मैं भी बापू बनूँगा / लता अग्रवाल

Gadya Kosh से
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'माँ खादी की चादर दे-दे मैं गांधी बन जाऊँ...' गुनगुनाते हुए आज निहान खुश-खुश-सा स्कूल से घर पहुँचा।

"क्या बात है नीनू आज तो बड़ा बल्लियाँ उछल रहा है। लगता है कोई खजाना हाथ लग गया।" दीदी शिखा ने निहान को छेड़ते हुए कहा।

"हाँ! कुछ ऐसा ही समझ लो दीदी।" निहान ने आँखें मटकाते हुए कहा।

"अच्छा ... क्या है राज की बात ...हमें भी बताना?"

"हूंम्म! राज की बात है। दादी को बताऊंगा।" कहते हुए निहान अपना बैग सोफे पर पटक दादी के कमरे की ओर बढ़ गया।

"अरे! अपना बैग तो जगह पर रख...और ये जूते पहनकर जा रहा है अंदर दादी डाँटेंगी।" शिखा कहती रह गई मगर निहान अनसुना कर आगे बढ़ गया।

"मम्मी को आने दे वही तेरी अक्ल ठिकाने लायेंगी!"

"उ ...लू...कह देना..., वैसे दादी कहती हैं किसी के कान भरना अच्छी बात नहीं, कहते हुए वह शिखा को अंगूठा दिखाकर भाग गया ..."

"...ये लड़का भी न, इसकी तो अक्ल पर पत्थर पड़े हैं ...कभी नहीं सुधरेगा।" बड़बड़ाती शिखा ने बेग खोलकर उसमें से लंचबॉक्स और वाटर बॉटल निकालकर बेग उठाकर सेल्फ में रख दिया।

"दादी! दादी! आपको एक बात बतानी है ...खुशखबरी है।" निहान का अंग-अंग ख़ुशी से उछल रहा था।

"अच्छा! अच्छा! हमेशा आसमान सर पर उठाने वाला मेरा बच्चा आज इतना बाग़-बाग़ क्यों हो रहा है बता तो क्या खुश खबरी लाया है स्कूल से।" दादी ने कहा।

"दादी! हमारे स्कूल में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जा रही है। कई प्रोग्राम होंगे। टीचर ने मुझे गाँधी जी का रोल दिया है।" निहान दादी को बता ही रह था कि शिखा पीछे आ खड़ी हुई।

"आप तो गांधी जी के बहुत किस्से जानती हो दादी, हमेशा उनके बारे में नई-नई जानकारी सुनाती हो। प्लीज़ मेरी मदद करो न ...ताकि मैं उस रोल को बहुत अच्छे से कर सकूँ।"

"तू और गांधी जी का रोल ...ये मुंह और मसूर की दाल हा! हा!।" शिखा ने निहान की चुटकी ली।

"दादी! देखिये न ...हमेशा मेरी टांग खींचती रहती है। निहान ने जीभ निकालकर शिखा को जवाब दिया।"

"बच्चे! किसी भी इंसान का रोल करने के लिए पहले उस इंसान की विशेषताओं को अपने में अंगीकार करना होता है।" दादी ने निहान को प्यार से बताया।

"जो भी होगा में कर लूँगा। दादी मैं उन्हें चुनौती देकर आया हूँ।"

"किसे!"

" राहुल, डिम्पी, उमंग को...

क्यों भला ...

