मैं गोपी भी नहीं / प्रतिभा सक्सेना
पता नहीं इन गोपियों की अम्माएँ नहीं होती होंगी जो जंगलों मे कृष्ण के साथ बेधड़क घूमती-फिरती थीं!बंसी की आवाज़ सुनते ही घर से भाग निकलती थीं।यहाँ तो हमारी अम्माँ बात-बात मे रोक-टोक करती हैं।न उनके भाई-बहिन होते होंगे जो ज़रा-ज़रा सी बात जाकर अम्माँ से जड़ दें!
हमारी तो अम्माँ हर दो मिनट बाद आवाज़ लगा लेती हैं, हमेशा टोहती रहती हैं। उन्हें यही लगा रहता है कब-क्या कर रही हूँ मैं।
कभी, ’विमला, जरा आलू भर के रख दे।' कभी, ’नन्हे को दूध की बोतल दे दे।' नन्हे को दूध देने की बात पर उसे ध्यान आया -गोपियों की अम्माएँ अपने बच्चों को कोई ऊपर का दूध थोड़े ही पिलाती होंगी।तब तो खूब बड़े-बड़े हो जाने तक माँएँ बच्चों को अपना दूध पिलाती थीं।दादी ख़ुद बताया करती हैं -बाबू ने पूरे छः साल पिया था।
सोचती रहती है विमला -
सब लड़कियाँ पहन-ओढ़ कर गगरी सिर पर धरे जमुना तट पर जाती होंगी-कैसा अच्छा लगता होगा! कपड़े उतार कर नहाती होंगी। आगे चीर-हरण की कल्पना पर तो उसे रोमाञ्च हो आया।तब जमुना जी के किनारे लोग नहीं रहते होंगे! लोगों की तादाद तो अब इतनी बढ़ गयी हैं, हमेशा हल्ला मचा रहता है।अब तो हर जगह कोई-न-कोई मौजूद होता है। कोई ऐसी जगह ही नहीं बची जहाँ आदमी-औरतें न दिखाई देते हों। हो सकता है तब लड़कियों-औरतों के नहाने के टाइम आदमियों को उधर आने की मनाही हो!।।।।। हमारे ज़माने की कोई बुढ़िया ये सब देख लेती तो क्या-क्या अनरथ नहीं हो जाते! माँ-बाप घर से झाँकना तक बन्द कर देते! , बाहर निकलना तो दूर!
उसे बड़ा विस्मय हुआ -गोपियों के घर के लोग क्या कुछ नहीं जानते होंगे, या जानकर भी कुछ नहीं कहते होंगे?
विमला गाल पर हाथ टिकाए बैठी सोचती रही -कृष्ण के जाने के बाद गोपियों ने उद्धव को खूब जली-कटी सुनाईं।अब तो मजाल है जो अपने प्रेमी के बारे मे किसी से बात भी कर लें! अम्माँ-बापू सुन लें तो जान ही ले डालें, सच्ची! उसने गहरी साँस छोड़ी।
खूब उलाहने दिये, मन की भड़ास निकाल ली पूरी।इत्ती आज़ादी तो थी उन्हें! तब के लोग विरह पर इतना ध्यान भी तो देते थे।
अब तो किसी के विरह में कोई चाहे जित्ता दुखी हो, दुनियाँ कभी समझेगी नहीं । और तो और सब लोग हँसी उड़ाने, बदनाम करने तक को उतारू हो जायेंगे। अब तो दुनिया ही बदल गई है जैसे!पहले विरह के दिनों मे किसी से काम नहीं कराया जाता था। लड़कियाँ खाली बैठ कर वीणा बजाती, चित्र बनाती और मनचाहा रोती थीं।सब को उनसे सहानुभूति होती थी, मना-मना कर खिलाते- पिलाते थे। उन के सुख के लिये हर तरह का इन्तज़ाम करते थे। पर अब कौन पूछता है चाहे मर ही जाओ। ऐसे विरह से भी क्या फ़ायदा कि कोई जाने ही नहीं?
