मेरे घर आना जिंदगी / भाग 14 / संतोष श्रीवास्तव्

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जगदलपुर बस्तर से आमंत्रण था। कादम्बरी संस्था की मोहनी ठाकुर और उर्मिला आचार्य ने मेरे लिए एक सम्मेलन आयोजित किया था। सम्मेलन में मेहरून्निसा परवेज के पति रऊफ परवेज़ से मुलाकात हुई। वह होटल में मिलने भी आए और अपनी गजलों की किताब मुझे भेंट की। अभी कुछ ही समय हुआ उनका देहांत हो गया।

जगदलपुर में राजेंद्र गायकवाड से मुलाकात हुई। वे स्वयं अच्छे शायर और जगदलपुर जेल में जेलर थे। हमें महिला वार्ड देखना था। जेल देखकर कलेजा काँप गया। किले जैसी ऊंची-ऊंची दीवारें। हर महिला कैदी की आँखों में सवाल कि हमें किस जुर्म में गिरफ्तार किया गया। कुछ पर तो जुर्म साबित करना शेष था और वे विचाराधीन कैदी थीं।

मैंने अपनी स्त्री विमर्श की पुस्तक "मुझे जन्म दो माँ" में विचाराधीन महिला कैदियों पर पूरा एक अध्याय लिखा है "खामोश चीखों का जंगल।"

वहाँ कैदियों के हाथों से तैयार दरियाँ, चादरें, कालीन आदि का शोरूम था। मैं चादर खरीद कर लाई हूँ पर उसे आज तक नहीं ओढ़ पाई। मुझे लगता है चादर बुनते हुए कैदी की मन: स्थिति भी इसमें बुन गई होगी जो मुझे हॉन्ट करेगी।

2012 की मई में सर्जन गाथा डॉट कॉम से फिर बुलावा था। वियतनाम कंबोडिया में आयोजित सातवें अंतरराष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का। वहाँ मुझे सृजनगाथा साहित्य सम्मान दिया जाना था।

वियतनाम कंबोडिया घूमना बहुत निराशाजनक और दुखदाई रहा। हमने सोचा कि क्यों न हम अपनी एक अलग संस्था स्थापित करें पर्यटन और साहित्य के उद्देश्यों को लेकर। लिहाजा मुंबई में "विश्व मैत्री मंच" की स्थापना (अधिकृत हेमंत फाउंडेशन) 8 मार्च 2014 महिला दिवस के अवसर पर हुई। उद्घाटन समारोह किया। उद्देश्यों में चित्रकला, नाट्यकला,

पर्यटन और साहित्य को जोड़ा तथा मुख्य उद्देश्य में कला से सम्बंधित छुपी हुई योग्य प्रतिभाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मंच प्रदान करना यानी एक तरह से टैलेंट हंटिंग। साथ ही साझा काव्य संकलन, कहानी संकलन, लघुकथा संकलन प्रकाशित कर उन्हें प्रोत्साहित करना। इस संस्था से भारत भर से लोग जुड़े और इसकी शाखाएँ छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और दिल्ली में खुल चुकी हैं। रूस, भूटान, मिस्र, उज्बेकिस्तान, दुबई में अंतरराष्ट्रीय तथा डलहौजी, धर्मशाला, अहमदाबाद, भंडारदरा, खजुराहो, बाँधवगढ़, केरल, भोपाल, आगरा, रायपुर में राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किए जा चुके हैं।

चिंगारी, बाबुल हम तोरे अंगना की चिड़िया साझा काव्य संकलन तथा सीप में समुद्र साझा लघुकथा संकलन प्रकाशित हो चुके हैं।

इस संस्था में मेरा मन खूब रमता है। मुझे जैसे जीने का बहाना मिल गया। मैं अकेली ही राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की तैयारियों में जुटी रहती हूँ।

