म्यूजिकल चेयर / पद्मा राय
लाल ईंटों से बनी इमारत सामने दिखाई दे रही है। मुख्य द्वार के गेट से अंदर प्रवेश करते ही-एक कतार में थोडे-थोडे दूर पर खडी पीले रंगों की बसों पर लिखी इबारत पर यूं ही नजर चली गयी। बडे-बडे एवं साफ सुथरे अक्षरों से उन पर लिखा था _
"चेतावनी"
"विकलांग बच्चों की बस"
"कृपया दूरी बनाए रखें"
यहां आने वाले बच्चों में से ज्यादातर के चेहरे, मेरे दिमाग में किसी फ़िल्मी रील की तरह घूम गये। बहुत ज़्यादा सोचने का समय नहीं था। रिसेप्शन पर निवाड से बंधा पंकज हाथ में कलम लेकर रजिस्टर में कुछ लिख रहा था। मुझे देखकर हमेशा की तरह मुस्कुराया।
"गुड मार्निंग, दीदी।"
"गुड मार्निंग पंकज।" मुस्कुराकर उसका जवाब देते हुए मैं आगे बढ ली।
कुछ देर तक उसका मुस्कुराता चेहरा भी मेरे साथ-साथ चलता रहा। उस समय पंकज क्या लिख रहा होगा? शायद अपना सिग्नेचर कर रहा हो। यह भी कोई बात हुयी? मैं भी क्या फालतू की बातों में अपने दिमाग को उलझाये रहतीं हूँ। मैं पंकज को छोडक़र, उससे आगे निकल गयी।
रास्ते में कई बच्चे और मिले। कुछ टीचर्स, हेल्परस एवं वालण्टियर भी आते जाते दिखाई दिये। इस समय किसी को फुर्सत नहीं थी। हां परिचित चेहरों को देखकर फार्मेलिटी वश मुस्कुराते ज़रूर थे। कुछ बच्चे अपने हाथों से अपने व्हील चेयर के पहिये को घुमाते हुये क्लासरूम की तरफ बढ रहे थे तो कुछ को मदद की ज़रूरत पड रही थी। कइयों के हाथ में क्वाड्रीपैड्स थे जो उन्हें आगे बढने में सहायता कर रहे थे तो कुछ गेटर्स के सहारे धीरे-धीरे ही सही अपने गन्तव्य की ओर बढ रहे थे। यह समय ऐसा था जिस समय ज्यादातर लोग यहाँ चल रहे थे। उनमें एक मैं भी थी। सब जल्दी में थे। किसी को किसी से बात करने की फुर्सत नहीं थी। खडड़-ख़डड़, ख़ट्, -खट् जैसी आवाजों, जो या तो व्हील चेयर्स की थीं या फिर बैसाखियों की-को ही सुना जा सकता था। इस समय इसके अलावा और किसी दूसरी आवाज को सुनना ज़रा मुश्किल था।
जल्दी थी मुझे भी। मेरे कदम अपने आप तेज हो गये।
आज 'ग्रास मोटर सेशन' है। क्लास रूम के ठीक बगल में, इस इमारत के सबसे पीछे वाले कमरे में या यूं कहिए हॉल में ये सेशन चलता है। फिजिओथैरेपी भी इसी कमरे में होती है। बारी-बारी से एक-एक बच्चे को वहाँ लाया जाता है और उसकी ज़रूरत के मुताबिक उसकी थैरेपी होती है। रास्ते में पडने वाले ज्यादातर क्लासरूमस में करीब-करीब, सभी बच्चे पहुंच गये थे या बस पहुंचने वाले थे।
'ग्रास मोटर सेशन' जिस कमरे में होता है, अच्छा खासा बडा है। बीस बाई पचीस का ज़रूर होगा। ज्यादा बडा भी हो सकता है। अगला एक घंटा खासा मशक्कत वाला तो है लेकिन मनोरंजक है।
वहां लगभग सारे बच्चे, टीचर्स, हेल्पर्स एवम् वालेण्टियर्स पहले से मौजूद थे। कमरे में पहुंची। बायीं तरफ मौजूद एक बडी-सी मेज पर अपना पर्स रख दिया। देखा उस पर हमेशा की तरह ढेरों चीजें पहले से रखी हुयीं थीं। बच्चों के नी पैड्स, गेटर्स, लंच बाक्सेस, पानी की बोतलें और कुछ दुपट्टे वहाँ थे। ये सब चीजें तो वहाँ हमेशा ही रखी हुयी दिखाई दे जाती थी किन्तु आज एक नया सामान भी था जो पहले मैने कभी नहीं देखा था। फिलिप्स का एक 'म्यूजिक सिस्टम'-जिसका प्लग मेज के पीछे दीवाल पर लगे स्विच बोर्ड में लगा हुआ था-की मौजूदगी से मुझे आश्चर्य हुआ।
"वहां इसका क्या काम हो सकता है?"
