मैं जग घूमिया, नोलन और कामिल न मिलिया / जयप्रकाश चौकसे

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मैं जग घूमिया, नोलन और कामिल न मिलिया
प्रकाशन तिथि : 26 अप्रैल 2021


कभी-कभी हम जिसे एक महानगर में ढूंढने का प्रयास करते हैं, वह हमें एक कस्बे में मिल जाता है। कभी जो न्याय अदालत से नहीं मिला, वह ग्राम पंचायत से भी मिल जाता है। प्रसिद्ध उपन्यास ‘अल्केमिस्ट’ का नायक सारी दुनिया घूम कर घर लौटा, जहां उसे वह मिल गया, जिसकी तलाश में वह लंबे समय तक भटकता रहा। कुछ इसी तरह क्रिस्टोफर नोलन की नई फिल्म ‘टेनेट’ देखी और कुछ समझ नहीं आया। इस फिल्म में यह कहा गया है कि भविष्य हमारे वर्तमान पर आक्रमण कर सकता है। टी.एस एलियट की पंक्तियां हैं कि ‘टाइम प्रजेंट एंड टाइम पास्ट आर बोथ परहैप्स प्रजेंट इन टाइम फ्यूचर ।’ बहरहाल ‘पहल’ के ताजे अंक में इरशाद कामिल की कविता ‘इक्कीस दिन लंबी कविता’ की अनेक तरह से व्याख्या हो सकती है।

अनेक सतहों पर प्रवाहित यह रचना की एक व्याख्या हो सकती है कि स्मृति एक पैमाना है, जिसमें हम समय को पढ़ने का प्रयास कर सकते हैं। आज की खबरें, जिनमें बहुत कुछ निराधार होते हुए, कुछ छुपा हुआ प्रचार भी हो सकता है।

एक तरफ भूख से कुलबुलाता हुआ पेट है, जो अब पीठ से जा चिपका है, तो दूसरी तरफ अधिक खा लेने से आया हुआ मोटापा है, एक व्यक्ति बीमार है और उल्टी करता है, दूसरी तरफ एक व्यक्ति बहुत सा भोजन करके उल्टी करने के लिए मुंह में उंगली डालता है। उसका उद्देश्य खाए हुए भोजन को बाहर निकाल कर, दोबारा खाने का लालच रखता है। इरशाद कामिल इसी लालच पर लानत डालते हैं।

इरशाद कामिल की कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह हैं, ‘स्मृति आने वाले समय का सबसे बड़ा औजार होगी, हथियार जिसे बदलने का प्रयास किया जाएगा, स्कूली पुस्तकें बदलकर, ताकत से, तकनीक से, तकरार से प्रयास किया जाएगा। हवा बनाए रखने का, थामे रखने का समय की लगाम।’

क्या समय थामे रखा जा सकता है? टी. एस. एलियट की कविता का अंश का अर्थ है कि, वह व्यक्ति मूर्ख है, जो समझता है कि समय के चक्र को वही चला रहा है, जिसका वह भी एक छोटा सा हिस्सा है। क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ‘टेनेट’ में एक पात्र कहता है कि समय को पीछे सरकाया जा सकता है, समय रिवर्सिबल है। घड़ी का कांटा पीछे कर देने से वर्तमान विगत में नहीं बदलता।

‘टेनेट’ एक विज्ञान फंतासी है। याद कीजिए पुरानी फिल्म ‘टाइम मशीन’ को। इस मशीन में बैठकर सदियों पीछे जाया जा सकता है। हमारा अवचेतन तो बिना मशीन के हमें विगत में ले जाता है। इस अनुभव के बखान में हम अपनी सहूलियत से झूठ बोल सकते हैं।

इरशाद कामिल की कविता की पंक्तियां हैं, ‘घर बैठना पड़ता है, दिहाड़ी पर भूख से लड़ता है, दुनिया के किसी भी युद्ध का सार तत्व यही है, भूख, संतान को शैतान बना देती है, दानी को दुकान बना देती है, जब काम नहीं होता, तो काम की कामना होती है, काम ही हो सकता है, जठाराग्नि भूलने के प्रयत्न में, काम गुण से गुणा हो जाता है।देश के आर्थिक स्वास्थ्य पर आबादी का डंडा बिना झंडा लहराता है। रिश्तों में, समाज में, खाली पेट और अनाज में, रात के काम, दिन के काज में, तालाबंदी के कारण दिहाड़ीदार पर गिरती महंगाई की गाज में।’

क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ‘टेनेट’ की शूटिंग भारत में हुई है, डिंपल कपाड़िया ने प्रभावी अभिनय किया है। शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने भारत में हुई शूटिंग का सारा काम संभाला है। बहरहाल फिल्म ‘टेनेट’ और इरशाद की कविता हमें समय को समझने में मदद करती है। ये सब चीजें राजनीतिक सत्ता और अवाम के मोह तथा उसके भटक जाने के संकेत भी देती हैं। इरशाद ने हिंदी साहित्य में एम.ए किया है। उनका लिखा ‘जब वी मेट’ का गीत है, ‘आओगे जब तुम साजना, अंगना फूल खिलेंगे, बरसेगा सावन झूम के दो दिल ऐसे मिलेंगे।’