विश्व मैत्री मंच की ख्याति से प्रेरित हो लाफ्टर क्लब के अध्यक्ष शाहिद खान मेरे घर यह प्रस्ताव लेकर आए कि दोनों संस्थाएँ एकजुट होकर काम करें। उन्होंने हमेशा के लिए नेहरू सेंटर का हॉल बुक कर लिया है। उनके श्रोता अमीर खानदान के, खाए पिए, अघाए लोग हैं जिन्हें साहित्य से कुछ लेना-देना नहीं। मंच पर चुटकुलों की प्रस्तुति और प्लेट में स्वादिष्ट पकवान हो ताकि उनकी शाम अच्छी गुजरे। निश्चय ही हमारी "न" थी हालांकि उन्होंने मेरे जन्मदिन पर नेहरू सेंटर में अच्छी-खासी पार्टी अरेंज की थी और मेरा एकल कविता पाठ भी रखा था।

हेमंत फाउंडेशन प्रतिवर्ष केवल हेमंत स्मृति कविता सम्मान तथा विजय वर्मा कथा सम्मान ही देता है लेकिन इस बार फैज अहमद फैज की जन्म शताब्दी मनाने का कार्यक्रम भी बना। उर्दू विभाग के प्रमुख साहिब अली के सहयोग से मुंबई विश्वविद्यालय कालीना में एक शाम देश के नाम संगोष्ठी आयोजित की गई जिसमें महानगर के प्रमुख शायरों, रचनाकारों ने भाग लिया।

मुंबई विश्वविद्यालय के परिसर में हिन्दी भवन का नाम कविवर डॉ राम मनोहर त्रिपाठी हिन्दी भवन रख दिया गया है। डॉ राम मनोहर त्रिपाठी ने ही मेरे प्रथम कहानी संग्रह "बहके बसन्त तुम" का लोकार्पण किया था जिस पर मुझे महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी का मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार मिला था। उनके नाम से महाराष्ट्र साहित्य अकादमी अखिल भारतीय हिन्दी सेवा पुरस्कार देती है। इसी तरह उर्दू घर का नाम डॉक्टर जाकिर हुसैन उर्दू घर रखा गया।

एक शाम फ़ैज़ के नाम संगोष्ठी की बधाई देते हुए महेंद्र भटनागर का ग्वालियर से फोन आया "अच्छा काम कर रही हो संतोष, मेरा पुत्र कुमार आदित्य तुमसे मिलने आएगा। ग्वालियर से कुछ मंगवाना हो तो बताना।" उन्होंने अमित के हाथ अपनी कुछ पुस्तकें भेजीँ और एक पत्र भी जिसका आशय था कि कुमार आदित्य फिल्मों में प्लेबैक सिंगर बनना चाहता है और इस सिलसिले में मेरी मदद भी अपेक्षित है। पर मैं तो फिल्मों से कोसों दूर हूँ और किसी को जानती नहीं थी। रमेश होते तो यह काम हो सकता था। कुमार आदित्य बहुत अपनत्व से मिले। हेमंत की किताब "मेरे रहते" ले गए और एक महीने के अंदर उसकी दो कविताएँ "तुम हंसी" और "मैं अकेला खड़ा रह गया" कंपोज करके अपनी आवाज में स्वरबद्ध कर सीडी मुझे दी। मैं उन गीतों के तरन्नुम में खो गई। कुमार आदित्य ने हेमंत की नई प्रतिभा से मेरा परिचय करवाया।


कुछ देश ऐसे रहे जो मेरी भ्रमण लिस्ट में कहीं फीके-फीके से अंकित थे। ऐसा ही था श्रीलंका। पर अब लगता है श्रीलंका नहीं जाती तो एक साथ बहुत सारी चीजों से वंचित रह जाती। जैसे

2014 की फरवरी में श्रीलंका के जयवर्धनपुरे विश्वविद्यालय में आयोजित अंतरराष्ट्रीय शोध कॉन्फ्रेंस में शामिल होना और ऐन कार्यक्रम के दौरान लाइट चली जाने से मोमबत्ती की रोशनी में अपना प्रपत्र पढ़ना। इस कॉन्फ्रेंस में दुनिया के 8 देशों ने शिरकत की थी जिसमें भारत भी एक था।

