मेरे वे चार दिन / सुधा भार्गव
सुपर स्टार वर्गो क्रूज की रोचक समुद्री यात्रा-सिंगापुर, पीनांग, फुकेट बन्दरगाह
पहला दिन: रविवार - 11.8.05
मेरे वे चार दिन और तीन रातें ‘सुपर स्टार वर्गो ‘क्रूज में कैसे बीतीं इसकी अभिव्यक्ति के लिए शब्द कम, अपने में सुनाई देने वाले स्पंदन ज्यादा हैं। बचपन से ही कल्पना के उड़नखटोले में बैठकर कभी समुद्र तल में गोताखोर की तरह डुबकी लगाकर रंग बिरंगे कोरल, शंख सीपियों से मुट्ठी भर लेती तो कभी समुद्री सतह पर लहरों से अठखेलियाँ करते हुए सुनहरी मछली बन जाना चाहती। उम्र की दहलीज पार करती रही पर समुद्री सैर की दिली तमन्ना में कोई कमी न आई।
एक दिन प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हो गई। हमने एशिया पैसिफिक समुद्री मार्ग पर आने वाले स्टार क्रूज में दो टिकटों का आरक्षण करा लिया। जहाज का नाम सुपर स्टार वर्गो था। क्रूज का अर्थ ही है समुद्री यात्रा।
मैं और मेरे हमसफर भार्गव जी बैंकाक-पटाया होते हुए 9सितंबर 2005 को सिंगापुर पहुँच गए।
वहाँ हम गोल्डन लैंडमार्क होटल में ठहरे। 11 सितंबर की सुबह 9बजे के करीब लक्जरी टूर वालों की कार हमें लेने आ गई। हमें सिंगापुर बन्दरगाह जाना था। ड्राइवर ने बड़ी ज़िम्मेदारी से समान कार में रख दिया। । उसके विनीत व्यवहार से हम बहुत प्रभावित हुए। यूरोप टूर के समय तो हम बोझा ढोते ढोते खच्चर हो गए थे। अक्ल भी आ गई कि यात्रा करते समय कम सामान तो भार भी हल्का, मन भी हल्का।
दोपहर के 1बजे हम सिंगापुर बन्दरगाह पहुँच गए। दूर से ही स्टार क्रूज पर निगाह पड़ी। मुँह से बरबस निकल पड़ा –वाह !आधुनिकता और सुंदरता का क्या अद्भुत संगम है। इंसान की कारीगरी का बेजोड़ नमूना विराट समुंदर से अपना तालमेल बैठाकर अवर्णनीय समा बांध रहा है। हार्बर पर अटैची और बैग जलयान के कर्मचारियों के सुपुर्द कर के हम बेफिक्र हो गए। क्रूज में सीढ़ियों द्वारा अंदर प्रवेश करना था परंतु सीढ़ियाँ चढ़ने से पूर्व ही हमें अपना पासपोर्ट और कन्फर्मेशन स्लिप एक अधिकारी को दिखानी पड़ी। यह एक तरह से क्रूज टिकट होता है। मखमली सीढ़ियों पर चढ़कर ऊपर पहुँचे तभी एक जोकर आकर झूमने लगा। अपनी बिभिन्न हँसोड़ मुद्राओं से यात्रियों की थकान मिटाने में लग गया। क्लि –क्लिक की आवाज से हम कुछ चौंक पड़े। पता लगा –जलयान के कुशल फोटोग्राफर क्रूज की पिक्चर गैलरी में लगाने के लिए आगुन्तकों की फोटो खींच रहे हैं। हमारे पीछे आने वालों में भारतीय, पाकिस्तानी, यूरोपियन, अरेबियन सभी थे। राष्ट्रीय –अंतर्राष्ट्रीय जातियों –भाषाओं का निराला मिलन था।
चेक -इन -काउंटर पर पहुंचते ही हमें तीन प्रवेश द्वार दिखाई दिये। यात्री भी तीन श्रेणियों में विभक्त थे। उन्हें पृथक –पृथक रास्तों से जाना था। जिनके केबिन के साथ बालकनी थी वे बालकनी क्लास के कहलाए। उन्हें बाईं ओर लाल गलीचे पर चलकर जाना था। वर्ल्ड क्रूजर्स को दाईं ओर नीले गलीचे से जाना था। एड्मिरल क्लास के यात्रियों के लिए पीले गलीचे की व्यवस्था थी। इनको चैक - इन में प्रधानता दी गई। बालकनी क्लास का टिकट होने पर हमें तो पंक्ति में खड़ा होना पड़ा। स्वागत कक्ष में यात्रियों के पासपोर्ट की जगह एक्सेस कार्ड (Acces Card )दे दिये गए। कार्ड देखने में छोटा था पर था बड़ा महत्वपूर्ण। यही बोर्डिंग पास स्टेटरूम की चाबी था। यही चार्ज कार्ड और बोर्ड पर मिलने वाली विभिन्न सुविधाओं का द्वार था। उसके पीछे मैंने हस्ताक्षर किए ताकि गुम होने पर कोई इससे अनुचित लाभ न उठा सके।
स्वागत कक्ष में वैलकम ड्रिंक देकर बड़ी हर्मजोशी से नवागंतुकों का अभिनंदन किया गया। हॉल में खड़े होकर हम चारों ओर आँखें फाड़ –फाड़कर देख रहे थे। प्रतीत होता था हम कुबेर नगरी में आ गए हैं। संगमरमर के चमचमाते फर्श के मध्य धातु के बने समुद्री घोड़े, उनके पीछे चढ़ती उतरती पारदर्शी लिफ्ट, तरतीब से लगाए गुदगुदे सोफे, करीने से लगे विशाल फूलदान, चारों तरफ बिछे ईरानी कालीन, उनसे लगी मदिरा की लुभावनी दुकानें, क्रय –विक्रय करती अप्सराओं सी हसीन युवतियाँ हमें हैरानी में डालने ले लिए पर्याप्त थीं। सोमरस को चखने की लालसा लिए अनेक देशी विदेशी भौंरे मदिरा पर नजर जमाये थे। समुद्री घोड़े हवा से बातें करते नजर आए। मानो इस बात का आश्वासन दे रहे हों –आपकी यात्रा शुभ होगी। शीघ्र ही हमारी तरह सरपट भागता सुपर जलयान समुद्र की लहरों से अठखेलियाँ करेगा और आप आत्मविभोर हो उठेंगे। दीवारों पर लकड़ी की नक्काशी और पोत का ढांचा पोत निर्माताओं व शिल्पियों के हुनर का गवाह था। । अनुशासित कर्मचारी नौ चालक, मार्ग निर्देशक अपने –अपने कर्तव्य का पालन करते हुए यात्रियों की मदद करने का भरसक प्रयत्न कर रहे थे।
