मेड इन इंडिया / दिव्या माथुर
बड़ा अजीब माहौल था; एक ओर अपने सहकर्मियों के साथ पब में बैठी जसबीर लांबा लाल शराब कुछ यूँ गटके चली जा रही थी कि जैसे उसे कोई शर्त जीतनी हो तो दूसरी ओर लाल लिपस्टिक से पुते लोलुप होंठों पर जीभ फिराती लोला की नजर सतनाम की बैल्ट के नीचे वाली जगह को खजूर की झाड़ू सा बुहार रही थी। मेज के नीचे किसी के नंगे पैर सतनाम की टाँगों पर साँप से रेंग रहे थे। शेरनियों के बीच घिरे हुए मेमने जैसी हालत थी सतनाम की, जिसकी याचनाभरी दृष्टि अपनी नवविवाहिता पत्नी जसबीर पर टिकी थी; जिसका चेहरा महारानी विक्टोरिया जैसा सपाट था।
'यू आर सो लक्की, जस्सी।' अपनी बाईं आँख दबाते हुए कैथी बोली और सतनाम के बाएँ कंधे से लिपटकर 'यम यम' कहती हुई उसका गाल चूमने लगी।
'हाउ सैक्सी इज यौर हजबैंड, जस्सी!' सतनाम की टाई को अपनी उँगलियों में लपेटते हुए और उसकी आँखों में झाँकते हुए मैंडी ने कहा, जो सतनाम के दाईं ओर बैठी थी।
'ऐंड वाट एबाउट मी, डार्लिंग?' रिचर्ड अपनी पत्नी मैंडी को सतनाम से प्यार जताते देख भी निर्लज्जता से हँस रहा था।
'वाट एबाउट यू? हू आर यू ऐनिवे?' मैंडी ने एक उचटती हुई निगाह पति पर डालते हुए कहा तो रिचर्ड खिसिया गया। मित्र-मंडली ठठा के हँसने लगी।
काँपते हाथों में बियर का एक छलकता हुआ गिलास सँभाले बौखलाए हुए सतनाम को लगा कि जैसे वह वेश्याओं और दलालों से घिरा बैठा था। जसबीर से वापिस घर चलने का आग्रह वह कई बार कर चुका था किंतु वह उसकी पूरी तरह से उपेक्षा कर रही थी। इतनी शराब तो सतनाम ने कभी किसी मर्द को भी पीते नहीं देखा था।
'अब हमें चलना चाहिए।' कैथी के पीछे से अपना हाथ बढ़ाकर जसबीर का कंधा थपथपाते हुए सतनाम फुसफुसाया।
'हनी, वाट इज यौर प्रौब्लम?' अपने कंधे को उचका कर चिढ़ी हुई जसबीर ने सतनाम का हाथ झटकते हुए कहा।
'मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता।' सब के सामने अपनी बेइज्जती हुई देख सतनाम सिटपिटा गया।
'डार्लिंग, गर्ल्ज आर गिविंग यू हौट किसेज और तुम हो कि तड़ी मार रहे हो।' जसबीर को समझ नहीं आ रहा था कि उसकी सहेलियों का जरा सा मजाक भी सतनाम को क्यों पसंद नहीं था। घर हो या बाहर, उसका बूथा सदा सूजा ही क्यों रहता था? पश्चिम के सामाजिक माहौल में उसकी गँवारों जैसी हरकतें जसबीर के लिए शर्मिंदगी का बाइस थीं।
'प्लीज उनसे कह दो कि वे मुझे बस टच न करें।' सतनाम तुनक कर बोला ताकि अपना मुँह ताकते हुए जसबीर के दोस्तों को जता दे कि वह जोरू का गुलाम नहीं था। कोई भी पत्नी अपने पति को दूसरी औरतों को कैसे परोस सकती थी? यह उसकी समझ से बाहर की बात थी; 'शुक्र है कि इसने इंडिया में ऐसी बेशर्मी नहीं दिखाई, मेरी फैमिली की कितनी इंसल्ट होनी थी!' धार्मिक और ईमानदार माँ-बाप और दो छोटी बहनों के बीच सतनाम बहुत सी मर्यादाओं के साथ पला-बढ़ा था; उसने जिंदगी में कभी किसी से ऊँची आवाज में बात तक नहीं की थी।
'माइंड यौर मैनर्ज गाइज, प्लीज स्पीक इन इंग्लिश।' रिचर्ड ने उन्हें याद दिलाया कि शिष्टाचार के नाते उन्हें अंग्रेजी में ही बात करनी चाहिए ताकि सब समझ सकें।
'यू शट अप रिचर्ड। वाए डोंट यू स्पीक इन हिंदी फौर सतनाम्स सेक?' जसबीर की करारी डाँट खाकर रिचर्ड ने 'सौरी' कहते हुए अपने हाथ हवा में उठा दिए।
'यू थिंक आइ कांट स्पीक एंग्लिश?' सतनाम को लगा कि जैसे जसबीर ने सबके सामने उसकी बेइज्जती कर दी हो। न चाहते हुए भी बात बिगड़ती चली जा रही थी।
'वाट्स रौंग विद यू?' गुस्से में पैर पटकती हुई जसबीर कमरे से बाहर निकल गई। सतनाम उसके पीछे हो लिया कि मैंडी और कैथी कहीं फिर न उससे लिपट जाएँ।
उपकक्ष के बीचों-बीच खड़ी हुई जसबीर एक हट्टे-कट्टे अफ्रीकन से अपनी सिगरेट सुलगवा रही थी। शराब की ही तरह उसने सिगरेट भी झटपट खत्म कर डाली और फिर अफ्रीकन के गाल पर एक लिजलिजा सा चुंबन देकर वह लुढ़कती हुई वापिस अपने दोस्तों के पास अंदर चली गई; सतनाम को पूरी तरह से नजरंदाज करती हुई, जो वहीं खड़ा था।
'कम औन जस्सी, कौल यौर हब्बी बैक।' अंदर से लोला की आवाज सुनाई दी।
'ही हैज ए टैंपर, हैजंट ही?' जैसमिन ने कहा।
'ही इज ऐ स्पौइल-स्पोर्ट, प्लेन एंड सिम्पल।' मैंडी ने अपना फैसला सुनाया।
'गिव हिम स्पेस, सैटनैम इज न्यू हियर।' रिचर्ड बोला।
'दि गाइ इज सफरिंग फ्रौम ए कलचरल शौक।' राजन ने रिचर्ड से सहमति प्रकट की।
दोस्तों में सतनाम को लेकर बहस शुरू हो गई। कुछ दोस्त मैंडी और जैसमीन से सहमति प्रकट करने लगे तो कुछ रिचर्ड और राजन सतनाम की तरफदारी ले रहे थे। अपने पति को सहानुभूति का पात्र बनते देख जसबीर क्रुद्ध हो रही थी।
'ही इज ब्लडी सो और्थोडौक्स...' चाहती तो थी कुछ और भी जोड़ना किंतु नशे की वजह से जसबीर अपनी बात पूरी न कर सकी।
'हाउ क्यूट, ही लव्स यू सो मच।' कैथी ने जसबीर को ईर्ष्यावश निहारा।
'ऐंड यू नो वाट? आई लव माइ इंडिपैंन्डैंस।' जसबीर ने मैंडी का मुँह बंद कर दिया।
सतनाम के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह टैक्सी लेकर घर लौट पाता। बाहर पब की हिमीभूत सीढ़ियों पर बैठा वह तब तक भुनभुनाता रहा जब तक कि रिचर्ड के कंधों पर लदी जसबीर और मैंडी बाहर नहीं आ गईं। रिचर्ड ने केवल एक बीयर पी थी क्योंकि ड्राइव करने की आज उसकी बारी थी। पिछली बार सतनाम के लिए लंबे-चौड़े रिचर्ड को लादकर कार तक लाना भी मुहाल हो गया था।
'स्टिल हियर मेट? यू मस्ट बी फ्रोजन?' रिचर्ड ने सतनाम से हमदर्दी जताई। शिष्टाचार के मुताबिक रिचर्ड के साथ आगे की सीट पर सतनाम को बैठना चाहिए था किंतु रिचर्ड ने जसबीर को बड़े प्यार से पैसेंजर सीट पर बैठा दिया। सतनाम को लगा कि जसबीर की बैल्ट बांधने में रिचर्ड जरूरत से कुछ ज्यादा समय ले रहा था। सतनाम को निकट आते देख रिचर्ड ने बिजली के खंबे से टिकी मैंडी को भी पीछे की सीट पर धकेल दिया। अधलेटी मैंडी को किसी तरह सीधा बैठाकर सतनाम ने अपने बैठने के लिए जगह बनाई। संभल कर बैठने के प्रयत्न में मैंडी लुढ़क कर उसकी गोद में आ लेटी।