साथ ही सबसे खूबसूरत ठंडे हिल स्टेशन नुवाराईलिया में एक पूरा दिन और रात बिताना बगैर गर्म कपड़ों के।

ढेरों चाय बागान, जड़ी-बूटियों और मसालों के उद्यान। नारियल पीले और हरे दोनों तरह के मगर इतने बड़े कि एक नारियल एक आदमी पूरा नहीं पी सकता। रामायण से जुड़े बहुत सारे मंदिर और स्थल। कैंडी में बुद्ध का एक दांत रखा हुआ है और उसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। कोलंबो, नोवागोड़ा, सीलोन रेडियो स्टेशन जहाँ से बिनाका गीतमाला अमीन सयानी की आवाज में सुनते थे। हिंद महासागर के तट पर बसा खूबसूरत समुद्री शहर बेंटोटा। महाबली गंगा की लहरों पर बोट पर सवार होकर मैंग्रोव्स के सघन वन से गुजरना यादों में अंकित है।

एक सप्ताह के बाद जब भारत लौटी तो खुशखबरी इंतजार में थी। मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति भोपाल का नारी लेखन पुरस्कार का पत्र मेरी बाट जोह रहा था। यह पुरस्कार "नीले पानियों की शायराना हरारत" को दिया जा रहा था जिसमें मेरे 18 देशों के यात्रा वृत्तांत संकलित हैं। यह पुस्तक नमन प्रकाशन से प्रकाशित हुई थी और लोकार्पण नासिक में साहित्य सरिता मंच ने किया था। नासिक और पूना के साहित्यकारों को भी आमंत्रित किया गया था। मराठी दैनिक अखबार देशकाल ने इस समाचार को पूरे पेज पर फोटो सहित छापा था। समारोह में मराठी अख़बार सार्वमत के संपादक श्री कृष्ण सार्डा विशिष्ट अतिथि थे। स्टॉल भी लगा था जिसमें पुस्तक की कई प्रतियाँ हाथों हाथ बिकी थीं।

इस पुस्तक पर पुरस्कार दिए जाने की घोषणा मुंबई के अखबारों ने प्रमुखता से प्रकाशित की।

मुझे 1 अक्टूबर को भोपाल पहुँचना था जहाँ 2 अक्टूबर को हिन्दी भवन में मध्यप्रदेश के राज्यपाल माननीय रामनरेश यादव के कर कमलों से मुझे पुरस्कृत किया जाना था। आयोजन में कई नए पुराने साहित्यकारों से मुलाकात हुई। अच्छा लगा भोपाल में। अच्छा भी और कई मायनों में फलदायक भी। पुरस्कार के अतिरिक्त साहित्यकारों से जुड़ाव सहित नई संभावनाओं से ओतप्रोत मैं मुंबई लौटी।

इन सभी यात्राओं से मेरे लेखन को नया विजन मिला। नया विस्तार मिला। यह विजन लेखन के लिए एक प्रकार की गहरी दस्तक, मेरे भीतर उठे संवेगों, दुरभिसंधियों और प्रतिक्रियाओं का जमघट लेखन की जड़ों को और-और गहरे धंसाता जाता है। मैं साफ़ महसूस करती हूँ मेरे भीतर के किवाड़ों के खुलकर चरमराने की आवाज। जाहिर है मेरे मन में इन सभी बातों का मंथन, दोहन चलता रहता है। लेखन की एक नई सदा सुनाई देती है। तब वीरानियों में हरियाली का सागर लहराता है।

जनवरी 2015 विश्व पुस्तक मेले दिल्ली में अशोक बाजपेयी के हाथों सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित "टेम्स की सरगम" के अंग्रेजी अनुवाद Romancing The Thames का लोकार्पण हुआ और मैं और प्रमिला विकेश निझावन जी के आग्रह पर बस से अंबाला चले गए। विकेश जी अपने बेटे अरुण के साथ स्टेशन पर लेने आए। हमारी बस शाम को पहुँची। ठंड अपने चरम पर थी।

