मेरी पसन्द / भीकम सिंह

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साहित्य में एक किवंदंती-सी बन गई है कि जिस विधा का इतिहास जितना प्राचीन होगा, वह वर्तमान में अपने को उतना ही श्रेष्ठ मनवाने का गौरव पा सकेगी। आज हम लघुकथा के जिस साहित्यिक रूप से परिचित हैं, उसे भी हम 1901 ई. से जोड़ सकते हैं. किन्तु मेरे विचार से लघुकथा का लेखन जिस स्तर पर उत्तर भारत में 20-25 वर्षों से हुआ है, वह अभूतपूर्व है। हरियाणा, राजस्थान पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में आयोजित लघुकथा सम्मेलनों के साथ-साथ लघुकथा डॉट कॉम पर प्रतिष्ठित लघुकथाकारों के रचना _कर्म ने लघुकथा की विकास-यात्रा में उल्लेखनीय योगदान किया है।

सुकेश साहनी की लघुकथाएँ मुझे इसलिए पसन्द हैं कि वे प्रामाणिकता और अधिक ईमानदारी से अपने आस-पास के परिचित परिवेश में ही किसी ऐसे सत्य को पाने का प्रयत्न करती हैं, जो व्यापक सामाजिक सत्य का एक अंग होता है। ‘तोता’ लघुकथा का कथ्य ऐसे ही साम्प्रदायिक सच को लेकर बुना गया है, ‘तोते’ का रूपक साम्प्रदायिकता फैलाने का कारण मानकर इसी भाव को रेखांकित (फोकस) करता है, जो भारत के दो सम्प्रदायों (हिन्दू-मुस्लिम) के बीच साम्प्रदायिकता और वैमनस्य का कारण है, मगर साम्प्रदायिकता और वैमनस्य का कारण मुट्ठी भर मासूम असामाजिक तत्त्व हैं. जिन्हें ‘तोता’ जैसा पढ़ाकर उनका मस्तिष्क प्रक्षालन कर दिया जाता है और वह अपनी परम्परागत वरीयता, उत्कृष्टता और अग्रणीयता खोता हुआ अल्लाह हो अकबर और जय श्रीराम के उद्घोष पर गोलियाँ खाता रहता है, यह लघुकथा साम्प्रदायिकता के इसी सत्य के धरातल पर बुनी गई है।

‘तभी कहीं से एक तोता उड़ता हुआ आया और मंदिर की दीवार पर बैठकर बोला ‘‘अल्लाह हो अकबर…. अल्लाह हो अकबर….।’’

मंदिर समर्थकों ने आव देखा न ताव, जय श्रीराम बोलने वाले तोते को जवाबी हमले के लिए छोड़ दिया।

हिन्दू और मुस्लिम धर्माधिकारियों के साम्प्रदायिक रवैये को यह लघुकथा भरपूर उभारती है।

मुझे कमल चोपड़ा की ‘बताया गया रास्ता’ भी पसन्द है, जो पाखी के जनवरी 2013 में प्रकाशित है। यह लघुकथा बाल मन के भाव को फोकस करते हुए, उसकी बुनावट से ऐसा अहसास कराती है कि आत्मीयता और संवेदनशीलता ज्यों की त्यों उभर आती है और बालमन का विश्वास समाज की खंडित सोच में प्रश्नचिन्ह लगा देता है।

खिलखिलाती हुई स्तुति बोली- ‘‘ये मुसलमान थोड़ा ही न हैं। ये तो मेरे शैफु चाचा हैं। सुना नहीं, अभी मुझे बेटी कहकर बुला रहे थे…।’’

उसे लेने आए जान-पहचान वालों की ओर उसने बारी-बारी से देखा, फिर एकाएक उछलकर शैफू के रिक्शे पर चढ़कर बैठ गई।

