मौलिक मतभेद / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती

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छह दिसंबर , 1948 को मैंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से और इसीलिए उसकी अखिल भारतीय कमिटी से लेकर नीचे की सभी कमिटियों की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया। हो सकता है , लोग इसकी वजह जानना चाहें। इसीलिए संक्षेप में उसे बता देना उचित मानता हूँ।

1920 के दिसंबर में नागपुर के अधिवेशन से लेकर आज तक मैंने कांग्रेस कभी नहीं छोड़ी और यथाशक्ति उसकी सेवा की है। बीच में नेताजी श्री सुभाषचंद्र बोस के साथ ही मेरे जैसे ही कुछ तुच्छ व्यक्तियों को भी कांग्रेस से हटाया गया था जरूर ; मगर इसमें हमारी मजबूरी थी। हम उस समय कांग्रेस छोड़ना चाहते न थे। आजादी की जंग के दरम्यान ऐसा करना हम देश के साथ गद्दारी समझते थे चाहे उसकी नीति के संबंध में हाई कमांड के साथ हमारा मौलिक मतभेद क्यों न था। उसी समय कांग्रेस के प्रमुख नेता साम्राज्यशाही से समझौता करने को परेशान थे। इसीलिए उनने बंबईवाली अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के बैठक में किसानों , मजदूरों एवं शोषित जनता की सीधी लड़ाइयों को बंद कर देना तय कर दिया , बावजूद समस्त प्रगतिशीलों एवं वामपंथियों के सम्मिलित विरोध के। वे यह भी चाहते थे कि कांग्रेस में एक ही विचारधारा रहे। यह खतरनाक बात थी। सुभाष बाबू के नेतृत्व में हमने इसका खुला प्रतिवाद किया। जिससे हाईकमांड हम सबों पर टूट पड़ा। लेकिन इतना तो हुआ कि कांग्रेस में एक ही विचारधारा लाने की कोशिश बंद हुई; कुछ समय तक तो जरूर ही।