'पुअर डार्लिंग, लेट मी वार्म यौर हैंडस।' सतनाम के बर्फीले हाथ अपने नर्म और गर्म हाथों में लेती हुई मैंडी बोली। इस बार सतनाम ने अपने हाथ पीछे नहीं खींचे; ठंड के मारे उसके दाँत किटकिटा रहे थे।
रात के करीब दो बजे रिचर्ड ने जसबीर और सतनाम को उनके घर के बाहर उतारा। कार से जसबीर को निकालकर वह किसी तरह ऊपर लाया; जहाँ बीजी खड़ी सतनाम को ऐसे घूर रही थीं कि जैसे जसबीर की इस हालत का जिम्मेदार वही था। जसबीर पलंग पर लेटते ही खुर्राटे भरने लगी।
दर्द के मारे सतनाम का सिर फटा जा रहा था; उसे तेज बुखार था। मन हुआ कि उठकर गुसलखाने में जाकर दवाई ढूँढ़े किंतु वह उठ नहीं पाया। आँख लगी ही थी कि उसने एक डरावना सपना देखा। पब के बीचों-बीच रखी पूल-टेबल पर उसे सीधा लिटाकर जसबीर और कैथी ने उसके दोनों हाथ कसकर पकड़ रखे थे। नंग-धड़ंग मैंडी उसकी टाँगों पर बैठी धीरे धीरे उसकी पैंट के बटन खोल रही थी। सतनाम की पैंट उतारकर हवा में घुमाते हुए मैंडी ने उसे पास ही रखे एक कूड़ेदान में फेंक दिया, जिसमें गाढ़े शोरबे से लथपथ चिकन और मीट की हड्डियाँ भरी थीं। सतनाम के 'नहीं नहीं' करने के बावजूद मैंडी ने एक झटके से उसका जांघिया उताकर रिचर्ड के मुँह पर दे मारा, जो गुस्से में मैंडी से सतनाम को छोड़ देने का आग्रह कर रहा था। आसपास खड़े लोग तालियाँ बजा-बजा कर शोर मचाने लगे। पसीने में डूबा हुआ सतनाम हड़बड़ा कर उठ बैठा; उसके आँसू और पसीना एक होकर बह रहे थे।
चंडीगढ़ में होता तो बुखार में तप रहे सतनाम के परिवार ने अब तक पूरा मोहल्ला सिर पर उठा लिया होता। माँ मन्नतें मान रही होती, बड़ी बहन बिंदर ठंडी पट्टियाँ उसके माथे पर रखती तो छोटी शिंदर उसकी गर्म हथेलियों को फूँक मार-मार कर ठंडा करने की चेष्टा करती। डॉक्टर पुरी को पिता तब तक घर नहीं लौटने देते, जब तक वह पूरी तरह से स्वस्थ न हो जाता। डॉक्टर पुरी के बाहर निकलते ही आ धमकते थे उसके यार-दोस्त, जो कहा करते थे लंदन की मौज-मस्ती में वह उन सबको भूल जाएगा। वह अब उन सबसे फोन पर बात करने को भी तरस गया था।
सतनाम उस दिन को कोसने लगा जब वह अपने दोस्त राजीव के विवाह में जसबीर से मिला था; न वहाँ जाता और न ही उसे ये दिन देखने पड़ते। राजीव हरभजन का भांजा था, जिसके विवाह में सम्मलित होने के लिए वह परिवार समेत चंडीगढ़ पधारे थे। बारात में भंगड़ा करते सलोने-सुरूप सतनाम को देखकर जसबीर पहली ही नजर में उसे अपना दिल दे बैठी थी।
मिठाइयों के डिब्बों, फलों के टोकरों, मेवों की तश्तरियों और तरह तरह के फूलों के गुलदस्तों से लदे फदे लांबा परिवार को अपने द्वार पर हाथ जोड़े खड़ा देखकर सतनाम के परिवार वाले भौंचक्के रह गए थे। इतना सामान रखने के लिए तो उनके घर में जगह भी नहीं थी। जैसे ये सब कुछ कम था; जसबीर के पिता हरभजन लांबा ने अपने प्रतिष्ठित व्यापार में सतनाम को सम्मिलित करने का इशारा भी कर दिया था। सतनाम के परिवार को उन्होंने सोचने की मोहलत तक नहीं दी थी। वे न करते भी तो किस बुनियाद पर या फिर किस औकात से?
जसबीर के उन्मुक्त और खिलंदड़े स्वभाव से घबराए हुए सतनाम की किसी ने नहीं सुनी। सभी कह रहे थे कि विदेश में पली-बढ़ी युवतियाँ चाहे मुँह-फट हों, दिल की साफ और सच्ची होती हैं किंतु न जाने क्यों सतनाम का मन नहीं मान रहा था।
'काक्के, औत्थे दी साफ सुथरी हवा, वदिया खाना-पीना, लाइफ विच कोई वरी-शरी नईं, जस्सी चब्बी ए, अस्सां ओन्नुं मोटा नई कै सकदे।' बुआ तो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी।
'सत्ती, हुन देखीं, तेरी पैन्ना दा व्याह किंवे फटाफट होऊगा।' माँ को भी अपनी बिन-ब्याही बेटियों के भविष्य के आगे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था।
'भगवान देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है।' सभी एक स्वर में कह रहे थे किंतु फिर भी सतनाम चिंतित था; कहाँ उसका सीधा-सादा परिवार और कहाँ ये अमीर और दिखावटी लोग, जो अपनी बेटी की खुशी के लिए कोई भी कीमत देने के लिए तैयार थे। सतनाम को लगभग घसीटती हुई जसबीर लोगों से ऐसे मिलवा रही थी कि जैसे वह उसकी एक जीती हुई ट्रौफी था।
चट मँगनी और पट ब्याह हो गया था सतनाम और जसबीर का। गोआ जाकर उनका रजिस्टर्ड विवाह भी फटाफट करवा लिया गया था ताकि वीजा की कार्यवाही शुरू की जा सके और सतनाम जल्दी से जल्दी ब्रिटेन पहुँच सके।
सगाई से लेकर विवाह तक जसबीर और उसके घरवाले आदर्श परिवार के रूप में सामने आए थे। गोआ में हनीमून के दौरान सतनाम को लगा कि जसबीर एक अलमस्त युवती थी, जिसकी हवस का कोई ठिकाना नहीं था। उसने अनुमान लगाया कि दोस्तों के बीच जिस प्यार-मुहब्बत का जिक्र छिड़ा रहता था, वो यही हवस होती होगी। वह केवल बाईस बरस का था; अब तक उसने केवल माँ और बहनों का लाड़ ही जाना था। प्यार-मुहब्बत और हवस की यह पहली खुराक उसके लिए काफी दमदार साबित हुई थी; वहाँ कोई अपना सगा भी न था, जिससे वह अपना दर्दे-दिल बाँट सकता।
सतनाम के लंदन पहुँचते ही हालात तेजी से बदलने लगे। परस्पर-विरोधी मनोभावों से जूझते हुए सतनाम ने अपने को एक ऐसे परिवेश में पाया जिसके लिए वह बिल्कुल भी तैयार न था। जसबीर और उसके घरवाले सुबह से शाम तक व्यस्त रहते; उनकी इस दौड़ में सतनाम कब शामिल हो गया और कब वह अपना आत्म-सम्मान खो बैठा, उसने जाना ही नहीं।