इस पूरी लघुकथा का विन्यास भी इस तरह किया गया है कि हिन्दू बेटी स्तुति का शैफु चाचा के प्रति विश्वास व्यावहारिक लगने लगता है और मुस्लिम चाचा शैफू का निर्मल मन धर्म और जातीय विद्वेषों के उलझे रास्तों में सुलझा रास्ता दिखा देता है- ‘‘दाईं ओर हिन्दू मोहल्ला और बाईं ओर मुस्लिम मोहल्ला। किस तरफ मोड़े वह अपने रिक्शे को ?… उसने नन्ही के मासूम चेहरे पर नजर डाली… खुदा ना करे, इस नन्हे फरिश्ते को कुछ हो… और उसने अपने रिक्शे को दाईं ओर मोड़ दिया।

1-तोते :सुकेश साहनी

भंडारे का समय था। मंदिर में बहुत लोग इकट्ठे थे। तभी कहीं से तोता उड़ता हुआ आया और मंदिर की दीवार पर बैठकर बोला,”अल्लाह-हो-अकबर—अल्लाह-हो-अकबर—”_ ऐसा लगा जैसे यहाँ भूचाल आ गया हो। लोग उत्तेजित होकर चिल्लाने लगे। साधु-संतों ने अपने त्रिशूल तान लिये । यह खबर आग की तरह चारों ओर फैल गई, शहर में भगदड़ मच गई, दुकानें बंद होने लगीं, देखते ही देखते शहर की सड़कों पर वीरानी-सी छा गई। उधर मंदिर-समर्थकों ने आव देखा न ताव, जय श्री राम बोलने वाले तोते को जवाबी हमले के लिए छोड़ दिया।

शहर आज रात-भर बन्दूक की गोलियों से गनगनाता रहा। बीच-बीच में अल्लाह-हो-अकबर और जय श्री राम के उद्घोष सुनाई दे जाते थे।

सुबह शहर के विभिन्न धर्मस्थलों के आस-पास तोतों के शव बिखरे पड़े थे। किसी की पीठ में छुरा घोंपा गया था और किसी को गोली मारी गई थी। जिला प्रशासन के हाथ-पैर फूले हुए थे। तोतों के शवों को देखकर यह बता पाना मु्श्किल था कि कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान, जबकि हर तरफ से एक ही सवाल दागा जा रहा था-कितने हिन्दू मरे, कितने मुसलमान” जिलाधिकारी ने युद्ध-स्तर पर तोतों का पोस्टमार्टम कराया, जिससे यह पता चल गया कि मृत्यु कैसे हुई है; परंतु तोतों की हिन्दू या मुसलमान के रूप में पहचान नहीं हो पाई ।

हर कहीं अटकलों का बाज़ार गर्म था। किसी का कहना था कि तोते पड़ोसी दुश्मन देश के एजेंट थे, देश में अस्थिरता फैलाने के लिए भेजे गए थे। कुछ लोगों को हमदर्दी तोतों के साथ थी, उनके अनुसार तोतों को ‘टूल’ बनाया गया था। कुछ का मानना था कि तोते तंत्र-मंत्र, गंडा-ताबीज से सिद्ध ऐय्यार थे, यानी जितने मुँह उतनी बातें।

प्रिय पाठक पिछले कुछ दिनों से जब भी मैं घर से बाहर निकलता हूँ, गली मुहल्ले के कुछ बच्चे मुझे “तोता!—तोता!!”—कहकर चिढ़ाने लगते हैं, जबकि मैं आप-हम जैसा ही एक नागरिक हूँ ।

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2- बताया गया रास्ताः कमल चोपड़ा

सबका कोई-न-कोई उसे लेने आ पहुँचा था। स्कूल के बंद गेट के सींखचों के पार खड़ी स्तुति की नन्ही- सी आंखों में डर और खौफ की किरचें चुभी हुई थीं। उसे लेने कौन आएगा? मम्मी हस्पताल में दाखिल हैं, पापा उधर हो गए हुए होंगे! रजापुर, जहां कि आज अचानक दंगा भड़क उठा था. शैफू रिक्शेवाले का पर उसी इलाके में था। कैसे आ पाएगा वह? सुबह तो उसने उसे ठीक वक्त पर स्कूल छोड़ दिया था. अब लेने आ पाएगा या नहीं? वह स्वयं ठीक-ठाक भी है या…? स्तुति का चेहरा रुआँसा और पीला जर्द हो आया था। वह अब रो देगी कि तब….

