मौलाना हसरत मोहानी / गणेशशंकर विद्यार्थी
स्वागत!
स्वागत, स्वाधीनता के उस देवदूत का, जो तीसरी बार, सरकारी जेल में ढाई वर्ष तक सड़ने के पश्चात, इस समय सकुशल हमारे बीच में है। मौलाना फजलुल हसन हसरत मोहानी (महान कवि और स्वाधीनता सेनानी हसरत मोहानी के तीसरी जेलयात्रा से बाहर आने के बाद, विद्यार्थीजी द्वारा व्यक्त किये गये यह स्वागतोद्गार 18 अगस्त 1924 के साप्ताहिक 'प्रताप' से उद्धृत हैं) देश की उन पाक-हस्तियों में से एक हैं जिन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए, कौमियत के भाव की तरक्की के लिए, अत्याचारों को मिटा देने के लिए, हर प्रकार से अन्यायों के विरोध करने के लिए, जन्म-भर कठिनाइयों और विपत्तियों के साथ घोर से घोरतम संग्राम सदा किया। उस समय, जब भारत की राष्ट्रीय-वेदी पर लोकमान्य तिलक अपना सर्वस्व न्योछावर कर रहे थे, लोग उनका साथ देते डरते थे, राष्ट्रीय क्षेत्र में दूर-दूर तक मुसलमान कहीं दिखाई भी न देते, और मि. रसूल, सैय्यद हैदर रजा, ऐसे दो-चार सज्जन दिखाई भी देते थे, तो उनका तिरस्कार तक मुसलमानों की ओर से होता था - उस समय उस बीहड़ पथ में, लोकमान्य तिलक के साथ, मौलाना हसरत ने अपना कदम आगे बढ़ाया था, और देश और कौम पर अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी थी। उस समय से उन्हें आजादी का सौदा है। उस जमाने से, उन्होंने इस रास्ते में तकलीफों पर तकलीफें उठाई। हाकिमों की आँखों में वे सदा खटकते रहे। कोई कसर न रखी गई उनको सताने में, उनको दबा डालने में। परंतु मौलाना भी अपने ढंग के निराले निकले। जितनी सख्ती की जाती, उतनी ही मर्दानगी से वे उसका सामना करते। उनके जीवन का यह खास ढंग रहा है। उनका साहस, उनकी दृढ़ता, तपा हुआ सोना सिद्ध हुई है। युवकों के लिए, उनके यु गुण, बड़े जबर्दस्त पथ-प्रदर्शक हैं। आज के युवक इन गुणों से बहुत कुछ सीखेंगे, और आगे आने वाले युवक इन गुणों से, हिंदुस्तान की आजादी के झंडे को ऊँचा उठाये रखने का बल प्राप्त करेंगे। दृढ़ राष्ट्रीय विचारों के कारण मौलाना सांप्रदायिक और जातीय बातों से सदा ऊपर रहे। मुसलमानों में उनके जितने दोस्त होंगे, हिंदुओं में उतने से कम कदापि न होंगे। कानपुर में उनका जो शानदार स्वागत हुआ, उसी से, यह बात साबित होती है। इस कठिन समय में, जब हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे की गर्दन के नापने में अपना बल और पुरुषार्थ दिखा रहे हैं, मौलाना का हमारे बीच में आ जाना, बहुत संभव है, देश के लिए बहुत हितकर सिद्ध हो। हमारी प्रार्थना है, कि पूज्य मौलाना हिंदू-मुसलमान झगड़े की समस्या को हल करने में अपनी शक्ति खर्च करें। म. गाँधी के पश्चात् यदि कोई आदमी इस मामले को अपने हाथ में ले सकता है, तो वह मौलाना ही हैं। मौलाना साहब दूसरों की बातों पर अधिक विश्वास न करें। न इधर की सुनें और न उधर की। अपनी आँखों से सब कुछ देखें, और फिर, जिसमें देश और कौम का भला हो, अपने दृढ़ स्वभाव के अनुसार उसे हिंदू-मुसलमानों से साफ-साफ कह दें। हमें ऐसे बड़े और जिम्मेदार आदमियों की सख्त जरूरत है जो लगी-लपटी न कहते हों, मुरव्वत न करते हों, जिन्हें अपनी लीडरी कायम रखने के लिए मजहबी दीवानों की हाँ में हाँ मिलाते रहने की जरूरत न हो, जो देश की आजादी को दीवानगी से भरें और मजहब के सच्चे मानों से बिल्कुल खाली, झगड़ों से कहीं ऊँची चीज समझते हों, और जो यह अनुभव करते हों, कि जो शक्तियाँ एक-दूसरे के गर्दन के नापने में इस समय खर्च हो रही हैं यदि वे इस तरह खर्च न होतीं, शत्रु-शक्तियों में से मौलाना की हस्ती भी एक है। इसलिए हमारे दिल में, यह बात उठती है कि क्या मौलाना हमारी आशा पूरी करेंगे?