मौत एक कविता है / जयप्रकाश चौकसे

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मौत एक कविता है

(राजेश खन्ना की मृत्यु पर प्रथम पृष्ठ पर विशेष आलेख)

प्रकाशन तिथि : 19 जुलाई 2012

आज कुछ उम्रदराज दादियां और नानियां राजेश खन्ना की मृत्यु का समाचार सुनकर अपने पोते-पोतियों से छुपकर आंसू बहा रही होंगी। और उन्हें वह दौर याद आ रहा होगा जब जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उन्होंने नए कलाकार राजेश खन्ना की रोमांटिक फिल्में देखीं। उनके अल्हड़ अवचेतन में उनका मासूम सा चेहरा हमेशा के लिए अंकित हो गया। उस आराधना के दौर के अमर प्रेम का असर कुछ ऐसा था कि कमसिन लड़कियों ने उनके नाम का गोदना अपने शरीर पर करा लिया। और खुमार उतरने के बाद भी उसकी टीस कायम रही।

राजेश खन्ना के शादी करने पर उस गोदना को अपठनीय बनाने का कष्ट भी झेला होगा। एक षोडशी ने अपनी जांघ पर गोदना कराया था और सारी उम्र उसे छुपाने में सफल भी रही। कुछ तीन दशक के सुखी व्यावहारिक जीवन के बाद एक असावधान क्षण में पति ने गोदना देख लिया और उसे अपने तीन दशक का प्यार विफल लगा। उसे लगा कि क्या मेरी बांहों में मेरी पत्नी उस नायक की कल्पना कर रही थी।

राजेश खन्ना इसी तरह जीवन में दाखिल हुए।उस दौर में मेहदी हसन ने गजल को नया मोड़ दिया था। और रूमानी फिजाओं में इस तरह की भावुकता मौजूद थी कि किताबों के पन्नों में सूखे गुलाबों की तरह रहेंगे। उस दौर में गुलशन नंदा की भावुकता में डूबी लुगदी पसंद की जाती थी। उन्हीं की लिखी ‘कटी पतंग’ और ‘दाग’ में राजेश खन्ना ने अभिनय किया था। आंसुओं में डूबी आवाज और लरजते लबों ने भावुकता का तूफान खड़ा किया। ‘अमर प्रेम’ में देवदास कुछ इसी भावुकता में फना होकर दोबारा सामने आया था। उसकी चंद्रमुखी मुजरे से ज्यादा वक्त तुलसी सींचने में लगाती थी।

सन् १९६९ में इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, प्रीविपर्स समाप्त किए और कांग्रेस में सिंडिकेट को उसकी औकात दिखा दी। उस वर्ष राजेश खन्ना की ‘आराधना’, सचिन देव बर्मन के माधुर्य पर सवार होकर आसमान छू रही थी, अमिताभ बच्चन को देखने के पहले दर्शकों ने ‘भुवन शोम’ में उनकी उनकी आवाज सुनी थी। राजेश खन्ना ने सफल फिल्मों की कतार लगा दी। उसी दौर में काले धन के कारण चिकने कागजों पर मुद्रित पत्रिकाओं की बाढ़ आ गईथी। उस दौर की प्रतिनिधि पत्रकार देव्यानी चौबल जो दरअसल हॉलीवुड की चौथे दशक के गॉसिप की देवी हेड्डा होपर का भारतीय अवतार थीं।

उसी ने राजेश खन्ना को सुपर सितारा कहा और फिल्म पत्रकारिता में अतिरेक तथा भाषा की हत्या का दौर शुरू हुआ जिसका शिखर हम आज भुगत रहे हैं। राजेश खन्ना के पहले अनेक लोकप्रिय सितारे हुए थे। परंतु उनके दौर में फिल्म पत्रकारिता सीमित थी। राजेश खन्ना धूमकेतू की तरह ऊपर उठते गए और उनका पतन भी उतनी तेजी से हुआ। उस बेचारे को समझ ही नहीं आया कि वो आकाश से पाताल में कैसे चला गया। उसने उस दौर को एक सपना माना और उसकी स्मृति में शिखर समय की तालियां उसके अंतिम वक्त तक गूंजती रहीं।

जिंदगी पहेली..उसे शायद यह भी लगा हो कि वो‘आनंद’ और ‘सफर’ की भूमिकाओंको ही जी रहा है।राजेश खन्ना के साथ यह दुर्घटनाकैसे घटी? हर सितारे की दुगर्ति औरपतन में उस दौर की सामाजिक परि-िस्थतियां निर्णायक होती हैं। दरअसलउस दौर में समाज के भीतर अन्याय और काले धन के प्रति आक्रोश थाऔर इसी में राजेश खन्ना के पतन केकारण छुपे थे। जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन चलाया और सलीम-जावेद ने ‘जंजीर’, ‘दीवार’ और ‘त्रिशूल’में नायक को आक्रोश की छवि दी।इन फिल्मों के कारण लिजलिजाती भावुकता का दौर खत्म हो गया।

अमिताभ बच्चन ने आक्रोश की भूमिकाओं को भावना की तीव्रता से प्रस्तुत किया। इस कारण सारा खेलबदल गया। ये बात अलग है कि कालांतर में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़े लोग सत्ता में आकर बदतर साबित हुए। बहरहाल राजेश खन्ना रोमांटिक भावुकता के प्रतीक बने रहे। जो कि जीवन के हर दौर में उस अल्हड़ उम्र की याद कायम रहती है।

क्या मृत्यु के अंतिम क्षणों में राजेश खन्ना के मन में आनंद की पंक्तियां गूंजी होंगी।‘मौत तू एक कविता हैमुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक तक पहुँचे दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब ना अंधेरा ना उजाला हो, ना अभी रातना दिनजिस्म जब ख़त्म हो और रूह को जब साँस आए।मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको’।