मृदुला गर्ग / परिचय
मृदुला गर्ग की रचनाएँ |
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शादी के बाद लिखना शुरू
जैसे कि आम तौर पर लिखना शुरू करने वाले करते है, मृदुला गर्ग ने कभी कविता नही लिखी। दूसरी बात यह कि मृदुला गर्ग ने लिखना बहुत देर से शुरू किया। मृदुला गर्ग ने शादी के बाद 32 साल की उम्र में लिखना शुरू किया था।
पहली कहानी
मृदुला गर्ग पहली कहानी ’रूकावट’ सारिका में 1972 में छपी थी उसके बाद ’हरी बिंदी’ और ’डेफोडिल जल रहे है’ छपी। मृदुला गर्ग उस समय दक्षिण भारत के एक छोटे-से औद्योगिक कस्बे में रह रही थी और बहुत कम लोगों ने मृदुला गर्ग देखा था। मुझे सहित्य की राजनीति और उसमें चल रही उठापटक की ज्यादा जानकारी नहीं थी। मृदुला गर्ग ने अपनी ज्यादातर कहानियाँ डाक से भेजी थी। मृदुला गर्ग ने लेखन की शुरूवात में राजेन्द्र यादव और कमलेश्वर से उनकी मुलाकात हुई थी। मृदुला गर्ग नेमीचन्द्र जैन और जैनेन्द्र कुमार से भी मिली थी। उस समय किसी ने भी स्त्रीवाद का मसला नहीं उठाया था। सिर्फ लिखते थे।
पहला उपन्यास
मृदुला गर्ग पहला उपन्यास ’उसके हिस्से की धूप’ 1975 में छपा था। यह लीक से हटकर था क्योंकि उन दिनों विवाहेत्तर संबधों में अपराधबोध होना जरूरी माना जाता था।
’उसके हिस्से की धूप’ की नायिका अनपे पति को छोड़ कर प्रेमी के पास चली जाती है। मगर अंत में वह महसूस करती है कि आदमियों के पीछे भागने का कोई अर्थ नहीं है और अपना रास्ता खुद ही तलाशना होगा... वह पति से तलाक लेकर दुसरे आदमी से शादी कर लेती है। जब वह अपने पूर्व पति से मिलती है तो उसे अहसास होता है कि जिस बात को वह उसकी उदासीनता समझती थी दरअसल वह उसकी उदारता थी। पहले वह रोमांटिक और अधिकारपूर्ण प्रेम की तलाश में थी, मगर वह हद से ज्यादा हो तो ऊबा देता है। दूसरी बात यह कि अधिकारपूर्ण प्रेम में औरत को आजादी नहीं होती जबकि उसके पूर्व पति ने उसको हर तरह की आजादी दे रखी थी। मगर उसके पास वह लौटती नहीं है क्योंकि वह जानती है कि अब भी वह अपने काम के आगे किसी को अहमियत नहीं देता है। उपन्यास का मूल विचार यह है कि एक के बाद दूसरे आदमी के पीछे भागने से कोई फायदा नहीं है। अपनी खुशी किसी और के माध्यम से प्राप्त नहीं की जा सकती। अपने कार्यों से ही खुशी मिल सकती है। कोई भी आदमी संपूर्ण नहीं है। शुरू शुरू में वह रोमांटिक और बेवकूफी भरे प्रेम में विष्वास करती है। चार सालों में वह इसके विभिन्न पहलुओं को देखती है और परिपक्व हो जाती है। दोस्ती, आपसी समझदारी, एकात्मकता और सहानुभूति प्रेम में महत्वपूर्ण होते हैं। वह जान लेती है कि प्रेम करना अद्भुत है मगर पूर्णता की भावना औरों से नहीं आती। वह अपने कर्मों से ही आती है। वह निर्णय लेती है कि वह खूब लिखेगी। पुस्तक का अंत यहीं होता है। उसे कोई अपराधबोध नहीं है। उसे नहीं लगता कि पति को छोड़कर अन्य पुरूष के साथ जाने के कारण ही वह अनैतिक हो गई है। 35 साल बाद अब इस कहानी पर धारावाहिक का निर्माण हुआ है। कइयों को अब यह समसामयिक लगता है। मगर उस समय यह चौंकाने वाला था। मृदुला गर्ग लगता है अगर आप वही लिखते हैं जो बाकी सब लिख रहे हैं तो लिखने को कोई लाभ नहीं है। जब औरत अपने लिए सोचना शुरू करती है तो उसके तार्किक परिणाम होते हैं। आज यही हो रहा है।
विवादास्पद उपन्यास ’चित्रकोबरा’
मृदुला गर्ग का उपन्यास ’चित्रकोबरा’ बहुत विवादास्पद है और लोकप्रिय भी। उसमें भी नायिका के विवाहेत्तर संबंध होते है। उस उपन्यास के कारण मृदुला गर्ग पर मुकदमा भी चला था। इस उपन्यास में भी नायिका किसी और से प्यार करती है मगर वह अपने पति को छोड़ती नहीं है। किसी गैर मर्द से प्रेम करते हुए भी उसे अपना घर तोड़ने की जरूरत महसूस नहीं होती। उपन्यास की नायिका ने अरेंज्ड मैरिज की है। वह अपने प्रेमी से साल में बस 3-4 दिन के लिए मिली थी और फिर वे बिछुड़ जाते हैं। प्यार का असर इस बात पर निर्भर करता है कि आप प्यार किसे करते हैं। अगर प्रेमी परिपक्व और उदार है तो प्रेमिका का भी बौद्धिक विकास होता है। प्रेम करने वाले व्याक्तियों के व्यक्तित्व का विकास होता है और वे बेहतर मनुश्य बनते हैं।
सांसारिक समझ-बूझ की औरत
मृदुला गर्ग उपन्यास ’वंशज में’ की नायिका सांसारिक समझ-बूझ की औरत है जो बहुत अच्छी गृहस्थिन और आदर्श बहू है। वह नैतिक हाते हुए भी अपने पति को पागल बना देती है। वह बेहद भौतिकवादी और पैसे के पीछे पागल है। जब औरतों के हाथ में ताकत आ जाती है तो वे आदमियों से किसी बात में पीछे नहीं रहती। अब सत्ता पर आसीन औरतों को देखो। वे पुरूषों से भी ज्यादा भ्रष्ट हैं।
आत्मकथा नहीं लिखना चाहती
मृदुला गर्ग अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहती। जो कुछ मृदुला गर्ग के जीवन में हुआ है वह किसी-न-किसी तरीके से उनके उपन्यासों में आ चुका है। मृदुला गर्ग का मानना है कि अत्मकथा में लेखक यथार्थ को अतिंरजित कर देता है और सच्चाई के कुछ अंश तक पहुचता है। उसे सपाट लहजे में दोहराने की जरूरत नहीं है। फिलहाल मृदुला गर्ग कोई उपन्यास नहीं लिख रही हूँ। नया उपन्यास ’मिलजुल मन’ अभी आया है। मै अपने उपन्यास अनित्या को अँग्रजी में अनुवाद करने के लिए सीमा सैगल को सहयोग दिया। हाल ही में आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने इसे ’अनित्या, हाफवे टू नोवेयर’ शीर्शक से छापा है।
संकलन -अशोक कुमार शुक्ला