मैं भारत हूँ / मुकेश मानस

Gadya Kosh से
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वह एक लम्बी यात्रा पर निकला था। चलते चलते-चलते रात हो गई। एक गाँव में उसने एक घर का दरवाजा खटखटाया। “कौंन है?” भीतर से आवाज़ आई। “मैं एक यात्री हूँ” “क्या चाहते हो?” “रात भर के लिये सिर छुपाने की जगह” “मिल सकती है। मगर पहले अपना धर्म बताओ?” धर्म के नाम पर वह चुप रहा। “अगर हिन्दू हो तो भीतर आ जाओ” वह हिन्दू नहीं था। इसलिये आगे बढ़ गया। उसने अगले घर का दरवाज़ा खटखटाया “कौंन?” “एक यात्री” “क्या चाहते हो?” “रात भर के लिये आश्रय” “मिल सकता है। मगर पहले अपना मजहब बताओ?” मजहब के नाम पर वह चुप रहा। “अगर मुसलमान हो तो भीतर आ जाओ” मगर वह रुका नहीं। पूरी रात वह हर घर में आश्रय माँगता रहा। मगर उसे किसी ने आश्रय नहीं दिया क्योंकि हर घरवाले ने आश्रय देने से पहले उसका धर्म पूछा। सुबह लोगों ने गाँव के मुहाने पर एक आदमी को मृत पाया। उसके पास एक कागज पड़ा था।उस कागज में लिखा था-“मैं भारत हूँ”

रचनाकाल : 1992, दूसरी लघु कथा