मैं मोहब्बत ही मोहब्बत हूँ... मोहब्बत की कसम / ममता व्यास
पिछली रात, सुनसान सड़कों पर इक आकृति-सी दिखाई दी। करीब जाने पर देखा कि वो सुर्ख लिबास में थी। उसके हाथ में बहुत से सुर्ख गुलाब थे, लेकिन मुरझाये हुए। कुछ ग्रीटिंग कार्ड्स भी... मैंने ही बात शुरू की, “कौन हो तुम?”... वो मुझे देख मुस्काई। उसके मुस्काने से ही उसकी सुन्दर आखें डबडबाई। वो और भी सुन्दर दिखाई दी मुझे। धीरे से बोली, मैं मोहब्बत हूँ। सिर्फ मोहब्बत... और ये सूखे गुलाब? ये सब उस बरस के हैं। उस बरस सभी प्रेमियों ने "प्रेम-दिवस" नामक कोई त्यौहार जैसा कुछ मनाया था {जैसे आजकल मोहब्बत लव जैसा कुछ हो गयी है} उस दिन लव सुबह शुरू होकर शाम को खतम हो गया और सभी प्रेमी ये सुर्ख गुलाब सड़कों पे फेंक गए। मैं हैरान हूँ। प्रेम के लिए इक़ दिन क्यों? क्या ये सभी प्रेमी मोहब्बत के मायने समझते हैं? मैंने बीच में उसे टोका -- तो तुम ही कहो क्या है मोहब्बत? कैसे शुरू हुई? कब हुई? कैसे कोई जाने? कैसे की जाती है? कब तक रहती है?
वो सुर्ख लिबास वाली आकृति धीरे धीरे चलने लगी और कहने लगी। जिस पल कोई बादल का टुकड़ा चुपके से, धरती के टुकड़े को भिगो गया; मैं मिट्टी में मिल कर महकने लगी। जिस पल कली, फूल बन रही थी कोई उसमे रंग और खुश्बू भर रहा था; उस पल मैं ही तो सांस ले रही थी। जब गुलाब धीरे धीरे सुर्ख हो रहे थे और दिल धड़कना सीख रहा था; उस पल से मैं साथ हूँ सबके।
इतनी बड़ी दुनिया में हजारों चेहरों के बीच कोई इक़ चेहरा जब तुम्हे भाने लगे। जिसके ख्याल से तुम्हारा दिल धड़कने लगे। जिसकी हर बात तुम्हे तुमसे जुदा करने लगे। जिसके लिए तुम्हारे मन में अहसासों का कलश भरने लगे और ये अहसास आखों के रस्ते छलकने लगे। आसूँ गालों पे आकर ढलकने लगें। जो दिल ही दिल में खिंचने लगे। जिसे तुम सौ बार भुलाओ और वो उतना ही करीब होने लगें। हवाओं में उसके होने की खुश्बू आने लगें। आखों में नमी रहने लगें। मन की दहलीजों पे आहट होने लगें। होंठ, चुप हो जाएँ। मगर आखें बोलने लगे। कोई सर्दी में धूप-सा और गर्मी में शाम-सा लगने लगे। बिन बरसात भिगोने लगे --उस पल समझ लेना तुम्हे किसी से मोहब्बत हो गयी है।
लेकिन सावधान... मेरे होने पर कभी संदेह मत करना। मेरे होने की वजह मत तलाशना। मैं देह से परे हूँ इसलिए देह में कभी मत तलाशना। कुछ हाथ नहीं आएगा। ज्ञानियों की किताबों के पन्ने मत उलटना। कवियों की कविताओं में नहीं हूँ मैं। तर्क मत करना मेरे होने के बारे में। अपनी जरूरतों को मेरा नाम दे कर किसी को मत छलना।
कोई इक दिन नहीं मेरा... ना इक़ साल... ना इक़ जनम... मौत पर भी मेरी कहानी ख़तम नहीं होती। सदियों से हूँ और सदियों तक रहूँगी। हाँ... लेकिन जो मुझे छू कर देखना चाहते हैं। जो अपनी मुठ्ठी में मुझे कैद कर लेना चाहते हैं। मैं वहाँ से चुपचाप उड़ जाती हूँ। और उन्हें कभी पता भी नहीं चलता। मैं बड़ी अजीब-सी शय हूँ। आज तक मेरा रहस्य कोई नहीं जान पाया। लेकिन मैं सभी के राज जानती हूँ। किस दिल को किसके लिए बनाया गया है। कौन-सा हिस्सा किस का है। कौन-सा टुकड़ा कहाँ जोड़ा जायेगा। किस बंद दरवाजे पे दस्तक देनी है। किस मकान से चुपचाप निकल जाना है। ये सब मैं ही जानती हूँ। ये सारी कायनात मेरे दम से चलती है। किस को किसके लिए जमी पे बुलाया गया है।मुझे सब पता है। मेरे लिए देश, सीमा, काल सरहदे, उमर मायने नहीं रखती। मैं होती हूँ तो बस हो ही जाती हूँ। किन बिछड़े हिस्सों को जोड़ना है। किन अधूरे किस्सों को पूरा करना है। किस रूह का किस रूह से। किस जिस्म का किस जिस्म से, सदियों का नाता है। ये रहस्य सिर्फ मैं जानती हूँ। मुझे पता है। मैं लम्हों में रहती हूँ। जिस पल दो लोग पूरी शिद्द्त, ईमानदारी, सच्चाई से, खुद को भूल के मुझे महसूस करते है। मैं उस पल उनके बीच होती हूँ।
सही-गलत, सच-झूठ, पाप-पुण्य, पाबंदियाँ, बंदिशों से दूर है मेरा बसेरा। कठोर इतनी की सारी दुनिया का मुकाबला कर लूँ। कोमल इतनी की सांसों की भाप से मुरझा जाऊं। किसी के प्यार से मारे गए हजार तीर सह जाऊं तो किसी की आँख में बेरुखी की झपक से ही मर जाऊं। जितने भी पहाड़ देखते हो ना... उन्हें कभी पत्थर मत कहना। वो बहुत कोमल अहसास हैं। जो सदियों से किसी की राह तकते हैं। जब कोई प्रेम से छू लेता है। तो वो पत्थर फूल बन जाते है। महकने लगते हैं। जब मेरी आँखें दर्द से भर जाती है तो नदियाँ बन जाती है। दर्द जब जलाने लगता है तो मैं सागर को रेगिस्तान में बदल देती हूँ। फिर भी मैं, खतम नहीं होती रेत के कणों में मुस्काती हूँ। मैं रेगिस्तानों में मरूद्यान खिलाती हूँ। और नागफनी पे लाल फूल... बदले में कुछ नहीं मांगती। रुकती नहीं कहीं। ठहरती नहीं कभी।
मैं पत्तियों में हरापन बन कर और तुम्हारी देह में लहू बन कर बहती हूँ। मुझे डालियों से तोड़े गए गुलाबों में, ग्रीटिंग कार्डों या मंहगे तोहफे में मत खोजना। मुझे सिर्फ महसूस करना आँखें बंद करके। जिस पल कोई तुमसे से होकर गुज़रने लगे। तुम उसे सोचो और वो झट से पास आ बैठे। उसका ना होना भी होना लगे। भरी दुनिया में कोई तुम्हे तन्हा करने लगे। उस पल समझ लेना। तुम्हे मोहब्बत हो गयी है। जितनी बार, जितना महसूस करोगे, उतनी बार ही पा लोगे मुझे। क्योकिं मैं मोहब्बत ही मोहब्बत हूँ... मोहब्बत की कसम।