तभी घोषणा हुई –जहाज दोपहर के चार बजे सिंगापुर पोर्ट से चलेगा। आप लोग विभिन्न रेस्टोरेन्ट में जाकर जलपान कर सकते हैं। हमें तो अपने सामान की चिंता थी। फिर केबिन में जाकर बालकनी से लहराते समुद्र के ऐश्वर्य का अवलोकन भी करना था। अगले दिन के रात्रि –समारोह –भोज (Gala Dinner)के लिए आरक्षण भी कराना था। उसमें सीटों की व्यवस्था सीमित होती है। निशुल्क होने से सभी यात्री उसमें जाना चाहते हैं। इसीलिए जो पहले आ गया वह पा गया वाला नुस्खा अपनाया जाता है। हम आरक्षण के लिए भागे –भागे रिसेप्श निस्ट डेस्क पर गए। वहाँ पहले से ही टिकट लेने वालों की दीर्घ कतार थी। मेरा तो दिल धड़कने लगा। जब तक हमारा नंबर आए कहीं टिकट ही न खतम हो जाएँ। पिछले महीने यहाँ आए मेरे भाई को टिकट नहीं मिल पाए थे। पर हम सौभाग्यशाली निकले और दो टिकट मिल गए।
रहरह कर सवाल उठ रहे थे -सुपर स्टार 13 डेक वाले विशाल यान के बारे में कैसे जानेंगे? कहाँ क्या करने जाना है? पता करते –करते कहीं पैर जबाव न देने लगें। इसी मानसिक उथल –पुथल के बीच हम अपने ओंठ सिए मार्ग निर्देशक की सहायता से अपने केबिन नंबर 9658 के सामने जा पहुंचे। हमारी दो अटेचियाँ पहले से ही उसके दरवाजे पर रखी थीं। एक्सेस कार्ड से केबिन खोलकर अंदर घुसे। सीधे हाथ की ओर छोटा सा आधुनिक शैली का बाथरूम था। उल्ते हाथ की ओर लकड़ी की अलमारी में यात्रियों के सामान रखने की व्यवस्था थी। उसमें लाइफ जैकिट, स्लीपर, बाथ गाउन भी थे। उसी के बराबर में चाय की केतली व दूरदर्शन हमारा इंतजार कर रहे थे।
दरवाजे के सामने ही बिछे हुए डबल बैड पर एक पेपर रखा था। जिस पर लिखा था –‘स्टार नेवीगेटर –वैल्कम एबोर्ड। केबिन के अंदर –बाहर --!हर जगह स्वागत होता देख हर्ष की सीमा न रही। पेपर में जहाज की समस्त गतिविधियों का अच्छा –खासा विवरण था। । पलंग से कुछ कदम दूर प्यारी सी छोटी सी बालकनी थी जिसमें दो आरामकुरसियाँ व मेज रखी थीं । बालकनी और कमरे के बीच शीशे का दरवाजा था। हमने फटाक से शीशे का दरवाजा और उस पर पड़ा पर्दा हटाया और बालकनी में जा खड़े हुए। सिंगापुर बन्दरगाह का अद्भुत दृश्य उपस्थित था। हमने जी भरकर उसे आँखों से पी जाना चाहा। नौ परिवहन नौकाएँ बड़ी कुशलता से अतुल जलराशि को चीरती आगे बढ़ रही थीं मानो कोई साहसिक समुद्री अभियान चल रहा हो।
इतने में कमरे में लगा स्पीकर बोल उठा –‘आवास सुविधा युक्त शक्ति चालित जलयान पर आपका स्वागत है। आज समुद्री यात्रा का प्रथम दिन है। कृपया लाइफ जैकिट लेकर इमरजाइनसी ड्रिल के लिए डेक 7 जोन z पर हाजिर हो जाइए। ‘
हम तुरंत गंतव्य की ओर चल दिये। जरा सी भी देरी करके हम बदनाम नहीं होना चाहते थे। विदेश जाकर अपने देश की प्रतिष्ठा के लिए ज्यादा ही सजग रहना पड़ता है। सेफ्टी डेमो में यात्रियों को अलग अलग वर्गों में विभक्त करके सेफ्टी जैकिट पहनना और उसका इस्तेमाल करना सिखाया। साथ में संकट कालीन परिस्थिति में इमरजेंसी बोट की जानकारी प्रदान की गई।
अभी जहाज के चलने में समय था। हम डेक 7 पर ‘व्यू पोइण्ट’पर जाकर खड़े हो गए। । जहाज के आगे के हिस्से पर खड़े होकर ऊपर से नीचे तक प्रकृति के निखरे सहज रूप को देखकर मैं रोमांचित हो उठी। कैमरे का बटन दबाकर उसे उसमें कैद करना चाहा। एक क्षण को हमें ऐसा अनुभव हुआ जैसे टाईटैनिक’ अँग्रेजी पिक्चर के हीरो की तरह वहाँ खड़े हैं। यह फोटोग्राफी जहाज के चलने के पहले ही हो सकती है क्योंकि बाद में सुरक्षा की दृष्टि से व्यू पाइंट का दरवाजा बंद कर दिया जाता है। जैसे ही हम वहाँ से नीचे उतरे, जहाज हिल उठा। मैं अप्रत्याशित खुशी से छलक गई। जहाज धीरे –धीरे चलता हुआ सिंगापुर बन्दरगाह से बाहर खुले समुद्र में निकाल आया। अब समुद्र तट पीछे छूट चुका था। सिंगापुर में चार रातें बिताकर आई थी इसलिए अपनापन सा लगा और अंजाने ही हाथ हिलाने लगी मानो परिचित को छोड़े जा रही हूँ। फिर सोचा –कुछ दिन बाद ही तो लौट रही हूँ, विदायगी –बिछुड्ने का दर्द कैसा?