और कहीं अम्माँ को पता लग गया तब? विमला का तो दम खुश्क हो गया। उसका दिल टूट गया।
अब प्रेम करने का ज़माना ही नहीं रहा। शादी कर के घर बसा लो, बस फँस जाओ हमेशा को। यही तो मुश्किल है!उसे शादी करना नहीं अच्छा लगता। दुनिया भर का जंजाल! कहीं स्वतंत्रता नहीं! ऊपर से कित्ता काम करना पड़ता है, दुनिया भर के दबाव अलग! हर बखत की नौकरी और जहाँ दो-चार बच्चे हुए हुलिया ही बिगड़ जाती है। प्रेम मे बच्चों-अच्चों का झंझट नहीं, न खाना बनाने की ड्यूटी न दुनिया भर की जिम्मेदारी!
लेकिन विमला को मौका ही कहाँ लगता है प्रेम करने का? वह जो भाई के दोस्त आते हैं कभी-कभी, लम्बे से देखने मे भी अच्छे, उनसे कई बार उसने बातें की हैं।भाई की अनुपस्थिति मे कई बार देर-देर तक उनके चेहरे को देखती रही, फिर पलकें झुका लीं, फिर देखने लगी, हर तरह जताने की कोशिश की, पर वे ऐसे बेवकूफ़ आदमी कि कुछ समझे ही नहीं!
आगे शायद कुछ होता, पर अम्माँ ने उसे एक दिन बुरी तरह झिड़क दिया, ’शरम नहीं आती तुझे जो दीदे फाड़-फाड़ कर उसे देखती रहती है? मत जाया कर किसी के सामने।'
और विमला बुरी तरह सिटपिटा गई थी। अम्माँ के क्या चार-चार आँखें हैं जो सब-कुछ जान लेती हैं? घर पर तो प्रेम करने का मार्ग ही उसके लिए अवरुद्ध हो गया। फिर दो महीने बाद भाई के उस दोस्त की शादी हो गई। कैसी निराशा से भर गया था विमला का मन!
कभी कोई समझा नहीं मेरे दिल की बात! हो सकता है भाई और पिताजी के डर के मारे कोई उससे प्रेम करने की हिम्मत नहीं कर पाता हो! इधर उसके सिर पर सवार हैं अम्माँ जो किसी को थोड़ा-बहुत रास्ता दिखाना भी असंभव!
किताबों में पढ़ा है प्रेम मे चाहे जो हो सब अच्छा लगता है। लोगों को देखो प्रेम के इतने गुण गाते हैं पर किसी के करने पर आसमान सिर पर उठा लेते हैं। पता लगने पर खूब हल्ला मचता है, लानत- मलामत पोती है, तारीफ़ करना तो दूर की बात! वैसे अम्माँकन्हैया जी की पूजा करती हैं, गोपियों के गुण गाती हैं;पर अपनी लड़की को गोपी बनते नहीं देख सकतीं!उसकी तो बस शादी करेंगी! शादी के नाम से विमला को पता नहीं कैसी चिढ़ है। अम्माँ कोतो उसने खुद बाबू को ताने देते सुना है।अक्सर ही शिकायत करती हैं’शादी के बाद मैने कौन-सा सुख उठाया? पहले सास-ससुर की चाकरी की, देवर ननदों को ब्याहा फिर अपने बच्चों की जिम्मेदारी सम्हाली! सारी ज़िन्दगी खटते ही बीती।’
ख़ुद अपनी शादी को कोसती हैं और फिर भी मेरी शादी के पीछे पड़ी हैं, वह भी अनजान, जाने कहाँ के लोगों मे। पता नहीं कैसे-कैसे दिमाग़ के लोग हैं।मैने तो शादी करके किसी को संतुष्ट नहीं देखा!
