मॉम : प्रतिभा को आदरांजलि एवं प्रेम-पत्र / जयप्रकाश चौकसे

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मॉम : प्रतिभा को आदरांजलि एवं प्रेम-पत्र
प्रकाशन तिथि :08 जुलाई 2017


उदयवार द्वारा लिखित व निर्देशित फिल्म 'मॉम' को बोनी कपूर ने अपनी पत्नी श्रीदेवी की प्रतिभा को आदरांजलि की तरह बनाया है या इसे उनका प्रेम-पत्र भी मान सकते हैं। इस फिल्म को मात्र बदले की कहानी नहीं कहा जा सकता वरन यह परिवार के रिश्तों की बुनावट है। पति-पत्नी, माता-पुत्री व बहन-बहन के आपसी प्रेम की कथा है। यह फिल्म सौतेले रिश्ते को पुन: परिभाषित करती है। फिल्म का समग्र प्रभाव कुछ इस तरह है कि जैसे कोई रिश्तों के पुराने स्वेटर से ऊन निकालकर उससे मजबूत रिश्तों का नया स्वेटर बुन रहा है। संकट से घिरे परिवार के सारे लोग एकजुट होकर खतरे से बाहर आते हैं।

फिल्म में सार्थक संवादों की भरमार है मसलन एक पात्र कहता है कि ईश्वर रक्षा करेंगे,दूसरा कहता है कि ईश्वर सब जगह तो जा नहीं सकते, तब संवाद है कि इसीलिए ईश्वर ने मां को बनाया गोयाकि मां धरती पर ईश्वर के कार्य संपन्न करने के लिए ही आई है। मां न केवल जन्म देती है वरन ताउम्र सुरक्षा भी करती है। मां के गर्भ से बाहर आने के बाद भी मां अपनी संतान की सुरक्षा के लिए संसार को अपने गर्भाशय की तरह सुरक्षा कवच की भांति बना लेती है।

इस फिल्म में पुलिस अधिकारी भी एक कत्ल में सहायता करता है, क्योंकि वह जानता है कि यही न्याय भी है। अपराध, दंड विधान और न्याय पर यह फिल्म अलग तरह का दृष्टिकोण देती है। एक क्लासिक दृश्य पेंटिंग के प्रदर्शन कक्ष का है, जिसमें सारी रचनाएं महाभारत को समर्पित है। द्रौपदी का चीरहरण केंद्र है। उस राजसभा में एक जन्मांध सिंहासन पर बैठा है परंतु द्रौपदी चीरहरण को देखने वाले सारे योद्धा भी अंधे ही हैं कि वे अन्याय का प्रतिकार नहीं करते। कुरुक्षेत्र में ये सब दंडित हुए हैं। दंड, अपराध और न्याय की अन्यतम रचना है महाभारत। इस आधुनिक फिल्म में महाभारत का संकेत देकर फिल्मकार ने इस कथा का स्केल और स्तर दोनों ही बदल दिए हैं।

कथानक घटता है देश की राजधानी दिल्ली में और एक पात्र कहता है कि वर्तमान में कोई कहीं भी सुरक्षित नहीं है। अनुष्का शर्मा की फिल्म 'एनएच टेन' में इसी असुरक्षा को फिल्म का केंद्र बनाया गया था। महानगरों का बियाबान या चंबल हो जाना भयावह है। ज्ञातव्य है कि यथार्थ जीवन में श्रीदेवी स्वयं एक चित्रकार हैं और आज तक उन्होंने उसका सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया है। एक कलाकार के रूप में उनका चेहरा एक कैनवास की तरह है और विविध भाव उस कैनवास पर पेंटिंग रचते हैं। प्रेम,भय,चिंता और वात्सल्य के भाव इस कैनवास पर भावना का एक कोलॉज निर्मित करते हैं। वे चार अपराधियों को अलग-अलग ढंग से दंडित करती हैं। एक नियमित जिम जाने वाले के प्रोटीन पाउडर मंे दर्जनों सेवफलों के बीज पीसकर मिला देती है। अधिक मात्रा में बीज जहर बन जाता है। एक विलक्षण दृश्य है कि अस्पताल के कक्ष में वह उस अपराधी को यह जताने आती है कि उसकी वेदनामय मृत्यु महज इत्तेफाक नहीं है। इस कार्य का दंड अपराधी के अपने सगेभाई को मिलता है, क्योंकि वह सारे साक्ष्य इसी ढंग से जमा देती है कि भाई-भाई का कातिल लगे। महाभारत के रूपक को जगह-जगह नए संदर्भ में इस्तेमाल किया गया है।

फिल्म का पार्श्व संगीत एआर रहमान ने रचा है और प्रारंभिक दृश्य में हवा में लहराते चाबुक-सी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जो कथा के सार को ही रेखांकित करती है। इसे फिल्म की बुनावट कुछ ऐसी है कि एक भी दृश्य या संवाद अनावश्यक नहीं है। संरचना उस क्यूबिक की तरह है, जिसे लगातार घुमाकर चार ढंग की चार सतहें बन जाती है। बहरहाल 'मॉम' एक रोचक और सार्थक फिल्म है। पिता-पुत्र के रिश्तों पर अनेक फिल्में बनी है परंतु मां-बेटी के रिश्ते पर 'मॉम' एक अत्यंत सार्थक फिल्म है। सारे कलाकारों ने श्रेष्ठ अभिनय प्रस्तुत किया है परंतु श्रीदेवी श्रेष्ठतम सिद्ध होती है।