स्टार नेवीगेटर के कार्यक्रमों को पढ़कर विदित हुआ कि आज का लीडो शो देखने लायक है। शाकाहारी –मांसाहारी दोनों तरह के रेस्टोरेन्ट हैं। कुछ में नि:शुल्क भोजन मिलता है, कुछ में बिल चुकाकर। हमको भोजन के लिए 300सिगापुर डॉलर के कूपन मिले थे। उनको क्रूज में ही खर्च करना अनिवार्य था। क्रूज से बाहर उनकी कीमत शून्य थी। पेट में चूहे खलबली मचा रहे थे सो शुद्ध शाकाहारी स्वादिष्ट भोजन की तलाश में बाहर आ गए। शाकाहारी भोजन के लिए ज़्यादातर लोगों की जुबान पर ‘मेडिटेरियन का नाम था। यह डेक 12 पर था। हमने वहाँ एक्सेस कार्ड दिखाकर अंदर बैठने के लिए सीट नंबर ले लिया। वहाँ फल –सलाद, केक –पेस्ट्री, जैन भोजन, चाय-काफी, जूस –आइसक्रीम का निहायत उम्दा इंतजाम था। भाग्य से हमारी सीट ऐसी मिली कि खिड़की से लहराते समुद्र पर चाँदनी की बिछी चादर दिखाई पड़ने लगी।
मेरे मुंह से निकाल पड़ा –यह सोनजूही सी चाँदनी /नव नीलम पंख कुहर खोसे /मोर पंखियाँ चाँदनी।
बाहर का दृश्य देखकर कवि नरेश मेहता जी की पंक्तियाँ याद आने लगीं—
नीले अकास में अमलतास
झर –झर गोरी छवि की कपास
किसलियत गेरुआ वन पलास
किसमिसी मेघ चीवर विलास
मन बरफ शिखर पर नैन प्रिया
किन्नर रंभा चाँदनी।
प्रकृति के सौंदर्य का पान करते –करते कुछ ज्यादा ही खा गए। डकार लेते हुए यूनिवर्सल जिम और कार्डरूम का जायजा लेने चल दिये। जिम में तो इक्के –दुक्के ही नजर आए पर कार्डरूम में अच्छा –खासा जमघट था। रईसजादों की जेबें खाली होने के लिए कुलबुला रही थीं।
गुलाबी आकाश के सम्मोहन से खिंचे हम सबसे ऊपर डेक 13 पर पहुँच गए। वहाँ हवा के इतने तेज थपेड़े लग रहे थे कि एक पल को लगा –अगर अपना ठीक से संतुलन न बनाए रखा तो पवन देवता हमें जरूर उड़ाकर ले जाएंगे
इतनी ऊंचाई से उदधि गहरे नीलवर्ण का लग रहा था। वह बड़ी शांत तथा गंभीर मुद्रा में था। उसके इस रूप रंग –गंध के उन्माद में ख्यालों की पतंग उड़ाने लगी। । प्रभाती हवा सी ताजगी लिए स्पोर्ट्स डेक की ओर घूम गई। वहाँ कुछ युवक बास्केटबॉल खेल रहे थे और दर्शक उन्हें घेरे उल्लसित से खड़े थे। वहाँ तो सबका एक –एक पल मोती के समान कीमती और पुलकित करने वाला था।
रात के साढ़े नौ बजते ही हम डेक 7पर चले गए।वहाँ लीडो शो होने वाला था जिसका नाम था -सौर प्रेसा (SORPRASA)। उसमें सुपरस्टार के कलाकारों ने भाग लिया था। नर्तकियाँ यूरोप और ब्राज़ील की थीं। अपनी कला में वे पूर्ण दक्ष थीं। फोटोग्राफी पर वहाँ बंदिश थी। मंचसज्जा को देख तो मेरी आँखें चुंधिया गईं। युवती के रूप में युवक का मेकअप इतनी कुशलता से किया गया था कि संदेह की दृष्टि से कोई देख ही नहीं सकता था।
गैलेक्सी ऑफ स्टार्स में संगीत भरे मनोरंजक कार्यक्रम शुरू होने का समय हो गया। । बच्चों की तरह हम वहाँ के लिए भागे। आगे की सीटें घिर चुकी थीं। मन मारकर पीछे सोफे पर बैठना पड़ा। वहाँ से कैबरे डांसर ठीक से दिखाई भी नहीं दे रही थी। थोड़ी देर इसी ताक में रही कि कोई आगे से उठकर जाये तो मैं वहाँ जाकर धम्म से बैठ जाऊँ।। उस दिन म्यूजिक इज माई लाइफ नामक विनोदपूर्ण प्रोग्राम था। आस्ट्रेलियन प्रदर्शन कर्ता मिस मारिसा बारगीज कैबरे शैली में उसे प्रस्तुत कर रही थीं। उनके साथ पेरिस के विश्व प्रसिद्ध मूलिन रौग (Moulin Rough)थे जो हास्यपूर्ण शैली में दक्ष थे। । दोनों अपने अनुभवों का पिटारा खोले हास –परिहास की फुलझड़ियाँ छोडने लगे।
गैलेक्सी में हँसते –हँसते पेट फूल गया था मगर वहाँ से निकलते ही उदर ज्वाला भड़क उठी। । उसे शांत करने के लिए मेडिटेरियन में सपर करने जाना पड़ा। सोच रहे थे गुदगुदे बिस्तर पर लुढ़कते ही सो जाएँगे मगर लेटते ही हमें लगा समुद्र की उठती लहरें पलंग से टकरा रही हैं और पलंग केबिन में न होकर खुले समुद्र में तैर रहा है।
