मैं नदिया फिर भी मैं प्यासी / जयप्रकाश चौकसे
मैं नदिया फिर भी मैं प्यासी
प्रकाशन तिथि : 24 जुलाई 2012
बिमल रॉय की 'मधुमती' के लिए शैलेंद्र ने कबीरनुमा गीत लिखा 'मैं नदिया फिर भी मैं प्यासी, भेद ये गहरा बात जरा सी'। बिंब है कि सूखी नदी से नायिका गुजर रही है। आमिर खान के कार्यक्रम 'सत्यमेव जयते' की ताजा कड़ी में जीवन की सबसे गंभीर समस्या पानी पर चर्चा प्रस्तुत की गई। इस गहरी समस्या के निदान बहुत सरल से हैं कि वर्षा के जल का संचय करें। वॉटर हार्वेस्टिंग को लागू करने के लिए सरकार को समयबद्ध कार्यक्रम बनाना होगा, जैसे तमिलनाडु में किया गया कि १२ महीने में घर के छत के पानी को जमीन में बनाए गड्ढे में उतारने का काम पूरा नहीं हुआ तो उस घर का नल कनेक्शन काट दिया जाएगा। महाराष्ट्र के गांवों में अपने सीमित साधनों से बरसात के पानी को संग्रह किया गया और हरियाली छा गई। जल संचय का सरल होना ही उसे कठिन बनाता है, क्योंकि व्यक्तिलापरवाह होता है और उसे यकीन नहीं होता कि मात्र इतना करने से धरती पर जीवन लंबे समय तक संभव हो पाएगा। इससे भी सरल-सी ध्वनित होने वाली कठिन बात यह है कि पानी के प्रति हमारे मन मेें आदर हो, हर बूंद में छिपे जीवन को पहचानें और 'जलते हुए जल' की रक्षा की शपथ लें।
आमिर खान ने कार्यक्रम में इस परम सत्य को रेखांकित किया कि कुछ ही वर्षों में पानी का अभाव इस पृथ्वी पर जीवन को असंभव कर देगा, जिसकी संरचना में 75 प्रतिशत से ज्यादा जल है। इस जल में पीने के लायक पानी मात्र तीन प्रतिशत है। यही प्यासी नदिया के दर्द को प्रस्तुत करता है। नदी और नारी के प्रति हमारी निर्ममता ने ही समाज और पृथ्वी को अस्तित्व के संकट में डाल दिया है। गौरतलब है कि नदी और नारी के सम्मान की बात वेदों से आधुनिक संविधान तक में कही गई है। दुनिया के तमाम देशों में सबसे अधिक जल भारत में उपलब्ध है और उसे 'मल्हार देश' माना जाता है, परंतु जल का सबसे ज्यादा अपमान इसी देश में होता है।
इस कार्यक्रम में जल संचय की पहल करने वालों का कहना है कि कुरीतियों के कारण काम में कठिनाई होती रही है। गांवों में अलग-अलग जातियों के अलग कुओं की हानिकारक व्यवस्था का विराट स्वरूप इस बात में भी उभरकर आता है कि तानसा में भदरसा डेम से मुंबई को अपनी जरूरत का अधिकतम पानी मिलता है। मुंबई स्थित जलाशयों से नाममात्र की पूर्ति होती है और बांध वाले क्षेत्र के लोगों को पानी उपलब्ध नहीं है। हमारे देश में महानगरों को जीवित रखने के लिए जल के उद्गम क्षेत्रों में रहने वालों के अधिकार की चोरी कर ली गई है। मुंबई से 100 किलोमीटर दूर शाहपुर के अवाम को पानी नहीं मिलता, क्योंकि वहां का पानी पाइप द्वारा मुंबई आता है।
यह कितने दु:ख की बात है कि पानी के प्यासे ग्रामीण क्षेत्रों में टैंकर द्वारा पानी आता है। टैंकर द्वारा जल आने के कारण लोगों के सामाजिक व्यवहार और नैतिक मूल्यों में अंतर आया है। टैंकर के आते ही लोग शादी या शवयात्रा छोड़कर पानी भरने आते हैं, क्योंकि टैंकर का नियमित रूप से आना तय नहीं है। आज भी अनेक गांवों में महिलाओं के जीवन का अधिकतम समय मीलों दूर से जल लाने में चला जाता है।
एक जमाने में भारत में पांच लाख से अधिक तालाब थे, परंतु अब अधिकांश सूख गए हैं। उनकी रक्षा नहीं की गई। इसी तरह हमने अपनी नदियों को भी सूखने दिया। हमारी कुरीतियों के कारण नदियों का जल प्रदूषित हुआ और उद्योगों ने अपने रासायनिक अवशिष्ट नदियों में फेंके। हमने नदियों को कूड़ाघर बना दिया। मनोज मिश्रा ने बताया १४०० किलोमीटर तक फैली यमुना में पानीपत से इटावा तक के ८०० किलोमीटर क्षेत्र में पानी का प्रदूषण सारी हदों को पार कर चुका है। वृंदावन में आने वाले जल में दिल्ली की गटरों का जल मिल चुका है। हमारी अनेक नदियों के जल को लेकर प्रांतों के बीच लंबे अरसे से मुकदमेबाजी चल रही है और अदालतों में ऐसा ध्वनित होता है मानो प्रांत नहीं, वरन् अलग देश लड़ाई लड़ रहे हैं। नदियों के जल में डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन की कमी के कारण उनसे निकाली गई मछलियों में खतरनाक केमिकल्स मिल चुके हैं। इस तरह की प्रदूषित मछली खाने वालों को बीमारियां हो जाती हैं। आमिर के विगत शो में पेस्टीसाइड्स के उपयोग से होने वाली हानियों का विवरण देते समय बताया गया था कि पेस्टीसाइड्स सब जगह से बहकर नदयों में आ मिलते हैं।
देश में विराट आर्थिक खाई सारे क्षेत्रों में अपना असर दिखाती है। पानी भी इसी तरह बांट दिया गया है। सुविधा-संपन्न इंडिया के पास पानी है, परंतु सुविधाहीन भारत प्यासा है। पानी भी पूंजीवादी व्यवस्था की जद में आ चुका है। धरती के भीतर पानी की सतह घटने के कारण ५०० फीट तक बोरिंग की जा रही है और भीतरी सतहों में कुछ जहर हैं, वे सब पीने के जल में मिलते जा रहे हैं। हमने धरती को उसकी सब सतहों पर लूटा है। हम सब आत्महत्या कर रहे हैं और यह काम किश्तों में हो रहा है। धरती के पुत्र ही अपनी माता को मारने का उपक्रम कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का बरसों पहले से यह मानना रहा है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा और आज जिस तरह पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं, उसी तरह भविष्य में पानी बिकेगा। आज पानी का मोल हम समझ नहीं पा रहे हैं। कितनी ही बस्तियों में विगत १५ सालों से टैंकर से पानी आ रहा है। यह संकेत है कि भविष्य में टैंकर द्वारा पानी ले जाने पर माफिया का अधिकार होगा और पानी को लेकर माफिया जंग भी होगी। पानी समस्या का निदान तो था भारत की सारी नदियों को जोड़ देना, परंतु जिस देश में प्रांत पानी के लिए अदालतों में लड़ रहे हैं, वहां नदियों को कैसे जोड़ा जा सकता है। सदियों पहले रहीम ने लिखा है - रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती, मानस, चून।