं। रेत के घरौंदे बनाकर ऐसे इठला रहे हैं जैसे गगनचुंबी इमारत गढ़ ली है। समय की एक हल्की-सी लहर सब ढेर कर देगी। आज चीन के शिक्षा केंद्रों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है, क्योंकि जिस देश पर कब्जा करना हो, सर्वप्रथम उसकी भाषा सीखनी चाहिए। हमारे देश में तो राष्ट्रभाषा हिन्दी में लेखन करने वाले को साहित्य क्षेत्र का हरिजन बना दिया गया है। सस्ती लोकप्रियता के मोह में हमारे नेता सबकुछ खो रहे हैं।
इस गणेश उत्सव में यह स्मरण करें कि वेदव्यास ने महाभारत का आकल्पन किया है और श्री गणेश ने उसे लिपिबद्ध किया है। श्री गणेश की शर्त थी कि महाकवि निरंतर लिखाते रहेंगे, तो महाकवि की शर्त थी कि श्री गणेश श्लोक का अर्थ समझकर ही उसे लिपिबद्ध करेंगे। वर्तमान के शासन की ज़िद है कि भले ही न समझो पर लिखते रहो।