'इस कंट्री में तो पुत्तर तैन्नुं सबी कुज आप्पे ई करना पऊगा।' कपड़े और बर्तन धोने की मशीनें, हूवर, डस्टिंग, कार-वाश, मिक्सर-जूसर, टोस्टर, कैटल और न जाने कितने गैजेटस को चलाना उसे एक ही बार में सिखा दिया गया था। इधर बीजी 'इंडियन बौएज' को कोसतीं, जिन्हें 'इंडियन माँएँ' सिर पर चढ़ाकर रखती थीं तो उधर आते-जाते जसबीर का छोटा भाई धर्मेंद्र अपने जीजा को 'डंब' अथवा 'मेड इन इंडिया' कह कर चिढ़ाता रहता। अवमानना से सतनाम की नसें चटक-चटक उठतीं। जसबीर उसकी कोई शिकायत सुनने को तैयार नहीं थी। राजकुमारी एकाएक ऐसी चुड़ैल में बदल गई थी, जिसे आधी रात को संभोग के सिवा कुछ नहीं सूझता था और वह भी फूहड़ और अपारंपरिक सैक्स, जिसमें वह सतनाम को दबोचे रहती। पति की भूख जगाकर उसे हाइ-एंड-ड्राई छोड़ करवट बदल कर सो जाना सजा थी सतनाम की जब कभी वह जसबीर अथवा उसके परिवार के किसी सदस्य को नाराज कर बैठता था; जो एक आम बात थी। सतनाम अपने जलते और ऐंठते हुए बदन को शौवर के नीचे खड़ा होकर ठंडा किया करता। यह उसने बहुत समय के बाद जाना कि मर्द को वश में रखने का यह सुझाव बीजी का ही था।
'ये इंडिया नईं है साहबजादे, लैक्ट्रिसिटि ऐत्थे बौत मैंगी है।' सुबह-सुबह ससुर सतनाम को शयनकक्ष की लाइट जली छोड़ देने के लिए लताड़ते जो असल में उनकी लाड़ली बेटी जली छोड़ जाती थी। रही-सही कसर धर्मेंद्र पूरी कर देता था, कभी पानी खुला छोड़ देता तो कभी खाली माइक्रो को औन कर देता; झाड़ पड़ती थी बेचारे सतनाम पर। सुबह की ही तो बात थी, कुछ टूटने की आवाज सुनकर जसबीर और बीजी दौड़ी-दौड़ी रसोई में आ पहुँचीं तो देखा कि फर्श पर क्रिस्टल का जग चूरा-चूरा हुआ पड़ा था।
'ओह माइ गौड! एन्ना मैंगा जग किन्ने सुट्टया? बीजी ने पूछा।
'मेड इन इंडिया ने।' सतनाम की ओर इंगित करते हुए धर्मेंद्र बोला।
'की मतलब? वाट डू यू मीन?' जसबीर ने धर्मेंद्र को घूरते हुए पूछा।
'मेड इन इंडिया, चीप ऐंड अनरिलाएबल,' धर्मेंद्र फुसफुसा कर हँस दिया।
जसबीर ने गुस्से में आकर धर्मेंद्र के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया। उस तमाचे ने धर्मेंद्र के मन पर एक ढक्कन लगा दिया, जिसमें पहले से ही खदक रही थी बहन के प्रति घृणा और बहनोई के प्रति वैमनस्य का गाढ़ा और कड़वा काढ़ा, जिसका तापमान ऊँचा बनाए रखने के लिए बाऊजी का जसबीर के प्रति अपरिमित लाड़-दुलार काफी था।
'तर्मिंदर नु तुसी कोई तमीज नई सिखाई हैगी। सतनाम दी फेर कदे इन्सल्ट कीत्ती ते तूं देखीं।' जसबीर ने बीजी और धर्मेंद्र को घूरते हुए कहा। पिछली रात को ही सतनाम ने जसबीर को बताया था कि धर्मेंद्र किस-किस तरह उसे परेशान करता रहता था और यह थप्पड़ शायद उसी का नतीजा था। बीजी और धर्मेंद्र सतनाम को ऐसे घूर रहे थे कि जैसे सारे विवादों की जड़ केवल वही था; सतनाम को अपना भविष्य अब और भी अंधकारमय लग रहा था।
'काक्का ते सिरफ जोक कर रया सिग्गा। प्रिंस फिल्लिप ने वी केया सी के इंडियन्स दा कम्म अनरिलाएबल हुंदा ए?' बीजी ने धर्मेंद्र की तरफ से सफाई देने का प्रयास किया।
'ते तू गोरयाँ नूं वड्डा रिलाएबल समजदी ऐ?' हरभजन ने बीजी से मानो उनकी बुद्धि पर तरस खाते हुए पूछा। हाल ही में एक गोरा कारीगर उनसे पाँच सौ पाउंडस एडवांस लेकर गायब हो गया था और उनका पोर्च अब तक आधा खुदा पड़ा था। गुस्से में तमतमाए हुए धर्मेंद्र ने घर से बाहर निकलते वक्त दरवाजा इतनी जोर से बंद किया कि पूरा घर हिल गया।
'कम्म दा न काज दा... तूं औन्नु बौतई सर चढ़ा रखा हैगा।' हरभजन ने अपना गुस्सा बीजी पर निकाला। उनके लिए तो बेटा सचमुच नाकारा था, जिसने मुश्किल से दसवीं पास की थी। खेल-कूद में सदा अव्वल आने वाली उनकी प्यारी बेटी जसबीर पढ़ाई-लिखाई में भी सदा अव्वल आती थी।
बीजी और धर्मेंद्र अब दबी जुबान से सतनाम को 'मेड इन इंडिया' कह-कह कर चिढ़ाने लगे। धीरे-धीरे छइयाँ-छइयाँ के कर्मचारी भी उसे 'मेड इन इंडिया' कहकर पुकारने लगे; किंतु प्यार और सम्मान से। सतनाम ने तय कर लिया कि वह प्यार, मेहनत और ईमानदारी से एक दिन सबका दिल जीत कर रहेगा।
एक ही साल में जसबीर का रंग-रूप और हाव-भाव सब बदल गए थे। सतनाम के छरहरे बदन के सामने वह और भी मोटी लगने लगी थी; उनकी उम्र का फासला और भी बड़ा दिखाई देने लगा था। जसबीर को न घर के किसी काम में दिलचस्पी थी और न ही छइयाँ-छइयाँ के संचालन में, जहाँ सारे कर्मचारी उसे 'मेड इन इंडिया की अम्मा' के नाम से पुकारने लगे थे।
छइयाँ-छइयाँ खूब जोर-शोर से चल रहा था। घर का काम निपटा कर बीजी भी दोपहर का खाना लेकर वहाँ पहुँच जातीं और फिर पाँच बजे तक स्टोर में उनका हाथ बँटाकर रात के भोजन की व्यवस्था के लिए घर लौट जातीं।
'इस स्टोर नूं असां वड्डी मेनत मशक्कत नाल खड़ा कीत्ता है...' हरभजन शायद सतनाम को वे सब कष्ट देने पर तुले थे, जो उन्होंने शायद इस देश में आकर बसने के लिए सहे होंगे।
'कम्म लर्न करना ए तो, पुत्तर, मेनत तो करनी ई पऊगी। लांबा साब ने वी पैल्ले हैवी-हैवी बक्से उठाए ते जाके आज सान्नु ए दिन नसीब होया।' बीजी की निगरानी में सतनाम भारी-भारी पेटियाँ ढोकर अंदर लाता, खोलता और उनमें भरा सामान दुकान में सजाता किंतु बीजी की नाक हमेशा चढ़ी ही रहती।
'पुत्तर, तू ते बड्डा क्लमजी ए।' जरा कोई चीज सतनाम के हाथ से फिसली नहीं कि बीजी ताने मार-मार कर उसका नाक में दम कर देतीं। जैसे ही सामान से लदा ट्रक दुकान के आगे लगता, बीजी धर्मेंद्र को किसी काम से बाहर भेज देती ताकि उसे भारी सामान न उठाना पड़े।
रविवार को छइयाँ-छइयाँ पाँच बजे बंद हो जाता था। पत्नी के साथ कुछ समय बिताने के लिए सतनाम जल्दी-जल्दी घर पहुँचता तो जसबीर घर से निकल चुकी होती। कुछ एक बार वह जसबीर के साथ गया भी तो उसे लगा कि जसबीर के दोस्त बड़ी परिष्कृतता से उसका मजाक उड़ाते थे। जसबीर का पुरुषों को गले लगाकर उन्हें चुंबन देना सतनाम को बिल्कुल पसंद न था और न ही वह उसकी सहेलियों को गले लगाकर चूमने में प्रसन्न था।
जब कभी जसबीर दफ्तर से सीधे घर आ भी जाती तो वह ढेर सी मोमबत्तियाँ जलाए घंटों टब में पड़ी रहती। वही जसबीर जो गोआ में सतनाम के साथ शावर लेने कि लिए उद्यत रहती थी, अब उसे 'नौट नाउ' कह कर टालने लगी थी। दफ्तर जाने से पहले, 'सी यू, हनी,' कहते हुए वह एक चुंबन हवा में छोड़ती निकल जाती थी, शायद अपने परिवार को दिखाने के लिए कि सब ठीक था।