शायद ग्रास मोटर सेशन के दौरान इसकी ज़रूरत पडे। लेकिन किसी से कुछ पूछने की कोशिश नहीं की। पर्स रखकर मुडी तब माथे पर पसीने की बूंदों का अहसास हुआ। गर्मी थी। पंखा चलाने की याद किसी को नहीं आयी थी। पट्-पट्-पट्, एक साथ सभी पंखे चलने लगे। अब ठीक है। पंखे की घरर, घरर में दूसरी सभी आवाजें मद्धिम पडने लगीं।
नेहा अभी ब्रेकफास्ट कर रही है। शीतल ने उसे सहारा देकर अपने साथ बैठाया है। केला छील कर नेहा को खिलाने का काम आज उसने अपने जिम्मे ले लिया है। नेहा खा रही है। उसका मुंह आहिस्ता-आहिस्ता चल रहा है। मैंने उसके सामने पहुंचकर उसकी आंखों में झांकने की कोशिश की। उसने मुझे देख लिया था। किसी परिचित चेहरे को देखते ही उसकी आंखों में दुनियां भर का उजाला आ जाता है। चमकीली आंखों की पुतलियों की चमक और बढ ज़ाती है।
प्रार्थना अभी-अभी समाप्त हुयी है। आज मोमबत्ती साहिल ने बुझायी है। मुझे वहाँ देखकर साहिल ने ऊंची आवाज में कहा,
"दीदी, गुड मार्निंग। पता है मैने आज मोमबत्ती बुझायी है।" आज दिन भर मिलने वालों से साहिल और कुछ शेयर करे न करे यह बात ज़रूर शेयर करेगा।
इस बडे क़मरे की पीछे की दीवार से सटाकर दो बडे-बडे ग़द्दे बिछे हैं। उन पर बच्चे चुपचाप बैठे हैं और हमेशा की तरह खेल आरम्भ होने का इंतजार कर रहें हैं। वे बार-बार घडी देख रहें हैं। इंतजार लम्बा खिंच रहा है। आखिर कितनी देर इस तरह से मुंह बन्द करके बैठा जायेगा इनसे? धैर्य थोडा कम जो है उनमें। अनायास मेरी निगाहें भी घडी क़ी तरफ घूम गयीं।
पौने दस बजने को हैं यानी कि बस अब खेल शुरू होने ही वाला है। दाहिनी तरफ की दीवार पर टंगी घडी बिना रूके टिक-टिक करती हुयी अपने काम में मुस्तैद। पृथ्वी और पी. कुमार एक-एक करके कुर्सियां कमरे में लाकर बीचों बीच एक पंक्ति में लगाने में व्यस्त।
घडी क़े ठीक नीचे एक खूबसूरत घर का चित्र। पीछे की दीवार पर कई तरह के मोटीवेशन चार्टस्। स्पैस्टिक बच्चों के लिए अनेक हिदायतों से भरे हुए ढेरों चार्ट्स से लगभग सभी दीवारें भरी हुयीं हैं। उनमे कहीं कैटर पिलर्स बने हैं तो कहीं उम्र के लिहाज से डवलपमेन्टल स्टेजेस के बारे में बताया गया है।
बांयीं तरफ एक खूबसूरत चार्ट टंगा है जिसमें गेट ट्रेनिंग के बारे में बडे विस्तार से समझाया गया है। डिजाइनर का नाम 'मंजू' है।
कुर्सियां लगायीं जा चुकीं हैं। पी कुमार को मौका मिल गया, खिसक लिया। अब कम से कम आधे घंटे तो लगेगा ही उसे लौटने में और इस बीच पृथ्वी उसके हिस्से का काम बिना किसी शिकवा शिकायत के करता जायेगा, लगातार। ऐसे ही चलता है हमेशा। पी. कुमार कुछ खास लोगों की बातों पर ही तवज्जो देता हुआ दिखायी देता है। ज्यादातर लोगों की बातों को कोई न कोई बहाना बनकर टाल जाता है। बहाना ऐसा बनाता है कि भी विश्वास हो जाता है। लेकिन है नम्बर एक का आलसी.
