मेघना-तेसरोॅ दृश्य / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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(मेघना के कंधा पर कुल्हाड़ी छै। गरमी के दिन छै। सूरज एक बाँस ऊपर चढ़ी गेलोॅ छै। समय बेशी होय रेल्होॅ छै। मेघना जल्दी में छै। रास्ता में एक नौजावान मिलै छै। मेघना ऊ नौजवान के टोकै छै)

मेघना : की हो रामप्रीत। कॉलेजोॅ सें कहिया ऐलोॅ छोॅ।

रामप्रीत : पन्द्रह-बीस दिनोॅ के बाद आइये घोॅर आबी रेल्होॅ छियै। कन्नें जाय रेल्होॅ छोॅ कुल्हारी लेनें।

मेघना : तोंय तेॅ जानथै छोॅ। जंगल जाना, गाछ काटना हमरोॅ रोजगार छेकै।

रामप्रीत : (समझैते हुवें) जंगल केॅ काटै सें बचाबै लेली सरकारें की-की नै करै छै? आग उगलतें ई सूरज के देखै छोॅ। एक दिन वृक्ष के अभाव में ओजोनपरत के छेद अतना बढ़ी जैते कि पृथ्वी ही खतम होय जैते। पृथ्वी ही नै रहतै तै तोंय-हम्में कहाँ रहभोॅ। वृक्ष लगावोॅ, वृक्ष काटोॅ नै।

मेघना : की कहै छोॅ रामप्रीत भाय। हमरोॅ रोजी-रोटी यहेॅ छेकै। बाल-बच्चा भूखें मरी जेतै

रामप्रीत : दुनियाँ में सभ्भे के पेट की गाछे काटी के चलै छै। ऐकरोॅ अलावा भी तेॅ ढेरी सीनी काम छै। पागल नै बनोॅ। जंगल आदमी के जीवन लेली ज़रूरी छै। गाछ-बिरिछ धरती के शृंगार छेकै। एकरा ई रंग नष्ट नै करोॅ।

मेघना : जंगल के सरकारी बाबू। ठेकेदार समरजीत सिंह तोरा सें बेशी लिखलौ-पढ़लोॅ छै।

रामप्रीत : (थोड़ॉे तेज आवाज में) लिखी पढ़ी कॅे वें सीनी गोबरोॅ में घी ढारी रेल्होॅ छै। लोभ आरो स्वार्थ में डूबी केॅ आन्हरोॅ होय गेलोॅ छै।

मेघना : (प्रतिवाद करतें हुऐं) एकटा तोहीं तेॅ लूरगरोॅ छोॅ। के नै जंगल काटी के जराय रैल्होॅ छै।

रामप्रीत : सरकारी नियम-कानून अतनै कड़ा छै कि फेर जौं पड़लौं तेॅ माय-बाप करथैं जान जैथौं।

मेघना : तोंय चिन्ता नै करोॅ रामप्रीत। जा-जा पढ़ोॅ-लिखोॅ। अखनी सें ई सीनी में माथोॅ नै लगाबोॅ।

(मेघना जंगल दिशा में जाय छै)