मैं, तुम और वह / प्रमोद यादव
नीता लगातार रोये जा रही है और नवीन उसे चुप कराने की कोशिश में नाकाम-सा हो गया है. वह खुद को भी सम्हाल नहीं पा रहा है.डबडबाई आँखों पर बार-बार रुमाल फेर नीता को समझाए जा रहा है कि कुछ भी घटा., .वह महज एक हादसा है..उसका कोई दोष नहीं..लेकिन नीता स्वयं को अपराधी मान रोये जा रही है. नवीन की ट्रेजडी यह कि वह खुलकर रो भी नहीं पा रहा.. रो लेता तो शायद मन हल्का हो जाता. बार-बार कोशी के अधूरे पत्र के शब्द कानों में अब भी टकरा रहे थे ..” आखिर तुमने दामन छुडा ही लिया न...फिर भी खुश हूँ..तुम्हारे लिए.....”
नौ साल पहले की एक-एक बातें बिजली की तरह दिमाग में कौंध रही है...
तब नवीन कितना मासूम हुआ करता. कोशी से उसकी दोस्ती किन हालात में हुई और दोस्ती कब प्यार में तब्दीलहो गई..उसे अब याद नहीं पड़ता..लेकिन अच्छी तरह याद है.. कोशी के साथ बीते वे सारे पल जो बेहद सपनीले और मीठे हुआ करते. आज वो इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसकी एक-एक बातें, एक-एक यादें रह-रहकर जेहन में कौंध रही है.
बड़ी खुबसूरत और गुणी लड़की थी कोशी. बी.ए.पास थी. हमेशा मीठा बोलती और कोयल सी चहकती-गाती थी.उसकी आवाज बड़ी प्यारी थी.. आम प्रेमी-प्रेमिकाओं की तरह उनके बीच भी एक जातिगत सामाजिक दीवार थी. पर इसे वे बहुत ही कम अहमियत देते.. दोनों के बीच एक समझौता-सा था कि शादी तो असंभव है लेकिन प्यार के पवित्र रिश्ते को अच्छे दोस्त की तरह जन्म-जन्मांतर निभाएंगे. शुरू-शुरू में नवीन को लगा कि कोशी केवल शारीरिक-स्तर पर सयानी है, मानसिक-स्तर पर वह बच्ची लगती..अनजाने ही अक्सर वह बचपना कर डालती ..और नवीन गुस्सा हो जाता..लेकिन तुरंत ही खुद को संयत भी कर लेता...इस आस से कि धीरे-धीरे वक्त बीतने पर कोशी मानसिक तौर पर भी सयानी हो जायेगी..और सचमुच जैसे-जैसे वक्त बीतता गया... वह समझदार होती गई. एक समय ऐसा भी आया कि उसे लगने लगा कि कोशी से ज्यादा समझदार और प्यारी लड़की कहीं संभव ही नहीं. उसे लगा कि वह उसके स्वभाव के अनुरूप ढल गई. वह उसे बेहद प्यार करती और उसके बगैर पागल सी हो जाती. कई बार नवीन सोचता कि इतनी अच्छी जीवन-संगिनी उसे शायद ही मिले.पर कोशी के निश्छल किन्तु स्वतंत्र, बेबाक और बिना झिझक वाले पुरुषोचित व्यवहार से उसे अक्सर दुःख होता.
वह जानता था कि कोशी उसे पूरे मन से प्यार करती है.मगर न जाने क्यों वह नहीं चाहता था कि वह किसी के सामने खुलकर हँसे और शरमों-हया के दायरों से हटकर बातें करे...यह जानकार भी कि कोई कितना भी प्रभावशाली व्यक्तित्व आ जाए, उसकी जगह तक कोई नहीं पहुँच सकता..यह जानते हुए भी कि उसके प्यार में कहीं खोट नहीं है. अजीब काम्प्लेक्स था उसे. वह औरों के साथ हंसती, बोलती तो उसे बेहद तकलीफ होती. वह बहुत कोशिश करता कि उसके हर रूप को प्यार करे मगर चाहकर भी कर नहीं पाता. कई बार कोशी उसके पास होती तो वह बेहद खुश रहता लेकिन अनायास ही मन में ढेरों उदासियाँ छा जाती. उसे लगता कि वह पूरी तरह से उसकी होते हुए भी उसकी नहीं...उसकी स्वतन्त्रता, उसकी हठधर्मिता और बेबाकीपन उसे एक दीवार की तरह लगने लगती.जो गाहे-बगाहे बीच में खड़ी हो जाती.
