मौसम पतंगबाजी का, मांझा सूतने का / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 14 जनवरी 2020
पतंग उड़ाने का उत्सव आ गया। आकाश में रंग बिरंगी विभिन्न आकार की पतंगे हवा से अठखेलियां करती नजर आएंगी। एक दौर में पतंगबाज अपना मांझा खुद सूतते थे। अब सुता सुताया मांझा इंस्टैंट नूडल्स की तरह उपलब्ध है। पतंग के पैंतरे अजीब हैं। खिलाड़ी जानता है कि कितनी ढील देना है और कब डोर खींच लेना है। पतंगबाज के साथ उसका उचका पकड़ने वाला साथी होता है। डोर उचके में बंधी होती है। पहला भाग मांझे से सुता होता है, दूसरे भाग में सामान्य डोर होती है। चतुर पतंगबाज कच्ची डोर वाले हिस्से पर ही अपनी मांझे से सुती डोर से पेंच लड़ाता है। कुछ लोग कटी हुई पतंग को लूटने में आनंद उठाते हैं। कटी पतंग के पीछे भागते लोग आपस में उलझ जाते हैं और जिस कटी हुई पतंग के लिए सारी जद्दोजहद की थी, वह आपसी विवाद में फट जाती है। उड़ाने के पहले पतंग में धागे से त्रिकोण बनाया जाता है। संतुलन होना जरूरी है। अगर पतंग एक और झुकी हो तो उसे दुरुस्त किया जाता है। पतंग की बनावट में बीच में बांस की मोटी छड़ होती है। कमान अपेक्षाकृत पतली रखी जाती है।
संजय लीला भंसाली की सलमान खान और ऐश्वर्या राय द्वारा अभिनीत फिल्म 'हम दिल दे चुके सनम' में पतंग उड़ाने का दृश्य है और समवेत स्वर में गाया गीत है- 'ढील दे दे..दे रे भैया'। गुलशन नंदा के उपन्यास से प्रेरित आशा पारेख अभिनीत 'कटी पतंग' में आशा जी को श्रेष्ठ अभिनय के लिए पुरस्कार प्राप्त हुआ था। बेसहारा स्त्री को कटी पतंग माना जाता है और लंपट लोग उसे लूटना चाहते हैं। गुलशन नंदा के उपन्यासों में सतही भावनाओं का ऐसा संप्रत्य घोल होता था कि प्रेम की तितली के पंख उलझ जाते थे। वे सतही लोकप्रियता अर्जित करना जानते थे। इस तरह के लेखक हर दौर में हुए हैं। आज भी बगुला भगत बिक रहे हैं। दिलीप कुमार को पतंग उड़ाने का शौक था। अपने अभिनय की तरह इस खेल में भी वे पारंगत थे। उनकी छत पर बने एक कमरे में विभिन्न शहरों से प्राप्त मांझा रखा होता था। अलमारी के तीन खंड में विविध साइज की पतंगें ऐसी रखी होती थीं जैसे वाचनालय में ही किताबें रखी होती हैं। उन्होंने अहमदाबाद जयपुर इत्यादि शहरों से मांझा और पतंग बुलाई थीं। पतंगबाजी पर वे लंबा भाषण देते थे। सलमान खान को भी पतंग उड़ाने का शौक है। जब फिल्म सिटी या आउटडोर जाते हैं तब अपने साथ पतंगबाजी का सामान, कंचे और गिल्ली डंडा भी ले जाते हैं। ज्ञातव्य है कि फिल्म 'सुल्तान' में सलमान खान अभिनीत पतंग लूटने में माहिर माना जाता है और शर्त लगाके पतंग लूटता है। प्रेम में उनकी पतंग कई बार कट चुकी है परंतु इन पतंगों को लूटने के लिए कभी दौड़े नहीं। बहरहाल पतंगबाजी, कंचे खेलना इत्यादि अपने बचपन को सहेजे रखने के जतन हैं। दिलीप कुमार भी अपने पड़ोसी के साथ पतंगबाजी एक बोतल बीयर का दांव लगाकार करते थे। दोनों पड़ोसियों के पास हार-जीत का हिसाब डायरी में लिखा होता था और सीजन समाप्त होने पर जीती हारी बोतलों की बीयर वे साथ बैठकर पीते थे। पतंगबाज के हाथों पर मांझे से कट जाने के निशान बन जाते थे। क्या इन निशानों से भाग्य रेखा भी प्रभावित होती है? ज्ञातव्य है कि एक दौर में सलमान खान, नरेंद्र मोदी के साथ पतंग उड़ाते तस्वीरों में कैद हुए थे। अब दोनों ही उस पतंगबाजी को भूल गए होंगे। बहरहाल, अंतरराष्ट्रीय आकाश में डोनाल्ड ट्रंप और मोदी जी की कटी हुई पतंगें विपरीत दिशा में चलने वाली हवाओं से थपेड़े खा रही हैं। नीचे लूटने वालों का हुजूम नारेबाजी कर रहा है।
पतंगों पर नेताओं की तस्वीर चस्पा कर दी जाती है। भारतीय बाजार में जाने कैसे चीन में बनी पतंगें आ जाती हैं। जब तक भारतीय बाजार चीनी माल से पटा रहेगा, तब तक चीन हम पर फौजी आक्रमण नहीं करेगा। अब बाजार ही कुरुक्षेत्र है।
पतंग उड़ाने के मौसम में पक्षी विचलित हो जाते हैं। उन्हें उड़ती हुई पतंग में आतंकवादियों की तरह लगती हैं। उनके क्षेत्र का अतिक्रमण हो जाता है। पक्षी इस नए बाज से डर जाते हैं। शाहीन एक पक्षी होता है। दिल्ली के शाहीन बाग में जो छात्र आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें शेर का जिगर हासिल है। दिन में पुरुष धरना देते हैं, रात पाली में महिलाएं धरने पर बैठती हैं। अल्लामा इकबाल लिखते हैं- 'नहीं तेरा नशेमन (घर) कसरे गुंबद सुल्तानी में, तू शाहीन है बसेरा कर पहाड़ों की चट्टानों पर...'। ज्ञातव्य है कि इकबाल साहब शाहीन पक्षी को स्वतंत्रता का प्रतीक मानते हैं।