मेंहदी तेरे रंग हजार / सुधा भार्गव
चुस्त –परास्त लावण्यमयी मैथिली को पसंद न था कि उम्र की काली घटाएँ उसके अंग प्रत्यंग पर अपनी मनहूस छाया छोड़ दें। ऊपर से कैसी भी दिखाई दे पर भीतर से वैसी ही थी जैसी २०वर्ष पूर्व। विवेकशीला, सौंदर्य पुजारिन। बत्तीसी घिस –टूट रही है तो क्या हुआ! एक –एक दाँत की ठोका –पीटी करा लेती चाहे कितनी भी पीर सहनी पड़े। 50 –1000खर्च भी हो जाएँ तो क्या हुआ। उल्लास भरे जीवन में कड़वाहट तो पैदा नहीं होती। यही सोचकर पग पग पर खुशियों का बिछौना बिछा लेती।
अपनी केशराशि फैलाकर जब मैथिली चलती तो नागिन सी लहराती लताओं पर लोग मर मिटते थे। आजकल अपने सफेद बालों को लेकर वह बहुत खिन्न थी। न ही उन्हें रंगवा सकती थी और न ही नारियल के अतिरिक्त और किसी तेल को चुपड़ सकती थी। क्योंकि तुरंत बालों का झड़ना शुरू हो जाता। एक –एक लंबे टूटे बाल को हाथ में लेकर गुमसुम सी सहलाती। उसकी आँखों के कोर गीले हो उठते। कहती –बर्फ का गिरना, पानी का गिरना, सभी ने देखा होगा पर बालों का गिरना मुझसे ज्यादा किसी ने न देखा होगा। । ओह यह कितनी टीस देता है!
अखबार में एक दिन उसने पढ़ा –मेंहदी बालों के लिए बड़ा अच्छा टॉनिक है। सफेदी से तो अच्छा है सुनहरापन। बस शुरू हो गया मेंहदी लेपन। धीरे –धीरे उसमें अंडा –कॉफी भी प्यार से मिलाये जाने लगे। टी. वी. में सुना –कंडीशनर लगाने से जुल्फें लहरों की तरह लहराने लगती हैं। पहले तो समझ न सकी –कंडीशनर का मतलब कंडीशनर या एयर कंडीशनर! फिर याद आया –पिछली बार उसका बेटा बोस्टन से अपनी बहन के लिए ‘खेलोन कंडीशनर ‘लाया था। बस फोन कर दिया –बेटा, अक्तूबर में आओ तो दो बोतल कंडीशनर ले आना। उसे मालूम हुआ कि माँ ने अपने लिए मंगाया है तो बड़ा प्रसन्न हुआ –आह! माँ मॉडर्न हो रही है।
यह आधुनिकता बड़ी महंगी पड़ी। 8-10 बार कंडीशनर इस्तेमाल करने से बाल हल्के हो गए, घिसकर टूटने भी लगे। वास्तविकता थी या नहीं पर उसने सब कुछ छोड़ छाड़ दिया। मगर दिमाग दौड़ता ही रहता –उसके बदले जरूर कोई नुस्खा होगा। ढूंढ निकाले दादी माँ के नुस्खे –चाय की पत्तियों को पानी में खौलाओ, उस पानी में ठंडा पानी मिलाकर सिर धोओ। बाल रेशम से चमकदार,रुई की फुओं जैसे मुलायम निश्चित।
सिर चढ़कर बोलने लगी मेंहदी। जयपुरिया मेंहदी और रंग लाई। समधिन जी को लिख दिया –जब भी आयें मेंहदी लाएँ। जहां मैथिली जाती, मेंहदी का पैकिट साथ चलता।
पिछले साल उसके साथ पैकिट न्यूजर्सी भी पहुँच गया। ले तो गई पर लगाऊँगी कैसे? सोच सोचकर हफ्ते भर बुखार चढ़ता रहा। पूरे घर में बिछा गलीचा, बाथरूम भी आधा कालीन से घिरा। कालीन पर छिटक गई मेंहदी तो --। बाथटब गंदा हो गया तो ---साफ कैसे होगा? मेंहदी लगाकर करीब २ घंटे कहाँ बैठूँगी, बड़ी भद्दी लगूँगी। इन हजार बुलबुलों से उसका हाजमा खराब हो गया।
