मेरी दुनिया है माँ, तेरे आँचल में / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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एक बार एक महिला बगीचे में गयी उसने देखा उस बाग का माली नारियल के पौधों को पानी दे रहा था। महिला बोली कितना पानी देना होता है? कम-से-कम पचास लीटर माली बोला। घर आकर महिला ने पचास लीटर पानी अपने गमले में लगे पौधों में डाला और सुबह देखा तो कई पौधे सुबह तक मर चुके थे। फि र दूसरे दिन महिला ने माली को देखा वो एक केक्टस जैसे पौधे को सींच रहा था। कितना पानी देना होता है? चार-पांच दिन में एक बार। अबकी बार महिला ने चार-पांच दिन में पौधो को पानी दिया, लेकिन बाकी बचे हुए पौधे भी मर गए।

अब महिला गुस्से में भर कर माली के पास आई बोली क्या बकवास है कभी कहते हो पचास लीटर पानी दो, कभी कहते हो पांच दिन में एक बार पानी दो। तुम्हारी गलत सलाह के कारण मेरे सभी पौधे मर गए। मुझे नहीं लगाना कोई पौधे या पेड़।

माली मुस्कराया और बोला इस बाग के सभी पेड़-पौधे मेरे बच्चे हैं। “मेरी पूरी जि़न्दगी इस बगीचे के पौधों के बीच खत्म हो गयी हैं। मैंने सारी उम्र इन पौधों का विज्ञान समझने में गुजारी है।

किस पौधे को कितना पानी चाहिए किस पौधे को कितनी धूप, किसको कितना खाद देना है कब किसको कीड़ों से बचाना है। किस पौधे को कैसी मिट्टी चाहिए यही काम है मेरा। क्योंकि हर पौधा दूसरे से स्वभाव और गुण में अलग है, सबकी फि तरत अलग परवरिश भी अलग है। ये तो एक कहानी है, लेकिन इसी तरह हमारे घर की बगिया में जो पौधे हम लगाते हैं उनकी परवरिश या देखभाल कोई आसान काम नहीं है।

बच्चों को समझने के लिए हमें उनके मनोविज्ञान को समझना होता है। क्या बच्चों की परवरिश का भी कोई मनोविज्ञान होता है।

सबसे पहले तो ये समझ लिया जाए कि बच्चों की परवरिश एक बहुत ही जिम्मेदारी का काम है। सही परवरिश के लिए बहुत ही सुझबूझ की जरूरत होती है। सभी बच्चों पे हम एक जैसा नियम लागू नहीं कर सकते। लाड़-प्यार जताना हो या कठोरता बरतनी हो, हर बच्चे के साथ आपका व्यवहार अलग होना चाहिए।

जो बच्चा खामोश है उसकी खामोशी पढऩी होगी। जो चंचल है उसका मन, जो रोता है उसकी मंशा और जो कभी नहीं रोता उसका कारण जानना होगा। हर बच्चे के साथ माँ का व्यवहार अलग होना चाहिए। सबसे पहले कुछ उदाहरण देखिये-मिसेस शर्मा और मिस्टर शर्मा के एक ही बेटा है, शहर के सबसे मंहगे स्कूल में पढ़ता है अभी सिर्फ ९ह्लद्ध क्लास में हैं। शहर की सबसे महंगी कोचिंग क्लास में जाता है। शाम को गिटार भी सीखता है और रात को थक कर सो जाता है। उसका कोई दोस्त नहीं है। इंटरनेट उपयोग करने की छूट नहीं है। वो जोर से हँसता नहीं और न उनके घर से कभी उसके गुस्सा की आवाज ही आती है। एक दिन वो बच्चा स्कूल में बेहोश हो जाता है और दो दिन होश में नहीं आता। डॉक्टर और परिवार वाले नहीं जान पाते की उसे क्या बीमारी है। उसका महंगा इलाज करवाया जा रहा है। मैंने उसे कभी हँसते नहीं देखा उस बच्चे की माँ को भी कभी हंसते नहीं देखा था। क्या ये अपने बच्चे की हत्या नहीं है?

केस नंबर दो-मिसेस मलकानी ने अपने बच्चे को संसार की सारी सुविधा दी है। महंगे कपड़े, गाड़ी, फ ोन और जेब में नोट, लेकिन कभी पूछा नहीं की उनका बेटा या बेटी कहाँ जा रहे हैं... आधी रात को घर क्यों आते हैं। नतीजा एक दिन उनकी बेटी चार अन्य लड़कों के साथ कार में पकड़ी जाती है वो भी निर्वस्त्र हालत में, कार में पांच बच्चे नशे की हालत में मिलते हैं। क्या माँ का दायित्व नहीं कि वो अपने बच्चों पे नजर रखे। ये तो सिर्फ दो उदाहरण हैं हमारे आसपास ऐसे हजारों उदाहरण है जहाँ या तो बच्चों पे बहुत सख्ती की जा रही है या उन्हें खुला छोड़ दिया जा रहा है। एक संतुलित व्यवहार इक गहरी समझ के साथ बच्चों को पाला जाना चाहिये। बच्चों पे ध्यान न देने से उनकी उंगली हमारे हाथ से छूट जाएगी और नतीजा हमारे सामने हैं। हमारे बच्चे गहरे अवसाद और निराशा में जा रहे हैं और इन सब से बचने के लिए वो नशे में डूब रहे हैं। आये दिन होने वाली आत्महत्याएं और हत्याएं और इक कदम आगे बढ़कर बोलूं तो नाबालिगों के साथ होने वाले बलात्कारों के पीछे भी यही अवसाद, विषाद और निराशा और नशा कारण है। जिसके जिम्मेदार हम सभी है कहीं न कहीं।

