मेजबान / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी
Gadya Kosh से
(अनुवाद :सुकेश साहनी)
(एक)
उन्होंने हमारे सामने सोना-चाँदी, हीरे-जवाहरात बिछा दिए और हमने उनके लिए अपने दिलों के दरवाजे़ खोल दिए.
परन्तु फिर भी वे खुद को मेज़बानों में गिनते हैं और हमें मेहमानों में।
(दो)
मैंने अपने अतिथि को दरवाजे़े पर ही रोकते हुए कहा, " नहीं भीतर आते समय पैर पोंछने की ज़रूरत नहीं है, जाते समय इन्हें पोंछ के जाइएगा।