मेरी एलिजाबेथ हस्कल / बलराम अग्रवाल
“ग़ज़ब का चेहरा… जानती हो सौंदर्य के दर्शन मुझे तुममें होते हैं। पता है, अपने चित्रों में बार-बार जिस चेहरे का उपयोग मैं करता हूँ वह हू-ब-हू तुम्हारा न होकर भी तुम्हारा होता है… जिसे मैं चित्रित और पेंट करना चाहता हूँ, वह चेहरा… गहराई और कामनाभरी वे आँखें तुम्हारे पास हैं। यही वह चेहरा है जिसके माध्यम से मैं अभिव्यक्त हो सकता हूँ।”
8 नवम्बर, 1908 को लिखे अपने एक पत्र में जिब्रान ने मेरी को लिखा था — अकादमी के प्रोफेसर्स कहते हैं — “मॉडल को उतनी खूबसूरत मत चित्रित करो, जितनी वह नहीं है।” और मेरा मन फुसफुसाया — “ओ, काश मैं उसे केवल उतनी सुंदर बना पाता जितनी कि वास्तव में वह है।”
जिब्रान ने 3 मार्च 1904 को बोस्टन के डे’ज़ स्टुडियो में अपनी पेंटिंग्स की पहली प्रदर्शनी लगाई थी। वहीं पर उनकी मुलाकात उम्र में दस साल बड़ी वहाँ की मार्लबोरो स्ट्रीट स्थित गर्ल्स केम्ब्रिज स्कूल की मालकिन व प्राध्यापिका मेरी एलिजाबेथ हस्कल (Mary Elizabeth Haskell) से हुई। वह मुलाकात जिब्रान के फोटोग्राफर मित्र फ्रेडरिक हॉलैंड डे ने कराई थी या जोसेफिन ने, इस बारे में विचारकों के अलग-अलग मत हैं। कुछ का कहना है कि डे ने तो कुछ का कहना है कि जोसेफिन ने। जो भी हो, आगामी 25 वर्ष तक उनकी दोस्ती निर्बाध चलती रही। मई 1926 में मेरी ने एक धनी दक्षिण अमेरिकी भूस्वामी जेकब फ्लोरेंस मिनिस (Jacob Florance Minis) से विवाह कर लिया और मेरी एलिज़ाबेथ हस्कल के स्थान पर मेरी हस्कल मिनिस नाम से जानी जाने लगीं। टेलफेअर म्यूजियम को, जो खलील जिब्रान के कलाकर्म का अमेरिका में सबसे बड़ा संग्रहालय है, मेरी ने अपने संग्रह से निकालकर उनकी 100 से अधिक पेंटिंग्स उपहार में दीं। जिब्रान के जीवन में मेरी हस्कल के आगमन ने उनके लेखकीय जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला। मेरी मजबूत इच्छा-शक्ति वाली, आत्मनिर्भर, शिक्षित व ‘स्त्री स्वातंत्र्य आंदोलन’ की सक्रिय नेत्री थीं। जोसेफिन पीबॅडी की रोमांटिक प्रकृति से वह एकदम अलग थीं। यह मेरी ही थीं जिन्होंने जिब्रान को अंग्रेजी लेखन की ओर प्रेरित किया। उन्होंने जिब्रान से कहा कि अंग्रेजी में नया लिखने की बजाय वह अपने अरबी लेखन को ही अंग्रेजी में अनूदित करें। जिब्रान के अनुवाद को संपादित करके चमकाने का काम भी मेरी ने ही किया। जिब्रान के मन्तव्यों को समझने के लिए मेरी ने अरबी भी सीखी। जिब्रान के एक जीवनीकार ने यह भी लिखा है कि जिब्रान अपनी हर पुस्तक की पांडुलिपि को प्रकाशन हेतु भेजने से पहले मेरी को अवश्य दिखाया करते थे। अपनी पुस्तक ‘द ब्रोकन विंग्स’ तथा ‘टीअर्स एंड लाफ्टर’ के समर्पण पृष्ठ पर जिब्रान ने लिखा है —
To M.E.H.
I present this book — first breeze in the tempest of my life — to that noble spirit who walks with the tempest and loves with the breeze.
KAHLIL GIBRAN
M.E.H. मेरी एलिजाबेथ हस्कल के प्रथम-अक्षर हैं। इनके अतिरिक्त उनकी कुछ अन्य रचनाओं पर भी ‘Dedicated to M.E.H.’ लिखा मिलता है। जैसे कि, उनकी रचना ‘द ब्यूटी ऑव डैथ’ भी M.E.H. को ही समर्पित है।
मेरी ड्राइंग़्स दिखाने और बोस्टन-समाज में घुल-मिल जाने के अवसर देने की दृष्टि से अपनी कक्षाओं में जिब्रान को आमन्त्रित करती रहती थी। वह उनके कलात्मक विकास में निरन्तर रुचि लेती थीं। पेंटिंग्स पर बातचीत के लिए कक्षा में बुलाए जाने पर जिब्रान को वह हर बार पारिश्रमिक भी देती थीं। मेरी ने ही अपने खर्चे पर जिब्रान को ड्राइंग की उच्च शिक्षा हेतु पेरिस के फ्रेंच आर्टिस्टिक स्कूल ऑव एकेडेमी जूलियन भेजा था।
दिसम्बर 1910 में मेरी ने एक दैनिक जर्नल शुरू किया जिसमें वह जिब्रान के जीवन से जुड़ी अपनी स्मृतियों व पत्रांशों को प्रकाशित करती थीं। यह जर्नल 17 वर्ष 6 माह तक लगातार छ्पा। उसी वर्ष जिब्रान ने मेरी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे मेरी ने उम्र में दस साल का लम्बा अन्तर कहकर ठुकरा दिया। मेरी नि:संदेह इतनी कम उम्र के पुरुष से विवाह करने से डर गई थी। इस प्रसंग को आधार बनाकर जिब्रान ने ‘सेवेन्टी’ शीर्षक से कथारूप दिया है जो ‘द वाण्डरर’ में संग्रहीत है। लेकिन इस घटना के बाद भी दोनों की दोस्ती बरकरार रही। दोनों के विवाह में एक रोड़ा ‘धन’ भी था। मेरी जिब्रान की आर्थिक मददगार थी और जिब्रान को डर था कि यह बात उनके वैवाहिक सम्बन्ध पर विपरीत असर डालने वाली सिद्ध हो सकती है। इस मसले पर उनमें अक्सर तकरार भी हो जाती थी।
जून 1914 से सितम्बर 1923 तक प्रकाशित पुस्तकों द मैडमैन (1918), द फोररनर (1920) तथा द प्रोफेट (1923) के बारे में जिब्रान ने मेरी से हर संभव मदद प्राप्त की। जीवन के अन्तिम वर्ष मेरी ने नर्सिंग होम्स में सेवा करते हुए बिताए। 1964 में मेरी का निधन हो गया।