नवीन आज भी उस दिन को नहीं भूला जब इसी हठधर्मिता और खुलेपन को लेकर उन दोनों में मतभेद हुआ था. गुस्से में उसने कोशी को एक लंबा खत लिखा..लेकिन जवाब में उसे जो मिला, वह अपमान का एक भारी टुकड़ा था. इस हादसे के एक महीने पूर्व ही घरवालों की जिद पर और कोशी के समझाने-बुझाने पर वह शादी के लिए लड़की देखने गया था. लड़की देख आने पर उसने कोशी से काफी नोंक-झोंक, हंसी-मजाक किया था. तभी उसने पहली बार महसूसा कि अनजाने ही कोशी भी उसे कहीं गहरे तक प्यार करती है...क्योंकि शादी की बात से ही उसका चेहरा बुझ-सा जाता... कोशी ने खत के जवाब में जो लिखा, उसका एक-एक शब्द जहर बुझा-सा था. पढकर वह कराह गया था. आत्मसम्मान को बड़ी ठेस लगी. वह बर्दाश्त न कर सका था. इतने अपमान भरे शब्द थे..जो कम से कम कोशी के मुंह से सुनना उसे बिलकुल गवारा न था. उसने अविलम्ब अपना फैसला लिख कोशी को दे दिया. उसने स्पष्ट लिखा था- “ सारे सम्बन्ध तोड़ रहा हूँ..और तुम्हारा यह सोचना सर्वथा गलत है कि मेरी शादी होने वाली है इसलिए दामन छुडा रहा हूँ..मेरी शादी होगी तो तुम्हे जरुर बुलाऊंगा..और भगवान न करे कभी मेरी शादी हो..”
तीन-चार दिन उसने इन्तजार किया.. लेकिन न खत आया और न ही कोशी आई. गुस्से और अकड ने नवीन को और कठोर बना दिया. उसने खुद मिलना भी उचित नहीं समझा औरइस तरह दूरियां बढती गई..बढती गई. दोनों के बीच एक मौन ही था जो तनाव सा ताना था... दोनों में से कोई भी चाहता तो मौन तोड़कर इस जटिल स्थिति को नार्मल बना सकता था लेकिन ऐसा न हुआ . अंततः नवीन ने अपने गृहनगर से अन्यत्र ट्रांसफर ले लिया.
कहते हैं- वक्त हर जख्म को भर देता है लेकिन नवीन का जख्म कभी नहीं भरा. एक-दो साल घर के लोग उस लड़की के साथ शादी के लिए उसे जोर देते रहे जिसे कभी वह कोशी के कहने पर देख आया था. लेकिन नवीन ने इनकार कर स्पष्ट कह दिया कि इस विषय में अब कभी चर्चा न की जाए.. फिर घरवालों ने पूछना छोड़ दिया. शहर से क़स्बा, कस्बे से शहर..जगह-जगह वह ट्रांसफर लेता रहा.लेकिन यादों का एक लंबा हुजूम जो उसके साथ था, कहीं भी पीछा न छोड़ा. इस तरह पूरे नौ साल बीत गए. कई बार वह पागलपन की हद तक उसे याद करता और सोचता कि कोशी को एक बार देख आऊ.पर उसके अपमान भरे शब्द याद आते ही वह सारे ख्याल छोड़ देता.
नौ साल बाद एकाएक नीता मिली तो उसने पहचाना तक नहीं. भला पहचानता भी कैसे ? जब उसे शादी के लिए पसंद करने गया था, तब कितनी दुबली और छोटी थी. उसके अचानक आने का उद्देश्य सुन वह आश्चर्यचकित रह गया था. उसने बताया कि अभी तक शादी नहीं की. नवीन के इंतजार में बैठी है और उसकी इस जिद ने उसे परिवार से हमेशा- हमेशा के लिए अलग कर दिया. अध्यापन- कार्य करके जिंदगी गुजार रही है. सब कुछ सुनकर नवीन सोचने पर मजबूर हो गया कि वह क्या करे ?
नीता ने स्पष्ट शब्दों में उस दिन कहा था- “नवीन..मेरी विवशता शायद तुम्हें मेरी बेशर्मी लगे..लेकिन स्पष्ट कहती हूँ..मैंने पहली बार तुम्हें देखा तभी फैसला किया था कि शादी करुँगी तो सिर्फ तुमसे.अन्यथा किसी से भी नहीं.. अपनी जिद की भारी कीमत चुकानी पड़ी मुझे. माँ-बाप, भई-बहन सबसे बिछुड गई हूँ और बगावत की इस स्थिति में पहुँचने में मुझे पूरे नौ साल लगे. मैं सुन्दर तो नहीं पर बुरी भी नहीं हूँ. तुम्हारी गृहस्थी सम्हाल लूंगी...हाँ..अपनी बात स्पष्ट कर दो..कोई मजबूरी हो तो वह भी साफ़ बता दो..मैं सुन लूंगी..”
