मोती / ख़लील जिब्रान
Gadya Kosh से
एक बार, एक सीप ने अपने पास पड़ी हुई दूसरी सीप से कहा,
“मुझे अंदर ही अंदर अत्यधिक पीड़ा हो रही है । इसने मुझे चारों ओर से घेर रखा है और मैं बहुत कष्ट में हूँ ।”
दूसरी सीप ने अंहकार भरे स्वर में कहा,
“शुक्र है. भगवान का और इस समुद्र का कि मेरे अंदर ऐसी कोई पीड़ा नहीं है । मैं अंदर और बाहर सब तरह से स्वस्थ और संपूर्ण हूँ ।”
उसी समय वहाँ से एक केकड़ा गुजर रहा था । उसने इन दोनों सीपों की बातचीत सुनकर उस सीप से, जो अंदर और बाहर से स्वस्थ और संपूर्ण थी, कहा,
“हाँ, तुम स्वस्थ और संपूर्ण हो; किन्तु तुम्हारी पड़ोसन जो पीड़ा सह रही है वह एक नायाब मोती है ।”