मृत्यु ड्रेस रिहर्सल व्यवसाय! / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 08 नवम्बर 2019
दक्षिण कोरिया की एक कंपनी ने नया व्यवसाय प्रारंभ किया है जीवित मनुष्य को कफन ओढ़ाकर 10 मिनट तक ताबूत में लिटाया जाता है और जमींदोज किए जाने का स्वांग अभिनीत किया जाता है। कंपनी का दावा है कि इस अनुभव के बाद जीवन का महत्व समझ में आता है और मनुष्य अपने पूर्वाग्रह और संकीर्णता से मुक्त होकर बेहतर समय व्यतीत करता है। "होलोन हीलिंग सेंटर" में 25 हजार लोग भुगतान करके मृत्यु पूर्व मृत्यु का अनुभव प्राप्त कर चुके हैं। गौरतलब है कि व्यवसाय का नाम हीलिंग अर्थात घाव भरना है। इस अनुभव से गुजरने के बाद एक युवा ने नौकरी छोड़ कर अपना स्वतंत्र व्यवसाय प्रारंभ कर दिया। मृत्यु पूर्व मृत्यु के अनुभव प्राप्त करके लोगों ने अपना व्यवसाय और जीवनशैली बदल दी है। यक्ष के एक प्रश्न के उत्तर में युधिष्ठिर कहते हैं कि सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह है कि मृत्यु के अवश्यंभावी होने के सत्य को जानते हुए भी मनुष्य उसके बारे में कुछ सोचना ही नहीं चाहता।
संजय लीला भंसाली की ऋतिक रोशन अभिनीत फिल्म का नायक लाइलाज रोग का शिकार है और वह अपनी मृत्यु का दिन और समय समीप जानकर अपने समाज के मित्रों को बुलाकर जश्न मनाता है। खाकसार की फिल्म "शायद" का कैंसर से जूझता नायक अपनी पत्नी को बाध्य करता है कि वह जहर का इंजेक्शन उसे लगा दे "कि यह दर्द अब सहा नहीं जाता।" वह पत्नी से आग्रह करता है कि वह जब जहर देते समय दुल्हन का लिबास पहने! पार्श्व में दुष्यंत कुमार के गीत का प्रयोग किया गया था फिल्म में जहरीली शराब के कारण अनेक लोग मरते हैं। क्षिप्रा नदी के तट पर सैकड़ों चिताओं का दृश्य फिल्माया गया था। इस दृश्य में भी दुष्यंत के लिखे गीत का प्रयोग किया गया था- "वह देखो उस तरफ उजाला है, जिस तरफ रोशनी नहीं जाती कि यह जिंदगी इस तरह से जी नहीं जाती।"
"माधुरी" के "संपादक" अरविंद कुमार ने इस दृश्य में दुष्यंत की गजल के इस्तेमाल की प्रशंसा की थी। दरअसल दुष्यंत कुमार का संदेश तो यह था कि देश की राजधानी दिल्ली में उजाला है परंतु ज्ञान की रोशनी नहीं है। ज्ञातव्य है कि सती प्रथा के प्रतिबंधित होने के बाद कहीं-कहीं यह कुप्रथा गुप्त रूप से जारी है। यथार्थ यह है कि विधवा को अफीम चढ़ा दी जाती है ताकि उसे वास्तविकता का ज्ञान ही नहीं रहे और नशे में गाफिल स्त्री को सती बना दिया जाता है। आमिर खान अभिनीत फिल्म मंगल पांडे में एक सती दृश्य है। एक अंग्रेज अफसर उस स्त्री के प्राणों की रक्षा करके उसे अपने घर में रखता है। गांव वाले लाठियां लेकर उसके बंगले को घेर लेते हैं परंतु वह एक हवाई फायर करके भीड़ को भगा देता है। महिला और अंग्रेज अफसर को एक दूसरे से प्रेम हो जाता है।
बांग्ला उपन्यासकार ताराशंकर बंधोपाध्याय की रचना "आरोग्य निकेतन" एक नाड़ी वैद्य की जीवन कथा है। नाड़ी निदान नामक शास्त्र को हमने खो दिया है। उपन्यास में वर्णन है कि एक बीमार की मृत्यु कुछ ही दिनों में होने वाली है, परंतु यह बात रिश्तेदारों से कैसे कही जाए। वैद्य बीमार की पत्नी को मछली का सिर खाने की सलाह देता है। यह सूक्ष्म संकेत है क्योंकि बंगाल में विधवा को मछली खाने की आज्ञा नहीं होती। मछली का सिर परम स्वादिष्ट व शक्तिवर्द्धक माना जाता है। यह विरोधाभास देखिए कि मछली खाने से स्मरण शक्ति का विकास होता है, परंतु स्वयं मछली की याददाश्त में बात सात सेकंड तक ही बनी रहती है। अपने इसी भुलक्कड़पन के कारण मछली आसानी से पकड़ी जाती है, सरलता से पकती है, और तुरंत ही पच भी जाती है। यह माना जाता है कि हाथी की स्मरण शक्ति सबसे अधिक होती है। कोई व्यक्ति हाथी को कष्ट देता है तो वर्षों बाद भी वह भीड़ में खड़े व्यक्ति को पहचान कर उसे अपनी सूंड़ से उठा लेता है। भोपाल के डॉक्टर शिवदत्त शुक्ला की स्मरण शक्ति हाथी से अधिक है। आप किसी भूले-बिसरे गीत की आधी पंक्ति कहें तो वह पूरा गीत सुना देते हैं। हर व्यक्ति का अपना स्वतंत्र जीवन और विचार शैली होती है। अतः सबकी मृत्यु समान नहीं हो सकती। मृत्यु मौलिकता प्रधान है। मृत्यु के पास डिवाइन जस्टिस की भावना नहीं है, क्योंकि अच्छे लोगों को बुरी मौत मिली है। कुछ भाग्यवान नींद में ही गुजर जाते हैं। गालिब का शेर है- "मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यों नहीं आती रात भर...!" कुछ लोग यह प्रार्थना कर सकते हैं कि वे पूरे होशो हवास में मृत्यु से आलिंगनबद्ध होना चाहते हैं। मृत्यु को अपनी बिछुड़ी प्रेयसी मान सकते हैं। मृत्यु और शारीरिक अंतरंगता के क्षण में यह समानता है कि दोनों ही अनुभव में आप समय और स्थान बोध से मुक्त होते हैं। शैलेंद्र हमें दिलासा देते हैं-"मर कर भी याद आएंगे, किसी के आंसुओं में मुस्कुराएंगे जीना इसी का नाम है।"