निधि के पापा भी अपनी बेटी को लेने चले आए थे। उनकी नजर स्तुति पर पड़ी तो बोले, “स्तुति बेटी! तू भी हमारे साथ चलें। रास्ते में तुझे भी तेरे घर छोड़ दूँगा।” स्तुति जड़वत् खड़ी रही। पिछली गली में रहनेवाले गुप्ता अंकल भी आए हुए थे अपनी बेटी को लेने। उन्होंने भी उसे अपने साथ चलने के लिए कहा पर स्तुति की नजरें सामने फैली सड़क पर बिछी हुई थीं। उसके पापा ने स्कूल के नजदीक रहनेवाले अपने एक मित्र को फोन करके कहा कि वह स्तुति को स्कूल से अपने घर ले आएं। शाम को वे स्वयं आकर उसे उनके घर से ले जाएँगे। वे भी स्तुति को लेने आए थे। लेकिन वह चुपचाप गुमसुम और निःसत्व-सी खड़ी थी। एकाएक उसे सामने से शैफू रिक्शेवाला आता हुआ दिखाई दिया। घनी बदली से भी आँखों में बिजली की कौंध के साथ बूँदें छलक आईं। शहर में फैली दहशत और तनाव के बावजूद वह स्तुति को लेने आया है। सवालों से भरी सबकी नजरें रिक्शेवाले पर टिकी हुई थीं। स्कूल के चौकीदार ने स्तुति को परे ले जाकर कहा, “बेटा, माहौल बहुत खराब है। मुसलमान लोग दंगे कर रहे हैं। ये रिक्शेवाला भी मुसलमान है। तुम किसी के साथ चली जाओ, पर इस मुसलमान रिक्शेवाले के साथ मत जाओ।”

खिलखिलाती हुई स्तुति बोली, “ये मुसलमान थोड़ा ही न हैं। ये तो मेरे शैफू चाचा हैं। सुना नहीं, अभी मुझे बेटी कहकर बुला रहे थे…।”

उसे लेने आए जान-पहचानवालों की ओर उसने बारी-बारी से देखा फिर एकाएक उछलकर शैफू के रिक्शे पर चढ़कर बैठ गई। वह जल्दी से जल्दी स्तुति को घर पहुँचा देना चाहता था। वह तेज-तेज पैडल मार रहा था। सड़कें धीरे-धीरे वीरान हो रही थीं। दूर आती जाती पुलिसवालों के चीखने की आवाजें माहौल को तपिश और दहशत से भर रही थी। एकाएक गांधी तिराहे पर आकर रुक गया वह दाई ओर हिंदू मुहल्ला और बाईं ओर मुस्लिम मुहल्ला। किस तरफ मोड़े वह अपने रिक्शे को ? दाई ओर का रास्ता पकड़ता है तो रास्ते में हिंदुओं के हत्थे चढ़ गया तो स्तुति तो हिंदू होने के कारण बच जाएगी पर वह नहीं बच पाएगा…! और बाई ओर का रास्ता पकड़ता है और मुसलमानों ने घेर लिया, तो मुसलमान होने के कारण वह तो बच जाएगा पर स्तुति… उसने नन्हीं के मासूम चेहरे पर नजर डाली… खुदा न करे, इस नन्हे फरिश्ते को कुछ हो। इतनी जान पहचानवालों को नकार कर मुझ पर भरोसा किया। अगर इसे कुछ हो गया तो मेरे साथ मेरा मजहब भी बदनाम हो सकता है। वैसे भी मुझे मजहब के दिखाए रास्ते पर चलना है। और उसने अपने रिक्शे को दाई ओर मोड़ दिया।

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