'होर किन्नी रोट्टी लेगा, पुत्तर।' नाश्ते अथवा खाने के वक्त बीजी पूछतीं तो सतनाम के तन-बदन में आग लग जाती। उसे अपनी माँ की याद आती जो बहनों को रोटी-पराँठे गिनने पर भी डाँटती थी, चाहे बची हुई रोटियाँ गाय को ही क्यों न डालनी पड़ें। बाकी के लोगों की तरह उसे फल, चौकलेट और चिप्स आदि चुट-पुट खाने की तो आदत थी नहीं और इसलिए वह अधिकतर भूखा ही रहने लगा था।
'ए मुंडा कित्थे गैब हो गया?' सतनाम की आँख सुबह लांबा साहब की ऊँची आवाज से खुली, जो सतनाम को कार में न देख अधीर हो उठे थे। उन्होंने पीछे बैठे हुए धर्मेंद्र से कहा कि वह अंदर जाकर देखे कि मामला क्या था। गुस्से में धर्मेंद्र पाँव पटकते हुए घर में घुसा और अंग्रेजी में माँ-बहन की गालियाँ देते हुए नीचे से ही हाँक लगाकर वापिस बाहर आकर कार में बैठ गया।
'काक्के, अज वर्क ते नईं जाना?' आखिर में झल्लाती हुई बीजी ऊपर पहुँची।
'बीजी, मैन्नुं फीवर हैग्गा।' लिहाफ में अपने को कसकर लपेटते हुए सतनाम बोला।
'अद्दी-अद्दी रत्ती तुस्सां लोकी कुम्मोगे तो एहो इ होऊगा।' दरवाजे पर खड़े-खड़े बीजी ने कहा।
'मैन्नुं जस्सी ले कर गई सी, मुझे कोई शौक नहीं है देर-वेर से घर लौटने का।' सतनाम की आँखों से गर्म गर्म आँसू लुढ़क कर तकिए में समाने लगे।
'मैं तैन्नु चा-नाश्ता दिंदी हाँ, हज्ज तू मेरे नाल चलीं,' बीजी ने तरस खाकर उसे कुछ घंटों की मोहलत तो दे दी किंतु सतनाम के माथे पर हाथ रखकर यह तक नहीं देखा कि उसे बुखार था भी कि नहीं।
'हज्जे तू औल रैट होया के नईं?' दोपहर को नीचे से ही बीजी ने चिल्लाकर पूछा और जवाब न मिलने पर वह उसे छोड़कर दुकान पर चली गईं।
सतनाम दो साल के 'स्पाउस वीजा' पर ब्रिटेन आया था, अनिश्चित-कालीन रिहाइश के लिए भी वह जसबीर पर निर्भर था। जब कभी चंडीगढ़ से फोन आता, वह अपनी मायूसी परिवार पर जाहिर नहीं होने देता था। बहनें भाभी से बात करने की फर्माइश करतीं तो जसबीर सिर हिलाकर सतनाम को इशारा कर देती कि उसे उनसे बात नहीं करनी। मम्मी-पापा को पैसा भेजने की बात तो एक तरफ, सतनाम की जेब लगभग खाली रहती थी।
सतनाम को लग रहा था कि जैसे सिर पर एक छत और दो वक्त की रोटी के बदले में उसका जीवन गिरवी रख लिया गया था।
लंच के समय बीजी हरभजन और धर्मेंद्र को आवाज देतीं पर कभी सतनाम से नहीं कहतीं कि वह भी खाना खा ले। उसके लिए वह अलग से एक डिब्बा लाती थीं जिसमें चार रोटियाँ और रात की बची दाल-सब्जी होती थी, जिसे वह किसी कोने में खड़े-खड़े ही खा लेता था। टिल पर बैठने वाली एक युवती शायला उसे अकेले उदास बैठे देखती तो कभी कभी उसे अपने साथ भोजन के लिए बुला लेती थी। कर्मचारियों से उसकी दोस्ती भी बीजी को मंजूर न थी; किसी न किसी बहाने वह उसे हाँक लेती थीं। अधिकतर कर्मचारी वहाँ गैर-कानूनी तौर पर काम कर रहे थे इसलिए अप्रसन्न होते हुए भी वे डर के मारे कुछ कहते नहीं थे कि नौकरी से निकाल न दिए जाएँ। सतनाम उनसे भी अलग रहने लगा कि उसकी वजह से उन्हें परेशान न किया जाए। एक शायला ही ऐसी थी जिसे किसी की परवाह नहीं थी और इसका फल उसे जल्दी ही भोगना पड़ा।
'ऐसा तो कोई अपने दुश्मन के साथ भी सुलूक नहीं करता जैसे कि आप लोग अपने दामाद के साथ करते हैं, ओके?' शायला का बात-बात में 'ओके' कहना सतनाम को अच्छा लगता था; उसके इस तकिया-कलाम से उसकी संवेदनशीलता और साफगोई झलकती थी।
'अल्ला-ताला से तो डरिए। किसी की बद्दुआ आपको एक दिन बर्बाद करके छोड़ेगी, ओके?'
शायला उन्हें खुले-आम भला-बुरा कहती हुई चली गई। सतनाम का मन हुआ कि वह भी उसी समय दुकान छोड़ कर चला जाए पर कहाँ और कैसे? न उसके पास पैसे थे और न ही पासपोर्ट। शायला उसे कुछ बताना चाहती थी किंतु बीजी ने जल्दी से सतनाम को दुकान का पिछवाड़ा साफ करने भेज दिया।
'हाउ इज यौर मिस्ट्रैस नाउ?' रात को सोते समय जसबीर ने सतनाम से पूछा और बिना उसका जवाब सुने करवट लेकर लेट गई।
'मेरी मिस्ट्रैस? तुम लोगों का कोई धर्म-ईमान भी है कि नहीं?' चाहकर भी सतनाम चुप न रह सका।
'बाउजी-बीजी ने तुमारे लिए क्या नइ किया? रैने के लिए गर दिया, जौब दी, बीजी तुमे सुबे शाम फ्रैश रोटी बनाके खिलाती है, और तुम उनी की बुराई उनी के वर्कर्स से करते हो?' जसबीर फनफनाती हुई उठकर बैठ गई।
'मेरा गुनाह सिर्फ इतना है कि मैंने वर्कर्स के साथ लंच शेयर करने की जुर्रत की।' सतनाम की आवाज भर्रा गई और आँखें भर आईं।
'तुमें नौकरों के साथ लंच करने की क्या जरूरत थी?'
'तो किसके साथ करता? बीजी तो मुझे कभी खाने के लिए भी नहीं बुलातीं।'
'बीजी के अगेंस्ट मैं कुछ नई सुनना चाहती; शी इज सो काइंड।'
'तुमने मेरी कभी सुनी ही नहीं। सबको मैं इतना ही बुरा लगता हूँ तो मुझे तुम लोग वापिस क्यों नहीं जाने देते? मेरी और तुम्हारी सबकी मुश्किलें हल हो जाएँगी।' हारा हुआ सतनाम कुर्सी पर धँस गया।
'ओह, सो यू वांट डिवोर्स? तुम्हें कोई और मिल गई है क्या?'
'मुझे तो किसी से बात करने की भी इजाजत नहीं है। बेचारी शायला ने मुझ पर जरा सी दया क्या दिखाई कि बीजी ने उसे भी नौकरी से निकाल दिया।'
'पर वे तो कह रहे थे कि तुम...'
'क्लम्जी हूँ, लेजी हूँ, डंब हूँ, और्थोडौक्स हूँ, यही न? ठीक है, मेरा पासपोर्ट और टिकेट दे दो, मैं अभी इसी वक्त इंडिया वापिस जाना चाहता हूँ।'
'तुमें हमेशा इंडिया जाने की क्यों पड़ी रहती है?'
'जब से मैंने अपना घर छोड़ा, मुझे आज तक कभी पेट भर रोटी भी नसीब नहीं हुई। मैं अपने मम्मी-पापा और बहनों से बात करने को भी तरस गया हूँ। आज तक बाउजी ने मुझे कभी पाँच पौंड तक नहीं दिए कि मैं...।'
'यह सब तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?' जसबीर थोड़ी नर्म पड़ी।
'जैसे तुम्हें बताने की जरूरत है; और फिर कहने से भी क्या फायदा?'
