मृत्युदंड / शुभम् श्रीवास्तव
जमीला ने लोगों से बात करना बंद कर दिया। वह शमायरा का भी फ़ोन नहीं उठा रही थी। खाना भी कभी-कभार खाती उसका किसी चीज़ में मन नहीं लगता। यूनिवर्सिटी से अंक पत्र लेने गई तो रास्ते में रोहित मिल गया।
'रुको जमीला किधर जा रही हों। इतने दिन से फ़ोन भी नहीं उठाया किसी का।'
जमीला–'हमें अकेला छोड़ दो!' और वह तेज़ी से आगे बढने लगी।
रोहित–'नहीं। जमीला ज़िन्दगी का आगे कुछ करो। ऐसे कैसे चलेगा अगर एक जगह ठहर गई तुम। समाज के लिए जीने वाली एक ब्रेकअप से टूट गई.'
जमीला–'मुझे इस वक्त कुछ सूझ नहीं रहा। अभी कुछ दिन अकेले बिताना चाहती हूँ।'
रोहित–'ठीक है। ठीक है। पर दोस्तोंके फ़ोन उठा लिया करो कम से कम।'
जमीला–'हम्म।'
पीछे से मलिक ताली बजाते हुए आया–'वाह तो मेरे बाद अब रोहित। यही उम्मीद थी तुमसे।'
रोहित–'मलिक तुम्हें होश भी है क्या कह रहें हो तुम जमीला ने अभी तक किसी के फ़ोन नहीं उठाए.'
मलिक–'ओह! तो तुम चाह रहे हो कि वह तुम्हारे फ़ोन उठाए फोने तो हमने भी हज़ार किये पर इसने नहीं उठाए.'
'तुम दोनों चुप करोगे।' जमीला गुस्से से चीखती हुई वहाँ से चली गई.
मलिक को यह बात पसंद नहीं आई. वह दिन-रात उसके आगे पीछे उसकी चौकीदारी करने लगा। जहाँ-जहाँ जमीला वहाँ-वहाँ वह। वह किससे बात कर रही है किससे नहीं। किससे मिल रही है उन सब की निगरानी वह करने लगा। जैसे कि उसका हमसाया हो पागल सरफिरे आशिक की तरह। रोहित से बढती नज़दीकी उसे भा नहीं रही थी। वह उसे मज़ा चखाना चाहता था। उसे पता था जमीला हर शनिवार को अपने दोस्तों के साथ फ़िल्म देखने जाती थी। जैसे ही वह घर से निकली वैसे ही इसने बंदे लगवा रखे थे।
'उसे देख रहे हो ना जाते हुए.'-मलिक ने कहा।
'हाँ। साहब'
मलिक ने उसे 3 लाख पकड़ा दिए और बोला 'आधे बाद में'।
'साहब! एक बात पूँछु।'-सुपारी लेने वाले ने बोला
'पूछो।'
'जब आप उसे सीधे-सीधे मरवा सकते हो तो फिर ये तेजाब क्यों?'-सुपारी वाला
मलिक–'जिस तड़प में मैं जल रहा हूँ उसका आधा तो वह कम से कम भोगे।'
सुपारी वाले की आत्मा सिहर उठी। वह मन ही मन में कह रहा था कि कितना नीच कार्य करवा रहा हैं हमसे।
आधे घंटे बाद मलिक का फ़ोन बजता है। उसने फ़ोन उठाया–'काम हो गया साहब' दूसरी तरफ से आवाज़ आई.
'ठीक है।'-कहकर उसने फ़ोन रख दिया।
इधर जमीला का जलन के मारे चेहरा भन्ना रहा था उसे एक तरफ के चेहरे से लेकर हथेली तक की चमड़ी धीरे-धीरे करके निकलने लगी। रोहित लीथेर की जैकेट पहने होने की वजह से बाल-बाल बचा। उसने अपनी बाइक पर बिठाकर अस्पताल ले गया। उसके उपचार की सारी फॉर्मेलिटी पूरी करने के बाद उसने जमीला के घरवालों को फ़ोन किया।
दो-तीन दिन बाद उसके पास पुलिस आई. तब उनसे लेटे-लेटे तेज़ाब फ़ेकने वाले का हुरियाँ बताया। तफ्तीस चली तो सुपारी वाला पकड़ा गया। उसने बताया की सुपारी उसे मलिक ने दी थी और उसने फोन को फेक दिया है। पुलिस ने मलिक के मोबाइल के कॉल रिकार्ड्स निकाले। फिर सुपारी लेने वाले मोबाइल नंबर को आधार कार्ड के साथ मिलाकर देखा। फिर उसने जहाँ से तेजाब लिया वहाँ के बिल निकलवाए सुबूतों को जुटाते-जुटाते पुलिस को एक हफ्ता लग गया। मलिक को पकड़ लिया गया उसके घर से। मलिक को वकील मिल गया पर जमीला को घर वालो की तरफ से समर्थन ना मिलने के कारण उसे अपने लिए खुद ही लड़ना पढ़ा।
सुबूत पेश किए गए दोनों पक्षों के तर्क सुने गए. कई माह तक रसा-कशी चलती रही। अंत में जज ने मलिक को एक सनकी आशिक़ माना जिसने ना सिर्फ़ अपनी हदे पारकर उसका पीछा किया। उसकी निजता के साथ खिलवाड़ किया। बल्कि उसको उत्पीडन और घृणित कार्य का दोषी भी पाया।
जज–'क्या तुम्हें अपने किए पर पछतावा नहीं है?'
मलिक–'नहीं! मैं अपने आप से नफ़रत करता हूँ की मैंने इस इंसान से प्यार किया जिसने मेरी एक भी ना सोची।'
जज-'जैसे कि हम देख सकते हैं कि मलिक को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है। हम यह सन्देश देना चाहते हैं कि यह अदालत ऐसे विकृत मानसिकता का कभी समर्थन नहीं करती। इसलिए यह अदालत मलिक को फाँसी की सजा सुनाती है। ताकि भविष्य में ऐसे घृणित कार्य दोबारा ना दोराहये जाए.' मलिक ने अपनी हथेली की मध्य अँगुली जज को दिखाकर हाथ हवा में उठा लिया। पुलिस उसके हाथ में हथकड़ी पहना दी।