मृगतृष्णा / सत्या शर्मा 'कीर्ति'

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आज सीमा जी कई दिनों बाद मेंटल हॉस्पिटल से घर आईं तो लगा जैसे सब कुछ बदल-सा गया है, घर, घर की दीवारें, सजावट। या सब यथावत-सा था उन्होंने ही कई महीनों बाद एक गृहिणी की नजर से देखा था।

याद आ गये कुछ पुरानी-सी बातें कैसे वह दिन भर इस घर को संभालती सजाती रहती थी। टीवी सीरियल का शौक नहीं था बस सारे दिन घर, बच्चे और काम।

एक दिन महेश जी ने कहा-सीमा तुम सारा दिन इन्ही सब में उलझी रहती हो आओ तुम्हारा फ़ेसबुक अकाउंट खोल देता हूँ। परिवार के साथ-साथ दोस्तों से भी टच में रहोगी।

पर धीरे-धीरे अनजाने दोस्तों की भी संख्या बढ़ने लगी, कई ग्रुप में शामिल हो गईं।

घण्टों चैटिंग का, लाइक-कमेंट का दौर चलता रहता धीरे-धीरे अभिरुचि बढ़ती गयी और हर दो दिन में प्रोफाइल पिक चेंज जो जाते। फिर इन्तजार शुरु हो जाता आने वाली प्रतिक्रियाओं का।

आभासी दुनिया के माया जाल में वह इस तरह उलझती गयी कि पीछे छूटने लगे वास्तविक दुनिया के सम्बन्ध।

याद आ रहा है कैसे बच्चे जिद करते थे मम्मी कितने दिन हो गए आपने कुछ स्पेशल बनाया नहीं वह टाल जाती कल बना दूँगी पर वह कल आ ही नहीं पता कभी पूरी फैमली घूमने भी जाती थोड़ी-थोड़ी देर में स्टेट्स डालती रहती। कई बार पति अपनी ज़रूरतों का जिक्र कर देर तक इन्तजार करते-करते सो जाते।

धीरे-धीरे इन सब का उनके मन पर असर होने लगा कम प्रतिक्रियाओं पर वह चिड़चिड़ी—सी हो जाती। फिर एक दिन हाई डिप्रेशन और माइग्रेन के अटैक के कारण उन्हें एडमिट करवाना पड़ा।

पता नहीं कितने दिनों के बाद आज घर लौटी हैं।

उन्हें विचारों में खोया-सा देख बिटिया ने बड़े प्यार से पूछा-माँ आपके लिए कुछ बना दूँ।

तब सीमा जी ने बेटी को गले से लगाते हुए कहा-नहीं आज मैं सबकी पसन्द का बनाऊँगी।