मेला / अमित कुमार पाण्डेय
आज ऑफिस से थोड़ा लेट निकला, जैसे ही गेट पर पहुचा तो पाया की बाहर का मौसम थोड़ा खराब था। रह-रह कर बारिश हो रही थी। कुछ सोच नहीं पा रहा था कि घर कि तरफ चलू या बारिश के रुकने का इंतजार करूँ। फिर कुछ देर विचार कर के घर की तरफ चल दिया। बाइक से घर पहुचते-पहुचते पूरा भींग गया था। तुरंत मैंने कपड़े बदले और गॅस पर चाय चढ़ा दी। चाय पी कर मैं बेड पर आराम करने के लिए सो गया। अचानक बाहर की आवाज ने मेरी नींद तोड़ दी। मैंने साल ओढ़ी और बाहर बरामदे में आ गया। काफी ज़ोर की हवा चल थी और रह-रह कर बारिश हो रही थी। चारो तरफ घुप्प अँधेरा था। मैं घर के अंदर गया और गरम चाय के प्याले के साथ बाहर आया। मैं बाहर बरामदे में टहलने लगा। बीच-बीच में बारिश का झोंका मेरे बदन को गीला कर था और रह-रह कर बदन में सिहरन हो जाती थी। बड़ा ही सुहावना मौसम हो गया था। मैंने घर के अंदर से एक कुर्सी खीच ली और बैठ कर बारिश का आनंद लेने लगा।
अचानक मेरे जहन में बचपन की एक बात उभर आयी। तब मैं कोई दस साल का था और ऐसे ही ठंड की एक शाम जबर्दस्त बारिश हो रही थी। चारो तरफ गुप्पअंधेरा था। बिजली गुल हो जाने के कारण मैं अपने घर से बाहर आ गया। तभी घर के अन्दर से माँ की आवाज आई-"बुलबुल बाहर नहीं जाना"। तभी मेरे बगल के घर से आवाज आयी। मेरे मित्र पिंटू ने मुझे आवाज दी-"बुलबुल मेरे घर आओ"। दादा जी अलाव जलाने जा रहे हैं। मैं चुप चाप बिना किसी से बताये पिंटू के घर चला गया। मैं और मेरे तीनों दोस्त चिंटू, पिंटू और रिंटू, जो की आपस में भाई थे, दादा जी साथ आग के किनारे बैठ गये। चारो तरफ अँधेरा था, बिजली कडक रही थी और बड़ी ज़ोर की बारिश हो रही थी। ठंड में अलाव तापने में बहुत अच्छा लग रहा था। तभी पिंटू ने दादा जी से कहानी सुनाने को कहा। दादा जी ने पहले तो मना किया लेकिन हमारी जिद्द के कारण वह राजी हो गये। दादा जी ने कहानी सुनानी शुरू की लेकिन हमें हिदायत दी कि कहानी सुनकर कोई रात में डरेगा नहीं और कोई बीच में हमे टोकेगा नहीं।
दादाजी ने कहानी कुछ इस प्रकार शुरू की, बहुत पुरानी बात है, मैं, दादाजी और उनके तीन मित्रो ने मेला घूमने कि ईछा जाहिर की। मेला अगले हफ्ते में था लेकिन हमारे गाँव से कुछ दूरी पर लगा था। उन दिनो हमे सफर पैदल तय करना पड़ता था, इसलिए हमने निर्णय लिया कि सुबह सबेरे हम लोग मेले के लिए घर से निकलेंगे और घूम फिर कर शाम तक वापस लौट आएंगे। उन दिनो मेले में सुई से ले कर हाथी तक सब कुछ मिला करता था। हमारे एक मित्र को मेले से गाय भी खरीदनी थी। अतः हमारी मेले कि यात्रा अगले हफ्ते तय हो गयी।