रात्रि की नीरवता को चीरती सागर की साँय –साँय कानों में फुसफुसाकर हृदय को कंपायमान करने वाला राग अलापने लगती। प्रतीत होता कोई अजगर जहरीली फुंफकार छोडता हमें डसने आ रहा है। संदेह के घेरे में घिरी कायर की तरह सोचती –जहाज की पेंदी में छेड़ हो गया तो क्या होगा !समुद्री तूफान के आने से तो हमारा जहाज और हम डूब ही जाएँगे। हड्डी –पसली तक का पता नहीं लगेगा। अंजाने में भार्गव का हाथ थाम लिया, मुझ डूबते को तिनके का सहारा मिला।
दूसरा दिन: सोमवार - 12.8.05
पीनांग (मलेशिया की एक स्टेट )की सैर
सुबह 7बजे मैं हड़बड़ाकर उठी। जहाज आज मलेशिया पहुँचने वाला था। तटीय भ्रमण सूचनार्थ पेपर मेज पर रखा था। उसमें अनेक तरह के टूर की व्यवस्था थी। जिनकी कीमतें भी भिन्न थीं। हमारी समझ में न आया कि पीनांग में कहाँ जाने का निश्चय करें। यह मलेशिया की एक स्टेट है और इसी के तट पर जहाज रुकने वाला था।
नाश्ता करते –करते अनेक पर्यटकों से जानकारी हासिल करके मजबूत इरादा कर लिया कि पीनांग का तृषा राइड(TRISHAW RIDE)और सिटी टूर लेंगे। दोपहर के 12बजे जहाज पीनांग पहुँचने वाला था। हम उत्सुकतावश नीचे डेक पर 11बजे ही पहुँच गए। सुरक्षा जांच आदि समाप्त होने के बाद करीब 40पर्यटक लाइफ बोट पर सवार होकर ह्यूजैटी जा पहुंचे। एक महिला कोच न०६ का झण्डा लिए खड़ी थी। बस उसका अनुसरण कर हम कोच में बैठ गए।
यहाँ सबसे पहले डच आए थे फिर ब्रिटिशर्स ने अपना झण्डा यहाँ गाड़ा। उन्होंने अपनी रक्षा के लिए सिंगापुर और मलेशिया के बीच नहर बनवाकर उसके ऊपर पुल बनवाया ताकि दोनों में संपर्क स्थापित हो सके। उसी पुल से हम गुजर रहे थे।
स्थानीय होटल में दोपहर का भोजन करने के पश्चात रिक्शा साइकिल में बैठे। उन्हें यहाँ त्रिशा (TRISHA) कहते हैं। ये फूलों से सजी सजाई एक लाइन में खड़ी थीं। मगर थीं बड़ी विचित्र। भारत में पहले साइकिल चालक सीट पर होता है, उसके पीछे सीट पर यात्री बैठे होते हैं पर यहाँ यात्रियों की पीठ चालक की पीठ की ओर होती है। दोनों खुली सड़क का आनंद ले सकते हैं।
हमें जार्जटाउन के पुराने हिस्से कैम्पबेलस्ट्रीट पर रिक्शा ने घुमाया। वहाँ घरनुमा दुकाने हैं जहां आभूषणों से लेकर कपड़ो तक की बिक्री होती है। फोर्ट कार्नवालिस 1789 में लकड़ी का बनाया था। उसके पुन : निर्माण की योजना 1905 में पूर्ण हुई। आज भी इसका नक्काशी पूर्ण घर व एतिहासिक तोपें इसके गौरवपूर्ण अतीत का स्मरण कराती हैं।
कुछ ही देर में हम क्लान पियर्स (clan piers)पहुँचे। यह ऐसा हार्बर है जहां एक ही वंश के लोग उसी स्थान पर अभी तक रहते हैं जहां वर्षों पहले आए थे। यह चाइनीज वाटर विलेज है जो बांस के मोटे –मोटे खंबों पर बनाया गया है। अब तो यह समुद्र की ओर बढ़ता जा रहा है।
ब्रिटिशर्स के समय चायना से 7 जातियाँ आईं। इस गाँव में उनके 7 टाउन थे। उन्होंने छोटे –छोटे लकड़ी के घर बनाए थे । आज भी वे उन्हीं में रहते हैं। सबका व्यवसाय मछली पकड़ना है। लकड़ी के खंबों पर फर्श, दीवारें, छ्तें टिकी हैं। दायें –बाएँ बने मकानों के बीच चलने का संकरा रास्ता भी लकड़ी के तख्तों का बना है। रास्ते पर चलते समय हमने उनके घरों में झाँका –अंदर से साफ, फ्रिज, गैस, टी वी सभी तो कुछ था। घरों की छ्तें नीची थीं।
एक मंदिर में जल देवता स्थापित थे। मछुए उनको प्रणाम करके ही समुद्र में उतरते हैं। मंदिर के बाहर गन्ने का छोटा सा पेड़ था। इसकी भी पूजा होती है। गाइड ने ही बताया –जापान ने जब यहाँ बम बरसाया तो सब कुछ नष्ट हो गया परंतु गन्ना ज्यों का त्यों रहा। ऐसे विकट समय में इसका रस पीकर ही मछुओं ने जीवन पाया फिर अपने जीवन दाता को कैसे न पूजें।
