मेरी जानकारी का वो पहला अन्ना / सुशील यादव
मेरी जानकारी का वो पहला ‘अन्ना’ ज्योतिषाचार्य पन्डित रामनारायण त्रिवेदी थे। वे ब्राम्हण पारा, जो उन दिनों शहर का सिविल लाइन जैसा रुतबा रखता था, वही रहते थे। खपरैल वाला, लिपा-पुता, साफ सुथरा सा मकान था। उनके मकान की खासियत थी। अजीब गहरे नीले रंग की दीवाल पर गेरू से लिखे पहले लाइन की शुरूआत ही जबरदस्त थी, सब आने –जाने वालो की निगाह बरबस चली जाती थी, किस्सा-कोताह यूँ कि ‘ कांग्रेस के नमक हराम, गद्दार ......., साठ के दशक में जब सभी कांग्रेस की तारीफ के कसीदे काढ़ते रहते थे, तब उनका यू चलैन्ज करता हुआ खुला इश्तेहार, बेखौफ, बेलाग, बेधड़क बयान, लोगो के लिए अजूबा हुआ करता था, वैसे तब हमारी समझ भी ज्यादा नही थी, बमुश्किल प्रायमरी में पढ़ते थे। उनका लिखा पूरा मजनून भी सिवाय उस सामने की लाइन के ख्याल नहीं आ रहा। मगर पन्डित जी के चैलेंजदार तबीयत के चलते उन्हें देखने की इच्छा रहती थी। कभी- कभार वो आराम कुर्सी में बैठे पंचांग मिलाते मिल जाते। पंडिताई से उनकी जीविका कैसे चलती थी पता नहीं। लगता था, उनके भित्त-लिखित सरकार के खिलाफ प्रवचन को पढ़ कर कोई भी अपना हाथ दिखा भविष्य जानने की इच्छा नहीं रखता आ होगा। पूजा-पाठ, शादी-ब्याह में जाते वो कभी दिखे नहीं, या उनको बुलाने की किसी की हिम्मत भी नहीं होती रही होगी।
बहुत व्यस्तता के बाद, शहर की उस गली में जाना हुआ। सब बदला –बदला सा लगा। पुराना कोई मकान साबूत नहीं था, नई-नई बिल्डिंग बन गई थी। पन्डित जी के पूरे भित्त-आलेख को, सज्ञान पढ़ना चाहता था। उनके उन दिनों के मनोविज्ञान में घुसने की दबी हुई कोशिश सी थी। वो घर खँडहर में तब्दील हुआ सामने था। बाहरी दीवाल गिर चुकी थी। पन्डित जी के बारे में पता चला, उनको गुजरे हुए अरसा हो गया। मैंने उस मुहल्ले में रहने वाले परिचित से जानना चाहा। उसने बताया, यार वो सनकी था। लोग अलग –अलग बाते करते हैं। कोई कहता है, वो स्वतंत्रता संग्राम में जेल गया था, उसकी मुखबिरी करने वाला आजादी के बाद, नेतागिरी करके खूब कमाया। वही इनको कांग्रेस से निकलवाने में एडी-चोटी का जोर किए रहता था। कोई कहता है, निकाल दिया तो कोई बताते हैं खुद निकल गए। कट्टर कांग्रसी थे, किसी दूसरी पार्टी में नहीं गए। स्वार्थ के लिए अनशन नहीं किया। सिफारिश ले के नही पहुचे| बस मन की कुछ चुभन थी सो दीवाल पे लिख दिया।
मैं भारी मन से उस गिरी दीवाल की मिट्टी को देखते रह गया।