मोॅन / विद्या रानी

Gadya Kosh से
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"ई ठो घड़ीघंट हम्में लेवौ, तोहें कैन्हें आगू बढ़ी केॅ लै लेल्हैं।" मूंगिया ठुनकेॅ लागली।

कामेसरें तेॅ घड़ीघंट उठाय लेनें छेलै आरू ऊ कोय कीमतोॅ पर मूंगिया केॅ नै दियेॅ पारेॅ छै। बोललै, "हँह, देखलेॅ छैं कहीं आपनोॅ गामोॅ में घड़ीघंट, बड़का, लूर न जूत चल दरिया पूत। खाली टनटनाय केॅ घड़ीघंट बजाबै छै। ठुनकला सें की होतौ, तोहें झांझ उठाय केॅ बजाय ले।"

मूंगिया के बड़का-बड़का आँखोॅ में मोती झलकेॅ लागलै। एक-दू ठो मोती नीचुओ गिरी गेलै। ओकरा रुसलोॅ आरो मोती ढरकतें देखी केॅ कामेसर अवाक् रही गेलै। ई तेॅ गुलाब के फूलोॅ पर ओसोॅ रोॅ बूंद दिखाय रहलोॅ छै। मूंगिया के गोरा रंग आरू गुलाबी होय गेलोॅ छेलै। नाक के टुस्सी लाल हिंगोर आरू आँख तेॅ डब-डब।

बस यही तेॅ देखना छेलै कामेसर केॅ। ऊ चिढ़ावेॅ लागलै, "रुसनी बेटी दूर जाय, कौआ लै केॅ उड़ जाय।" आरू चिढ़ैतें-चिढ़ैतें झट घड़ीघंट दै देलकै। फेनू आपनोॅ झांझ उठाय केॅ बजावेॅ लागलै।

ठाकुरबाड़ी के बाबाओ जी अजगुते छै। जाय ताँय सबटा मूर्ति केॅ धोय-धाय, कपड़ा पिन्हाय नै लै छै, तब ताँय घड़ीघंट बजावै लेॅ नै दै छै, जबेॅकि मंदिर के दुआर खुलला के तुरन्ते बाद ऊ घंटा बजाय केॅ सब बच्चा सिनी केॅ बोलाय लै छे।

कामेसर आरू मूंगिया दोनों ठाकुरबाड़िये में मिललोॅ छेलै-आरती करै वक्तीं। कामेसर के तेॅ ई गामोॅ में आपनोॅ घोॅर छै, मतरकि मूंगिया आपनी बहिन कन ऐली छै घूमै लेॅ, आरू यहाँकरोॅ बच्चा सिनी साथें बहू ठाकुरबाड़ी आवी जाय छेलै।

ठाकुरबाड़ी गामोॅ के बीचेबीच में छेलै। पिछवाड़ी में चम्पा के बड़का ठो गाछ छेलै। फूल फुलैला पर सौंसे गाँव महकेॅ लागै छेलै। चम्पा के फूल आपनोॅ सुन्दरता आरो सुगन्ध के कारण सभे केॅ विह्नल करी दै छेलै।

यही ठाकुरबाड़ी में भिनसरे आरू सांझें भजन होय छेलै। सौंसे गामोॅ के छौड़ा-छौड़ी सिनी आरती में शामिल होय छेलै। घड़ीघंट, झांझ सब बजाय केॅ आरती होय छै। वातावरण बड़ा पवित्रा छेलै। ई गामोॅ में धीरें-धीरें स्कूल, अस्पताल सब खुललोॅ जाय रहलोॅ छेलै। एक तरहोॅ सें कहोॅ तेॅ ई गाँव आधा गाँव, आधा शहर होय गेलोॅ छेलै।

