मोबाइल का मौसम / दीनदयाल शर्मा
आज से दस साल पहले मोबाइल फोन 'शान-ए-शौकत' की चीज थी। लेकिन आज यह सबकी जरूरत बन गया है। हर घर में मोबाइल। जितने सदस्य उतने मोबाइल। कई लोगों के पास तो दो-दो, तीन-तीन मोबाइल। जरूरत क्या कहें, मोबाइल फोन सबके हिस्से का अंग बन गया है। यदि कोई कान का मैल साफ कर रहा है तो लग रहा है मानो मोबाइल फोन से बात कर रहा है।
-रेहड़ी वाले के पास मोबाइल, मजदूर के पास मोबाइल, रिक्शे-टैम्पूवाले के पास मोबाइल, काम वाली बाई के पास मोबाइल, सेठ-साहूकार के पास मोबाइल, चोर-लुटेरों के पास मोबाइल। समाज और समाज के बाहर के लोगों के पास यानी सबके पास मोबाइल है। एक बार एक भिखारी घर पर आया और बोला-बहिनजी, रोटी-सब्जी देना। श्रीमतीजी बोली-वाह भैया! बड़ा स्टैण्डर्ड है, खाली रोटी से काम नहीं चलता। जाओ, आगे जाओ...नहीं बनी है रोटी।
भिखारी बोला-कोई बात नहीं बहिनजी, बन जाए तो इतने नम्बर पर मिस काल कर देना।
यह तो आप भी मानते हैं कि मोबाइल फोन ने पूरी दुनिया को कितना $करीब ला दिया है। जिससे कभी मिल ना सको, जिसे कभी देखा नहीं, उससे आप घर बैठे बात कर सकते हैं। सस्ती बातें। महंगी बातें। कहीं एक पैसे में एक सैकण्ड बात। कहीं दस पैसे में एक मिनट बात तो कहीं 'मोबाइल टू मोबाइल' फ्री बात। मोबाइल फोन के बारे में सोचते-सोचते देखो मेरे फोन पर भी घण्टी आ रही है। मैंने मोबाइल ऑन करके कहा-हैलो।
-हैलो...तुसी मैनंू पिछाण लैया जी? किसी महिला की आवा$ज थी।
-जी नहीं, आप कौन साहब बोल रहे हैं?
-मैं साब नहीं बोल दी.....मैं बोल दी हां, मैं...।
-मैं कौन...? मैंने महिला की आवा$ज को पहचानने की कोशिश की।
-ओही..सुरिन्दर दे ब्याह दी पार्टी चे तुसी टकटकी ला के किनू देख रहे सी? याद करो..दिमाग ते थोड़ा जोर लाओ जी...।
-सुरेन्दर कौन...किसके ब्याह की पार्टी?
-ओही महिन्दर दे मुण्डे दे ब्याह चे! हाले नीं पिछाण्ïया?
-जी नहीं, आपने कोई रोंग नंबर मिला लिया है।
-रोंग नंबर कहके पिछा ना छुडाओ जी।
-मैंने रोंग नंबर कह कर फोन काट दिया। फिर मैंने अपने मोबाइल में उस नंबर को ध्यान से पढ़ा कि कितने नंबर से फोन आया है और यह महिला कौन हो सकती है? तभी उसी नंबर से फोन की घण्टी फिर बज उठी। मैं मोबाइल को ऑन करके बोला-जी....।
-कुछ याद आया? मैंनूं पिछाण्ïया?
-जी नहीं, कौन हैं आप?
-त्वाडी गलां मैंनंू भौत चंगी लगदी है जी।
-लेकिन मैंने तो आपसे कोई बात ही नहीं की।
-तुसी बोलदे नीं, सुणदे रहन्दे हो..ऐस कारण तो तुसी चंगे लगदे हो। मेरे नंबर 'सेवÓ करलो जी। मैं त्वानंू बाद चे फोन करांगी। मेरे नाळ गल करण वास्ते त्वाडा जी करे तो तुसी मैंनूं मिस काल कर देणा जी। ओ.के. बाय। और उसने फोन काट दिया।
-किसका फोन था? पत्नीजी ने सहजता से पूछा।
-कोई रोंग नंबर था।
-मोबाइल पर भी रोंग नंबर आ जाता है!
-इसी बीच बेटा अपना बस्ता एक तरफ फेंककर मेरे पैरों से लिपटते हुए बोला-डैडीजी, अब मोबाइल दिला दो। मैं पांचवीं में फस्र्ट आया हंू।
-दिला देंगे बेटे...अभी स्कूल से आए हो...चलो कपड़े चैंज करो और खाना खाओ। मैंने कहा।
-खाना नहीं खाता। जब तक मोबाइल नहीं दिलाओगे, मैं खाना नहीं खाऊंगा।
-चल मेरे वाला मोबाइल ले ले।
-पुराना मोबाइल क्यों लंू....नया लंूगा बिल्कुल फै्रश..न्यू ब्रांड नोकिया।
-तभी पत्नीजी बोल पड़ी..इसे मोबाइल दिलाने की जरूरत नहीं है। अभी सारा दिन टीवी. के चिपका रहता है। फिर मोबाइल दिला दिया तो करली पढ़ाई!
-लूँगा..लूँगा..लूँगा..मोबाइल नहीं, तो पढ़ाई नहीं।
-बेटे का अनशन मोबाइल लेने के बाद ही टूटा। अब वह टीवी. देखता है। मोबाइल पर गेम खेलता है। यानी मुझसे भी ज्यादा बिजी हो गया है। मेरी स्थिति बड़ी नाजुक बनी है। अब पत्नीजी ने भी मोबाइल की मांग कर दी है। तिरिया हठ तो जग प्रसिद्घ है। दिलाना ही पड़ेगा, नहीं तो रोटी-पानी बंद होने का डर है। आपके पास कोई सैकिण्ड हैण्ड मोबाइल हो तो प्लीज.... मिस काल करना!