सन 1957 में मलेशिया अंग्रेजों से मुक्त हुआ। यहाँ 50%चाइनीज, 10%भारतीय हैं। राष्ट्रीय भाषा मलयी है। वहाँ का मंदिर खो कोंगसी (kho kongsi)शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है। खो –चाइनीज परिवार के कुल का नाम है और कोंगसी का तात्पर्य है साझेदारी। हमने जो मंदिर देखा वह नया था पुराना जलकर नष्ट हो गया है। शिल्पकार च्यून चू (Chuan Chew) का यह महान कीर्ति स्तम्भ है। उसकी मूर्ति भी इस देवालय के प्रांगण में है। यह मंदिर सर्वोत्तम लकड़ी को काट –तराश कर बनाया गया। नक्काशी के द्वारा भरे रंगों से उत्पन्न सुनहरी किरणों में पूरा का पूरा मंदिर चमक रहा है।
एक और मंदिर –वाट चाय मागकलारन (wat chaiyammangkalaran)के संरचनात्मक कौशल को देखकर हम ठगे से रह गए। यह चाइनीज, थाई और वर्मी शिल्प नमूनों का सम्मिश्रण है। यह अद्भुत निर्माण 19वीं सदी में हुआ था। मंदिर के अंदर बुद्ध की लेटी प्रतिमा है। अपनी विशालता के कारण यह संसार में तृतीय स्थान रखती है। इसकी लंबाई 33मीटर है। भगवान बुद्ध की आंखें और नाखून समुद्री सीपियों से बने हैं। सीपी शिल्प में दक्ष कलाकार का हुनर सराहनीय हैं। रिकलाइनिंग बुद्धा के चारों ओर सोने की पन्नी लिपटी हुई है। उनके पीछे 12 मूर्तियाँ हैं। ये चाइनीज कलैंडर के जानवरों का प्रतिनिधित्व करती हैं। प्रवेश द्वार पर पत्थर के दो ड्रैगन बैठे हुए हैं जिनमें एक नर है और एक मादा। मादा की गोद में बच्चा है इनको देखकर लगा वे मुस्कान बिखेरते हुए अभिवादन कर रहे हैं। विश्वास किया जाता है कि वे मंदिर के रक्षक हैं। हमारे टूर का समय केवल 5 घंटे था। गर्मी भी काफी थी इसलिए वाटिक फैक्टरी देखकर लौटने का विचार हुआ।
बाटिक फैक्टरी में परंपरागत तकनीक अपनाते हुए मोम और रंगों का प्रयोग होता है। कपड़े के डिजायन बहुत ही सुंदर और जगमग कर रहे थे। मैंने बाटिक शिल्प के कार्ड खरीदे जिनमें वहाँ के पारिवारिक व सामाजिक जीवन को चित्रित किया गया है। फैक्ट्री के अंदर पैदा होने वाले नारियल का मीठा जल पिलाकर हमारा स्वागत किया गया।
सर्प मंदिर को देखकर तो हमारे रोंगटे खड़े हो गए। अंदर ऐसे घूम रहे थे, झांक रहे थे, पेड़ से लिपटे हुए थे मानो वह उनकी विश्राम स्थली हो। हम तो उल्टे पाँव लौट पड़े तभी वहाँ के धर्माधिकारी ने आवाज दी और कहा –ये विषधारी नहीं हैं और जलती हुई अगरबत्ती के धुएँ से ये बेहोश से रहते हैं। उनकी बात ठीक होगी पर हम खतरों के खिलाड़ी नहीं थे सो जान बचाकर भागे।
हमारा लौटने का समय हो गया था। पीनांग ब्रिज के पार समुद्री तट पर बिजली समान फुर्तीली लाइफ बोट पहले से ही हमारी प्रतीक्षा में थी। जलपरी की तरह वह किल्लोल करती हुई स्टार क्रूज की ओर बढ़ चली। खुले सागर में दूर –दूर तक नौकाओं का जाल बिछा था। डगमगाते जलपोतों को चतुर नाविक बड़े विश्वास व कौशल से बंदरगाह की ओर ले जा रहे थे।
नेवीशक्ति सम्पन्न सिंगापुर मलेशिया जैसे राष्ट्रों में न सील मछली का भय न समुद्री शैवाल का। हाँ सूनामी लहरों की याद इन आनंद के पलों में दंश देना न भूलती थी।
जहाज की सीढ़ियों पर चढ़ते समय रंगमंच के कलाकारों ने हमारा पुन : स्वागत किया मानो हम बहुत भारी विजय प्राप्त करके आ रहे हों। चाइनीज व्यंजन खाने की इच्छा पूर्ति के लिए हम डेक 6, पैवेलियन रेस्टोरेन्ट में चले गए। चायना कल्चर के अनुसार वहाँ बड़े –बड़े चीनी फूलदान, लकड़ी की नक्काशी वाले ड्रैगन देखकर लगा जैसे हम चीन में खड़े हैं।
अपने केबिन में जाते ही देखा –फुकेट थाईलैंड भ्रमण की सूचनाओं से भरा पेपर हमारा इंतजार कर रहा है। वह टूर अगले दिन सुबह 8बजे से शाम को 6बजे तक का था। कई तरह के टूर थे। जैसे मनोरंजक टूर, थाई तेल मालिश टूर। एक हमें पसंद आया –ऑफ शोर एडवेंचर (off shore adventure)। इसमें समुद्री गुफाओं व नौकाओं से संबन्धित कार्यक्रम थे। पर वह हम जैसे सीनियर सिटीजन के लिए न था। हमने फुकेट जाने का इरादा ही छोड़ दिया क्योंकि और कार्यक्रम में हमारी रुचि ही न थी। क्रूस मेन रहकर ही समुद्र का आनंद उठाना ज्यादा ठीक समझा।
