मैदान: फुटबॉल प्रेरित फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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मैदान: फुटबॉल प्रेरित फिल्म
प्रकाशन तिथि : 21 नवम्बर 2019


फुटबॉल के खेल से प्रेरित बोनी कपूर की फिल्म 'मैदान' की शूटिंग का आखिरी दौर मुंबई में चल रहा है और अगले माह के अंत तक शूटिंग पूरी कर ली जाएगी। अरसे पहले फुटबॉल प्रेरित फिल्में 'सितम' और 'हिप-हिप हुर्रे' बन चुकी हैं। 'सितम' में गोलकीपर की छाती पर बॉल लगती है और वह मर जाता है। घातक सिद्ध हुई किक मारने वाला खिलाड़ी अपराध बोध मनुष्य को पश्चाताप की अग्नि में झोंक देता है। चिता की अग्नि तक पश्चाताप जारी रहता है। विगत सदी के छठे दशक में दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म 'फुटपाथ' का नायक दवा बनाने वाली कंपनी में काम करता है। दवा बनाने में त्रुटि रह जाती है और उसके सेवन से अनेक लोगों की मृत्यु हो जाती है। फिल्म के अंतिम दृश्य में नायक अदालत में बयान देता है। वह कहता है कि उसे अपनी सांस में सैकड़ों प्राणहीन शरीरों की दुर्गंध आती है। यह संवाद दिलीप कुमार ने कुछ इस प्रभावोत्पादकता से अदा किया था कि दर्शक सुन्न रह गए।

खेल के मैदान में गेंद के साथ ही दर्शक की भावनाएं भी दौड़ती हैं। दर्शक का रक्तचाप बढ़ जाता है। कभी-कभी खेल का मैदान जंग के मैदान की तरह हो जाता है। जानकार कहते हैं कि सरहदों के दोनों ओर तैनात सेनाएं भी आपस में भोजन बांटती हैं और रस्मी तौर पर गोलियां चलाने के पहले दुश्मन दोस्त को सूचना भी दे देती हैं। इस विषय पर फिल्म बनी थी 'वॉर छोड़ न यार'। भारत के क्रिकेट खिलाड़ी धन कमाते हैं, परंतु यूरोप और लैटिन अमेरिका के फुटबॉल खिलाड़ी सबसे अधिक धन कमाते हैं। विश्व कप जीतने के बाद महान खिलाड़ी पेले के सम्मान में सभी दुकानदारों ने घोषणा की थी कि महान पेले उनकी दुकान से हर वस्तु मुफ्त में ले जा सकते हैं। गोवा और कोलकत्ता में फुटबॉल अत्यंत लोकप्रिय है। कोलकत्ता की दो टीमें ईस्ट बंगाल और मोहन बगान पारंपरिक प्रतियोगी हैं। दर्शकों में जुनून इतना अधिक है कि एक टीम का प्रशंसक विरोधी टीम के प्रशंसक से बात तक नहीं करता। अगर दोनों टीमों के प्रशंसकों के परिवार के युवा प्रेम करने लगें तो उनका विवाह होना अत्यंत कठिन हो जाता है। प्रेम तक फुटबॉल प्रतियोगिता के सामने हार जाता है। फुटबॉल प्रशंसक क्रिकेट प्रशंसक से भिन्न स्वभाव का व्यक्ति होता है। विगत समय में पाठशाला को अनुमति देते समय यह देखा जाता था कि संस्था के पास खेलकूद के मैदान उपलब्ध हैं क्या? आजकल तो बहुमंजिला शिक्षण संस्थाएं होते हैं, जिनमें केवल टेबल टेनिस खेला जा सकता है। जब पाठ्यक्रम ही सदियों पुरानी बेड़ियों में जकड़ा हो तब खेल सुविधा की बात कैसे की जा सकती है। महिला हॉकी खेल पर 'चक दे इंडिया' महान फिल्म है। कुछ समय पूर्व भी अक्षय कुमार अभिनीत 'गोल्ड' हॉकी प्रेरित फिल्म थी। 'जोया फैक्टर' क्रिकेट प्रेरित फिल्म थी, जिसमें खेल और खिलाड़ियों से जुड़े अंधविश्वास की बात अभिव्यक्त की गई थी। भारत द्वारा सन 1983 में क्रिकेट विश्व कप जीता गया था। इस वजह से प्रेरित फिल्म भी निर्माणाधीन है।

खेल संगठनों में भी राजनेता प्रवेश कर चुके हैं। खेलों में धन बहुत है और चींटियों को गुड़ से दूर कैसे रखा जा सकता है? महान खिलाड़ी सौरव गांगुली का क्रिकेट संगठन में शीर्ष पद पर विराजमान होना एक शुभ संकेत है। आशा की जा सकती है कि उनके कवर ड्राइव से कुछ कूड़ा-करकट अवश्य साफ हो जाएगा। भारत के ध्यानचंद हॉकी खेल के जादूगर माने जाते थे। सन 1936 में बर्लिन में आयोजित प्रतिस्पर्धा के समय हिटलर ने ध्यानचंद से अनुरोध किया था कि वह जर्मन नागरिकता स्वीकार कर लेंगे तो उन्हें मालामाल कर दिया जाएगा। महान ध्यानचंद ने सारे प्रलोभन ठुकरा दिए थे। ध्यानचंद बायोपिक के अधिकार पूजा एवं आरती शेट्टी के पास हैं।

खेल फिल्में बनाने में बहुत धन लगता है। अनेक टीमों के खिलाड़ियों की भूमिकाओं के लिए कलाकार खोजना कठिन हो जाता है। बहरहाल, फुटबॉल खिलाड़ी के दमखम का खेल है। हर पल उसे दौड़ते हुए मुस्तैद रहना पड़ता है। वर्षा के कीचड़ में अपने जिस्म पर नियंत्रण रखना आसान नहीं होता। हमारे महान संगीतकार सचिन देव बर्मन फुटबॉल प्रेमी थे।