मोह / कल्पना रामानी
“इतनी सारी सब्जियाँ! और ये मिठाइयाँ... क्या बात है जानेमन, फ्रिज को तो तुमने आज भंडार-गृह ही बना दिया है, मुँह में पानी आ गया”। सुबोध ने पत्नी सुजाता को खुले हुए फ्रिज के सामने विचारमग्न देखकर पूछा।
“कल अनुभव आ रहा है न, दुबई से पूरे एक साल के बाद”! कहते हुए सुजाता खुशी से फूली नहीं समा रही थी। इकलौता बेटा दुबई में एक अच्छी कंपनी में जॉब पा गया था और एक सप्ताह की छुट्टी पर भारत आ रहा था।
“फिर भला आज क्या खिला रही हो?”
“समझ में ही नहीं आ रहा, जिस सब्जी पर हाथ रखती हूँ, अनुभव की पसंद की निकलती है। सोचती हूँ आज कुछ दिन पहले के रखे हुए करेले ही बना लूँ”।
“लेकिन करेले तो मुझे भी पसंद नहीं।”
“आपके लिए पुदीने की चटनी के साथ आलू के पराँठे बना दूँगी”।
“नहीं करेले ही ठीक हैं, आलू के पराँठे तो अनुभव को भी बहुत पसंद हैं, कल सुबह ही तो वो पहुँच रहा है न, नाश्ते में बना देना”।
सुजाता दिन भर मन ही मन बेटे की पसंद का मेन्यू बनाती और रटती रही, कल ये सब्जी, परसों वो डिश, नरसों वो... इसी उथल-पुथल में रात में भी उसे ठीक से नींद नहीं आई।
सुबह तड़के ही पति-पत्नी उठ बैठे और चाय पीकर अनुभव का इंतज़ार करने लगे। फोन पर उसने कहा था मैं स्वयं ही आ जाऊँगा, सुबह-सुबह आपको एयर-पोर्ट आने में व्यर्थ परेशानी होगी। आखिर गेट पर एक टैक्सी रुकी और अनुभव ड्राइवर को पैसे देकर अंदर आ गया। माँ-पिता के चरण स्पर्श किए। दोनों ने भाव-विह्वल होकर उसे बारी-बारी गले लगाया। अनुभव ने बैग खोलकर माँ-पिता के लिए लाए हुए कपड़े व अन्य उपहार निकालकर उनको दिये फिर नहाने चला गया। सुजाता ने शीघ्रता से किचन का मोर्चा सँभाल लिया।
जब तक वो तैयार होकर आया, भोजन की मेज पर नाश्ता लग चुका था। अपनी पसंद के आलू के पराँठे और पुदीने की चटनी देखकर माँ से लिपटकर बोला- वाह माँ, मेरी पसंद तुम्हें अभी तक याद है... कहते हुए उसने खड़े-खड़े एक कौर तोड़कर खाया तो ----ने टोका- अरे इस तरह खाया जाता है क्या, बैठकर आराम से खाओ, अभी तो बहुत कुछ आना है नाश्ते में... -
“बस माँ, आप व्यर्थ परेशान मत हो, मैं ज़रा जल्दी में हूँ, मेरी एक मित्र भी मेरे साथ भारत-भ्रमण के लिए आई है, उसे होटल में छोड़कर आया हूँ, वो मेरा नाश्ते पर इंतज़ार कर रही होगी। और हाँ... मैंने रहने के लिए होटल में ही कमरा बुक करवा लिया है। नैनी को अकेली नहीं छोड़ सकता, खाना भी घूमते हुए बाहर ही हो जाएगा, पर मिलने के लिए आता रहूँगा। कहकर उसने माँ-पिता का अभिवादन किया और बैग लेकर निकल गया।
सुजाता अचंभित सी अपने मन के पन्ने पर उकेरे हुए मेन्यू से ममता का पेपरवेट हटाकर पुत्र-मोह से मुक्त होने का प्रयास करने लगी।