स्टार क्रूजर की दुनिया में पिक्चर हाउस आठवे डेक पर था। वहाँ Be Cool पिक्चर देखी पर मन तो चलायमान था, समय भागा जा रहा था और बहुत कुछ देखना था। एक घंटे के बाद ही उठकर ‘गेलेक्सी स्टार’ चले गए। वहाँ एडल्ट फन टाइम (adult fun time)शुरू हो गया था। उसमें विभिन्न उम्र के जोड़ों को बुलाया गया। दो नव विवाहित थे। अन्य जोड़े की शादी को दस वर्ष और दूसरे की शादी को बीस वर्ष हो गए थे। हमको भी खींच लिया गया। हमारे शादी को चालीस वर्ष हो चुके थे। चुनाव करते समय यह भी ध्यान रखा गया था कि जोड़े अलग- अलग देशों का प्रतिनिधित्व करें। जोड़ों से प्रश्नों की झड़ी शुरू हो गई। प्रश्न इस तरह के थे जिनसे पता लग सके पति पत्नी एक दूसरे की सोच इच्छाओं आदतों व जीवन के महत्वपूर्ण पलों से कितना परिचित हैं। अत्यधिक सजग व संवेदनशील पति -पत्नी हीरो माने गए क्योंकि उन्होंने ज्यादा नंबर लिए।
एक अन्य खेल में पति को कैबरे डांसर के साथ बॉलडांस करना था। कुछ तो बहुत संकोची थे। एक बेचारा भरतीय तो डांसर का हाथ पकड़ते ही शर्म से पानी –पानी हुए जा रहा था। आखिरी कार्यक्रम को सोच –सोचकर तो अब भी मेरी हंसी फूटने लगती है। हुआ यूं कि 6कुर्सियों पर 6गठरियाँ रख दीं। अब एक –एक गठरी पत्नियों ने उठा ली। जो गठरी जिसके हिस्से आई उसको उसमें बंधे कपड़े अपने पतिदेव को देने थे। कुछ लोग चादर तानकर उनके सामने खड़े हो गए ताकि कपड़े बदले जा सकें। तैयार होने पर उनको चादर ओढ़ाकर बैठा दिया गया।
बारी –बारी से पत्नी ने पति की चादर हटाई और उसका नया रूप दर्शकों के सामने उजागर किया। कोई साड़ी पहने था तो किसी ने स्कर्ट –ब्लाउज पहन रखा था, कोई मंकी कैप और मूंछ लगाए बंदर बना मटक रहा था। मेकअप भी उनका नए रूप के अनुसार हंसने –हँसाने वाला था।
एक वृद्ध सज्जन को जज बनाया गया। इस प्रतियोगिता में भागीदारों को अपनी मोहक अदाओं से जज का दिल जीतना था। मैं तो झिझकते हुए पीछे हट गई लेकिन हमारे कुछ साथियों का व्यवहार,उनका अभिनय काफी उन्मुक्तता लिए था पर जैसा देश वैसा भेष समझकर मनोरंजन के इस रूप का भी अनुभव कर लिया।
जज साहब प्रतियोगियों के हास –परिहास में बड़े उत्साह से भाग ले रहे थे। वे हाजिरजवाबी में माहिर थे। कहते हैं कला का ज्ञाता छिपते नहीं छिपता। वही प्रतिभागी विजयी हुआ जो छात्र जीवन में कमाल का रंगमंचीय अभिनेता था। । हंसीभरी चुटकियों में आधी रात हो गई। कमरे में पहुँचते ही बालकनी की कुर्सी में धंस गई। अब भी आँखों से सागर नापना चाहती थी। समुद्री ठंडे झोंकों से देह महक उठी। एक पल में मेरा मन न जाने कहाँ –कहाँ हो आया। अंधकार के वक्ष को चाँद की किरणों ने चीर कर रख दिया था। लहरों पर किरणें अठखेलियाँ कर रही थीं। सोने से अच्छा उसे निरखना अच्छा लगा पर नींद को तो आना ही था।
तीसरा दिन: मंगलवार - 13.9.05
जलयान और फुकेट पोर्ट
सूर्योदय के दर्शन की इच्छा अपूर्ण रह गई क्योंकि नींद देर से खुली। चाय पीने हम रेस्टोरेन्ट पहुंचे तो देखा फुकेट (थाईलैंड )टूर पर जाने वाले पर्यटक जमकर खा रहे थे। हमें तो कोई जल्दी थी नहीं सो स्वादिष्ट व्यंजनों की महक लेते हुए अपनी अपनी प्लेट लगाने लगे।
दोपहर 12 बजे के करीब फुकेट पोर्ट पर जहाज ने लंगर डाल दिया। विराट समुद्र दर्शन के लिए हमारे पास 6 घंटे थे। मन किया उसी क्षण समुद्र तटीय बलुआ मैदान में दौड़ लगाऊँ। उसका स्पर्श करूँ।, समुद्री फेन को अंजुरी में भर उससे खिलवाड़ करूँ।
दिल्ली से चलते समय किसी ने कह दिया था कि ताज होटल में जरूर खाना। सोचा बड़ी भीड़ होगी –आरक्षण करा लेते हैं। लेकिन खाने के समय लंच रूम में केवल हम दो थे। नाम बड़े और दर्शन थोड़े। खाने वाले वहाँ कम ही आते हैं बिल चुका कर भोजन मिलता है और कोई खास भी नहीं। जब मुफ्त में उससे हजार गुना अच्छा खाने को मिले तो वहाँ कौन जाए। हम दो पर बैरा तीन, लगता था सी .आइ. डी .खड़े हैं। मुझे तो खाने में भी संकोच हो रहा था।