मैं हमेशा उनकी आँख में खटकता जो हूँ, इसलिए मेरा मज़ाक बना, मुझे नीचा दिखाना चाहते हैं, कहते थे...ये भी कोई रोल है। रोल तो भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, सरोजनी नायडू के हैं जो हम करने वाले हैं। प्लीज़...दादी हेल्प मी। "

"अच्छा...अच्छा बता दूँगी, पहले यूनिफॉर्म तो बदल, हाथ मुँह धोले, कुछ खा पी ले, अपना चेहरा देख कैसे थकन से चूर हो रहा है।"

"हूंम्म! ये आपका थकन से चूर बच्चा, दादी पहले इसका लंच बॉक्स देखिये ...देखिये कितना खाना झूठा छोड़ा है। ये रोज़ ही ऐसा करता है। खाना नहीं खायेगा तो चेहरा तो उतरेगा न" शिखा ने आँखें दिखाते हुए कहा।

"क्या दीदी सच कह रही है निहान ...? ये तो अच्छी बात नहीं निहान।"

"वो मेरा पेट भर गया था दादी इसलिए... मैंने राहुल के टिफिन से खा लिया था।"

"पराई चख अपनी रख यह तो ग़लत बात है बेटा।"

"ठीक है मैं खा लूँगा बाद में।" कहते हुए निहान ने जूते दादी के पलंग के नीचे उछाल दिए। फिर मोजे उतारकर दादी की कुर्सी की ओर फेंक दिए। एक कुर्सी पर दूसरा नीचे गिर गया। उसके बाद उसने शर्ट उतारकर हाथ में ले गोल-गोल घुमाते हुए शिखा की ओर उछाल दिया जो जाकर शिखा के मुँह पर गिरा।

"निहा...न शिखा ज़ोर से चिल्लाई। दादी ये बहुत लडिया गया है।"

" दादी दोनों की नोक झोंक देख रही थी। निहान ने जल्दी से हाथ मुँह धोए दूध बिस्किट खाया तब तक दादी भी बैठक में आ गई थीं। निहान भी उनसे सटकर बैठ गया।

"निहान! तुम गांधी जी का रोल करना चाहते हो न, तो तुम्हें सबसे पहले उनकी अच्छाई को अपने भीतर धारण करना होगा। जैसे-उनका पहला गुण था, वे सभी की बातें धीरज धरकर सुनते थे। फिर धीरे से प्यार से उसका जवाब देते थे। वे सभी का सम्मान करते थे, चाहे छोटा हो या बड़ा।"

"मैं भी आपका, मम्मी, पापा का सम्मान करता हूँ न दादी।"

"करते हो ...मगर शिखा भी तो तुमसे बड़ी है न, अभी तुमने उसके मुँह पर शर्ट फेंकी ... यह तो उदंडता है? गांधी जी का पहला सिध्दांत था, ' हमें दूसरों के साथ वही व्यवहार करना चाहिए जो हम अपने लिए चाहते हैं। कोई तुम्हारे मुंह पर शर्ट दे मारे तो तुम्हें कैसा लगेगा?"

"सॉरी दादी।"

"शाबाश! मगर सॉरी मुझसे नहीं अपनी दीदी से मांगो, यही गांधी जी का उसूल था। गलती हो तो उसे स्वीकारो और माफी मांगो। माफी मांगने से आप छोटे नहीं बल्कि उस व्यक्ति की नज़र में सम्मान के पात्र बनोगे।"

"सॉरी दीदी।" निहान ने शिखा के सामने कान पकड़ते हुए कहा।

"ठीक है ...ठीक है, माफ़ किया। मगर रोज़-रोज़ मैं तेरे नखरे नहीं उठाने वाली समझे।"

"बिल्कुल ठीक कह रही है शिखा। तुम्हारी हिन्दी की किताब में गांधी जी के सुविचार में लिखा है न, 'स्वावलंबी बनो' , अपना काम आप करो। उल्टे हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए।"

"ओके दादी! कल से मैं अपना स्कूल बैग, कपड़े और शूज़ जगह पर रखूंगा बस।"

"ओ मास्टर निहान! पता है कल कभी नहीं होता, जो करना होता है न वह आज से बल्कि अभी से करना होताहै।"

"दादी! ज़रा अपने लाडले को यह भी बता दो कि झूठा छोड़ना भी पाप है।" शिखा ने निहान को जीभ चिढ़ाते हुए कहा।

"पाप नहीं अपराध है बेटा।" दादी ने कहा

"अपराध! वह कैसे दादी?"