विकेश जी के खूबसूरत बंगले में ही हमारे रुकने की व्यवस्था थी। खूब खातिर सत्कार हुआ। सुबह विकेश जी की पत्नी विजया भाभी के बनाए स्वादिष्ट नाश्ते के बाद विकेश जी पुष्पगंधा के ऑफिस ले गए जो उसी बंगले के एक हिस्से में था।

मेरे सम्मान में शाम 4: 00 बजे की गोष्ठी की पूरी तैयारी की गई थी। जगह-जगह टेबल पर मेरी किताबें, मुझ पर केंद्रित विशेषांक की प्रतियाँ, दीवारों पर पुष्पगंधा के पुराने अंकों के मुखपृष्ठ लगे थे।

अंबाला के मेरे प्रशंसकों और साहित्यकारों ने वह पूरी शाम मेरे लेखन पर ही चर्चा की। मेरी कविताएँ और लघुकथाएँ सुनीं और गरमागरम समोसे, पकोड़े, चाय के बीच ढेरों साहित्यिक चर्चाएँ हुई। इस सब में डूबी मैं अभी उबर भी नहीं पाई थी कि मेरी रचनाओं के प्रशंसक साहित्य प्रेमी मोहनदास फकीर हमें अंबिका देवी के मंदिर ले गए। वे उस मंदिर के संरक्षक थे। उन्होंने मंदिर के द्वार पर ही गुलाब के फूलों से हमारा भव्य स्वागत किया। दूसरे दिन सुबह हमें विकेश जी अपनी गाड़ी से पिछले 50 वर्षों से निकल रही मासिक पत्रिका शुभ तारिका की संपादक उर्मी कृष्ण के घर ले गए।

शुभ तारिका में मेरी कई रचनाएँ छप चुकी थीं। मुझे अचानक सामने देख वे बेहद खुश हो गईं और शुभ तारिका के कुछ पुराने अंक मेरे लिए ले आईं।

उर्मी जी कहानी लेखन महाविद्यालय भी चलाती हैं और अपने पति डॉ महाराज कृष्ण की स्मृति में प्रतिवर्ष शिलांग में आयोजन करती हैं।

डॉ महाराज कृष्ण दिव्यांग थे और उनकी पूरी जिंदगी व्हील चेयर पर ही बीती थी। लेकिन उर्मी कृष्ण ने उनकी इतनी सेवा की। उन्हें व्हीलचेयर पर ही वे पर्यटन के लिए ले जाती थीं और शुभ तारिका में उनका साथ देती थीं। मैं उनकी जिजीविषा को सलाम करती हूँ।

वहाँ से हम कुरुक्षेत्र के लिए रवाना हो गए कितना अद्भुत संयोग है कि भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण होने पर कुरुक्षेत्र में प्राण त्यागे और हम भी उत्तरायण पर ही वहाँ पहुँचे। महाभारत काल मानो जीवंत हुआ और उससे जुड़ी स्मृतियाँ, स्थापत्य, मन्दिर, ब्रह्मसरोवर आदि का दर्शन करते हुए हम लोगों ने विजया भाभी के द्वारा बनाए हुए गोभी के पराठे और अमिया के अचार का ब्रह्मसरोवर की सीढ़ियों पर बैठकर स्वाद लिया।

विकेश जी के घर से मुझे इतना अपनत्व मिला कि मेरी विदाई पर विजया भाभी ने मुझे उपहारों से लाद दिया। कपड़े, मूंगफली, रेवड़ी। लग ही नहीं रहा था कि अभी दो दिन पहले ही इस घर में पहली बार आई हूँ।


किसी से मिलना बातें करना, बातें करना अच्छा लगता है। लेकिन ज़िंदगी इतनी आसान कहाँ! वह तो वीराने में फैला हुआ ऐसा रेगिस्तान है जहाँ रेत के सारे टीले एक से दिखते हैं और किस्मत में भी बंजारापन। जब देखो बिच्छू का डेरा पीठ पर। योगेश जोशी को घर बेचना था। इत्तफाक से उसी बिल्डिंग की पहली मंजिल पर मुझे टेरेस फ्लैट मिल गया। दो बड़े-बड़े टेरेस एक हॉल से लगा हुआ दूसरा रसोईघर से। फ्लैट मुझे पसंद आया।