याद रखने जैसी कुछ बातें :

1. बच्चे कुदरत की नेमत हैं-आप बहुत खुशकिस्मत है कि बच्चों के रूप में ईश्वर ने आपको 'खूबसूरत सौगाते दी हैं। आप उनके मालिक नहीं, बॉस नहीं है। बच्चे आपकी प्रोपर्टी भी नहीं, जमा-पूंजी भी नहीं जो आपके बुढ़ापे में काम आने वाली है। बच्चे सिर्फ आपको खुशी देने के लिए, आपके उदास चेहरों पे मुस्कान खिलाने के लिए आये हैं। उन्हें सहेजिये।

2. उन्हें रोके नहीं, टोके नहीं-अक्सर चयन के मामलों में हम बच्चों की इच्छाओं को नजर अंदाज कर जाते हैं। यहाँ तक कि वो क्या पहने, क्या न पहने, वो क्या पढ़े, क्या न पढ़े ये भी हम तय करते हैं। हम उनके स्वछन्द चिंतन को अवरुद्ध कर उनकी प्रतिभा खो देते हैं।

इतिहास गवाह है जितने भी महापुरुष या प्रसिद्ध व्यक्ति हुए उन्होंने अपने उस परिवेश से बगावत कर अपने लक्ष्य का चयन किया और कीर्ति पायी।

3. रोबोट नहीं मनुष्य बनाने होंगे-वो कहावत तो हम सभी ने सुनी है कि लीक-लीक गाड़ी चले लीक ही चले कपूत, लीक छोड़ तीन चले शायर, सिंह, सपूत, यानी सपूत वही जो अपना रास्ता खुद बनाये, लेकिन हमने अपने बच्चों को हमारे अनुसार चलने वाले रोबोट बना दिया है। हम चाहते हैं हमारे बच्चे हमारे दिमाग से सोचे, हमारी तरह बातें करे, यहाँ तक कि उनके विचार भी हमारी तरह ही हों। क्या ये संभव है? उनका दिमाग हम संचालित कर रहे हैं। हम उनके जनरेटर बन गए हैं।

4. अनुशासन या घुटन-अनुशासन के नाम पे हम उन्हें एक घुटन भरा माहौल देते हैं। कब उठना है, कब सोना है, कब पढऩा है, कब खेलना है, कब बतियाना है, कब संगीत सुनना है, कब गिटार बजाना है, कब क्रिकेट खेलना है। ये सब हम तय करने लगे हैं। बच्चा घडिय़ों की सुइयों के साथ भागता है-दौड़ता है और एक दिन वो मन ही मन मर जाता है। उसे जोर से रोना है तो वो कहाँ जाए उसे जोर से हंसना है तो वो किसके साथ हँसे? वो खिलोने तोडऩा चाहता है तो उसे रोका जाता है। ठीक से बैठो, हंसो मत ये गाना मत गाओ, उन बुरे लड़कों से दोस्ती मत रखो आदि ऐसी हजारों हिदायते और अनुशासन उसका दम घोटते हैं।

5. महंगे तोहफे नहीं सिर्फ प्यार की जरूरत है-अपने प्यार और समय की कमी को पूरा करने के लिए मिसेस चावला ने अपने बेटे को सबसे महंगा बैग दिलाई और साथ में बहुत महंगा मोबाइल भी, लेकिन उससे कभी प्यार से बात नहीं की क्योंकि अपनी दुनिया से उन्हें कभी फु र्सत नहीं मिली, एक दिन उनका लाडला अपनी नयी बाइक से दो मासूमों को कुचल के आ गया। यही नहीं अगली बार उसने अपने घर से ही लाखों रुपयों की चोरी की और अपनी दादी का गला घोट कर मार डाला।

आखिरी बात-इस दौर में जब सभी को इकदूजे से बहुत आगे निकल जाना है, हर क्षेत्र में तगड़ी प्रतियोगिता है ऐसे समय में महिलाओं की जिम्मेदारी एक बार फि र से बहुत बढ़ गयी है। उन्हें अपने बच्चों पे सिर्फ नजर ही नहीं रखनी होगी। उनके कंधे में प्यार से हाथ भी रखना होगा। सिर्फ कठोर अनुशासन प्रिय माँ नहीं एक मुस्काती दोस्त बन जाना होगा। ताकि वो अपने दुख अपनी पीड़ा आपसे बाँट सके, आप उनकी हर बात पे टोका-टाकी या झाँक करेंगी तो वो आपसे झूठ बोलने लगेगे।

आप उन्हें अनुशासन की रस्सी से बांधेगी तो वो रस्सी तुड़ा कर भाग जायेंगे। उनके आप याद रखिये बच्चे घर की रौनक हैं, वो हमें जीवन देते हैं, दुखों से लडऩे का हौसला देते हैं, हमें मजबूत बनाते हैं। हमारे जीने की वजह बन जाते हैं। उन पर शासन नहीं करना है हमें, उन्हें सिर्फ खिलने देना है, ताकि वो महक सके। आपके बच्चों की दुनिया आपका आँचल है। इस आँचल में चिंगारियां दहकेंगी तो बच्चा बाहर छाँव तलाशेगा। अपने फू लों को अपने आंचल की छाँव दीजिये, उनकी दुनिया आप है सिर्फ आप।