मोबाइल: लाभ हानि का बही खाता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 29 नवम्बर 2018
रजनीकांत और फिल्मकार शंकर की लगभग 600 करोड़ लागत की फिल्म '2.0' सेंसर द्वारा प्रमाणित फिल्म है। खबर है कि फिल्म के एक दृश्य में यह संकेत है कि मोबाइल टावर से आणविक विकिरण होता है, जो सेहत के लिए हानिकारक है। इस दृश्य पर एक संस्था ने आपत्ति दर्ज की है और फिल्म का प्रदर्शन रोकने की अर्जी अदालत में लगाई है। आजकल प्राय: सेंसर द्वारा प्रमाणित फिल्म को भी कई संगठनों से इजाजत लेनी पड़ती है। फिल्म बनाने से कहीं अधिक कठिन है फिल्म का प्रदर्शन करना। वह दिन दूर नहीं जब हर गली-मोहल्ले के हुड़दंगी से आज्ञा लेकर ही फिल्म का प्रदर्शन करना संभव होगा। बहरहाल, इस प्रकरण में सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अधिक उपयोग ही सेहत के लिए हानिकारक है। विशेषज्ञों की राय है कि मोबाइल से भी विकिरण होता है। इसलिए यह जरूरी है कि मोबाइल को कमीज या पतलून की जेब में नहीं रखना चाहिए। कमर में बंधे चमड़े के बेल्ट में बने पॉकेट में रखा जाना चाहिए। कभी-कभी कमीज की जेब में रखा मोबाइल फट जाता है। सबको मालूम है कि हवाई सफ़र में मोबाइल बंद रखने की हिदायत दी जाती है, क्योंकि उससे निकली विकिरण ऊर्जा हवाई जहाज के इंजन में खराबी पैदा कर सकती है। अनेक मोबाइल प्रेमी इस हिदायत को नहीं मानते हैं और सभी यात्रियों के जीवन को संकट में डाल देते हैं। कल्पना की जा सकती है कि मोबाइल पर फिल्म देखना कितना हानिकारक हो सकता है। फिल्म केवल सिनेमा के परदे पर ही देखी जानी चाहिए। कुछ प्रेमी अपने माता-पिता के सो जाने के पश्चात आधी रात से अलसभोर तक बतियाते हैं। शादी के बाद इनकी तकरार ऊंची आवाज में होती है और सारा मोहल्ला सुनता है। विवाह के गोरिल्ला युद्ध में बहुत हाहाकार मचता है और ध्वनि प्रदूषण खतरनाक स्तर तक जा पहुंचता है।
इस प्रकरण में एक भयावह संभावना यह है कि रजनीकांत प्रशंसक फिल्म प्रदर्शन में अवरोध उत्पन्न करने वाली संस्था के खिलाफ प्रदर्शन पर न उतर आएं। मोबाइल पर दर्ज सबूत का इस्तेमाल फिल्म 'एतराज' में हुआ है, जो प्रियंका चोपड़ा की पहली फिल्म थी और उन्होंने नकारात्मक भूमिका अभिनीत की थी। अपने परिश्रम और प्रतिभा से वे सकारात्मक भूमिकाओं तक पहुंची हैं। मोबाइल की डॉक्टरिंग भी होती है। उसका संपादन किया जाता है और सुविधाजनक भाग को कायम रखा जाता है। पहले कहावत बनी थी कि कैमरा झूठ नहीं बोलता परंतु अब यह माना जाता है कि कैमरे से मनचाही बात सिद्ध की जा सकती है। आजकल झूठ प्रसारित करने का ठेका टेलीविजन पर प्रसारित न्यूज़ चैनल को दिया गया है। वे यह काम बखूबी कर रहे हैं। तीन दिन पूर्व ही मुंबई के 'गेटवे ऑफ इंडिया' पर मुंबई पर आतंकी हमले को याद किया गया। सारे दिन यह प्रचारित किया गया कि समारोह में जावेद अख्तर अपनी नई कविता सुनाएंगे। जावेद अख्तर को मंच पर आमंत्रित किया गया परंतु उनका कविता पाठ प्रसारित नहीं किया गया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महज कागजी बनकर रह गई। मोबाइल पर प्राप्त संदेश सैकड़ों को भेज दिए जाते हैं। इस तरह कुछ बेहूदगी भी छूत की बीमारी की तरह फैल जाती है। एक बेहूदा संदेश यह भी था कि विरोधी राजनीतिक दलों के मुखिया एक-दूसरे से विवाह कर लें। गौरतलब है कि इस तरह की बेहूदगी का लुत्फ लिया जा रहा है, जो आज के सांस्कृतिक शून्य को ही रेखांकित करता है।
मोबाइल का इस्तेमाल हमें आलसी बना रहा है। चलायमान शरीर धीरे-धीरे जड़ होते जा रहे हैं। इस कारण बीमारियां फैल रही हैं। कुछ लोग नाश्ते के साथ चार गोलियां ग्रहण करते हैं, दोपहर के भोजन के साथ आठ कैप्सूल और रात के भोजन के नाम पर गोलियां, कैप्सूल और भांति-भांति के सिरप दिए जाते हैं। प्रभु जोशी और सिद्धार्थ शुक्ला जैसे पेंटर को ऐसी मानव आकृति बनाना चाहिए, जिसमें टैबलेट और कैप्सूल हो और नसों में सिरप प्रभावित हो रहा हो।
खबर है कि वैज्ञानिक टेलीपैथी का अध्ययन कर रहे हैं। टेलीपैथी का अर्थ होता है कि एक ही विचार या भावना एक ही समय में दो प्रियजनों के बीच जन्मी हो। इस शोध का पूर्व अनुमान शायर निदा फ़ाज़ली को हो गया था। वे लिखते हैं 'मैं रोया परदेस में, भीगा मां का प्यार, दिल ने दिल से बात की, बिन चिट्ठी, बिन तार।'