मृत्यु का भय / ओशो
प्रवचनमाला
मृत्यु का भय
जब तक मृत्यु हो ही नहीं जाती तब तक हम उसे जान ही नहीं सकते। फिर हम उससे क्यों भयभीत हैं?
बुनियादी सत्य यह है कि हम नहीं हैं। और क्योंकि हम नहीं हैं, हम न मर सकते हैं और न जन्म ले सकते हैं। क्योंकि आप नहीं हैंे, आप दुख में और बंधन में नहीं हो सकते। ओशो हमें एक आंतरिक खोज पर ले जाते हैं: अगर आप खोजो तो पता चलेगा कि आपका शरीर एक संयोग है, जोड़ है। कुछ चीज मां से मिली है, कुछ चीज पिता से मिली है और शेष सब भोजन से मिला है।
फिर मन पर ध्यान करें-- कुछ यहां से आया है, कुछ वहां से आया है। मन में कुछ भी ऐसा नहीं है जो मौलिक हो। वह भी एक संग्रह है।
अगर गहरे खोजते चले गए तो आपको पता चलेगा कि आपका व्यक्तित्व एक प्याज जैसा है। एक पर्त को हटाओ कि दूसरी पर्त सामने आ जाती है। दूसरी को हटाओ, तीसरी आ जाती है। पर्त पर पर्त हटाते जाओ और अंत में आपके हाथ में शून्य बचेगा।
एक बार अपने शून्य का साक्षात्कार कर लें तो फिर भय नहीं रहेगा।
(अमृत साधना का प्रवचन)