मॉम फिल्म नहीं प्रेम-पत्र है / जयप्रकाश चौकसे

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मॉम फिल्म नहीं प्रेम-पत्र है
प्रकाशन तिथि :06 जून 2017


बोनी कपूर की श्रीदेवी एवं नवाजुद्‌दीन सिद्‌दीकी अभिनीत 'मॉम' की झलकियों को प्रदर्शित करने हेतु मुंबई में एक समारोह आयोजित हुआ, जिसमें फिल्मकार रवि उद्‌यावर एवं सितारे मौजूद थे, जहां उन्होंने फिल्म से जुड़े प्रश्नों के उत्तर भी दिए। प्राय: श्रीदेवी खामोश रहती हैं परंतु समारोह में उन्होंने प्रश्नों के जवाब दिए। चार वर्ष की आयु से अभिनय प्रारंभ करने वाली इस 'रूप की रानी' द्वारा मां की भूमिका स्वीकार करने का सारा श्रेय निर्माता- निर्देशक को दिया। समारोह में उनकी दोनों पुत्रियां भी उपस्थित थीं। फिल्म में प्रस्तुत मां अपनी सौतेली बेटी के साथ हुए अन्याय का प्रतिकार करती है। कुछ दशक पूर्व बोनी कपूर ने अपने मित्र इंदरकुमार के साथ अपने भाई अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित और अरुणा ईरानी के साथ 'बेटा' नामक सफल फिल्म बनाई थी,जिसमें मंदबुद्धि नायक अपने पर जुल्म करने वाली सौतेली मां के लिए अपनी जान भी देने को तैयार है और उसकी भावना सौतेली मां की सोच में परिवर्तन लाने में सफल होती है। खून से बड़े होते हैं प्रेम के रिश्ते।

एक सतही बात यह है कि अंग्रेजी भाषा में 'मदर' के स्पेलिंग से 'एम' निकालते ही बचते हैं दूसरे और गैर। हमारे सिनेमा इतिहास में मेहबूब खान की 'मदर इंडिया' सर्वकालिक महान फिल्म मानी जाती है। इसी कथा को मेहबूब खान ने 1939 में 'औरत' के नाम से बनाया था। वह एक किसान की पत्नी के संघर्ष की कथा थी। वह किसान मां अपने बच्चों के लिए संघर्ष करती है। इत्तेफाक देखिए कि सआदत हसन मंटो ने 'किसान कन्या' नामक फिल्म लिखी थी। यह भी इत्तेफाक काबिल-ए-गौर है कि 1939 में ही चीन के किसानों की व्यथा-कथा पर्ल एस. बक ने 'गुडअर्थ' के नाम से लिखी थी। पर्ल एस. बक ही आरके नारायण के उपन्यास 'गाइड' पर फिल्म बनाने का प्रस्ताव लेकर देव आनंद के पास आई थीं। अंग्रेजी भाषा में बनी 'गाइड' कहीं भी सराही नहीं गई परंतु विजय आनंद ने अपनी सृजन शक्ति से हिंदुस्तानी में बनी 'गाइड' को एक यादगार फिल्म बना दिया, जिसमें सचिन देव बर्मन और गीतकार शैलेंद्र का योगदान निर्णायक सिद्ध हुआ। धरती मां और मां के गिर्द महान साहित्य और सिनेमा घूमता है। फिल्म की शूटिंग के दरमियान निर्देशक विजय आनंद और वहीदा रहमान के बीच अंतरंगता स्थापित हुई परंतु रिश्ता विवाह तक नहीं पहुंचा। उनके बीच जो हुआ वह इतना गोपनीय है कि कोई तीसरा व्यक्ति उस विषय में कुछ नहीं जानता। बकौल शैलेन्द्र 'इस दुनिया में दो दिल मुश्किल से समाते हैं, जहां गैर तो क्या अपनों के साये भी नहीं अाने पाते हैं।' यह 'संगम' का गीत है।

बहरहाल, अरसे पहले अमेरिका में श्रीदेवी की मां की शल्य चिकित्सा में सर्जन से चूक हो गई और बोनी कपूर ने ही उस अस्पताल से कानूनी लड़ाई लड़ी जिसमें अदालत के बाहर एक समझौते में अस्पताल को करोड़ों रुपए का मुआवजा देना पड़ा। वह पूरी लड़ाई बोनी कपूर ने लड़ी थी और संभवत: उनका श्रीदेवी से प्रेम संबंध भी उसी प्रकरण में बना। बोनी कपूर के जीवन में बहुत नाटकीय घटनाएं घटी हैं। उन्हें भी अपनी आत्म-कथा लिखनी चाहिए। आजकल इस तरह की किताबों का बाजार गर्म है। इसमें एक अध्याय श्रीदेवी और एक बोनी कपूर की पहली पत्नी से जन्मे अभिनेता अर्जुन कपूर लिख सकते हैं।

बोनी कपूर अपनी फिल्म 'मि. इंडिया' के लिए श्रीदेवी को अनुबंधित करने अपने लेखक जावेद अख्तर के साथ गए थे परंतु उन्हें मुलाकात के लिए एक सप्ताह वहां इंतजार करना पड़ा। रात के समय संशय से घिरे बोनी यूं ही श्रीदेवी के बंगले के चक्कर काटते थे। क्या पता उसी समय कोई देवता वहां से गुजर रहे हों और उन्होंने 'तथास्तु' बुदबुदाया हो और परिणाम स्वरूप कुछ वर्ष पश्चात बोनी एवं श्रीदेवी का विवाह हो गया। शादियां आसमानों में तय होती हैं और धरती पर निभाई या भुगती जाती है। इसमें निहित कला पक्ष यह है कि 'भुगतने' को 'निभाना' कहा जाता है।

'मॉम' की तरह कुछ फिल्में एक सामाजिक तथ्य को रेखांकित करती हैं कि वर्तमान समाज में असुरक्षा का भाव जीना कठिन कर रहा है। सभी किस्म का आतंकवाद मनुष्य को कष्ट दे रहा है। धर्म को सिरफिरे ढंग से परिभाषित करके भय अौर हिंसा फैलाई जा रही है। सहनीलता की दीवार में सुराख कर दिए गए हैं। इन सुराखों से रोशनी नहीं, वहशत भीतर आ रही है। बहरहाल, 'मॉम' मातृत्व के पुनीत भाव को आदरांजली होने के साथ ही निर्माता बोनी कपूर का अपनी पत्नी श्रीदेवी के नाम सेल्युलाइड पर लिखे प्रेम-पत्र की तरह भी देखा जा सकता है। जीवन की 'रूखी सूखी रोटी पर चटनी जैसी होती है मां।'