'ग्रास मोटर सेशन' एक तरह का गेम पीरिएड है। इस दौरान इन बच्चों को कोई न कोई ऐसा गेम खिलाया जाता है जिससे उनके शरीर की एक्सरसाइज भी होती रहती। इस सेशन की इंचार्ज है 'अमित' । उम्र यही कोई छब्बीस वर्ष, अपनी उम्र से कुछ ज़्यादा शोख, हर दिन एक नये अंदाज में, हमेशा ऐक्शन से लबालब दिखायी देती। अपनी तरफ सबको आकर्षित करती हुयी ज़िन्दगी से भरपूर अमित दी बच्चों की चहेती और बच्चों में ही मगन।
एक घंटे का यह समय है तो इन बच्चों का ग्रास मोटर सेशन किन्तु हम बडे भी इसमें उसी दिलचस्पी से भाग लेतें हैं जिस तरह ये बच्चे। उस समय दिमाग से यह गायब हो जाता है कि अपनी उम्र अब इस तरह के क्रिया कलापों को झेलने में उतनी सक्षम नहीं है। जब थोडी देर झुक कर खडे होने के बाद सीधा खडे होने में दो तीन मिनट लग जातें हैं, तब उम्र का अहसास जोर मारने लगता है। जीवन के ढलान पर खडे होने के बावजूद मन तो जैसे ठहरा हुआ है उसी पुरानी अवस्था में-सच्चाई को समझने में अभी वक्त लगेगा।
आज कौन-सा गेम खेलना है? निर्णय अमित को करना है। खेल जल्दी आरम्भ होना चाहिए. कभी घडी पर टंगती निगाहे तो कभी अमित पर। वक्त की पाबंद हैं अमित दी। अब ग्रास मोटर सेशन आरम्भ होने को है, सबको मालूम है। अमित दी की ओर सबकी उत्सुकता भरी आंखें।
उन्होने निराश नहीं किया। सबको बारी-बारी देखा। देर हो गयी है आज। कुछ देर तक चुपचाप खडे होकर सबकी उत्सुकता को बढ़ावा देती हुयी अमित के अंत में होंठ हिले।
"आज हम एक नया खेल खलेंगे।"
सब एकाग्रचित्त होकर सुन रहें हैं। तानिश की आंखों की पुतलियां नाचती हुयी अमित दी के चेहरे पर अटक-सी गयीं। अपनी भंवें हिलाते हुए इशारे से ही उसने पूछना चाहा-
"कौन-सा गेम दीदी?" लेकिन किसी ने भी नहीं सुना। अमित ने भी नहीं।
"आज हम 'म्यूजिकल चेयर' नाम का गेम खेलेंगे।"
अप्रत्याशित था। एक दम अनूठा चयन। आज का यह खेल इनको एक अनोखा अनुभव देने वाला है। अभी तक इन्होने यह खेल दूसरों को ही खेलते हुये देखा था। अब उनकी बारी आयी है। मजा आयेगा। तरह-तरह के भाव उनके चेहरों पर अपना रंग दिखाने लगे। इशिता विनयना की तरफ देख कर हंस रही थी तो साहिल अपने बगल में बैठे जतिन को यह समझाने में लगा हुआ था कि वह इस खेल के बारे में सब कुछ अच्छी तरह जानता है। मीनू अपने आपको संभालने में नाकाम अपनी खुशी का इजहार बखूबी कर रही थी। खुश थे सभी। उनकी हरकतें इस बात की गवाह थीं। कुछ आंखों से तो कुछ धीमे स्वर में इस खेल के विषय में थोडी बहुत जो भी जानकारी उनके पास उपलब्ध थी एक दूसरे को बताने लगे। कमरे के अंदर इन सबकी मिली जुली आवाजें गड्ड मड्ड हो गयीं थीं। कुछ भी साफ सुनाई नहीं दे रहा था। उत्सुकता अपने चरम पर थी।