पेट पूजा करने की बाद फुकेट बन्दरगाह पर घूमने के इरादे से जहाज से नीचे उतर पड़े पर एक्सेस कार्ड दिखाने के बाद ही जलपोत से उतरने की आज्ञा मिली। आखिरी सीढ़ी के पास ही कोस्ट गार्ड और सुरक्षा अधिकारी बैठे थे। कुछ दूरी पर छोटा सा बाजार लगा हुआ था। दूर तक विराट जलराशि की भीम क्रीड़ा को देखते हुए काफी दूर तक हम चलते रहे। दूसरों को उपहार में देने के लिए कुछ टीशर्ट,चाबी के गुच्छे और पर्स खरीदे लेकिन मोलभाव बहुत करना पड़ा। वैसे भी हम लेना कम देखना ज्यादा चाहते थे सो टालमटूली करते रहे।
समुद्र के किनारे से किनारा करते –करते शाम के छ्ह तो बज ही गए थे। छ्ह बजे जहाज में हैपी आवर्स (Happy Hours)शुरू हो गए।सो हम रिसेप्शन हॉल में बिछे सोफों पर बैठ गए। आकेस्ट्रा बज रहा था। सामने स्त्री –पुरुष अँग्रेजी धुनों पर थिरक रहे थे। हमारे दोनों ओर छोटी पर खूबसूरत दुकानों पर विदेशी सुरा रखी थीं। सोविनियर्स से वहाँ की शोभा दुगुनी हो गई थी। हैपी आवर्स में एक गिलास शैंपिन लेने से दूसरा गिलास मुफ्त मिल रहा था। मुफ्ती का माल छोडने को कोई राजी न था।
आज शाम बैलाविस्टा रेस्टोरेन्ट में गाला डिनर था। उसमें उपयुक्त परिधानों का विशेष ध्यान रखा गया था। कोई भी नेकर, वरमूडा, बिना बांह की कमीज या चप्पल पहनकर नहीं जा सकता था। दरवाजे पर एक्सेस कार्ड दिखाकर अंदर घुसे। । मेज का नम्बर हमारा पहले से ही निश्चित था। हम वहां खास मेहमानों की श्रेणी में आते थे। यान परिचारिकाएँ मेजबानी में खड़ी थीं। रंगबिरंगे बल्बों से कोना कोना जगमगा रहा था। संगीतमय मदभरी शाम में हमने कुछ समय के लिए खुद को राजा –महाराजा समझने का मजा लिया। कुछ पर्यटक नोबल हाउस (चायनीज़),समुराय (जापानी)होटल के गाला डिनर में चले गए थे। पर हमारी मंजिल तो बैलाविस्टा ही थी। शाकाहारी भोजन वही अच्छा था।
डिनर के बाद हम पिक्चर गैलेरी चले गए। सैकड़ों तस्वीरें दीवार पर लगी थीं। ताकि सैर करने वाले उन्हें देखें, सराहें व खरीदें। स्टार क्रूज के फोटोग्राफरों ने यात्रियों के चित्र कैमरे में कैद कर लिए थे। हमने भी दो तस्वीरें खरीदीं। एक नर्तकी के साथ दूसरी जोकर के साथ।
रात के बारह बजे डिजायर प्रहसन (Las Vegas Style Toples Revue)देखने जाना था। यह 40 मिनट का लीडो शो होता है। इसके टिकट 4बजे ही खरीद लिए थे। देर होने से टिकट के दाम ज्यादा देने पड़ते। करीब 20 या 25 सिंगापुर डॉलर का एक टिकट पड़ता। प्यार और रोमांस से भरी यह रात दर्शकों के हृदय की धडकनों को तेज करने वाली थी। इसका गीत –संगीत- नृत्य सभी कुछ उत्तेजक था। लीडो थियेटर में 18 वर्ष से कम उम्र वालों का प्रवेश निषिद्ध था। अल्हड़ लड़कियां झीने वस्त्र पहने रुपहले जुगनुओं की तरह चमक रही थीं। उनमें नीले आँखों वाली एक लड़की थी। लगता है इससे कवि पैब्लो नेरूदा अवश्य मिले होंगे तभी तो उनकी कुछ पंक्तियों में उसका सार्थक चित्रण है –
जादू भरे उभारों में
दो अग्निशिखाएँ लहक रही थीं
और वे अग्निधाराएँ स्वच्छ मांसल लहरों में इठलाती हुई
कदली खंभ जैसी जांघों में तैरती हुई
उसके चरणों तक उतर गई थीं
पर उसकी निगाहों से तिरछी हरी -हरी किरणों के
निर्मल झरने झरते थे।
लेकिन ऐसी दृष्टि सबकी कहाँ? वहाँ बैठे लोगों की नजरें तो अनावृत उरोजों से टकरा रही थी। आखिर था तो नारी प्रदर्शन ही। नारी कब तक दिल बहलाने का साधन बनी रहेगी? इस प्रश्न से रात भर घायल बांसुरी की तरह सिसकती रही।
चौथा दिन: बुधवार - 14.9.05
ओ जाने वाले, हो सके तो लौट के आना
