मैरी कॉम और मर्दानी यथार्थ और कल्पना / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 12 अगस्त 2014
शीघ्र ही प्रदर्शित होने वाली प्रियंका चोपड़ा अभिनीत 'मैरी कॉम' यथार्थ आधारित फिल्म है परंतु इस तरह की फिल्मों में भी कल्पना के रेशे उसकी बनावट में शामिल रहते हैं तथा रानी मुखर्जी अभिनीत 'मर्दानी' एक काल्पनिक पुलिस अफसर की कथा है जिसकी बुनावट में कुछ रेशे यथार्थ के हो सकते है। मनोरंजन जगत की चदरिया ऐसी ही बुनी जाती है जैसे देश की चदरिया में विभिन्न रेशे होते हैं आैर कबीर की बुनी चदरिया लंबे समय तक बनी रही है परंतु पूर्वग्रह आैर अज्ञान से ग्रसित कुछ 'रंगरेज' उसे एक ही रंग में ढालने का प्रयास करते रहे हैं। बहरहाल मनोरंजन जगत में 'लार्जर देन लाइफ' पात्र हर काल खंड में रचे गए हैं आैर विगत दशक में तो यही मूल स्वर हो गया है। सारी फिल्में डिजाइनर फिल्में है आैर उसमें सृजन शक्ति नहीं वरन् असेम्बल करने की क्षमता आवश्यक है। जो काम परदे पर सलमान खान आैर अजय देवगन कर रहे हैं, उसी काम को अब महिलाएं करती नजर आएंगी। चौथे दशक की नाडिया अभिनीत फिल्मों को आधुनिक परिवेश में टेक्नोलॉजी की सहायता से यह लड़ाकू महिला पात्र रचे जा रहे हैं। नाडिया को उनके पति होमी वाडिया बड़े परिश्रम से प्रस्तुत करते थे। आैर अब आदित्य चोपड़ा अपनी पत्नी रानी मुखर्जी को प्रस्तुत कर रहे हैं। रानी मुखर्जी पहले ही 'नो वन किल्ड जेसिका' में अपनी लड़ाकू छवि प्रस्तुत कर चुकी हैं आैर अमोल पालेकर की 'पहेली' में शाहरुख खान की दोहरी भूूमिकाआें के बावजूद रानी मुखर्जी ने साहसी पात्र बखूबी जिया जो सत्य जानकर भी एक प्रेमल भूत को अपने भगौड़े आैर लालची पति पर तरजीह देती है। इसी फिल्म के दृश्य में एक नारी पात्र यह कहकर पूजा अर्चना करने मंदिर नहीं जाती कि जो पति उसे छोड़कर गया है, उसे ईश्वर की सहायता से वापस लाने का कोई आैचित्य नहीं है।
दरअसल साहसी महिला पात्र हर काल खंड में प्रस्तुत हुए हैं, मसलन शांताराम की 1937 में प्रदर्शित 'दुनिया ना माने' में पैसे के लालच में रिश्तेदारों द्वारा जबरदस्ती पंद्रह वर्षीय कन्या का विवाह अमीर दुजवर से कराया जाता है तो उसे अपने निकट नहीं आने देती। इसी तरह केतन मेहता की 'मिर्च मसाला' में साहसी स्मिता अत्याचार के खिलाफ युद्ध करती है। इसी कड़ी में अरुणा राजे की सत्य घटना से प्रेरित फिल्म 'रिहाई' में हेमा मालिनी अभिनीत पात्र अपने पति सहित पूरे गांव से लड़ती है कि भले ही पिता अन्य पुरुष हो परंतु उसकी कोख में पलता शिशु उसका अपना है आैर उसे गिराने के सामाजिक दबाव के आगे वह नदी झुकेगी। इसी फिल्म के अंत में एक संवाद है कि जो पुरुष महिलाओं से सीता से आचरण की आशा करते हैं, क्या वे स्वयं राम के आदर्श का वहन करते हैं।
बहरहाल 'मैरी कॉम' एक महिला बॉक्सर का बायोपिक है आैर कोमल प्रियंका चोपड़ा ने शूटिंग के लिए बहुत परिश्रम किया है आैर एक प्रमोशन के तमाशे में पच्चीस दंड लगाकर दिखाए हैं। रानी मुखर्जी ने पुलिस अफसर की भूमिका के लिए परिश्रम किया है आैर पुलिस दफ्तर जाकर अफसरों से मुलाकात की है। कलाकारों के व्यक्तिगत प्रयासों में टेक्नोलॉजी दो तरफ से मदद करती है, शरीर मजबूत बनाने में आैर परदे पर अधिक बड़ी मजबूती की छवि गढ़ने में भी। सिनेमा की विकसित टेक्नोलॉजी ने सभी देशों के सिनेमा में मानवीय करुणा एवं आम साधारण सी शक्तिवाले पात्रों को खारिज कर दिया है। सभी देशों में फंतासी की आेर रुझान है आैर यथार्थवादी प्रस्तुतीकरण विरल हो गया है जिसके लिए सिर्फ टेक्नोलॉजी जिम्मेदार नहीं है। आज दर्शक की रुचियों में परिवर्तन हुआ है, वे मनोवैज्ञानिक 'किक' प्राप्त करने के लिए फिल्म देखते हैं। वे सिनेमा को पाठशाला नहीं मानते आैर सच तो यह है कि पाठशाला में भी मनोरंजन के लिए जाते है। कैंपस में मस्ती छानना उनकी प्राथमिकता है। परीक्षा पास करने की तरकीबें कोचिंग केंद्र सिखाते है आैर ज्ञान सभी जगह से खारिज हो रहा है। सफलता की मछली की आंख पर तीर चलाना सीखने के लिए अब गुरु द्रोणाचार्य की आवश्यकता नहीं रही है, अब तो मकतबे इश्क में आंख मारने से ही मछली मारी जा सकती है।