मैं और मेरी कहानी / भाग 7 / प्रकाश मनु
मैं नहीं जानता कि यह अच्छा और वरेण्य है या नहीं, पर इधर मेरी कहानियों में आत्मकथा के हरफ ज़्यादा से ज़्यादा उतरते गए हैं। इसकी वजह क्या है, यह ख़ुद मेरे लिए एक पहली से कम नहीं है। हालाँकि देश भर में फैले मेरे पाठकों ने इसे पसंद किया और इन कहानियों के साथ एक गहरा नाता और जुड़ाव महसूस किया, यह स्वयं मेरे लिए कम सुकून और तसल्ली की बात नहीं है। पाठकों की अपरंपार स्नेहमय चिट्ठियाँ और फोन-वार्ताएँ मेरे लिए कितने बड़े सुख का खजाना हैं, मैं बता नहीं सकता। कई बार लगता है, मेरे पास यह ऐसी अकूत दौलत है, जिसका मुकाबला किसी से नहीं हो सकता। बड़े से बड़े अमीरों की अमीरी और राजे-महाराजाओं के सिंहासन भी इसके आगे पोच हैं।
और तभी लगता है, मैं एक फक्कड़ लेखक सही, पर ऐसा फक्कड़ बादशाह हूँ, जिससे बड़ी बादशाहत इस दुनिया में कोई और नहीं।
देश में दूर-दूर तक फैले असंख्य पाठकों का यह अकूत स्नेह-सम्मान मैंने अपने रचे साहित्य के जरिए पाया, खासकर कहानियों और उपन्यासों के जरिए, यह उपलब्धि कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। अपने बड़े से बड़े दुख और मुश्किलें तब मुझे हलके जान पड़ते हैं। लगता है, इन दुखों का हार पहनकर जीना भी कम गौरव की बात नहीं। आख़िर यही तो एक सच्चे लेखक की विभूति हैं। एक शाश्वत, कालजयी और अपार्थिव विभूति...!! और मेरे साहित्य का तो उत्स ही यही है।