पहले दिन की क्षति पूर्ति करने में जल्दी उठ गई और सूर्योदय के समय की गगन की शोभा और पयोधि की शालीन मुद्रा निरखने बैठ गई। आज तो मुझे कागज के कोरे टुकड़ों पर सागर राज का हृदय उड़ेल कर रख ही देना था। अपनी तूलिका से उसमें चमकीले रंग भरने लगी।
क्रूज पर कार्यक्रम तो आज भी बड़े लुभावने थे। कहीं नेपकिन फोल्ड करना सिखाया जा रहा था, कहीं सब्जी फलों को काट –तराश कर उन्हें सुंदर रूप देने का प्रदर्शन था। बच्चों –किशोरों के प्रथक कार्यक्रम थे। कंप्यूटर सेंटर, स्वीमिंग पूल,,जिम, कसीनों, वीडियो गेम पार्लर, जकूजी –सोना बाथ सेंटर इत्यादि में जाने का तो समय नहीं था। यहाँ हर एक की रुचियों का ध्यान रखा गया है। लाफ्टर योगा क्लास में मेरी दिलचस्पी थी मगर भार्गवजी ने सनराइज़ वॉक(sunrise walk)का आग्रह किया। 5मिनट बॉडी स्ट्रेच कक्षा में भी झांकी लगा ली। गाइड ने खड़े होकर, लेटकर इस तरह शरीर के अंगों को तानकर उनमें खिंचाव करना सिखाया कि सुस्ती, शरीर का दर्द मिनटों में छू हो गया।
ब्लू लैगून एशियनवीस्ट्रो में नाश्ता करके अपने केबिन की बालकनी में जा बैठे। तीनों तरफ ---खामोश समुद्र –दूर ---सपाट दूर ---आकाश समुद्र मिले हुए, एक दूसरे में खोये, एक ही रंग में रंगे,कितना अद्भुत प्रकृति का जलमंच। अजीब सी शांति मन में समा गई। लहरों को चीरता जहाज आगे बढ़ रहा था,न कोई रुकावट, न कोई बंदिश। गतिमान के साथ निरंतर गतिमान। काश! मैं भी ऐसा कर सकती।
देखते ही देखते सूर्य ऊपर चढ़ आया। उसकी किरनें लहरों पर पड़ने के कारण वे शुभ्रता छिटकाती चांदी की सी मछलियाँ प्रतीत होती थीं। नीलांबर में खरगोशी चपलता लिए बादल भी टिकने का नाम नहीं ले रहे थे। सूरज उनकी ओर लालची दृष्टि से देख रहा था।शायद बालकों की तरह उनके साथ आँख मिचौनी खेलने को लालायित हो।
दोपहर के भोजन पश्चात स्वागत कक्ष में हमने एकसेस कार्ड जमा कर दिये और पासपोर्ट व अन्य कागज ले लिए। केबिन हमें शाम के 5बजे तक छोड़ देना था। इसलिए सामान उसके बाहर ही रख आए थे ताकि कर्मचारी उठा ले जाए और सिंगापुर में हमें दे दे। मटरगशती करते हुए हम एक रेस्टोरेन्ट में घुस गए । खिड़की के सहारे रखी कुर्सियों पर बैठकर गरम –गरम चाय पेस्ट्री का आनंद उठाने लगे लेकिन हमारा ध्यान खिड़की से बाहर ही था। धरती का छोर दिखाई देने लगा था। जहां से चले वहीं पहुँचने की प्रतीक्षा करने लगे।
जलयान के कुछ कर्मचारी भारतीय थे। वे बड़े अपनेपन से बातें करते। उनमें से एक ने बताया –अगले वर्ष स्टार क्रूज भारत में भी बंबई से चलने वाला है। इसका नाम है –सुपर स्टार लिब्रा। यह लक्ष्यद्वीप, कोची और गोवा जाएगा। मेरी नियुक्ति भी उसी जलयान पर होने वाली है।
वह बहुत खुश था क्योंकि ऐसा होने पर वह भारत में अपने परिवार से मिल पाएगा।
पाँच बजते ही डेक6 पर बालकनी क्लास के यात्री पैविलियन रूम में बैठ गए। वर्ल्ड क्रूसर श्रेणी के अतिथि डेक7 से सिंगापुर हार्बर उतरने वाले थे। भीड़ होते हुए भी सब अनुशासनबद्ध, पंक्तिबद्ध थे।
क्रूज यात्रा खतम होने जा रही थी पर इतनी मनोरंजक और हृदयग्राही सामुद्रिक सैर से जी नहीं भरा था। लहरों पर बिताए ये चंद दिन जीवन के हसीन पलों में गूँथ गए। हार्बर आने पर हम सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि संगीत उभरता महसूस हुआ ---
ओ जाने वाले, हो सके तो लौट के आना
पीछे मुड़कर देखा समुद्र,क्रूज और उसके स्टाफ की हजार –हजार निगाहें स्नेह से हमें देख रही हैं।
मेरे पैर भी तो बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ रहे थे। यात्रा से विदाई का क्षण ऐसी ही मधुर उदासी से भरा होता है। एक ओर यात्रा समाप्ति का दुख तो दूसरी ओर जन -जन के साथ यात्रा के मधुर अनुभव बांटने का उत्साह। उसी की झंकार लिए मैं यहाँ से जा रही थी जिसकी हल्की सी थाप से आज भी रोमांचित हो उठती हूँ।
(प्रकाशित –साहित्यिकी प्रकाशन ;यादों के झरोखे से)