लड़का-लड़की सिनी पर जमाना के असर आवी गेलोॅ छेलै। लड़की सिनी पर तेॅ तनि बंधनो छेलै, लड़का सिनी तेॅ एकदम्मे छुट्टा छेलै। कामेसर तेॅ आपनोॅ जोकरई लेॅ प्रसिद्धे छेलै। जोन ठियाँ बढ़िया लड़की मिली गेलै कि ओकरोॅ लुकाछिपी, चिट्ठी-पत्राी चलेॅ लागै छेलै। यही ठाकुरबाड़ी में कामेसर नें मूंगिया केॅ देखनें छेलै। सुन्दर मूंगिया कामेसर के मोॅन केॅ भावी गेलै। गामोॅ-देहातोॅ में ओतना खुल्लम-खुल्ला मिलना नहिये हुवेॅ पारतै, यही सें ठाकुरबाड़ी में कामेसर मूंगिया केॅ देखै लेॅ आवी जाय छेलै। हौ कहलोॅ जाय छै नी कि 'खैर, खून, खाँसी, खुशी, वैर, प्रीति, मुस्कान, रहिमन दाबे ना दबे, जाने सकल जहान।'

ओकरोॅ सिनी के मिलवोॅ, आँख लड़ैवोॅ, फिनु आँख चुरैवोॅ, भितरिया चवनियाँ मुस्कान मुस्कैवोॅ-सब लोगोॅ केॅ बताय देनें छेलै कि एकरोॅ दोनों के आँख लड़ी गेलोॅ छै। कत्तो लड़ै-झगड़ै छेलै कामेसर आरू मूंगिया-दुनू में फिनू दोस्ती होय जाय छेलै। कामेसर तेॅ मूंगिया पर जान देवे करै छेलै, आबेॅ मूंगियो ओकरोॅ नाम सुनी केॅ लाल होय जाय छेलै। मूंगिया कत्तेॅ दिन बहिनी कन रहतियै, दू-तीन महीना के बाद ऊ घोॅर जावेॅ लागलै। आबेॅ कामेसर के बिना रहना ओकरा अच्छा ने लागै छेलै। ऊ तेॅ छटपटावेॅ लागली कि कामेसर केॅ बिना देखलेॅ केना रहबोॅ। कत्तेॅ बढ़िया बात करै छेलियै, आबेॅ तेॅ दर्शनो दुर्लभ होय जैतै। ठाकुरबाड़ी में भी झगड़ा होला पर लोग मूंगिये के पक्ष लै छेलै कि ई तेॅ परदेसी छेकै, एकरा नै कनावैं। आपनोॅ आदर देखी केॅ मूंगिया आरू जाय लेॅ नै चाहे छेलै।

भाय के ऐला पर मूंगिया केॅ जाय लेॅ पड़लै। कामेसर के याद आपनोॅ मोॅन में राखी केॅ मूंगिया घोॅर चललोॅ गेलै। कामेसर के बापें बाजारोॅ में एक छोटोॅ रं के दुकान राखलेॅ छेलै। ओकरा सें घरोॅ के खरचा चले छेलै। कामेसर गामोॅ के स्कूलोॅ में मैट्रिक तांय पढ़ला के बाद बाबुए संग काम करै छेलै।

मूंगिया के गेला के बाद कामेसर के मुँह सूखी गेलै। अनमनोॅ रं बैठलोॅ रहै छेलै। ओकरोॅ माय केॅ आचरज लागै कि एतना हँसमुखिया बच्चा ई रं कैन्हें मनझमान होय गेलोॅ छै। गामोॅ के कोय बुतरू नें ओकरा नै बतैनें छेलै कि ऊ मूंगिया केॅ पसन्द करेॅ लागलेॅ छेलै। एक दिन वें नें आपनोॅ बेटा सें पूछलकै, "कामेसर, तोरा मूंगिया खुब्बे पसंद छौ नी?"

ऊ तेॅ हड़बड़ाय गेलै। पूछेॅ लागलै, "के कही देलकौ?"

माय बोललकी, "ऊ रमुआ के बेटा छै नी, वही कहलेॅ छै।"

कामेसर मनोॅ के बात छिपाय केॅ बोललै, "धुर, ऊ सिनी तेॅ हेने केॅ लुतरी लगाय दै छै। अरे ठाकुरबाड़ी में मिलै छेलियै तेॅ गपशप करै छेलियै। सुन्दर तेॅ ऊ छेवे नी करै।"

माय नें जवाब देलकै, "हौ तेॅ ठीक छै, मतरकि ओकरोॅ गेला के बाद तों एतना झमान छैं, आरू दू दिनोॅ सें ठाकुरबाड़ियो नै जाय रहलोॅ छें, से कैन्हें?"