शाम को बेटा आया। मेज पर खाने बैठे। बातों ही बातों में कह बैठी –कल तो सिर में मेंहदी लगाऊँगी।
-मेंहदी! ओह माँ नहीं --। यह सब नहीं होगा। बेटे ने गहरी सांस छोड़ी मानो वह आकाश से धरती पर गिर पड़ा हो ।
-अरे लगानी है।
-तब मैं नौकरी छोड़ देता हूँ। आपके पीछे झाड़ू –ब्रुश लेकर घूमना होगा। जहां मेंहदी गिरी बस उठा लूँगा। लगता है जमादार बनना ही पड़ेगा।
-न बेटा, ऐसा न कह। चिंता न कर। मैं बहुत ध्यान से करूंगी। मेंहदी लगाकर बाथरूम की सीढ़ियों पर कागज बिछाकर बैठी रहूँगी। ।
-अच्छा तेल तो नहीं लगाओगी।
-तेल की मालिश तो करनी ही होगी मेंहदी के झड़ने के बाद।
-गए काम से। सारे घर में बदबू। मेरे सारे परफ्यूम खतम हो जाएंगे। मैं गरीब बच्चा अपनी माँ का।
मैथिली को ज़ोर से हंसी आ गई। बिना लगाए ही मेंहदी का सा रंग खिलने लगा। सच हंसने –हँसाने के लिए ही तो वह कोसों दूर से आई थी।
मेंहदी एक दिन हिम्मत करके उसने लगा ही ली। उसके सूखने पर बेसिन में पहले सिर धोया फिर बाथटब में स्नान किया। स्नान के बाद बेसिन और बाथटब को अच्छी तरह रगड़ना पड़ा ताकि मेंहदी का नामोनिशान भी न बचे और बेटा उसकी योजना से अनभिज्ञ रहे। हेअर ड्रायर से बाल सुखाकर पीछे की ओर बांधे और कमर पर एक तौलिया भी डाल लिया ताकि कालीन पर पानी की टप्प-टप्पन न हो। कमरे में दबे पाँव आई, जी भरकर गहरे-गहरे साँस लिए--चलो मेंहदी लग गई। बहू ने देखा तो कुछ बोली नहीं। शायद अपनी सास की समझदारी से संतुष्ट थी। वैसे हल्लागाड़ी तो उसका बेटा ही था। । रसोई की अलमारी के कपाट बंद करने से जरा आवाज होती उससे दुगुन वेगवाला स्वर गूँजता –अरे माँ मुझे मालूम है --जाने से पहले मेरे सारे दरवाजे तोड़ जाओगी। फिर अपनी बात पर खुद खिलखिला पड़ता। मैथिली को उसपर गुस्सा भी जाता –शैतान मज़ाक भी कर लेता है और अपनी बात भी कह देता है।
भारत लौटने की तिथि नजदीक आ गई। उसने सोचा –बाकी मेंहदी फेंक दूँ पर बहू बोली –मेंहदी यहीं छोड़ जाइए, कभी काम आ सकती है। सुनकर बड़ा अच्छा लगा की विदेश में रहकर भी देशी चीजों से प्यार है।
भारत पहुँचने के एक माह पश्चात बहू का ई मेल आया –माँ जी, आप जो मेंहदी छोड़ गई थीं वही काम आई। मेरी सहेली की शादी थी। उस शुभ अवसर पर वह मेंहदी हमने उसके हाथों में लगाई। उसकी महक बड़ी सपनीली थी।
परम्पराओं से बच्चों का जुड़ना उसे बहुत संतुष्टि दे गया। सुखद अनभूति में गुनगुना उठी –
मेंहदी से रची हथेली
पिया मन भाई रे
डोली में बैठ के सजनी
हौले -हौले शरमाई रे।