'कल मैं डैड से बात करूँगी।' इसके पहले कि सतनाम कुछ और कहता, जसबीर ने उसे खींचकर बिस्तर पर अपने साथ लिटा लिया किंतु 'सैक्स औन डिमांड' की पक्षधर जसबीर को सतनाम उस रात भी संतुष्ट नहीं कर पाया।
खैर, अगले दिन से हालात सुधरने लगे। सुबह-सुबह हरभजन ने सबके सामने बीस बीस के दो नोट उसकी जेब में जबरदस्ती ठूँस दिए, बीजी ने रोटियाँ नहीं गिनाईं और दुकान पर बाउजी ने उसे पहली बार टिल पर बैठने दिया। दोपहर के भोजन के लिए बीजी ने उसे भी आवाज दी और शाम को सतनाम को सिनेमा ले जाने जसबीर स्वयं आ पहुँची।
सतनाम को लगा कि जैसे गोश्त के छोटे-छोटे टुकड़े उसकी ओर फेंके जा रहे थे ताकि वह उनके चक्रव्यूह से निकलने का प्रयत्न छोड़ दे। कम से कम बीजी का बनावटी स्नेह प्रत्यक्ष था, लांबा साहब और धर्मेंद्र का नजरें चुराना उसे अधिक खतरनाक लग रहा था। वह जोर-शोर से अपने पासपोर्ट और टिकेट के बारे में पूछताछ करने लगा। 'स्पाउस वीजा' की मियाद भी अब पूरी होने को आई थी।
'बीजी, एन्ना दा पासपोर्ट तुस्सी कित्थे रखा ए?' जसबीर ने बीजी से पूछा।
'पुत्तरजी, मैन्नु की पता।'
'मैं त्वानु ई ते दित्ता सी, ऐन्ना दा स्पाउस वीजा चेंज कराना है और अस्सी इंडिया जान लई वी सोचदे हाँ। बीजी, प्लीज फाइंड अवर पासपोर्ट्स।' होम-औफिस से रिमाइंडर मिलने पर ही बीजी ने अपने लौकर्स से पासपोर्ट्स निकालकर जसबीर को दिए ताकि वे दोनों होम-औफिस जाकर सतनाम के 'स्पाउस वीजा' को वैध करा सकें।
चार दिन की चाँदनी के बाद अँधेरी रातें बार-बार लौटने लगी। जब-जब सतनाम भारत लौटने की बात करता, सबका व्यवहार कुछ दिनों के लिए सुधर जाता। जानते हुए भी कि वे लोग उसके साथ खिलवाड़ कर रहे थे, वह कुछ नहीं कर पाता।
इसी बीच लोड़ी का त्योहार मनाने के लिए सतनाम लांबा परिवार के साथ हैस्टन स्थित भंगड़ा-क्लब में गया तो देखा कि युवक-युवतियों को लोक-नृत्य के नाम पर भोंडे करतब करवाए जा रहे थे। सतनाम के पारंपरिक और मन-भावन नृत्य को देखकर लोग प्रभावित हुए बिना न रह सके। भंगड़ा-क्लब के संचालक, कुलबीर साहनी ने स्वयं उससे अनुरोध किया कि वह उसके छात्रों के लिए कुछ समय निकाले। सतनाम खुशी-खुशी मान गया। अगले ही इतवार को कुलबीर लांबाज के द्वार पर हाजिर था। लांबा परिवार से सतनाम की यह छोटी सी खुशी भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी किंतु कुलबीर और उसके पिता को, जो पुराने गुरुद्वारे के प्रधान थे, नाराज करना लांबाज के लिए असंभव था।
इसी बीच एक दिन छइयाँ-छइयाँ की एक अन्य कर्मचारी, बिन्नी के माध्यम से शायला ने सतनाम को आगाह किया कि उसे जल्दी से जल्दी भारत लौट जाना चाहिए। पहले तो सतनाम ने सोचा कि लांबा द्वारा नौकरी से निकाल दिए जाने की वजह से शायला उसे भड़का रही थी। किंतु जब शायला ने बिन्नी के हाथ जसबीर के पहले विवाह के मैरिज-सर्टिफिकेट की कौपी भिजवाई तो उसके कान खड़े हो गए।
जसबीर के पहले पति का नाम रविकिरण था, जिसने लांबा परिवार से पंगा लेने की जुर्रत की थी। शायला ने कहलवाया था कि कहीं लांबा परिवार रवि की ही तरह उसे भी ठिकाने लगाने की न सोच रहे हों। सतनाम ने अपने और जसबीर के सहकर्मियों से रवि का जिक्र कई बार सुना था किंतु उसने यही अनुमान लगाया था कि रवि जसबीर का ब्वाय-फ्रैंड रहा होगा। यदि वह तलाकशुदा थी भी तो वह अब क्या कर सकता था?
रविवार को बातों-बातों में कुलबीर ने सतनाम से उसके परिवार के विषय में पूछा तो सतनाम के मुँह से निकल गया कि उसने अपनी माँ से कोई डेढ़ महीने से बात नहीं की थी। अपना मोबाइल उसे देते हुए कुलबीर ने उससे चंडीगढ़ बात करने की जिद की।
'आप जी स्विटजर्लैंड से इतनी जल्दी कैसे वापिस आ गए?' शिंदर ने शिकायत की।
'स्विटजर्लैंड? यह तू क्या कह रही है, शिंदर?' सतनाम ने पूछा।
'किशन भाई जी अमरीका जाते समय दो दिन लंदन रुके थे। आपसे मिलना चाहते थे। उन्होंने इतवार को फोन किया तो धर्मेंद्र ने बताया कि आप और भाभी जी स्विटजर्लैंड घूमने गए हो।'
इतना झूठ, इतनी मक्कारी? सतनाम को लगा कि यह सब उसके बर्दाश्त के बाहर था। उसे उदास और परेशान देखकर कुलबीर उसे जबरदस्ती अपने घर ले गया, जहाँ जसबीर के पहले विवाह के कुछ और राज खुले। रात देर तक बैठा कुलबीर उसका दुख-दर्द बाँटता रहा। जसबीर और रविकिरण कालेज में उसके साथ ही थे। माँ-बाप के टोकने पर जसबीर घर से भाग गई और रविकिरण के साथ रहने लगी। बदनामी से बचने के लिए हरभजन ने दोनों का विधिवत विवाह करवा दिया किंतु उन दोनों की छह महीने भी नहीं पटी।
देर रात गए सतनाम कुलबीर से अपनी दुखड़ा रोता रहा; यह पहला मौका था कि वह किसी से खुलकर अपने मन की बात कह सका था। कुलबीर के रूप में उसे एक अच्छा दोस्त मिला था; उसके घरवालों के स्नेहपूर्ण व्यवहार से भी उसकी हिम्मत बंधी और वह अपना भविष्य सँवारने के लिए वह कमर कस कर तैयार हो गया। कुलबीर के चाचा, काउंसलर भल्ला, साउथहौल के एक जाने माने राजनीतिज्ञ थे, जिनकी मदद से सतनाम का पासपोर्ट लांबाज से निकलवाया जा सकता था। यदि वह छइयाँ-छइयाँ में काम नहीं करना चाहता तो भाँगड़ा, ढोल और गाना सिखाने की एवज में उसकी अच्छी कमाई हो सकती थी। फिलहाल सतनाम ने शनिवार को भी भाँगड़ा सिखाने का काम सँभाल लिया।
घर लौटकर जब सतनाम ने स्विटजर्लैंड के विषय में पूछताछ की तो धर्मेंद्र को झूठ-मूठ डाँट कर सतनाम को शांत करने की चेष्टा की गई; इस झूठ में वे सभी शामिल थे। उसे विश्वास में लेने के लिए जसबीर ने बीजी और बाउजी को धमकी भी दे डाली कि वह अब इस घर में नहीं रहेगी। मौका देखकर सतनाम ने उन्हें अपनी नई नौकरी के बारे में भी बता दिया।
सबको जैसे साँप सूँघ गया।
'नचना ते नचाना वी कोई रिस्पैक्टेबल जौब होई?' जसबीर ने कहा।
'पुत्तर जी, आपणा कम्म आपणा ही हुंदा ऐ।' बीजी बोलीं।
'नच नच के हुन ऐ सानुं सब नूं नचाएगा।' रात के खाने पर बाऊजी ने कहा तो सब हँसने लगे पर वह मजाक नहीं कर रहे थे।
सतनाम को भुलावे में रखने के लिए जोर-शोर से एस्टेट-एजेंटस के चक्कर लगाए जाने लगे; अपना अलग घर बसाने के लिए जसबीर बेताब लग रही थी किंतु सतनाम को उनमें से किसी पर विश्वास नहीं रहा था। झूठ बोलना-बुलवाना और मुकर जाना या फिर धर्मेंद्र अथवा बाउजी पर इल्जाम थोपकर अपने को निर्दोष साबित करने के लिए बीजी और जसबीर द्वारा प्रस्तुत नाटिकाएँ देख-देख कर सतनाम आजिज आ चुका था।
बाउजी और बीजी को अब यह फिक्र खाए जा रही थी कि बेटी का दूसरा विवाह भी टूटा तो वे समाज में किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे।
अगले ही दिन बीजी से यह कहकर कि उसे नए जूते खरीदने है, सतनाम छइयाँ-छइयाँ से निकला तो बीजी ने धर्मेंद्र को उसके पीछे लगा दिया; वे सभी बड़ी मुस्तैदी से जासूसी में लगे थे। उसे सचमुच जूतों की दुकान में घुसते देखा तो धर्मेंद्र संतुष्ट होकर लौट गया।
बिन्नी के माध्यम से शायला ने सतनाम को जूतों की दुकान में बुलवाया था, जहाँ अब वह मैनेजर थी। दुकान के नीचे गोदाम था, जहाँ ले जाकर उसने सतनाम को बताया कि करीब चार साल पहले दुकान पर रविकिरण और लांबाज की जम कर लड़ाई हुई; जसबीर को तलाक देने के बदले रविकिरण उनसे पचास हजार पाउंड्स की माँग कर रहा था। उस दिन के बाद वह फिर कभी दिखाई नहीं दिया। जब रवि के माँ-बाप के फोन पर फोन आने लगे तो हरभजन ने उन्हें यह कहकर चुप करा दिया कि ड्रग्स के सिलसिले में उनका बेटा किसी जेल में सड़ रहा था।
शायला का मंगेतर शौकत ग्रीन-स्ट्रीट थाने का इन-चार्ज था। एक कैदी के माध्यम से उसे यह जानकारी मिली थी कि रविकिरण को रास्ते से हटाने के लिए हरभजन ने एक अफ्रीकन बाउंसर को पाँच हजार पाउंड्स दिए थे।
'भाई-जान, आप जल्द से जल्द इंडियन एंबेसी में अपने नए पासपोर्ट के लिए एप्लिकेशन दे दीजिए, ओके?'