विभिन्न शहरों से मुम्बई आने वाले मुझसे ज़रूर संपर्क करते, मिलने की इच्छा प्रगट करते। मैं उनके सम्मान में घर में गोष्ठी भी आयोजित करती और अपनी सखी सहेलियों को भी बुलाती। सभी कहते "संतोष, तुम्हारा घर तो भैरव बाबा का मंदिर है। जैसे बनारस जाओ तो बाबा विश्वनाथ के दर्शन तभी संपूर्ण कहलाते हैं जब भैरो बाबा के भी दर्शन कर लो। इसी तरह जो भी मुम्बई आता है वह जब तक संतोष के घर नहीं आ जाता तब तक उसकी मुम्बई यात्रा पूर्ण नहीं होती।"

हरनोट जी पत्नी सहित आए। श्रीहरि अक्षत आए। विकेश निझावन जी बेटे अरुण के साथ आए। उन्हें सारथी साहित्य सम्मान दिया जाना था लेकिन उनके साथ पुरस्कार की आयोजक लता सिन्हा और सुशील योगी ने धोखा किया। धोखा उन दोनों ने मेरे साथ भी किया। विकेश जी को रुकवाने के लिए उन दोनों ने अंधेरी स्थित सुभाष होटल में एक कमरा मेरे नाम से बुक करा लिया। सुभाष होटल का मालिक मुझे इस तरह पहचानता था कि मैं हेमंत फाउंडेशन के पुरस्कार समारोह में आमंत्रित किए गए अतिथियों को उसी में रुकवाती थी। विकेश जी 2 दिन होटल में रुके। जिसका किराया खाना पीना सब मुझे भरना पड़ा। न जाने लता सिन्हा और सुशील योगी ने ऐसा क्यों किया।

विकेश जी बेहद अपसेट थे। मैंने उनका कहानी पाठ अपने घर में रखा और मुंबई घूमने के लिए उन्हें टैक्सी अरेंज करके दी।

इस घटना का मेरे ऊपर गहरा असर हुआ था। क्योंकि विकेश जी मेरे ही कहने पर पुरस्कार लेने को राजी हुए थे। अब उन्हें खाली हाथ अंबाला लौटना पड़ रहा था। एक साहित्यकार के लिए इससे अपमानजनक स्थिति और क्या हो सकती है। मैं लता सिन्हा और सुशील योगी को कभी माफ नहीं करूंगी।

मेरा चौथा कथा संग्रह "आसमानी आंखों का मौसम" नमन प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित होकर आ गया था। मुंबई में उसका लोकार्पण रविंद्र कात्यायन जी के कॉलेज से प्रेम भारद्वाज के हाथों हुआ। प्रकाशक नितिन गर्ग भी दिल्ली से आए। इस बात से जयप्रकाश मानस बहुत नाराज हुए कि आप इतनी सीनियर राइटर और अपने से जूनियर लेखक प्रेम भारद्वाज से लोकार्पण करा रही हैं। उन्होंने सुमीता से भी यह बात कही। वे सभी लेखकों की पुस्तकों के प्रकाशन, लोकार्पण, पुरस्कार, जन्मदिन और दिवंगत होने की खबरें फेसबुक पर लगाया करते हैं। लेकिन मेरी पुस्तक के लोकार्पण की खबर उन्होंने नहीं लगाई और मुझे फेसबुक पर ब्लॉक भी कर दिया। अब प्रेम भारद्वाज इस दुनिया में नहीं हैं। कितना कुछ उनसे सम्बंधित याद आ रहा है।

शुरुआत के वर्षों में दिल्ली से गुजरते हुए कुछ दिन रुकते हुए बहुत चाह कर भी प्रेम भारद्वाज से मिलना नहीं हो पाया। हालांकि पाखी में उन्होंने मेरा यात्रा संस्मरण और एक कहानी भी छापी।