कामेश्वर कहलकै, "धुर, तोहें तेॅ पीछुवे पड़ी जाय छैं।"

माय चुप होय गेलै।

पाँच बरसोॅ के बाद कामेसर आपनोॅ गामोॅ में ही एस. टी. डी. बूथ खोललकै। ओकरोॅ आमदनी अच्छे होय छेलै। बाबू के काम तेॅ चलिये रहलोॅ छेलै। घोॅर पहिलें सें बहुत अच्छा होय गेलोॅ छेलै। बाबू-माय नें कामेसर के बीहा के बात चलावेॅ लागलेॅ छेलै। बीहा होय जाय तेॅ गृहस्थी बसेॅ। ओकरोॅ माय ओत्तेॅ पढ़लोॅ-लिखलोॅ नै छेलै, मतरकि मोॅन के बात समझै के खूब अनुभव छेलै।

बरतुहार सिनी सें गप-शप तेॅ होवै, मतरकि कोय्यो फोटो पर कामेसर 'हाँ' नै कहै छेलै। एक दिन माय नें कामेसर सें पूछिये देलकै, "हे रे, अर्जुनवां के सारी के की नाम छेकै?"

कामेसर अकचकाय केॅ बोललै, "मूंगिया।"

"ओकरा सें बियाह करभैं?" कामेसर चुप होय गेलै। 'मौनम् स्वीकृति लक्ष्णम्।' माय तेॅ बुझये गेली कि की बात छै।

माय ढैय्या लगावेॅ लागली। मूंगिया के बहिन सें चुपेचाप कहलकी कि कामेसर मूंगिया सें बीहे लेॅ चाहै छै, तोहें कुछु जुगाड़ कर। "

सोनिया बोललकै, "हम्में बाबू-माय केॅ खबर करी दै छियै। हुनकोॅ सिनी के जे मोॅन।"

सोनिया नें माय-बाबू केॅ खबर भिजवैलकै कि यहोॅ एकठो लड़का तैयार छै, जे बिना पैसे-कौड़ी के बियाह करी लेतै।

लड़कीवाला सिनी के भी आदत होय छै-घिकी केॅ पानी पीयै के. सोनिया के खबर करला पर माय-बाबू केॅ लागलै कि ज़रूर कोय भेद छै। आजकल मजदूरी करे वाला लड़को सिनी बीस-पचीस हजार लेनें बिना तैयार नै होय छै, आरू ई बिना पैसे लेलेॅ बियाह करे लेॅ तैयार छै। हमरा सिनी तेॅ नहिये करवै, आरू बढ़िया लड़का खोजवै।

मूंगिया की कहती, कुछु बोलला पर तेॅ बस झाड़ सुनला के अलावा कोय चारा नै छेलै। चुपचाप रही गेली। कोय ऐन्होॅ तेॅ नहिये नी छेलै कि हीर-रांझा रं जाय केॅ जाने दै देतियै। मूंगिया मने मन ोचतें रहै-अरे बच्चा में बढ़ियाँ लागै छेलै। अगर ओकरोॅ मोॅन छै तेॅ हिनकासिनी केॅ बियाह करे में की दिक्कत। आरू बढ़िया खोजतै, ऊँह, जेना लाट-कलक्टर दामाद उतरतै। वही मजदूर किलास में नी जैतै, मतरकि बोलना नै छै, जे हुवेॅ।

मूंगिया के बाप परेशान होय केॅ लड़का खोजेॅ लागलै। हिन्नें-हुन्नें गामोॅ में, शहरोॅ में आपनोॅ औकात के लड़का खोजतें-खोजतें थकी गेलै। जोॅन गामोॅ में बेटी केॅ स्कूलो नै भेजै छेलै, तोॅन गामोॅ में बेटी के मोॅन के पूछै छै! ओना तेॅ मूंगिया के समाज नें बसंती नें तीन ब्याह करलकै, पुनीतिया नें चार। कोय मनाही नै छै, मतरकि पहिलोॅ दाव ब्याह में मैय्ये-बाप के चलै छै। लड़की कुछु नै करेॅ पारै छै।

