मैं भाषण हूं, भाषण ही विकास है / जयप्रकाश चौकसे

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मैं भाषण हूं, भाषण ही विकास है
प्रकाशन तिथि :17 जनवरी 2018


सऊदी अरब में दशकों बाद एक फिल्म का प्रदर्शन हुआ। एक तम्बू में प्रोजेक्टर से एक एनीमेशन फिल्म दिखाई गई। अब तीन सौ सिनेमाघरों के निर्माण का फैसला किया गया है और यह कार्य पांच महीनों में पूरा कर लिया जाएगा। हमारे देश में तो सिनेमाघर की इमारत बन जाने के बाद फिल्म प्रदर्शन की इजाजत लेने में ही महीनों लग जाते हैं। कोई आधा दर्जन दफ्तरों से आज्ञा प्राप्त करनी होती है। हर कार्य के लिए बनाए गए बजट में पच्चीस प्रतिशत धन रिश्वत के लिए रखना होता है। मुंबई से दिल्ली तक सामान से लदे हुए ट्रक को नाकों पर जमा जोड़ हजार रुपए देने होते हैं और ट्रांसपोर्ट कम्पनी यह राशि माल भेजने वाले के खर्च खाते में जोड़ देती है। नाके पर बैठा कर्मचारी बाजार से महंगी चीज खरीदने में रिश्वत के धन का इस्तेमाल करता है। इस तथ्य को साहिर लुधियानवी के शेर से नहीं जोड़ें, 'दुनिया ने तजुर्बाते हवादिश की शक्ल में, जो कुछ दिया है, वही लौटा रहा हूं मैं।' महंगाई को बड़े प्यार से रचा गया है। आम आदमी को रोटी-रोजी की समस्या में इस कदर उलझाए रखा है कि वह सरकार के अन्याय का विरोध नहीं कर पाता। साजिश यह है कि उसे फुर्सत का वक्त मत दो, सोचने के अवसर से वंचित रखो। अगर उसे इत्मिनान के दो क्षण भी मिल गए तो वह सारा तामझाम व निजाम ही बदल कर रख देगा।

हिन्दुस्तानी फिल्मों को अब सऊदी अरब की एक बॉक्स ऑफिस खिड़की और मिल जाएगी। एक दिन ऐसा आएगा कि हमारी फिल्मों द्वारा विदेशों में अर्जित आय भारत में अर्जित आय से अधिक होगी। हमारा सिनेमा 'सिमटे तो दिले आशिक, फैले तो जमाना' की तरह हो जाएगा। देखिए 'खाक नशीनों की ठोकर क्या रंग लाती है'। यह कैसा अजब मंजर है कि आज संकीर्णता की ताकतों के कारण एक फिल्म को प्रदर्शित करना ही संभव नहीं हो पा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि मुख्यमंत्री फिल्म प्रदर्शन को लेकर बयानबाजी नहीं करें परंतु वाचाल मुख्यमंत्री बाज नहीं आए।

यह भी ज्ञात हुआ कि हमारे वाचाल देश में मौनी अमावस्या का महत्व प्रतिपादित किया गया है। इस दिन मौनव्रत धारण किया जाता है। मौन रहने से तन और मन को शक्ति मिलती है। हर एक शब्द बोलने पर पांच या सात कैलोरी खर्च होती है। मौन धारण करने से शक्ति का संचय होता है गोयाकि मौन विटामिन है। काश! हमारे नेता मौन रख पाते। उन्हें तो बोलने का नशा है। हमारे शीर्ष स्थान पर विराजे नेता ने एक अभिनेता से भाषण देने की कला सीखी है। विचारक हेमचंद्र पहारे का कहना है कि उस नेता का विश्वास है कि 'वह भाषण है और भाषण ही विकास है'। उसने शब्दों के हाईवे रचे हैं जिन पर कुरीतियां व अंधविश्वास सैर सपाटे कर रहे हैं। जाने कितने तीज, त्योहार व पूजा इत्यादि सतह के ऊपर आ गए हैं। कुछ का आविष्कार भी हुआ है। हम नई मायथोलॉजी रच रहे हैं। हम सबको मायथोलॉजिकल चरित्रों में बदला जा रहा है। 'बाहुबली' विकिरण व्यापक है। सीरियल 'पोरस' और 'पृथ्वी वल्लभ' पर एसएस राजामौली की 'बाहुबली' का प्रभाव स्पष्ट नजर आता है।

भाषण ही विकास है का यह असर हुआ है कि भूखे को भूख नहीं लगती वरन् वह अपच का शिकार हो रहा है। दशकों पूर्व धर्मेन्द्र मुंबई में संघर्ष कर रहे थे। वह उनका फाकाकशी का दौर था। भूख से परेशान धर्मेन्द्र अपने रूम पार्टनर के ईसबगोल का पूरा डब्बा ही पानी के साथ निगल गए। उन्हें बार-बार टॉयलेट जाना पड़ा। एक मित्र उन्हें डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर को सारी बात बताई गई। उसने परीक्षण भी किया। डॉक्टर ने कहा कि इस व्यक्ति को दवा नहीं, भरपेट भोजन की आवश्यकता है। भूख नामक अजब बीमारी को रचा गया है।

भूखे पेट सोने वाले की सांस से दुर्गन्ध आती है। यह वैज्ञानिक तथ्य है। इस दुर्गंध से प्रदूषण बढ़ जाता है। इस तरह आर्थिक असमानता और उससे जन्मी भूख से मानव अस्तित्व व धरती को भी खतरा है। भूख पर्यावरण नष्ट कर रही है। हुक्मरान चाहता है कि सपने में रोटी खाने से भूख की समस्या का निदान हो। तमाम भूखों को नेता के भाषणों का टेप सुनते रहना चाहिए। भजन नहीं गाएं वरन् भाषण के टेप सुनें। उनके भाषण की नाव पर बैठकर वैतरणी पार करें।