'पहले आपको पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी होगी कि आपका पासपोर्ट चोरी हो गया है या खो गया है।' शौकत ने बताया।
'यह सब कैसे होगा?' यह सब सुनकर सतनाम सचमुच घबरा गया था। अपने माँ-बाप का वह इकलौता बेटा था, जिनकी उम्मीदें लगभग टूटने को थीं।
'भाई-जान, घबराइए नहीं, शौकत आपकी मदद करेंगे, ओके?'
'ये लोग तो मुझे हैस्टन जाने से भी रोक रहे हैं, मैं एंबेसी के चक्कर कैसे लगाऊँगा?'
'आपके पासपोर्ट की कौपी मिल जाए तो नया पासपोर्ट बनवाने में आसानी हो जाएगी,' शौकत ने कहा।
'सचमुच? जस्सी तो कह रही थी कि इंडियन एंबेसी से कोई भी उम्मीद रखना बेकार है।'
'अरे भाई-जान, जानते हैं रोज कितने लोगों के पासपोर्ट चोरी होते हैं, मिसप्लेस हो जाते हैं या डैमेज हो जाते हैं? इसका मतलब कतई यह नहीं कि लोग यूके में बंद होकर रह जाएँ, ओके?' शायला ने उसे उम्मीद बंधाई
'थैंक यू,' भरे गले से सतनाम केवल इतना कह पाया।
'ये थैंक-यू वैंक-यू अपने पास ही रखिए, भाई-जान, ओके? आपको हमने अपना भाई मान लिया तो मान लिया और भूलिएगा नहीं, कल राखी है, ओके?' सतनाम की आँखें भर आईं।
'डिब्बे में गलत साइज के जूते हैं। कल इन्हें वापिस करने के बहाने आइएगा, ओके?' सतनाम के हाथों में एक डिब्बा थमाते हुए शायला शैतानी से बोली किंतु सतनाम का मूड फिर भी हलका नहीं हुआ।
'की होया, बौत देर लात्ती? मैन्नु शूज ते विखा।' छइयाँ-छइयाँ लौटते ही बीजी सतनाम के हाथ से डिब्बा लगभग छीनते हुए बोलीं।
'हैं ते सोन्ने। मैन्नु हुन्न ए दस कि पैहे किन्ने रोड़े?' सतनाम ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया तो वह जूते लिए अपने पति की ओर चल दीं।
'मैं कया, ऐन्ने सोने जुत्ते तो कदी तुस्सी वी नई पाए।'
'कदे हिम्मत ई नई होई कि जाके आपणे लई ऐन्ने मैंगे जुत्ते खरीदां।'
'अस्सां ते बच्च्यां दे लई जोड़ जोड़ के मर जाना ए,' बीजी ने जूतों का बारीकी से मुआयना करते हुए ताने मारने शुरू कर दिए।
'हुन्न ते मुंडा टीचर शीचर बन गया ऐ। अपनी नूं ते सस्स नू वी जुत्तियाँ-शुत्तियाँ दिला दे पई।' हरभजन कब पीछे रहने वाले थे।
अगले ही दिन जब सतनाम ने फिर से जूते की दुकान पर जाने को कहा तो बीजी बोल उठीं, 'तैन्नुं अपने जुतयाँ दा सैज वी नईं मलूम?' यकायक सतनाम को लगा कि बीजी को शक हो गया था। वह जल्दी से बाहर निकल गया।
'भाई-जान, यह पहली राखी आपकी बहनों की तरफ से और यह वाली हमारी तरफ से, ओके?' सतनाम की कलाई पर दो राखियाँ बांधकर शायला ने उसके मुँह में एक पूरा का पूरा लड्डू ठूँस दिया। सतनाम को बहुत पछतावा हुआ कि वह खाली हाथ क्यों चला आया था पर उसे तो बिल्कुल याद नहीं थी राखी वाली बात। उसकी जेब में जितनी भी चिल्लड़ थी, निकाल कर उसने शायला की मुट्ठी में भर दी, जिसे शायला ने माथे से लगाकर अपने पर्स में रख लिया; वह उसे रुसवा नहीं करना चाहती थी। फिर शायला ने चंडीगढ़ फोन मिलाकर सतनाम को दे दिया।
'की होया सत्ती पुत्तर? तू ठीक तो आ? ऐ शायला कौन ऐ? तेरा पासपोर्ट किवें गुम गया? तू कदे फून क्यों नई करदा हुन?' माँ ने उसे प्रश्नों से नहला दिया।
'भैया, आज राखी है, हम आप जी को सुबह से याद कर रहे हैं।' बहनों ने कहा तो सतनाम ने उन्हें तसल्ली दी कि शायला ने उनकी तरफ से भी उसे राखी बांधी थी।
कानों पर फोन लगाए, सभी रो रहे थे।
किसी तरह शायला ने समझा बुझा कर उन्हें शांत किया और उनसे सतनाम के पासपोर्ट की जानकारी हासिल कर ली। फौर्म भरवा कर शौकत उसे फटाफट फोटो खिंचवाने के लिए वुलवर्थ-स्टोर में ले गया।
'भाई-जान, अब यहाँ न आइएगा? उन्हें शक हो जाएगा। पासपोर्ट आ जाएगा तो हम आपको फोन पर खबर कर देंगे, ओके?'
'आप मेरा ये पुराना मोबाइल अपने पास रख लीजिए।' शौकत ने उसकी जेब में अपना मोबाइल-फोन डालते हुए कहा, 'इसमें बहुत से नंबर भरे हैं। कह दीजिएगा कि आपने एक पुराना फोन खरीदा है।'
'और हाँ, भाई-जान, हमारा नंबर इसमें नूतन के नाम से है, ओके? इन्हें वे लोग नहीं जानते, आप जब चाहें इनसे राबता कायम कर सकते हैं, घबराने की कोई बात नहीं है, ओके?'
सतनाम को लगा कि भगवान ने उसे तीन मुसीबतों से उबारने के लिए तीन फरिश्तों को भेजा था। वह हल्के मन और पाँव लिए छइयाँ-छइयाँ लौटा; कुलबीर, शायला और शौकत जैसे दोस्तों के होते हुए उसे किसका डर था? अब वह लांबाज से आसानी से निपट लेगा।
हमेशा की तरह रविवार की सुबह कुलबीर बाहर कार में सतनाम का इंतजार कर रहा था। कंधे पर अपना रक-सैक लटकाए वह बाहर निकला ही था कि पुलिस की एक कार आकर उसके पास आकर रुकी; दो स्मार्टलि-ड्रैस्ड वर्दीधारी उसके पास आकर खड़े हो गए।
'आर यू मिस्टर सतनाम?' एक ने पूछा।
'येस सर,' सतनाम बुरी तरह घबराया हुआ था।
'दिस इज यौर बैग?'
