मैं और मेरी कहानी / भाग 8 / प्रकाश मनु
क्या मैं बताऊँ कि ऐसे क्षण ही मेरे जीवन के सबसे बेशकीमती, यादगार और भावुक कर देने वाले पल-छिन हैं, जब मन में यह अहसास उपजता है कि शायद थोड़ा-सा तो मैं अपनी इस यात्रा में सफल हुआ और तब अनायास ही, अपने अंतर्मन में बैठे देवता के लिए हाथ जुड़ जाते हैं। ये मेरे जीवन के ऐसे आनंद के क्षण हैं, जब आँखें भीगती हैं और आप निःशब्द रह जाते हैं। इसलिए कि आख़िर तो कोई भी कहानी, कहानी से पहले ज़िन्दगी का एक टुकड़ा है...एक धड़कता हुआ टुकड़ा, जो अपने आप में मुकम्मल भी है।
सच पूछिए तो जीवन के बहुत से कोमल-कठिन अनुभवों और यातनाओं की गवाह बनी ये कहानियाँ मुझे जीने के मानी भी देती हैं। शायद इसीलिए उपन्यास, कविता, लेख, संस्मरण जैसी विधाओं में बहुत लिखने के बावजूद कहानियों से मेरा कुछ अलग रिश्ता है, जो कई बार संजीदा कर देता है। हो सकता है, इन कहानियों में कहीं न कहीं मेरा कवि, उपन्यासकार और संस्मरणकार भी छिपा हो, जो विधाओं की शुद्धता का कायल न होकर उनकी ताज़गी और जिंदादिली में रस लेता हो!
अलबत्ता मेरी कोई चालीस बरस लंबी कथा-यात्रा में स्वभावतः लिखी गई इन कहानियों में मेरी कुछ गहरे सुर और लय-ताल वाली लंबी कहानियाँ भी शामिल हैं, जिनमें कहीं न कहीं मैं अपनी आत्मा का संगीत पाता हूँ।...इनमें से एक-एक कहानी को लिखने में महीनों नहीं, कभी-कभी तो बरसों तक भटकना पड़ा। तब लगा कि हाँ, अब कुछ बना-सा है।
एक गहरी अंतःपुकार के साथ लिखी गई लंबी कहानियों को, जिन्हें आजकल ‘लघु उपन्यास’ कहने का चलन है, मैंने कहानी कहना ही पसंद किया। हालाँकि मेरी लंबी कहानियाँ सिर्फ़ आकार में ही बड़ी नहीं हैं, बल्कि इनमें कुछ ऐसी कसक और पीड़ा है जो मन में देर तक और दूर तक बहती है। दर्जनों बार इन्हें लिखना और काटना-छाँटना पड़ा, एक गहरी असंतुष्टि और व्याकुलता के साथ। ताकि इन कहानियों के अनुभव क्षणों में भीतर आत्मा की जो कुरलाहट थी, वह ठीक-ठीक उसी लय और अंदाज़ में शब्दों में उतर आए। इन्हें लिखने के बाद के तृप्ति-क्षणों में मुझे हमेशा लगा कि ये केवल लंबी कहानियाँ ही नहीं, कुछ अपेक्षाकृत गहरे सुर-ताल की कहानियाँ हैं, जो पढ़ते समय भीतर आत्मा को रोशन करती हैं और देर तक उनकी गूँज हमारा पीछा करती है। मैंने इन कहानियों के लेखक और पहले पाठक होने का सुख लिया है और बता नहीं सकता कि हर बार इनके निकट आना मुझे कैसे अचीन्हे शिखरों की ओर ले जाता रहा है।
ये वे कहानियाँ हैं, जिनकी सतरों के बीच की खाली जगहों में मेरे जीवन की कही-अनकही वह मर्मकथा भी समाई है, जो शायद सीधे-सीधे कही ही नहीं जा सकती थी।