मौन की आहटें / कविता भट्ट
वरिष्ठ रचनाकार शशि पाधा को पढ़ना प्रत्येक बार एक नई अनुभूति उत्पन्न करता है। उन्होंने साहित्य। -जगत् को अपनी अनेक कृतियों से संपन्न किया है। उनके द्वारा सेना के जवानों और उनके परिवारों की पीड़ा को आधार बनाकर भी दो पुस्तकें लिखी हैं, जो बहुत ही प्रासंगिक और अनुभूतिपरक हैं। शशि पाधा कृत काव्य-संग्रह 'मौन की आहटें' पढने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इतने सुन्दर और सारगर्भित शीर्षक से ही जिज्ञासा हुई पढ़ने की। मौन जैसे गंभीर और प्रत्ययात्मक विषय को समझना और उस पर लिखना बहुत चुनौती परक कार्य प्रतीत होता है। शशि जी ने इसे सुन्दर शब्द-विन्यास में चित्रित करके मौन को भी मुखर कर दिया। जैसे-जैसे रचनाओं को पढ़ती गई मन भाव-सागर में डूबता चला गया। काव्य के दो पक्षों भावपक्ष और कलापक्ष को सुनियोजित करके समीक्षा करना भी सहज लगा।
पहले भाव पक्ष की बात करेंगें-व्यक्तिगत और सामाजिक विसंगतिजन्य परिस्थितियों से उभरे पीर के स्वर कविताओं के रूप में स्पष्ट रूप से मुखर हुए हैं। अनेक स्थानों पर नारी मन के सहज भावों को शब्दचित्र में बाँधा है। इसमें वे सफल भी रहीं हैं। कहीं-कहीं पर आध्यात्मिक शब्दचित्र भी प्रस्तुत किया गए हैं। मौन को अद्भुत ढंग से चित्रित करना इस संग्रह की विशेषता है। संग्रह में अनेक स्थानों पर रहस्यात्मक प्रश्नों को उत्तरित करने का प्रयास भी किया गया। उस असीम को ढूँढने की जिज्ञासा में वह कहती हैं:
लाख ओढ़ो तुम हवाएँ / ढाँप दो सारी दिशाएँ / बादलों की नाव से / मैं तुम्हारा नाम लूँगी / रश्मियों की ओट से / मैं तुझे पहचान लूँगी।
अपनी रचनाओं में कवयित्री ने समसामयिक विषयों पर भी अपनी लेखनी उठाई है। रिश्तों में वैमनस्य, दुराव की भावनाओं से वह व्यथित हो कर कहती हैं-
रिश्तों की तुरपाई बाक़ी / तुम कर दो या मैं करूँ /
उधड़ी कोई सिलाई बाक़ी / तुम कर दो या मैं करूँ। यह एक सुसंयोजित एवं सुन्दर काव्य संग्रह है। आज के दौर की मनोवैज्ञानिक स्थितियों का जीवन्त चित्रण इस संग्रह में किया गया है। शशि जी ने स्वयं भी इस बात को स्वीकार किया है सृष्टि में व्याप्त मौन और उसके मूक स्वर भी मुखरित है अभिव्यक्तियों के रूप में। उन्होंने लिखा है-मौन की भी आहट होती है। यह एक वैज्ञानिक एवं सार्वभौमिक सत्य है कि आकाश में, पूरे अन्तरिक्ष में एक ध्वनि सदैव विद्यमान है जिसे 'ॐ' माना गया है। यह ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड के कण-कण में हर पल अनुनादित हो रही है। ठीक उसी प्रकार मेरे अंतर्मन के मौन की भी एक अनहद ध्वनि है, जो मन के आकाश की दहलीज़ पर आकर दस्तक देती रहती है और मैं उसकी आहट सुनकर मन में उमड़े भावों-अनुभावों को अभिव्यक्त करने के लिए अनायास ही लेखन की कोई विधा चुन लेती हूँ। इस बार यह आहट कविताओं में ढलकर आई है।
मौन को शब्दों में ढालना कितना कठिन होता होगा किन्तु शशि जी अपनी कविता में कहती हैं, —
ओढ़ ली हैं चुप्पियाँ / -सी लिये अधर भी / एक से लगने लगे / घर भी, खंडहर भी।
इसी रचना में अपने मौन से संधि करती हुई वह कहती हैं-
बुद्ध-सा पा लिया / चैन और सुकून अब / जोगियों-सा भा गया उन्माद और जूनून अब आसमाँ पर जा टिकी / सोच भी–नज़र भी।
प्रकृति और प्रेम शशि जी की रचनाओं के केंद्र बिंदु हैं। प्रकृति के हर क्रिया कलाप में किसी अदृश्य चित्रकार की तूलिका कि बानगी उनकी 'तारक चुनरी' रचना में शब्दबद्ध है-
कौन जुलाहा तारक चुनरी बुनता सारी रात?
किरणों से करता नक्काशी / बेल मोतिया टाँके, जूही चम्पा सजी पाँखुरी /
मोल भाव न आँके / मीत जुलाहा बड़े चाव से बुनता सारी रात।
लगता प्रीत पुरानी हो गई, ख़ामोशी की आहट, रीत ही बदल गई, न थीं कोई ईंट दीवारें, रुक-रुक के चलने लगी ज़िन्दगी, कभी कभी, सीमाओं की होली, विदा कि वेला तथा शहीदों के बच्चे इत्यादि कविताएँ बरबस ही पाठक को झकझोर कर रख देती हैं।
प्रेम के विभिन्न रंगों को कवयित्री ने अपनी विभिन्न कविताओं में चित्रित किया है। मानव का इस जगत के स्रष्टा के प्रति प्रेम के कोमल भावों को व्यक्त करती हुई उनकी एक रचना देखिए—
प्रीत तेरी इस माथे की लकीर हो गई
ऐसी पूँजी पाई कि अमीर हो गई। इन्ही भावों को अन्य शब्दों में बाँधते हुए वह कहती हैं—
जोगन का चोला जो पहना / वैरागन-सी घूम रही, प्रीत तेरी की चख ली मिश्री /
बिन घुँघरू ही घूम रही / सब कुछ तुझ पर वारा / और फ़कीर हो गई।
कलापक्ष की बात की जाए, तो कविताओं में मौन का सौन्दर्य है, प्रवाह है और प्रासंगिकता है। पाठक रससिक्त होकर मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण विषयों को सरल शब्दों के माध्यम से पढ़ और समझ सकता है। सशक्त कविताएँ हैं कुल मिलाकर। यह काव्य संग्रह लेखिका कि दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और साहित्यिक समझ को स्पष्ट रूप से निरूपित व प्रतिबिंबित करता है। 'मौन की आहटें' पठनीय और संग्रहणीय है; लेखिका को सादर साधुवाद और शुभकामनाएँ; इतने सुन्दर विषय को लिपिबद्ध और चित्रित करने हेतु।
मौन की आहटे (काव्य-संग्रह) : शशि पाधा, प्रकाशक: भावना प्रकाशन, 109-ए, पटपड़गंज, दिल्ली 110091. वर्ष: 2020 पृष्ट: 152, मूल्य-350 रुपये, ISBN: 978-81-7667-378-5