मेले वाले दिन हम सुबह नित्य कर्म से निवृत होकर हम चारो लोग पैदल मेले के लिए चल दिये। हम लोगों ने घर से चलते वक़्त खाने की पोटली और पीने का पानी अपने साथ ले लिया था। लगातार दो घंटे चलने के बाद हम एक आम के पेड़ के नीचे आराम करने के लिए बैठ गये। हम लोगों ने वहाँ भोजन किया और पुनः यात्रा शुरू की। दोपहर से पहले हम लोग मेले में पहुच गये। बड़ा भव्य मेला था। हजारों कि संख्या में लोग मेले में उपस्थित थे। चारो तरफ भीड़ ही भीड़ दिखायी दे रही थी। कोई झूला झूल रहा था, कोई मदारी के खेल का आनंद ले रहा था, कोई ख़रीदारी कर रहा था तो कोई जुआ खेल रहा था। सभी अपने में मस्त थे।
भीड़ से हटकर कुछ दूरी पर बिकने वाले जानवरों का एक झुंड था। मेला घूमने के बाद हम लोग गाय खरीदने के लिए झुंड के पास गये। हमने एक गाय मोल ली और वापस अपने घर का रुख किया ताकि रात होने से पहले हम गाय के साथ सुरक्षित अपने घर पहुँच जाय। हम लोग वापस अपने घर को लौटने लगे। जैसे ही हम अपने रास्ते पर थोड़ा दूर चले होंगे तो किसी राहगीर ने हमसे कहा कि बाबू आप लोग कहाँ जा रहे हो। लगता मेले से गाय खरीदी है। गाय बहुत प्यारी है। मैंने उसे अपने गाँव का नाम बताया।
"बाबू आप लोग इस रास्ते से मत जाओ"-उसने बोला। "ये रास्ता बहुत लंबा है और आप लोगों के साथ गाय भी है"। "मैं आप लोगों को एक छोटा रास्ता बताता हूँ, आप लोग जल्दी अपने गाँव पाहुच जाएंगे"। उसने हमे बताया कि आप लोग यहाँ से दाहिने मुड़ जाएँ, थोड़ा दूर चलने के बाद एक चौरास्ता आएगा, वहाँ से बाएँ मुड़ जाएँ। फिर वहाँ से सीधे रास्ता पकड़ लीजीएगा, और आगे किसी से अपने गाँव का रास्ता पूछ लीजीएगा। हमने राहगीर को धन्यवाद कहा और उसके बताए रास्ते पर हम चल पड़े। थोड़ी दूर चलने के बाद हमे चौरास्ता दिखाई दिया। हम वहाँ से बाए मुड़ गए और सीधे चलने लगे।
हम सभी दादा जी कहानी को बड़े ध्यान से सुन रहे थे। तभी मैंने पूछा, "दादाजी, फिर क्या हुआ"। दादाजी बोले, "बताता हूँ, ज़रा घर के अंदर से एक ग्लास पानी ले आओ"। पिंटू अंदर गया और तुरंत एक ग्लास पानी ले आया। दादजी ने गला साफ किया और पानी पीने के बाद कहानी आगे सुनानी शुरू की।
हम लगातार अपने जानवर के साथ रास्ते पर तेजी से बढ़े जा रहे थे। शुरू में तो हमें अपने साथ कुछ और राहगीर चलते दिखाई दे रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे हमने महसूस किया हम रास्ते पर अकेले चल रहे थे। तभी एक राहगीर आता दिखाई दिया। मैंने तुरंत उससे अपने गाँव का रास्ता पूछा। उसने हमे बताया कि आगे का रास्ता बंद है। अतः हम लोगों को सीवान का रास्ता पकड़ना होगा, और वह रास्ता काफी निर्जन है और लंबा है। उसने हमें रास्ता तेजी से पूरा करने की सलाह दी और कहीं भी रुकने की सलाह नहीं दी। हमने सीवान का रास्ता पकड़ा और तेजी से आगे बढ्ने लगे। धीरे-धीरे शाम होने लगी थी। तेजी से रास्ता पूरा करने के चक्कर में हम रास्ता भटक गए. थोड़ी ही देर में हमने महसूस किया की हम ग़लत रास्ते पर चल रहें हैं। रास्ता बिलकुल वीरान था, कोई आदमी दिखाई नहीं दे रहा था। लगभग अँधेरा हो चला था, फिर भी हम रास्ता तेजी से तय किए जा रहे थे। थोड़ी देर में हमें रास्ता दिखाई देना बंद हो गया। हम सभी अंदाज़ के सहारे आगे बढ़ते चले जा रहे थे। लगातार चलने से अब हम काफी थक चुके थे। अब हमें भूख और प्यास दोनों महसूस होने लगी थी। हमने महसूस किया की गाय भी काफी थक चुकी है। हमने सामने एक पुलिया देखी और सुस्ताने के लिए हम सभी पुलिया पर बैठ गए. अब हममे आगे और चलने की शक्ति नहीं बची थी।