"क्या तुम्हें पता है गांधी जी सभी को हफ्ते में एक दिन उपवास रखने को कहते थे, क्यों...?"

"नहीं पता!"

"इसलिए कि देश में कई ऐसे लोग हैं जिन्हें एक समय का भोजन भी नहीं मिलता। अगर हम सब एक दिन व्रत करेंगे तो वह भोजन बचेगा और उन लोगों तक पहुँचेगा।"

"ओह!" निहान दादी की बात ग़ौर से सुन रहा था।

"इतना ही नहीं गांधी जी जो धोती पहनते थे वह एक धोती का आधा टुकड़ा होता था।"

"आधा टुकड़ा!"

"हाँ! आधा टुकड़ा, वे कहते थे तन ढकने को इतना कपड़ा पर्याप्त है। बाक़ी बचा कपड़ा किसी ओर के काम आएगा। वे दिखावे में नहीं कर्म पर विश्वास करते थे। उनका नारा था 'सादा जीवन उच्च विचार' इसी से इंसान की पहचान होती है।"

"ओह! कितने अच्छे विचार थे न दादी गांधी जी के, मैं कोशिश करूंगा इन विचारों को अपने भीतर ढाल सकूँ।"

"इसे कहते हैं अपने मुंह मियाँ मिट्ठू... भूल जा, भूल जा, तू और सुधरेगा ...!" शिखा ने निहान की छेड़ ली।

"दादी ...! देखो न दीदी को हमेशा मुझे ढपोरशंख कहती रहती है। जाओ मुझे नहीं करनी किसी से बात ..." कहते हुए निहान मुंह फुलाकर अंदर कमरे में चला गया।

"इसे कहते हैं दिन भर चले अढाई कोस, तुम्हें मैंने इतना समझाया मगर तुम । शिखा तुम्हें चिढ़ा नहीं रही, वह देख रही है कि गांधी जी ने क्रोध को इंसान का दुश्मन बताया है, जो इंसान का विवेक हर लेता है। तुम इस दुश्मन से कितना दोस्ती रखते हो।" दादी ने बात सम्हाली।

"मतलब!"

"मतलब, ये मेरे बच्चे, तुमने राहुल, डिम्पी और उमंग का नाम लिया उन्होंने तुम्हें चिढ़ाया, तुम चिढ़ गए आव देखा न ताव और उन्हें चैलेंज दे आए। यह बताता है कि तुम जल्दी अपना आपा खो देते हो, जो क्रोध पैदा करता है और क्रोध इंसान को अंधा बना देता है। उसके सोचने की शक्ति को हर लेता है। अतः किसी की बात अगर अच्छी नहीं भी लगे तो उसे मुस्कुराकर जवाब दो। इससे आपके सम्बन्ध खराब नहीं होंगे।"

"आ गया समझ में दादी...तो आज से ही मैं गांधी जी के गुणों को सीखूंगा। सबसे पहले आपके कमरे में जो जूते मोजे फैंके हैं उन्हें जगह पर रखकर आता हूँ, कहते हुए निहान दादी के कमरे की ओर चल पड़ा।"

"ये बात दादी...आपने तो कमाल कर दिया।" कहते हुए शिखा दादी से लिपट गई।

"और तू...शिखा, एक बात याद रख 'अहिंसा परमो धर्म' गांधी जी का यह नारा तेरे लिए।"

"मेरे लिए, ...मगर मैंने क्या किया दादी!"

"तू हमेशा उसके सर पर सवार रहती है, ...ताली एक हाथ से नहीं बजती, बात को प्रेम से कहना सीख, प्रेम से कही बात ज़्यादा असर करती है समझी?"

"समझ गई दादी।" कहते हुए शिखा दादी से लिपट गई।