'येस सर,' सतनाम का गला सूख गया; वह बुरी तरह से भयभीत था। पुलिस की पूछताछ सतनाम को बहुत अपमानजनक लग रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वे उसकी तलाशी क्यों ले रहे थे।
एक पुलिस वाला सतनाम पर नजर रखे था; दूसरा उसके बैग की तलाशी ले रहा था। लांबाज के सिवा आस-पास के सभी घरों से लोग बाहर निकल आए थे अथवा खिड़कियों से झाँक रहे थे।
'वाट इज दि मैटर, औफिसर?' कुलबीर ने पूछा। सतनाम की जीभ तो तालु से चिपकी थी।
'मिसेज लांबा हैज इंफौर्म्ड दि पुलिस दैट मिस्टर सतनाम, हर हजबैंड इज रन्निंग अवे विद हर मनी एंड ज्यूलरी।'
'ही इज नौट रन्निंग ऐनिवेयर, औफिसर। एवरी संडे, वी गो टु हैस्टन टु टीच डांस टु दि लोकल किडस...' कुलबीर सफाई देने की कोशिश कर ही रहा था कि बैग में से पचास-पचास पाउंड्स की एक मोटी गड्डी और जेवरों से भरा एक डिब्बा निकाल कर पुलिसकर्मी ने उन दोनों के सामने कर दिया और सकपकाए हुए सतनाम से जिरह करने लगा।
'देयर मस्ट बी ए मिसअंडर्स्टैंडिंग, औफिसर...' उन्होंने कुलबीर की एक नहीं सुना। सतनाम को गिरफ्तार कर लिया गया।
कुलबीर ने भागकर लांबाज के दरवाजे की घंटी बजाई, जोर-जोर से दरवाजा खटखटाया किंतु कोई बाहर नहीं आया।
'डोंट वरी, सतनाम, मैं पुलिस-स्टेशन पहुँचता हूँ, हम तुम्हें बेल देकर छुड़ा लेंगे।' पुलिस कार के साथ चलते हुए कुलबीर ने भरे गले से कहा।
'प्लीज, नूतन और शौकत को फोन पर बता देना, मेरे फोन में उनके नंबर्स हैं।' संयोगवश, सतनाम ने अपना मोबाइल कल रात कुलबीर को दिया था; उसकी बैटरी डैड हो गई थी। कार के पीछे दौड़ते हुए कुलबीर ने उसे दिलासा देनी चाही किंतु सतनाम को कुछ सुनाई नहीं दिया। उसे लग रहा था कि जैसे उसके दिमाग की नसें फट जाएँगी। वह सफाई दिए बिना मर गया तो? उसके बैग में इतने पैसे और जेवर कहाँ से आए? क्या जसबीर इतना नीचे गिर सकती थी? या यह सब बीजी और धर्मेंद्र का किया-धरा था?
थाने में अपराधियों की तरह सतनाम की फोटोज ली गईं, उसकी उँगलियों और अँगूठे पर काली सियाही पोत कर निशान लिए गए; एक गहरी गर्त में फिसलता चला जा रहा था सतनाम!
कुलबीर को समझते देर नहीं लगी कि यह सब लांबा परिवार का ही किया-धरा था। वे जान गए थे कि सतनाम उनके हाथ से निकल चुका था; उसको सबक सिखाने का यह अच्छा तरीका था। कुलबीर ने जल्दी से नूतन और शौकत को फोन पर बताया कि सतनाम के साथ क्या हुआ था और फिर वह सीधा अपने चाचा के पास पहुँचा, जहाँ जल्दी ही शायला और शौकत भी आ पहुँचे।
'आप नहीं जानते कि ये माँ-बेटी कितनी गई-गुजरी हैं और बाप तो बिल्कुल कसाई है कसाई। भाई-जान को फँसाने के लिए जसबीर या बीजी ने उनके बैग में पैसे और गहने रख दिए होंगे। अब क्या होगा, शौकत?' शायला सिसक रही थी।
'डोंट वरी, शायला, हमारे पास बहुत सारे सबूत हैं। अब हम उन्हें जेल भिजवाकर ही दम लेंगे।' शौकत ने शायला को दिलासा दी।
'नोटों और जेवरों पर सतनाम की उँगलियों के निशान तो उन्हें मिलने से रहे, वे सतनाम को जल्दी ही छोड़ देंगे। लांबाज को जेल भिजवाने के लिए हम सबकी गवाहियाँ ही काफी होंगी।' काउंसलर भल्ला ने भी तसल्ली दी।
काउंसलर भल्ला की जमानत पर सतनाम को जल्दी ही रिहा कर दिया गया किंतु वह अब भी सकते की हालत में था। सोफे पर लेटा हुआ वह छत को एकटक ताके जा रहा था। पड़ोस में रहने वाले डॉक्टर को बुलाया गया; सतनाम का रक्तचाप काफी बढ़ गया था। रात के दो बजे उसे नींद की गोली दी गई तब कहीं जाकर उसकी आँख लगी। उसे तसल्ली देने के लिए सब लोग कुलबीर के घर में ही ठहर गए।
सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी तो देखा दरवाजे पर माफियाँ माँगते और गिड़गिड़ाते हुए बीजी और हरभजन खड़े थे; सतनाम की बेल होते ही उन्हें समझ आ गया था कि वह अब अकेला नहीं था और यह भी कुलबीर के परिवार से बैर मोल लेकर उन्होंने अच्छा नहीं किया था। वे तो सिर्फ सतनाम को धमकाना भर चाहते थे; दुर्भाग्यवश पासा उल्टा पड़ गया था।
'अस्सां केस बापिस ले लित्ता ऐ। जसबीर नूं तुस्सी माफ कर देओ, औदी ते बुद्धी ई फिर गई सी।' बीजी कह रही थीं।
'जद ओन्नु पता लगया कि तू औन्नु छडके जा रया हैग्गा तो ओहो पागल हो गई,' हरभजन ने कहा। बेटी ने शायद उन्हें संवाद रटवा के भेजा था।
'या अल्लाह! शर्मो-लिहाज तो आप लोगों को छू तक नहीं गई। ओके? झूठ पर झूठ बोले चले जा रहे हैं।' शायला गुस्से में बोली।
'शैल्ला, साड्डे नाल वड्डी पोल्ल हो गई, पुत्तर, तू वी सान्नु माफ कर।' मौके पर संवाद गढ़ने में भी माहिर थीं बीजी।
'आपने अपने पहले दामाद के साथ जो किया सो किया पर भाई-जान के साथ जो आपने किया, उसके लिए तो आपको सजा भुगतनी ही होगी, ओके?' शायला की बात सुनकर बीजी और हरभजन के चहेरों पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।
'सान्नु माफ करो, बच्च्यां दी बेवकूफी की सजा सान्नु ते न दो।' बीजी फिर गिड़गिड़ाईं।
'हमें तो लगता है आप अपनी बेजा हरकतों से कभी बाज नहीं आएँगे, ओके?'