आखिर मूंगिया के लगन चरचराय गेलै। एकठो घर-गृहस्थी वाला चापाकल मिस्त्राी मूंगिया के बापोॅ केॅ पसन्द पड़ी गेलै-आपनोॅ घोॅर पक्का के छै, ऐंगने में चापाकल, पोॅर-पैखाना सब्भे छै। दू भाय के जोड़ा लड़का छै, आरू की चाहियोॅ। ओकरे सें मूंगिया के बीहा करवै। लड़की दिखावे में मूंगिया के चाची छेलै।

ऊ बढ़िया रं लंुगा पिन्ही केॅ तैयार होय गेलै। चकाचक गोरी, अंडाकार मुँह पर नाक, आँख तेॅ कटोरिये रं लागै छेलै। ओकरा के नै पसन्द करतियै। चटपट मूंगिया के बीहा होय गेले। गेली बेटी दूर देस देहात। ससुरालोॅ में मूंगिया के खूब बड़ाय होलै। चाँदोॅ रं पुतोहू लाननें छै। काम-काजोॅ में तेॅ सुघढ़ छेवे नी करलै। गोबर, गोइठा, घोॅर, रोटी-बाटी सब आपनोॅ हाथोॅ में लै केॅ मूंगिया खुश रहे के कोशिश करै छेलै। आबेॅ जे छै, यहेॅ घोॅर छै। कथी लेॅ आस कुछु सोचवोॅ। मतरकि कहीं घड़ीघंट के आवाज सुनी जाय छेले तेॅ ओकरा दन सें कामेसर याद आवी जाय छेलै। ऊ तेॅ मोॅन में रहवे नी करै छेलै। आकरा कहलो नै जाय कि बचपन के प्रेम सभे दिन मोॅन केॅ टीसतें रहै छै।

दू बरसोॅ के बाद मूंगिया एक बेटी के माय बनी गेले। माय बनला पर ओकरोॅ मुँह आरू निखरी गेलोॅ छेलै। देहो थोड़ोॅ चिकनाय गेलोॅ छेलै।

हरदमे नैहरा सें बुलाहट आवै छेलै, मतरकि ओकरोॅ सास नै जावे लेॅ दै छेलै। मूंगिया के सास केॅ मालूम छेलै कि ओकरोॅ नैहरा में छौड़ी सिनी तीन-तीन, चार-चार बियाह करनें छै। कहियो-कहियो वें मूंगिया केॅ कहियो दै कि तोरोॅ गामोॅ में तेॅ चुमौना करै के फैशन छौं। मूंगिया सुनी केॅ ठिसीयाय जाय छै। मूंगिया सास केॅ डरो लागै छेलै कैन्हें कि मूंगिया रं सुन्दर लड़की बिरादरी में छेवे करलै केतना।

एक दाव सोनिया नें आपनोॅ बच्चा सिनी के मुंडन में मूंगिया केॅ बोलवाय भेजलकै। ओकरोॅ बेटां मूंगिया कन आवी केॅ कहलकै, "चल मौसी, मुँड़नोॅ में माय नें बुलैलेॅ छौ।"

मूंगिया के सास केॅ कुछु कहतें नै बनलै। आबेॅ जग प्रयोजन में नै भेजवै तेॅ लोगें की कहतोॅ। सासुए केॅ नी बदमाश कहतै। जाय के हामी भरी देलकै। कहलकै, "ठीके छै, लै जा, मतरकि जल्दीये पहुँचाय दिहौ।"

दोसरोॅ दिन मूंगिया बहिनबेटा के साथ फेनू कामेसर के गाँव चल्ली गेलै। ओकरोॅ दूल्हा दिल्ली गेलोॅ छेलै, यही सें असकरे बेटी केॅ ले केॅ गेलै। कामेसर के नामे सोची केॅ ओकरोॅ देह सिहरी जाय छेलै। सोचै छेलै मूंगिया कि दूल्हा के बारे में सोचलाहौ पर ऐहनोॅ नै होय छै। ई कामेसर में की जादू छै कि नामे सें मोॅन गदगद होय जाय छै।

बहिन सोनिया के घर मूंगिया के खूब मान-सम्मान होलै। ऊ खुश होली कि बहिन भरलोॅ-पुरलोॅ छै, खुश छै। एक दिन गप्पोॅ में सोनिया कहलकै कि माय-बाबू नें हमरोॅ संदेशोॅ पर ध्यान नै देलकै, मतरकि यहाँ तोरोॅ जों बीहा होतियौ तेॅ अच्छे रहतियौ।

