मैं तुमसे प्रेम करता हूँ / शुभम् श्रीवास्तव
मैंने तुम्हारा मेसेज पढ़ा की तुम्हें मेरी कहानी 'दो गज जमीन' पसंद-पसंद आई इन्स्ताग्राम पर ये मेरा पहला किसी अनजान व्यक्ति द्वारा लिखा हुआ मेसेज था। अक्सर मन में आता था कि मैंने सही लिखा भी है या नहीं। आज सुकून मिला एक लेखक भी सराहना का उतना ही भूखा होता है जितना की कोई आम इंसान अपने कार्य की प्रशंसा से। तुम्हारे मेसेज का उत्तर दिमाग में नहीं सूझ रहा था एक तरफ था कि तुमसे बात करूं फिर दूजे ने कहा कि लिखो 'की मुझे आगे फॉलो करो ताकि तुम मेरी लेखनी आगे पढ़ सको।' दिमाग ने दूजे की सुनी क्योंकि अब कद आड़े आ रहा था और वही हुआ मैंने तुमसे बात नहीं की। यह में तुम्हे बता दूँ की मुझमे कोई गर्व या मद नहीं रहा यह लोभ है जो दीमक बनकर आत्म सम्मान को खा जाते है तो में नहीं कर सका। हाँ और ना के बीच फँसकर मेरा उत्तर 'हाँ ना' बन गया। नींद नहीं आई पूरी रात इस बार चिंता नहीं हर्षौल्लास था।
किसी ने दिल के तार को इतनी करीब से छुआ था। खुशनसीब हूँ मैं। सुबह सबसे पहले उठकर मैसेज किया कैसी हो तुम, थोडा ताका-झांकी की तुम्हारी प्रोफाइल की तुम्हारा सांझा-सामान्य जीने की कला तुम्हारे सोच में झलकता है। कोई तड़क-भड़क नहीं बिल्कुल जैसे कोई जमीन से जुड़ा इंसान हो।
फिर मैं नहाने चला गया वहाँ भी तुम्हारे ख्याल आ रहे थे पर तुम्हारे लिए इतना आसान नहीं होने देना चाहता हूँ लेखक जो हूँ। मैं देखना चाहता हूँ कि क्या तुममे भी वह चाह है मेरे लिए या फिर कुछ दिन का आकर्षण जो लोगों को एक दूजे से हो जाता है। तुम्हारा मेसेज 10 बजे आता है। मुझे ख़ुशी हुई तुम्हारे रिप्लाई को देखकर थोड़ी ही देर की वार्तालाप में तुमने मुझसे मिलने की इक्शा जाहिर की। पहले तो मैं डर गया की यह कोई हनी ट्रैप तो नहीं। फिर बाद में तुम्हारे ऊपर के मैसेज पढ़े उसमें सच्ची निष्ट जाहिर हो रही थी तो मैंने भी हामी भर दी।
यह पहली मुलाक़ात मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ। मेरे मानस पटल पर तुम्हारा चित्रण और मजबूत हो गया। तुम्हारी यह गहन काली आँखे जिसमे इंसान खो जाए, मैं भी अंत मैं खो गया। धत्त कितना अज्जेब महसूस हो रहा होगा तुम्हें नहीं की अभी संग बैठा हूँ और यूँ ही तुम्हें निहारने लग गया। तुम्हारा चेहरा भी लाज के मारे लाल हो गया, तुमने पलके झुकाई और बालों को अपने कान के पीछे किया। मन तो मेरा किया की यह काम मैं खुद करूँ लेकिन हक़ नहीं था तुमपर मेरा अभी इसलिए मैंने अभी रहने दिया।
तुमने नीला पहना था जो हम दोनों का पसंदीदा रंग था। शायद से किसी ने सही कहा है सोशल मीडिया पर अपनी पसंद मत डालो क्योंकि हुबहूँ वाही हो रहा था। मेरी नज़र और दिमाग जो अक्सर भ्रमित रहता था वह तुमपर से हटके नहीं दे रहा था सही होमवर्क किया है तुमने मेरी पसंद की साड़ी चादर ओढ़ ली तुमने जो वाकई मेरे लिए अटपटा था। अगर सच पूछो तो मैं कभी ना करूँ किसी के लिए इतना शायद लगाव यही होता है इसमें देने का भावार्थ अपने आप ही आ जाता है इसमें मालकियत नहीं होती। ख़ुशी हुई तुमसे यह जानकर की तुम्हारे भी कुछ सपने है बैचलर तक ही तुम्हें नहीं रुकना था जहाँ लोग सिर्फ़ खाने पीने और जीने भर का सोचते है। वहीँ तुम लोगों के जीवन बदलने का सोचती हो। मुझे आत्म-निर्भर लोग बहुत पसंद है। मन तो था कि आज ही तुम्हे हाँ बोल दूँ अक्सर