मोरा गोरा रंग लइले, मोहे श्याम रंग दई दे / जयप्रकाश चौकसे

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मोरा गोरा रंग लइले, मोहे श्याम रंग दई दे
प्रकाशन तिथि : 27 अगस्त 2018


काला धन, सफेद धन, काली चमड़ी, गोरी चमड़ी की तरह ही फिल्मों में चरित्र भी स्याह, सफेद और धूसर रंग के होते हैं। 'काला अक्षर भैंस बराबर' 'अकल बड़ी या भैंस' इस तरह की कहावतें भी प्रचलित हैं। कुछ फिल्मों में नायक के चरित्र भी धूसर रंग के होते हैं। हमारा सिनेमा हमारी मायथोलॉजी से ही प्रेरित है। आज राजनीति भी मायथोलॉजी से प्रेरित है। जीवन इस कदर मायथोलॉजी से संचालित है कि आए दिन नए तीज-त्योहार उभरकर सामने आ रहे हैं। गांव, गली, शहर दर शहर कोई न कोई जुलूस निकाला जा रहा है। एक रथ-यात्रा से राजनीति में बड़ा बवाल मचा था। उस रथ के भीतर एक वातनुकूलित कक्ष भी था। नेता की यात्रा हर तरह से सुविधाजनक बनाई जाती है। आम आदमी का तो जीवन ही सफर में गुजर जाता है। कतारों में खड़ा-खड़ा वह 'खप' भी जाता है।

दक्षिण भारत में बनी 'बाहुबली' भी धार्मिक आख्यान प्रेरित ऐसी फिल्म है, जो तर्कहीनता के उत्सव की तरह गढ़ी गई है। कोई आश्चर्य नहीं कि यह बॉक्स ऑफिस पर सफलतम फिल्म सिद्ध हुई है। फिल्मों के कथानक भी धार्मिक आख्यानों से प्रेरित रहे हैं। साथ ही फिल्म ने ही संतोषी मां का उत्सव समाज को दिया है। 'सतोषी मां' और 'शोले' से अधिक सफल फिल्म साबित हुई।

आजकल टेलीविजन पर दिखाया जा रहा सीरियल 'पोरस' भी 'बाहुबली' से ही प्रेरित है। मेहबूब खान की फिल्म 'अमर' में नायक अनचाहे ही एक अशिक्षित गंवार लड़की के साथ हमबिस्तर हो जाता है और दिलीप कुमार ने अपराध बोध से ग्रसित इस पात्र को बखूबी जिया है। इस घटना के पूर्व एक बार जब वह गंवार लड़की उससे टकराती है, तब वह अपनी नाक पर हाथ रखकर कहता है कि कम्बख्त कभी नहा भी लिया कर। वही गंवार गंदी लड़की गर्भवती होने के पश्चात लाख बार पूछे जाने पर भी उस व्यक्ति का नाम नहीं बताती जो उसके अभी तक अजन्मे शिशु का पिता है। यह उस 'गंदी लड़की' के चरित्र की मजबूती को अभिव्यक्त करता है। उसने प्यार किया है और वह अपने 'प्रेमी' की बदनामी हो जाना पसंद नहीं करती। मेहबूब खान की 'अमर' हॉल केन के उपन्यास 'मास्टर ऑफ मैन' से प्रेरित है। इसी तरह रमेश सहगल की फिल्म 'फिर सुबह होगी' के नायक ने भी एक गैर-इरादतन कत्ल किया है और अपराध-बोध से ग्रसित इस पात्र को भी राज कपूर ने बड़े प्रभावोत्पादक ढंग से अभिनीत किया है। यह फिल्म फ्योदोर दोस्तोवस्की के महान उपन्यास 'क्राइम एंड पनिशमेंट' से प्रेरित है। इसी तरह इसी रूसी लेखक की रचना 'व्हाइट नाइट्स' से प्रेरित फिल्म राज कपूर अभिनीत 'छलिया' भी थी और इसी कथा से प्रेरित होकर संजय लीला भंसाली ने रणबीर कपूर अभिनीत 'सांवरिया' बनाई थी। दोस्तोवस्की और कपूरों का रिश्ता भी तर्क के परे जाता है। जीवन की जटिलताओं को मात्र तर्क के आधार पर सुलझाया भी नहीं जा सकता।

राज कपूर अभिनीत फिल्म 'बेवफा' और देव आनंद अभिनीत 'बम्बई का बाबू' में समानता है। दोनों ही फिल्मों का नायक अपराध जगत द्वारा अमीर परिवारों में रोपित किए गए हैं ताकि वहां चोरी कर सकें। इस पूरे घटनाक्रम में ये स्याह पात्र धूसर रंग के बन जाते हैं। परिवार का प्रेम और विश्वास उन्हें बदल देता है। इसी तरह शांताराम की 'दो आंखें बारह हाथ' भी अपराधियों के सुधर जाने की प्रक्रिया को अभिव्यक्त करती है। अपराध बोध से ग्रसित पात्र और आक्रोश की छवि वाले पात्र में अंतर होता है। सलीम जावेद ने खूब भुनाया है। दोनों पर हॉल केन की रचनाओं का भी प्रभाव रहा है।

फ्योदोर दोस्तोवस्की के 'क्राइम एंड पनिशमेंट' में यह विचार भी प्रस्तुत हुआ है कि सृजनशील लोगों के लिए एक अलग दंड विधान रचा जाना चाहिए। आश्चर्य यह है कि इस रचना के दशकों बाद आइन रैंड के 'फाउंटेनहेड' में भी यह दलील दी गई है कि अलग-अलग दंड विधान बनाया जाना चाहिए। इस तरह के विचार समानता आधारित दंड विधान को नष्ट ही कर देंगे। दंड विधान पर मुंशी प्रेमचंद की कथा पंच परमेश्वर' 'कालजयी रचना है संजीव बख्शी की 'भूलन कांदा' और उससे प्रेरित फिल्म भी बहुत प्रभावोत्पादक बन पड़ी है।

अमेरिका में आज भी रंगभेद कायम है। सिडनी पोइटर अभिनीत फिल्म 'गेस हू इज कमिंग टू डिनर' भी कालजयी फिल्म है। मिट्‌टी के भी रंग होते हैं। काली मिट्‌टी वाली जमीन बहुत उर्वरक मानी जाती है। पीली मिट्‌टी उपजाऊ नहीं होती। अपनी धुरी पर घूमती हुई धरती के भीतर भी बहुत तनाव और दबाव होते हैं। एक जगह स्वर्ण मुद्राओं से भरा मटका गाड़े तो लंबे अरसे में कहीं और चला जाता है। इसी तरह मुद्रा परिवर्तन के समय भी बहुत कुछ घटित हुआ है और काले का सफेद हुआ है।