मूंगिया मनोॅ में साचेॅ लागलै-अच्छे की, एकरा सें अच्छा तेॅ कुछु होइयो नै पारै छेलै। परगट में कहलकै, "जाय लेॅ दे, जे लिखलोॅ छेलै, होलै। कथी लेॅ सोचै छैं।"

सोनियां बोललकै, "जानै छैं, आभियो तांय ओकरोॅ बीहा नै होलोॅ छै। कोइयो लड़की ओकरा पसन्दे नै आवै छै।"

मूंगिया के धड़कन बढ़ी गेलै। मोॅन के भाव छिपावै के कोशिश करेॅ लागलै। कहलकै, "होबे नी करतै।"

मुँड़नोॅ वही ठाकुरबाड़ी में करे के बात छेलै। सौंसे गाँव न्योतैलोॅ गेलोॅ छेलै। मुँड़नोॅ के बाद वहीं सत्यनारायण के कथो होलै। सभे परसादी लै केॅ घोॅर गेलै। रातोॅ में भोज करैलोॅ गेलोॅ छेलै। मूंगिया गुलाबी रंग के साड़ी पिन्ही केॅ तैयार होलोॅ छेलै। वहीं परसाद बाँटी रहलोॅ छेलै। सबसें पीछू कामेसर आवी केॅ परसादी लेॅ हाथ पसारी देलकै। अचानक ओकरा सामना में देखी केॅ मूंगिया हड़बड़ाय गेलै। लागलै कि करेजे उल्टी जैतै।

कामेसर ई रं देखी रहलोॅ छेलै जेना कि कहियो देखले नै छेलै। मूंगिया सकपकाय केॅ मुस्कुरैली कि जान-पहचान छै, आरू परसादी दै देलकी। कामेसर घोॅर चललोॅ गेलै। मूंगिया के करेजोॅ में जेना कामेसर के आँख गड़ी गेलै। ओकरोॅ आँख में प्रशंसा के जे भाव छेलै, ऊ तेॅ छेवे करलै, आरू ई रं भाव छेलै कि अभियो कुछू नै बिगड़लोॅ छै। अभियो तोहें 'हाँ' कहोॅ तेॅ हम्में तेॅ कुँवारे बैठलोॅ छियै।

मूंगिया केॅ कुछू समझै में नै आवी रहलोॅ छेलै। मोॅन करै कि कामेसर के साथ रही जाँव, मतरकि विवेक कहै-नै, आपनोॅ दूल्हा में की खराबी छै। घोॅर में की तकलीफ छै कि कोय बहाना करी केॅ हम्में यहाँ चुमौना करवै। मोॅन मिलै के बात जगजाहिर नै हुवै लेॅ देना चाहियोॅ। माय-बाबू भी कहतै कि पहिनें कैन्हें नी बोललैं। एतना खर्चा-पानी कथी लेॅ करतियै। फिनू ऊ दूल्हा बेचारा के मुँह केन्होॅ होतै। एगो बेटियो होय गेलोॅ छै। नामरदो नै कहेॅ पारै छियै। मार-पीट भी नहिंये करै छै, खाय लेॅ देवे करै छै, आबेॅ की चाहियोॅ।

एक मने केॅ लगाम बहकी-बहकी केॅ कामेसर के संग चाहेॅ लागलोॅ छेलै। बुद्धि-विवेक तेॅ मना करी ही देलेॅ छेलै। उथल-पुथल में ओकरोॅ जान जाय रहलोॅ छै। एक तरफ पहिलोॅ प्रेम के आकर्षण, दोसरोॅ तरफ उत्तरदायित्व रोॅ बोध। ओकरा बचपन के लड़ाय याद आवी रहलोॅ छेलै। सोची रहलोॅ छेलै कि कहियो सोचलो नै छेलियै कि कामेसर लेॅ ऐतना व्याकुल होवै।

मूंगिया सोचलकै-हम्में तेॅ चंपा फूल होय गेलियै, जे सुगंध तेॅ बाँटै छै, मतरकि देवता के माथोॅ पर नै चढ़ैलोॅ जाय।

ऊ आपनोॅ गाँव जाय लेॅ ठानी लेलकै।