अंधेरी रात थी, चारो तरफ घुप्प अँधेरा था, हवा साय-साय चल रही थी। यकायक मेरी नज़र दूर से आती रोशनी पर पड़ी। तुरंत मैंने अपने तीनों मित्रो का ध्यान उस दूर से आती रोशनी की तरफ आकृष्ट किया। हमने ये विचार किया की हो सकता है ये रोशनी किसी बस्ती से आ रही हो। अतः रात गुजारने के उद्देश्य से हम सभी अपनी गाय के साथ रोशनी की दिशा में चल दिये। जैसे ही हम चारो अपने गाय के साथ उस रोशनी के समीप पहुचे, हमें लगा की वहाँ कोई बस्ती नहीं थी। वहाँ कोई उत्सव मनाया जा रहा था। खाने और पानी चाहत में हम सभी उत्सव के पंडाल के समीप पहुच गए.
एक आदमी पंडाल से निकाल कर हमारे पास आया और पूछा-"आप सभी शादी में सम्मिलित होने आए हैं"।
मैंने बोला-"हम सभी भटके हुए राहगीर हैं"। फिर मैंने उसे हमारी पूरी सफर की कहानी सुनाई. उस आदमी ने बोला–"आप लोगों का बारात में स्वागत है"। "आप लोग काफी थक चुके हैं अतः आप सभी सामने बिछी खाट पर आराम कीजेये, मैं अभी आप लोगों के लिए पानी और कुछ खाना भेजता हूँ"। हम सभी सामने बिछी खाट पर आराम से लेट गए तथा गाय को भी हमने छोड़ दिया। थोड़ी देर बाद वह आदमी अपने एक और साथी के साथ पानी और मिठाई ले कर हमारे पास आया। हम चारो दोस्तों ने छक कर मिठाई खाई और पानी पीया। अब हमारी थकावट कुछ कम हो गयी थी और हमें कुछ राहत महसूस हो रही थी। उस आदमी ने हमसे कहा कि अब आप सब आराम कीजिये, जैसे ही खाना बन जाएगा हम आप लोगों को जगा देंगे। हम लोगों ने उस आदमी को धन्यवाद दिया और खाट पर लेट गए. थकावट की वजह से हमें तुरंत नींद आ गई. हमारी गाय भी थक कर हमारे बगल में ज़मीन पर लेट गई थी।
अचानक शोर गुल की वजह से मेरी नींद टूटी. मैंने देखा शादी में काफी शोर शराबा हो रहा था। मैंने देखा गाय भी कहीं नज़र नहीं आ रही थी। मैंने अपने बाकी तीनों साथियों को नींद से जगाया। उत्सुकतावश हम चारो ने शादी के पंडाल की तरफ रुख किया। जैसे ही हम पंडाल के पास पहुंचे, हमने देखा कि शादी में उपस्थित लोग पागलों की तरह नाच रहे थे। उनके एक हाथ में शराब बोंतले तथा दूसरे हाथ में मांस का ठुकड़ा था। हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यहाँ हो क्या रहा है। तभी हमारी नज़र उस आदमी पर पड़ी जो हमें पानी और मिठाई देने आया था। हमने देखा कि वह भी शराब पी रहा था और मांस खा रहा था। जैसे ही उसकी नज़र हमसे से मिली वह जोर से हँसने लगा। उसकी हंसी इतनी भयानक थी कि हम चारो सहम गए।