अची सोच वाले बहुत कम मिलते है और अगर मिले भी तो वः अपनी अच्छाई छुपाकर रखते है रखना भी चाहिए यह दुनिया निर्दय है किसी ग़लत इंसान के लिए गिर गए तो उठना बहुत मुश्किल होता है। मैंने कहीं पढ़ा था कि 90 दिन तक अगर तुम्हारा प्यार टिका रहा तो वह ज़िन्दगी भर टिका रह सकता है। मैंने भी यही सोचा और हाँ नहीं करी तुम्हें। सिर्फ़ फिर मिलेंगे बोलकर आ गया। मैं हफ्ते भर तुम्हारे मैसेज का इंतज़ार करता रहा। चाहता तो पहले कर सकता था लेकिन मैं इंतज़ार कर रहा था। ताकि मैं देख सकूँ की तुममे भी इतनी तलब है मेरे लिए जितनी मेरे मन में तुम्हारे लिए है।
मैं ऑफिस में काम कर रहा था पर मन मेरा तुम्हारी तरफ ही था। खाना खा रहा था फिर भी ध्यान नहीं लगता। फिर एक हफ्ते बाद तुम्हारा फोन आया तुम्हारी आवाज़ में गुस्सा था व दर्द साफ़-साफ़ महसूस कर सकता था। मैंने तुम्हारा गुस्सा शांत करने की कोशिश की। अब मन में सुकून था कि आग दोनों तरफ है। तुम्हे लगा की मैं किसी और के संग बात कर रहा हूँ। पर यह कार्य का हिस्सा है। मुझे लगभग हर इंसान से हँसी-खुशी मेल-जोल रखना पड़ता है क्योंकि जब तक कोई मुझे जानेगा नहीं तब तक मुझे मेरे काम को भला क्यों पढ़े और मुझे यह ख़ुशी है कि यह बात तुम्हे समझाने में मुझे ज़्यादा जेहमत नहीं उठानी पड़ी। अब तक मुझे यकीन हो चला था कि तुम मेरे लिए ही बनी हो।
दो महीने बाद
जब यह महसूस हो चला की रात की बातें भी अब काफी नहीं पड़ रही। हमे एक दूजे के दिन भी चाहिए थे। तो मैंख सकता हूँ की हम अब लिव इन में रह रहे थे। क्योंकि तुमने संग रहने की ठान ली थी। मुझें तुम्हारी कई बातों से लगाव था और कई बाते बिलकुल ठीक-थक ही लगती थी। मुझे रोमांटिक गाने बिलकुल भी पसंद नहीं थे सच कहूँ जब तुम साथ बैठकर यह गाने चलाती हो तो मुझे ये इतने अच्छे नहीं लगे। मेरे धमाकेदार हिप-हॉप और रॉक तुम्हें नहीं पसंद जबकि तुम जानती हो मेरी लेखनी के प्रेरणास्त्रोत वही है। धीरे-धीरे तुम्हारे गाने भी मुझे ठीक लगने लगे खास तौर पर 'तेरी झुकी नज़र' वाला वह रोज दिलो-दिमाग में गूंजता रहता। आदते भी बदलने लगी मेरी पहले मैं दो दिन एक ही कपड़ा पहनता था तुमने एक दिन एक में समेट दिया। मुझे किताबों का बहुत शौक है और तुम्हे भी था शायद इसलिए ही हम इतने करीब आए लेकिन हम और ज़्यादा करीब हो गए जबसे तुमने निर्णय लिया की हममे से एक कहानी पढ़ेगा और दूसरा उसकी गोद में सर रखकर कहानी सुनेगा। घर पुतवाना था तुमने कहा लाल मैंने कहा नीला और अंत में हमने पर्पल चुना जो हम दोनों को बहुत पसंद आया। लाखों बार मैंने तुम्हारे माथे हो चूमा उसके आगे बदने की हिम्मत नहीं हुई हम पुरानें ख्यालों वाले है। आज तक तुमसे प्यार का इजहार नहीं किया यह पत्र छोड़कर जाता हूँ ताकि मैं तुम्हे अहसास दिला पाऊँ की तुम मेरी ज़िन्दगी का अटूट हिस्सा हो 'मैं तुमसे प्यार करता हूँ।' आज शाम को जब घर लौटूंगा तब हम फिर से डेट जाएंगे।
शाम को 6 बजे
जब मैं घर में घुसा तो देखकर दंग था तुमने अपने हाथो से सारा खाना बना रखा था। संग जब साथ लेटे थे मैंने बोला 'आज कौनसा दिन है।'
पेट के ऊपर बैठकर तुम मेरी ओर झुकी और कहाँ की 'चार महीने हुए है।' और होंठो को हलके से चूमा।
'सोचा रहा हूँ की शादी की बात चालू करे घरवाले से।' मैंने बोला
मुस्कुराना तुम्हारा काफी था तुम्हारी रजामंदी जो जाहिर करने के लिए.