मौजूदा और पूर्व प्रधानमंत्री के बायोपिक / जयप्रकाश चौकसे

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मौजूदा और पूर्व प्रधानमंत्री के बायोपिक
प्रकाशन तिथि :09 जनवरी 2019


भूतपूर्व प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह का बायोपिक विवाद में फंसा है और वर्तमान प्रधानमंत्री का बायोपिक भी तीव्र गति से बनाया जा रहा है। मनमोहन सिंह के बायोपिक में अनुपम खेर ने भूमिका निभाई है। अनुपम खेर के राजनीतिक आदर्श सिंह की विचारधारा के विपरीत हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री की भूमिका विवेक ओबेरॉय निभा रहे हैं। इस भूमिका चयन की प्रशंसा करनी होगी, क्योंकि अभिनेता का ट्रैक रिकॉर्ड शून्य है। उसे अभिनय क्षेत्र में सफलता नहीं मिली और जिस पात्र को वह अभिनीत कर रहा है, उसने अपने विराट प्रचार तंत्र की सहायता से सफलता का भ्रम रचा है। वर्तमान प्रधानमंत्री का बायोपिक 23 भाषाओं में बनाया जा रहा है। एक प्रांत के मुख्यमंत्री ने वर्तमान प्रधानमंत्री पर बन रहे बायोपिक का पहला पोस्टर जारी किया। उनके प्रांत में कई समस्याएं हैं परंतु उनके पास पोस्टर जारी करने के लिए समय और ऊर्जा है। संकेत स्पष्ट है कि यह एक सरकारी फिल्म है। क्या शीघ्र ही इस तरह का आदेश भी जारी होगा कि तमाम नागरिकों को यह फिल्म देखना अनिवार्य है और फिल्म देखने के प्रमाण स्वरूप सिनेमा का आधा टिकट आपका आधार कार्ड माना जाएगा?

अब फिल्मों में पूंजी निवेश का नया रास्ता खुल रहा है। राजनीतिक दल अपने नेता के बायोपिक के लिए धन व साधन जुटा देंगे। अपने राजनीतिक विरोधी के बायोपिक में भी दल पैसा लगाएगा। अगर आप फिल्मकार बनना चाहते हैं तो किसी संस्था से यह विद्या सीखने की आवश्यकता नहीं है। अब आपको राजनीतिक दल की सदस्यता लेनी होगी। क्या इन फिल्मकारों को लोकसभा और राज्यसभा के सदनों में शूटिंग की आज्ञा प्राप्त करनी होगी और अगर ऐसा होता है तो ये पवित्र मंच भी नए किस्म के फिल्म स्टूडियो बन सकते हैं।

एक ओर मंबई में स्टूडियो बंद होते जा रहे हैं, दूसरी ओर नए स्टूडियो इस तरह बनाए जा रहे हैं। भोपाल में पुराना विधानसभा भवन शूटिंग के काम आ रहा है। प्रकाश झा ने अपनी कुछ फिल्में उस सदन में शूट की हैं। क्या इसी शृंखला में राष्ट्रपति भवन भी शूटिंग के लिए उपलब्ध होगा? इस महान भवन के चारों ओर बगीचे हैं, जिसमें विरल फूल लगे हैं। इसी बहाने भारत महान के आम लोगों को फिल्म देखते हुए राष्ट्रपति भवन देखने को मिल जाएगा। यह भवन अंग्रेजों ने अपने वायसराय के लिए बनाया था। इस भवन की अपनी अभूतपूर्व शिल्प-कला के कारण फिल्म टिकट का दाम बढ़ गया है परंतु राष्ट्रपति भवन और विधानसभा सदन में शूटिंग होने पर टिकट के दाम दर्शक को सस्ते लगेंगे, क्योंकि वह स्वयं तो कभी वहां नहीं जा सकता।

सिनेमाघरों में नया दर्शक वर्ग आएगा। राजनीतिक दल व्हिप जारी करेगा कि दल के सारे सदस्य अपने नेता का बायोपिक देखें। इस तरह दर्शक संरचना में क्रांतिकारी परिवर्तन होने वाला है। यह भी संभव है कि दल के सदस्यों को पहले सिखाया जाए कि किस दृश्य पर ताली बजाना है और किस संवाद पर सिक्के सिनेमा परदे पर फेंके जाएं। दर्शक को कई देशों के दृश्य देखने को मिलेंगे। घुमक्कड़ प्रधानमंत्री होने के इस फायदे के बारे में कभी विचार ही नहीं हुआ।

बायोपिक ऑस्कर के लिए भेजा जाएगा। लंबे समय से यह विचार किया जा रहा है कि ऑस्कर प्राप्त करने के लिए वहां हम एक फिल्म विभाग स्थापित करें जो ऑस्कर मतदाता को भारतीय फिल्म की पृष्ठभूमि समझा सके। ज्ञातव्य है कि 'मदर इंडिया' ऑस्कर से इसलिए वंचित की गई कि मतदाता को लगा कि महाजन किसान महिला से विवाह करना चाहता है, उसके बच्चों का उत्तरदायित्व लेना चाहता है। उस समय ऑस्कर मतदाता को यह नहीं बताया गया कि भारतीय ब्याहता स्त्री पति के पलायन करने के बाद भी सधवा मानी जाती है। उसके पति ने पलायन किया है परंतु वह मृत नहीं माना जा सकता। अगर ऑस्कर मतदाता को भारत के सांस्कृतिक मूल्य का ज्ञान होता तो 'मदर इंडिया' को ऑस्कर प्राप्त होता। इसी तरह '36 चौरंगी लेन' को इस कारण ऑस्कर नहीं दिया गया कि उसे विदेशी भाषा श्रेणी में भेजा गया था, जबकि फिल्म अंग्रेजी भाषा में बनी थी।

वर्तमान प्रधानमंत्री की फिल्म को ऑस्कर दिलाए जाने के लिए वॉशिंगटन में नियुक्त हमारे एम्बेसडर को बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। उनका काम बढ़ गया है, क्योंकि ट्रम्प महोदय ने उनके खिलाफ टिप्पणी कर दी। कहां तो प्रचारित था कि यह महान मित्रता है और कहां ट्रम्प भाई ने आलोचना कर दी। कौन कम्बख्त कहता है कि 'बर्ड्स ऑफ द सेम फेदर फ्लॉक टुगेदर।' चार्ली चैपलिन ने आम आदमी को नायक माना और एक महान परम्परा का प्रारंभ हुआ। अब हुक्मरान बायोपिक बन रहे हैं। चार्ली चैपलिन को मरकर भी चैन नसीब नहीं हुआ।