वो हमारे पास आया और पूछा-"आप लोग जाग गए क्या?"। मैं अभी आप लोगों के खाने का प्रबंध करता हूँ, आप लोग मेरा यहीं इंतज़ार कीजीए. और वह आदमी चला गया। थोड़ी देर बाद वह हमारे खाने के लिए मांस और मदिरा ले कर आया और हमारे सामने परोस दिया। मैंने बोला-"हम सभी शाकाहारी हैं"। वो हमसे बोला-"आप सब को यही खाना पड़ेगा"। और इसके बाद वह ज़ोर से भयानक हँसी हँसा। और वहाँ से चला गया और जा कर पागलों की तरह नाचने लगा। हमने देखा कि वहाँ उपास्थित लोग मांस के साथ-साथ हड्डी भी चबा जा रहे थे। नाचते-नाचते वह दस से पंद्रह फीट तक उछाल जा रहे थे। हम एक दूसरे का मुह देखने लगे। हमें ये एहसास हो चुका था कि अब हम बुरी तरह फंस चुके हैं। वहाँ क्या हो रहा था ये हमारी समझ में नहीं आ रहा था। हमे अपनी मौत का डर सताने लगा। वहाँ उपस्थित सारे आदमी हम सभी को घेर कर नाचने लगे और बीच-बीच में भयानक हँसी हसते थे। हम सभी ने मजबूरी में खूब मदिरा पी ली। हम सभी होश गवा बैठे और नशे की हालत में थोड़ी देर बाद अपनी-अपनी खाट पर जाकर कर चित्त हो गए. इसके बाद उस रात वहाँ क्या हुआ हमे कुछ पता नहीं।
हमारी नींद सूरज की पहली किरण के साथ खुली। हम सभी उठ कर बैठ गए और हमने देखा कि वहाँ शादी का कोई नामो निशान नहीं था। हमारी खरीदी गाय हमे दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही थी। हम सभी तुरंत लौटने के लिए तैयार हो गए. सबसे पहले हमने गाय को ढूँढने का निश्चय किया। थोड़ी दूर चलने के बाद हमे एक गाँव दिखाई दिया। गाँव के पास कुछ लोग आपस में बात कर रहे थे। हम सभी उस झुंड के पास पहुचे और अपनी खोयी गाय के बारे में पूछताछ की। गाँव के लोगों ने हमसे पूछा कि आप लोगों की गाय कैसे गुम हो गई. फिर हम लोगों उन लोगों को कल रात की आप बीती सुनाई. हमारी कहानी सुनकर उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उन लोगों ने हमसे कहा कि आप लोगों को सोचना चाहिए कि ये कोई शादी का मौसम है। असल में वह भूतों की बारात थी, हम जैसे आदमी कि नहीं। भूले भटके राहगीर कभी-कभी इस प्रकार की भूतों की शादी में फँस जाते हैं। आप लोग खुसकिसमत थे की आप ज़िंदा बच गए. ऐसे भूतों की शादियाँ हमे कई भूले भटके राहगीर से सुनने को मिली हैं। इसके बाद उन लोगों ने हमारी गाय ढूँढने में हमारी मदद की। हम अपनी गाय के साथ अपने घर को वापस लौट चले। हमने भगवान को धन्यवाद दिया की उसकी कृपा से हम बड़ी मुसीबत से बच निकले। आज भी जब हम उस रात को याद करते हैं तो सहम जाते हैं। दादा जी ने हमसे कहा कि उस यात्रा से हमे ये सीख मिली कि हमेशा सफर में वही रास्ता अपनाओ जिसके बारे में पता हो, जिस रास्ते के बारे पता न हो उसे नहीं अपनाना चाहिए. हम सभी दादा जी इस कहानी को सुनकर बहुत खुश हुए. तभी माँ कि आवाज़ आई-"बुलबुल घर आ जाओ, खाना तैयार है"। मैंने दाद जी और अपने दोस्तों को शुभ रात्री कहा और दौड़ कर अपने घर चला गया।
तभी पानी की एक तेज बौछार ने मुझे मेरे बचपन से वापस ला दिया। मैं उठा और घर के अंदर चला गया।