उसे अपनी सहेली की बड़ी बहिन का ध्यान आ गया। उसके आदमी ने छोड़ दिया है -दो बच्चे भी उसी की जिम्मेदारी। शादी बिना हुए कोई छोड़ देता तो विरह सताता, रोती गाने गाती, ताने देती हल्की हो लेती। अब तो दोनों बच्चे पालती है, घर-बाहर दोनो जगह काम करती है और लोगों की बातें सुनती है। शकल भी तो कैसी अजीब -सी होगई है। प्रेम करनेवालों की ऐसी शकल नहीं होती होगी जैसी शादी करनेवालों की हो जाती है।
विमला बहुत ढूँढती पर उसे प्रेम करने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता।घर पर तो करने की उसकी हिम्मत अब नहीं है-अम्माँ की आंखों के आगे उसका सारा नशा हिरन हो जाता है। स्कूल जाती है तो साथ लगी रहती है छोटी बहिन -शीला! लड़कियों का स्कूल, वह भी कितनी सी दूर-घर से लिकलो और पाँच मिनट मे स्कूल! शीला को तो अम्माँ कभी घर पर भी नहीं रोक लेतीं जो कभी अकेली जाने को मिले! कभी काम होता है तो विमला को ही रोकती हैं और शीला अकेली स्कूल चली जाती है-चुड़ैल!एक बार जब शीला बीमार पड़ गई तो अम्माँ ने तीन-चार दिन विमला को भी नहीं जाने दिया। बाद में स्कूल की नौकरानी को कहला भेजा जो उसे साथ ले जाती और छोड़ जाती थी।
ग़ज़ब हो गया। कभी ये नहीं कि अकेली विमला कहीं जा सके। हर बखत जैसे पहरा-सा लगा रहता है। एक गोपियाँ थीं दिन-रात घूमती थीं -किसी की चिन्ता नहीं।
यहाँ तो मरा स्कूल भी ऐसा है कि कहीं झाँकने का मौका नहीं। ऊपर से और पढ़ाई! चिट्ठी लिखना -पढ़ना कब का आ गया है-क्या फायदा और पढ़ने-लिखने से?अकबर की नीति, शेरशाह का शासन प्रबन्ध और दुनिया भर के युद्ध!हमें इनसे क्या लेना-देना है?लाभ-हानि, ब्याज हमारे किस मतलब की? भिन्नों से तो दिमाग और भिन्ना जाता है।टीचर पढ़ाती हैं तो कक्षा मे मन नहीं लगता, गोपियों के साथ जंगल-जंगल भटकता फिरता है।अभी कहीं बँधा नहीं है मन, भटकेगा नहीं तो और क्या करेगा?
इन सबसे क्या कहीं छुटकारा नहीं?विमला के छोटे से मुख से बड़ा लम्बा निःश्वास निकल गया!
‘हाय, वे भी कैसे मस्ती के दिन होंगे! न बिजली की रोशनी न किताबें घोटने का झंझट! अँधेरे में कहीं घूमते फिरो! कोई पहचाननेवाला नहीं।अब जैसे इत्ते बड़े-बड़े शहर भी तब नहीं होते थे।वे छोटे-छोटे गाँव जिनमे नदियाँ बहा करतीं थीं । गाँव के चारों ओर कुञ्ज, पेड़ों के झुर्मुट, कहीं विरल कहीं सघन वन! कहाँ चले गये वे दिन, वे लोग!गायों को पालनेवाले घर। न स्वेटर बुनने पड़ते थे न और काम सीखने पड़ते थे।अब तो आधी ज़न्दगी पढने-लिखने में ही निकल जाती है।सबसे अच्छे मौज मनाने के दिन, निर्जीव पुस्तकों की कैद में, कैसा अन्याय है!
एक दिन विमला ने अपनी सहेली से कहा, ’हमे नहीं अच्छा लगता ये इतिहास -भूगोल।तू ई बता ये सब पढ़ने से क्या फायदा है?'
'पता नहीं क्यों पढ़ाते हैं?’ नादान सहेली ने जवाब दिया, ’सब पढते हैं इसलिये हमे भी पढ़ना पड़ता है।'
‘अरे, बेकार है सब! लड़कियों के दिमाग को बेकार उलझाये हैं।गोपियाँ तो कुछ भी नहीं पढ़ी थीं।'
'कौन गोपियाँ?'