'सतनाम, पुत्तर जी, चाल हुन आपणे कार चलिए, जसवीर तेरी रा पई देखदी ऐ।' बीजी जोर से चिल्लाईं ताकि जहाँ भी हो सतनाम सुन ले।
'हमारे घर के आगे यह तमाशा न कीजिए। अब हम आपसे कोर्ट में ही निबटेंगे।' काउंसलर भल्ला ने बाहर कर जब उन्हें लताड़ा तो वे दोनों घबराकर अपनी कार में जा बैठे और एक दूसरे को भला-बुरा कहते हुए चले गए।
'भाईजान, आप बहुत सीधे हैं।' शायला को फिक्र थी कि कहीं जसबीर फिर न सतनाम को फुसला ले; कोई भी तो नहीं चाहता था कि जसबीर सतनाम से बात करे। कुलबीर के घर का फोन लगातार बज रहा था।
दूसरी सुबह जसबीर बिना फोन किए सतनाम के कपड़ों आदि से भरा एक सूटकेस लिए आ धमकी।
'प्राजी नू हुन एन्ना दी कोई लोड़ नई ऐ, तुस्सी ऐ सब बापिस ले जाओ।' कुलबीर ने उसे बाहर सी रफा-दफा कर दिया था। नए कुर्ते-पाजामें, तौलिए और न जाने क्या-क्या देकर गई थी शायला इस ताकीद के साथ कि सतनाम अपनी पुरानी जिंदगी से अब कोई नाता नहीं रखेगा। कुलबीर और उसके घरवाले भी सतनाम को सिर-आँखों पर उठाए थे।
मामला 'आउट औफ कोर्ट' सुलझाने के लिए लांबाज हाथ-पाँव मार रहे थे और पचास हजार पाउंड्स तक देने को भी तैयार थे किंतु सतनाम के वकील का कहना था कि उसे कम से कम पाँच गुना अधिक रकम मिल सकती थी, जिससे वह अपना नया जीवन फिर से शुरू कर सकता था। कुलबीर, शायला और शौकत के विचार में धन से अधिक आवश्यक था कि लांबाज को जेल भिजवाया जाए।
छह महीने होने को आए उस घटना को किंतु मामला अभी भी अदालत में अटका था। सतनाम तंग आ चुका था रोज रोज अदालत के चक्कर लगाते किंतु वह अपने दोस्तों के खिलाफ नहीं जाना चाहता था। मन ही मन उसने तय कर लिया था वह अपना जीवन संगीत और नृत्य के नाम कर देगा। उसे जो भी पैसा मिलेगा, उससे वह हैस्टन में एक आलीशान संगीत और नृत्य स्कूल की स्थापना करेगा, जिसमें एक आधुनिक साउंड-प्रूफ स्टूडियो भी होगा। इस स्कूल का नाम भी उसने सोच लिया था, मेड-इन-इंडिया, जिसके जरिए वह भारतीय संस्कृति और मूल्यों का प्रचार करेगा।
रविवार को जैसे ही सतनाम और कुलबीर भाँगड़ा-क्लब में घुसे, उन्हें हरभजन अकेले खड़े दिखाई दिए, जो उसे देखते ही जार-जार रोने लगे।
'जस्सी नूं बचा ले, काक्के।' जड़ से उखड़कर आधे गिरे हुए एक पेड़ की भाँति हरभजन दीन-हीन हालत में सतनाम के पैरों पर गिर पड़े। सतनाम से रहा नहीं गया। उसने उन्हें उठाया और कपड़े आदि झाड़कर उन्हें पानी पीने को दिया। उनका काँपना बंद हुआ तो उन्होंने बताया कि उनके वकील ने कहा है कि जसबीर और बीजी दोनों को जेल हो जाएगी।
सतनाम को न जाने क्यों अपने पिता की याद आ गई।
'पुत्तर, इसमें हंड्रेड थाउज़ैंड पौंड्स हैं; इन्हें सँभाल कर रख ले।' हरभजन ने ब्रीफकेस सतनाम को पकड़ाने ही जा रहे थे कि कुलबीर कूदकर उन दोनों के बीच आ खड़ा हुआ।
'आपको जो भी देना-लेना है, लायर्स के थ्रू कीजिए।' कुलबीर ने कहा। हरभजन के जाने के बाद उसने सतनाम से कहा कि उसे फँसाने की कहीं यह एक और चाल न हो।
'थैंक्स वीर, इन लोगों के लफड़े तो कभी खत्म नहीं होंगे। हम ही अपना समय वेस्ट कर रहे हैं।' सतनाम ने डरते-डरते कहा कि कहीं कुलबीर यह न सोचे कि वह पैसों के लालच में पीछे हट रहा था।
'चल फिर वकील से कैते हैं कि हम 'आउट औफ कोर्ट' के लिए राजी हैं।' कुलबीर ने कहा तो सतनाम के मन से एक भारी बोझ हट गया।
'जो भी कर, मैं नहीं चाहता कि हमारी इंडियन औरतें ब्रिटिश जेल में सड़ें।' सतनाम ने आखिर मन की बात कह ही डाली।
वकीलों की बहस आधे मिलियन पर जाकर रुकी; एक निर्दोष पर चोरी का इल्जाम लगाने और उसकी मानहानि की एवज में यह रकम कोई मायने नहीं रखती थी किंतु सतनाम एक नई जिंददगी शुरू करने के लिए बेताब था।
जाहिर था कि पैसों की खरी जसबीर जल्दी से जल्दी सतनाम को पटाती; एक आखिरी बार। कुलबीर के घर के सामने वाली बैंच पर जसबीर डेरा जमाकर बैठ गई।
'मैंन्नु सत्ती दे नाल गल्ल-बात करन लई एक मौका तो तुस्सी देना ई पऊगा।' वह कुलबीर की माँ से बोली।
'मैत्थों डरन दी कोई लोड़ नईं ऐ, कुलबीर। कि मैं कोई शेरनी हाँ के तेरे दोस्त नूं खा जावांगी?' उसने कुलबीर से पूछा।
'सजा-याफ्ता को एक मौका तो जल्लाद भी देता है।' वह शायला के आगे गिड़गिड़ाई। सतनाम नहीं जानता था कि जसबीर को इतनी सारी भाषाओं का ज्ञान था। उसे जसबीर से टक्कर लेनी ही होगी, अपनी सुरक्षा के लिए, अपने भविष्य के लिए और सबसे अधिक अपने आत्म-सम्मान के लिए।
सतनाम अब तैयार था।
कुलबीर, उसके घरवाले, शायला और शौकत चाहते थे कि सतनाम जसबीर से सबके सामने बैठक में मिले किंतु वे हैरान, परेशान और शायद आहत भी थे कि सतनाम जसबीर से अकेले में ही मिलना चाहता था।
सतनाम ने सोचा था कि हालात को ध्यान में रखते हुए जसबीर जरूर दुबली और कमजोर हो गई होगी। मन ही मन सतनाम डर भी रहा था कि उसे बेहाल देखकर कहीं वह पिघल ही न जाए। किंतु वह इस झटके के लिए बिल्कुल तैयार न था, कुछ ही महीनों में कोई इतना वजन कैसे बढ़ा सकता था? गायिका नूरजहाँ की तरह मोटी-ताजी जसबीर पूरे मेक-अप में थी। कपड़ों के नाम पर उसने एक लो-कट ट्यूनिक पहनी हुई थी, जो कमर पर केवल एक बैल्ट से बँधी थी। जैसे ही वह कुर्सी पर बैठी, उसकी लो-कट ट्यूनिक फैल गई और उसकी छातियाँ लगभग बाहर निकल आईं, जिन्हें सँभालने का उसने लेशमात्र भी प्रयत्न नहीं किया; वह सतनाम की कमजोरी जानती थी।
'तो हुन बस। साड्डा रिश्ता खतम?' जसबीर की मस्कारे से भरी पलकें तेजी से झपकीं और गुलाबी लिप्स्टिक से पुते होंठ हिले। कोई जवाब न मिलने पर वह सतनाम के पास धीरे से आ बैठी।
'हमने दुख-सुख में साथ रैने के लिए फेरे लिए थे न, सत्ती, उनका क्या? अपनी आँखें सतनाम की आँखों में डालते हुए जसबीर ने पूछा।
'आइ नो, मेरी फैमली ने तुम्हारे साथ ज्यादती की बट वो भी तो इनसान ही हैं न, गल्ती हो गई। उनसे कितनी बार माफी मँगवाओगे?' जसबीर के हाथ अब सतनाम की पीठ पर फिसल रहे थे।
'सत्ती हनी, मैरिज नूं एक चांस होर देन लई मैं तैयार हाँ ते आइ विल ट्राइ माइ डैम्न बैस्ट।' उसके मोटे और गुदगुदे हाथ अब सतनाम के गालों और बालों को सहला रहे थे।
'गिव मी वन मोर चांस, माइ डार्लिंग...' जसबीर की साँसें उखड़ने लगीं और वह बेतहाशा सतनाम के होंठ चूमने लगी। बैल्ट के खुलते ही उसकी ट्यूनिक उसके थुलथुल बदन से फिसल गई; गाय के थनों सी लटकती हुई उसकी छातियाँ दुहे जाने के लिए बेताब थीं।
सतनाम को लगा कि जैसे उसके तन-बदन पर तिलचट्टे रेंग रहे थे; वितृष्णा से भरकर वह एक झटके से उठ खड़ा हुआ; जसबीर जमीन पर जा गिरी।
बिना पीछे देखे, सतनाम उठ कर नीचे आ गया। बहुत सी चिंतित आँखें उसके चेहरे पर आ टिकीं; जिस पर एक विजयी मुस्कान थी।
सतनाम मुकदमा बाइज्जत जीत गया था।