मौंन मृत्यु / मुकेश मानस
बकरे को कसाईखाने में लाया गया। बकरे ने सामने देखा। चार कसाई हाथों में लम्बे-लम्बे छुरे लिए खड़े अंगारों जैसी आंखों से उसे घूर रहे थे। एक बारगी बकरा सहम उठा। उसने नीचे देखा। उसकी प्रिय पत्नी का कटा हुआ सिर पड़ा था। जिससे लाल गाढ़ा खून बह रहा था। उसकी पत्नी की जीभ दांतों के बीच में पंफसी थी। बहुत चिल्लाई होगी बेचारी जीने के लिए... उसने सोचा और एकाएक उसकी आँखों से आंसू टपक पड़े। उदास मन से उसने इधर-उधर देखा। उसे मृत बकरों की उबलती आंखें नजर आईं। दांतों में फँसी जीभें नजर आईं। छोटी सी नाली में बहता गाढ़ा लाल खून नजर आया। उसने फिर अपने आस-पास खड़े कसाईयों को देखा। कसाई उसे अब भी घूर रहे थे। लाल-लाल आंखों से। उसने चुपचाप अपना सिर खांचे में रख दिया और आंखें बंद कर ईश्वर का नाम लिया। कसाईखाने में एकबार फिर पहचानी आवाज गूंजी... खट...।
रचनाकाल : 1986 पहली लघु कथा