फिर एक दिन अचानक रात 9: 00 बजे उनका फोन आया

"कैसे सह पाईं इतनी पीड़ा, हादसे। कैसे चेहरे पर मुस्कुराहट बनाए रखती हो।" उस दिन मैंने जाना कि यह व्यक्ति अंदर से कितना खोखला निराश है। पत्नी की असमय मृत्यु, आर्थिक संकट के रहते दिल्ली जैसे महानगर में जीवन यापन करना कोई मामूली बात नहीं। फिर तो रोज रात 9: 00 बजे से 11: 00 बजे तक हम फोन पर बतियाते। पाखी के जुनून को लेकर वे इस दुरावस्था में भी रात दिन उसे निकालते रहने की जहमत उठाए रखते। बातें करते-करते कभी गैस पर दूध रख कर भूल जाते। पूरा दूध जल जाता। 11: 00 बजे फोन रखते ही तुरंत फिर कॉल करते।

"दूध जल गया पूरा। पैंदे से चिपक गया। दूध पीकर ही पाखी के प्रूफ पढने वाला था।"

"क्यों आज से शराब को अलविदा कह दिया क्या," हम देर तक हँसते रहे थे।

फिर अचानक पाखी से उन्होंने इस्तीफा दे दिया और अपनी स्वतंत्र पत्रिका भवन्ती निकालने की योजना पर काम करना शुरू किया।

साल भर से वे कैंसर से अहमदाबाद के अस्पताल में जूझ रहे थे। पता नहीं ठीक हुआ कि नहीं। लेकिन फिर दिल्ली आकर भवंति पत्रिका का प्रकाशन, लोकार्पण भी किया और दूसरे अंक की तैयारियों में जुट गए। मैंने कहा "अंक तो भिजवाईए।"

बोले " भोपाल आने का प्लान कर रहा हूँ। लेता आऊंगा। लेकिन फिर ब्रेन हेमरेज, कोमा में चले जाना और कोमा में ही दुनिया को अलविदा कहना। उन्होंने जीना चाहा ही नहीं। शराब ने, सिगरेट ने उन्हें पीलिया निचोड़ लिया। वे उस कड़ी के आखिरी व्यक्ति थे जो आर्थिक संकट और सामाजिक बहिष्कार के बावजूद कभी अपने पद से नहीं डिगे।

कांदिवली में रहते हुए बाहर के सभी लेखकों ने मुझे बहुत अधिक रिस्पांस दिया। दिल्ली से हरिसुमन बिष्ट, सिलीगुड़ी से रंजना श्रीवास्तव, भोपाल से स्वाति तिवारी, बनारस से श्री हरि वाणी, पटना से मीरा श्रीवास्तव अनुराधा सिंह मेरे घर आई। अहमदाबाद से रजनी मोरवाल आई जिन्होंने मेरा साक्षात्कार भी लिया जिसे पंकज त्रिवेदी ने अपनी पत्रिका विश्वगाथा में छापा। मराठी की नंदिनी आत्मसिद्धा ने साक्षात्कार लिया जो मराठी की पत्रिका ललित में प्रकाशित हुआ।

23 मई को हेमंत के जन्मदिन पर सब घर में इकट्ठा हुए। धीरेंद्र अस्थाना, ललिता अस्थाना, खन्ना मुजफ्फरपुरी, सूरज प्रकाश, अमर त्रिपाठी, महेश दुबे, कैलाश सेंगर, मुकेश गौतम, सुभाष काबरा और सुमीता सहित विश्व मैत्री मंच के सभी सदस्य।

वह शाम हेमंत की कविताओं से शुरू होकर कहानी पाठ, कविता पाठ, व्यंग्य, गीत ग़ज़ल पर समाप्त हुई। उस फ्लैट में वह आखिरी गोष्ठी थी। मुंबई में मैं और अधिक नहीं टिक पाई। हालांकि लेखकों के जमावड़े से घर रौनक लबरेज रहता पर इस सिलसिले को जल्द टूट जाना था।