तब नवीन ने उसे बेझिझक कोशी की कहानी सुना दी. सुनकर नीता बेहद विचलित हो गई थी, उसके अविवाहित रहने का रहस्य जानकार. उसने कहा था- “ नीता.. कोशी के आखिरी शब्दों को कभी न भुला सकूंगा..उसने लिखा था-‘ तुम्हारी शादी होने वाली है.. इसलिए दामन छुडा रहे हो.’ उसके इस एक वाक्य में ढेरों दर्द छुपा था...मुझे लगने लगा कि शादी कर लूँगा तो वह खुद को सम्हाल नहीं पाएगी.. मर जायेगी..इसलिए मैंने शादी न करने का ही ठान लिया था.”
कोशी की कहानी सुन नीता ने तब कहा था- “ तुम्हारे प्यार के प्रति मुझे हमदर्दी है नवीन लेकिन कोशी अभी कहाँ है?कैसी है?यह तो न तुम जानते हो न मैं....पर मैं तो तुम्हारे सामने हूँ..मेरी सारी स्थितियां तुम्हारे सम क्ष है. मेरे विषय में तुमने क्या सोचा है ? अतीत को लेकर चलना कहाँ तक उचित है ? और फिर जिस लड़की ने कभी अपनी गलती तक महसूस नहीं की..उसकी यादों को पकडे रहने का क्या औचित्य है ? “
उस रात नीता नवीन के पास ही ठहरी. रात भर इसी विषय में गंभीर चर्चा हुई.अंततः नीता ने उसको काफी समझा-बुझाकर शादी के लिए तैयार कर ही ली . इत्तफाक से दूसरे दिन सुबह वाली ट्रेन से नवीन का पूरा परिवार घूमने-फिरने के उद्देश्य से नवीन के घर आ पहुंचा. शादी की बात, वह भी नीता से, सुन घरवाले खुशी से झूम उठे.. और दो-चार दिनों के भीतर ही शादी वहीँ संपन्न कराने की बात तय हो गई..
नवीन की इच्छा थी कि कोशी भी इस अवसर पर उपस्थित रहे.पर इतनी जल्दी उसका आना संभव नहीं था. नीता का कहना था कि एकाएक उसे जाकर ‘सरप्राइज’ देंगे.. अंततः परिवार के चंद सदस्यों की उपस्थिति में , आनन्-फानन में शादी समपन्न हो गई पर शादी के दौरान पूरे वक्त वह कोशी को याद करता रहा. कोशी की अनुपस्थिति उसे सालती रही. चाहकर भी वह एक सामान्य दुल्हे की तरह अपने को खुशमिजाज न रख सका. उसे लगता रहा कि कोशी की सपनीली आँखें उसे घूर रही है.
शादी की पहली रात...जब फूलों की सेज पर नवीन पहुंचा तो चौंक ही पड़ा...सेज पर कोशी दुल्हन के लिबास में बैठी मुस्कुरा रही थी...तभी अचानक बिजली चली गई..वह चीख पड़ा था..” कोशी..” बिजली लौटी तो नीता को करीब पाया. उसने नीता को बताया तो उसने इसे मात्र वहम कहा और उसको नार्मल करने की कोशिश करने लगी. सुहाग की वह रात यूं ही गुजर गई.
आज ही नवीन अपने परिवार और नीता के साथ अपने गृहनगर लौटा. स्टेशन पर उतरते ही वह नीता को लेकर कोशी के घर की ओर चल पड़ा.पर कोशी के घर पहुँच उसे काठ मार गया. कोशी तो नहीं मिली, उसका लिखा एक अधूरा पत्र मिला जिसमे उसने इतना ही लिखा था- ‘ आखिर तुमने दामन छुडा ही लिया न..फिर भी खुश हूँ..तुम्हारे लिए..’
नीता की सिसकी अब कुछ थमी है. कोशी के पिता बता रहे हैं कि एकाएक बारह मई की रात एक बजे वह चल बसी...न बीमार थी न आहत ..बस एक बार जोरों से चीखकर लुढक गई थी....यह वही वक्त और दिन था...मेरी सुहागरात का...जब कोशी को मैंने सेज पर मुस्कुराते देखा था..और जिसे नीता ने वहम की संज्ञा दी थी. कोशी के पिता नीता को एल्बम दिखा रहें है और नवीन घर की दरों-दीवारों को ताक रहा है जिसके जर्रे-जर्रे में उसे कोशी दिख रही है.