‘कैसी बुद्धू है’, विमला ने सोचा, कृष्ण- गोपियों को नहीं जानती! अपनी साथिन की बेवकूफी पर उसे बड़ा तरस आया, पर समझाना उसने बेकार समझा। बताने से क्या फायदा जब यह ख़ुद ही नहीं समझती! और मान लो मै उससे कहूँ भी और वह औरों से जड़ दे तो ? हाय राम! उसने जीभ काट ली।
एक दिन स्कूल मे उनकी टीचर ने एक लड़की का ख़त पकड़ लिया-वही सब बातें लिखी थीं जो प्रेम मे लिखी जाती हैं। जलना, तड़पना नीद न आना पूरा पढ़ पाने का मौका कहाँ मिला था। बीच मे ही टीचर ने झपट लिया कि तुम लोगों के पढ़ने का नहीं है। उस लड़की की तो खूब डाँट-फटकार हुई और सब टीचरों ने कैसे मज़े ले-लेकर पढा उस प्रेम-पत्र को!
‘छी।छी कैसी पापिने हैं सब की सब!’ उसे बड़ा गुस्सा आया था - अपना प्रेम-पत्र होता तो सात पर्दों मे छिपाकर रखतीं और दूसरे के की ये बेकदरी! फिर तो हद्द हो गई!वह खत हेडमास्टरनी के पास पहुँचाया गया और उन्होने भी ऑफिस मे बुलाकर मोहिनी से जाने क्या-क्या कहा! उस लड़की को तो लगा ही होगा पर विमला को बहुत, बहुत बुरा लगा।सच ही कलियुग है उसने सोचा।
उस लड़की को वह सान्त्वना देना चाहती थी, उसके प्रेम का खुलासा हाल उससे पूछना चाहती थी। पर यह भी वह न कर सकी! कहीं टीचर ने देख लिया और अम्माँ से जड़ दिया तो।।!
बाद मे उस लड़की का स्कूल आना ही बन्द हो गया। नाम भी कट गया उसका! दुनियामे जहां प्रेमियों नाम अमर हो जाता था, अब स्कूल से भी कटने लगा! हाय, ये दुनिया प्रेम की दुश्मन है! उस प्रेमिका और प्रेमी का क्या हाल होगा, उन पर क्या बीती होगी- यह सोच-सोच कर ही विमला को तीन-चार रात नींद नहीं आई। उसका कलेजा मुँह को आ रहा था।ये टीचरें भी प्रेम की महिमा नहीं समझतीं, इनका पढ़ा-लिखा बेकार है।
सुना था मोहिनी की अम्माँने उसकी खूब मरम्मत की और अब जल्दी ही उसकी शादी कर देंगी -अपढ़, कुरूप लँगड़ा जैसा भी लड़का मिले।कहती हैं कालिख लगा दी मुँह पर। प्रेमी कुल को उजागर करते हैं कि कालिख लगाते हैं?मत कट गई है सब की! कबीर ने अपढ़ हो कर प्रेम की महिमा गाई है।ऐसी-ऐसी बातें लिखगए कि पढ़ों-लिखों के दिमाग उलझ जायँ। यह प्रेम की महिमा है।प्रेम के बाद सब बातें ऐसे आ जाती हैं जैसे सूरज के साथ किरणें।पर कितनी रुकावटें हैं यहाँ? लड़कियों के स्कूल यहाँ तो लड़कों के आधे मील दूर! आपस मे मिलने, बोलने पर भी प्रतिबन्ध! मोहिनी फिर भी जोरदार निकली । बैठी विरह तो कर रही होगी।एक मै! बैठी हूँ बिल्कुल बेकार!
विमला की हिम्मत ही पस्त हो गई।कोमल दिल पर चोट लगी तो आँसू भर आए। क्या ज़िन्दगी है।गोपियों के प्रेम-प्रसंग सुन कर जी मे हूक उठती है। घंटों बैठी उनके सुखी जीवन की कल्पना किया करती है!
‘हाय मै भी गोपी होती!’ मन मे एक आशा कौंधी - शायद होऊँ! शायद मैनें भी कृष्ण के साथ वे लीलाएँ की हों! फिर दूसरा विचार उठा - कहाँ? मैं गोपी होती तो मुक्त हो गई होती, फिर यहाँ जन्म लेने क्यों आती।’
हाय, मैं गोपी भी नहीं!