मैग्मा और अन्य कहानियाँ / सुकेश साहनी
मेरी पहली कथा गुरु मेरी माँ हैं। बचपन में उनके द्वारा सुनाई गई लोक कथाओं ने मेरे भीतर साहित्य के प्रति अभिरुचि पैदा की, फिर मेरे भीतर इस बीजरूप अभिरुचि को मुंशी प्रेमचन्द के कथा-संसार ने सींचा। तीसरी कक्षा में पढ़ी गई 'दो बैलों की कथा' ने मेरे बालमन पर अमिट छाप छोड़ी। उसके बाद मैंने देश-विदेश के लेखकों की प्रसिद्ध कृतियों केा खरीदकर पढ़ा। ये प्रसिद्ध पुस्तकें आज भी मेरी लायब्रेरी में सुरक्षित हैं।
बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी कि मेरे लेखन की 'शुरुआत उपन्यास से हुई. उस समय जासूसी उपन्यासों की दुनिया के बादशाह कहे जाने वाले ओम प्रकाश एवं वेदप्रकाश काम्बोज के सान्निध्य, प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से मैंने छह उपन्यास लिखें इस कारण शिक्षा में उत्पन्न हो रहे अवरोध के चलते लेखन स्थगित करना पड़ा। यहाँ भी वेदप्रकाश काम्बोज जी का मार्गदर्शन मिला और मैं' लघुकथा लेखन' की ओर आकृष्ट हुआ।
आज साहित्य-जगत् में मेरी पहचान लघुकथा-लेखक के रूप में हैं। लघुकथा को वरीयता देने के फलस्वरूप अन्य विधाओं में मेरा लेखन सीमित रहा। यहाँ वीरेन डंगवाल और हरि जोशी याद आ रहे हैं; जो मेरी लघुकथाओं को ससम्मान 'अमर उजाला' में छापते तो थे, पर कहानियाँ न लिखने के लिए जब-तब टोकते रहते थे। बाद में भाई हरि जोशी ने अमर उजाला के कहानी विशेषांकों में मेरी कई कहानियाँ छापीं; जिन्हें पाठकों का भरपूर प्यार मिला।
प्रकाशित कहानियों पर राजेन्द्र यादव, श्रीलाल 'शुक्ल, प्रभाकर श्रोत्रिय, रमेश बतरा, मंजुल भगत, डॉ. कोनराड मीजिंग (जर्मनी) आदि ने प्रतिक्रिया भेजकर उत्साह बढ़ाया।' रोशनी'कहानी पर दूरदर्शन के लिए टेलीफ़िल्म बनी। इसकी सारी' शूटिंग ' शाहजहाँपुर में हुई यह अनुभव भी अविस्मरणीय रहा।
अन्त में कहानियों के उन पात्रों को याद करना चाहूँगा, जिनकी वजह से ये कहानियाँ अस्तित्व में आईं। सृजन-यात्रा में कथाओं के पात्र कभी भी मेरे हाथ की कठपुतलियाँ नहीं रहे। मैं उनके अंग-संग रहा। उन सभी के प्रति आभार!