वहां कुल ग्यारह बच्चे मौजूद थे। जिसमें से एक-नेहा खेलने में असमर्थ थी। दस कुर्सियां कमरे के बीचोंबीच एक सीध में रख दी गयीं। नेहा अपनी जगह पर बैठ कर खेलते हुए बच्चों को देखेगी। कुल दस बच्चे खेलेंगे। दीपक, इशिता, सनी, विनयना, सुनील, सोनी, सुनील वर्मा, जतिन, क्षितिज, तानिश और मीनू। बडें हैं कुल सात। चार टीचर्स, एक वालण्टीयर यानी कि मैं और दो हेल्पर्स। वैसे पी. कुमार तो अभी तक लौटा नहीं है। वह बाहर गया है। काफी देर हो चुकी है उसे गये हुए क्या पता खेल समाप्त होने तक लौटेगा भी या नहीं? मुझे इसमें सन्देह है।
नेहा खेल नहीं सकती। इसलिये गद्दे पर उठंग कर शीतल के सहारे बैठी हुयी है। सब खेल की तैयारी में जुट गये। छटपटाती नजरों से नेहा ने हम लोगों को देखा, कुछ जानना चाह रही थी। उन बडी-बडी अांखों में हलचल साफ दिखायी दे रही थी। कौन कहता है, नेहा बोल नहीं सकती। मैं देख रही थी कि उसके होंठ थरथरा रहे थे जैसे कुछ कह रहें हों। मैं सुन पा रही थी नेहा की आवाज, मेरे अलावा दूसरे किसी ने नहीं सुना। नेहा भी खेल का हिस्सा बनना चाह रही थी पर ...उसकी आंखें भर आयीं हैं। लेकिन उस छोटी-सी लडक़ी को अच्छी तरह से यह मालूम था कि वह इस खेल का आनन्द, सिर्फ़ उसे सब बच्चों को खेलते हुए देखकर ही उठा सकती है। मजबूरन उसने अब अपने मन पर काबू करीब-करीब कर ही लिया है किन्तु उसकी बेचैनी कभी-कभार उसके चेहरे से जाहिर हो जा रही है। अभी अपने मन के भावों को छिपाना उसे नहीं आया है।
मैने अपनी आंखें उसकी तरफ से हटा लीं क्योंकि मुझे लगने लगा था कि अगर मैं कुछ देर और उसे इसी तरह एक लगातार देखती रहती तो जो आंसू उसकी पलकों पर अटके थे उन्हें बाहर आने में ज़्यादा वक्त नहीं लगेगा।
सायास मैने अपनी आंखों को नेहा की तरफ से हटाया और कहीं और देखने लगी। उसके नजदीक जाकर कुछ देर बैठने की भी इच्छा मन में उठने लगी, किन्तु नहीं। समय कम है और खेल शुरू होने वाला है।
बच्चों में कुलबुलाहट बढने लगी। खेल आरम्भ होने तक जाने क्या हाल होगा? एक दूसरे की आवाज सुनना भी मुश्किल था। खेल जल्दी शुरू हो जाय तब इन्हें संभालना शायद आसान हो जायेगा। लेकिन अमित की हिदायतें हैं कि समाप्त होने का नाम नहीं ले रहीं हैं। एक के बाद दूसरी हिदायत लगातार। अपने अनोखे अंदाज में कुछ कहे बिना भी हरदम बोलती हुयीं आंखों के साथ करीब-करीब आदेश देती हुयी उसकी आवाज ने सबको थोडी देर के लिए शांत होने के लिए मजबूर कर दिया। अकेले अमित की आवाज कमरे में सुनायी पड रही थी। ध्यानपूर्वक सब उसे सुन रहे थे। खेल में अगर जीतना था तो ध्यान से सुनना ज़रूरी था।
"तानिश के अलावा सभी बच्चों के पैरों में आप लोग नी पैड्स बांध दीजिए." अंजना से सम्बोधित था यह वाक्य।
"तानिश को अब नी पैड्स की ज़रूरत नहीं है। वह अब गेटर्स के सहारे चलने लगा है। क्यों तानिश ठीक कह रहीं हूँ न?"
हमेशा से वाचाल तानिश आश्चर्य शरमाने लगा। उसके हाव भाव देखने लायक थे। मजा आ गया। उसने कहा एक शब्द नहीं लेकिन अपनी बैठने की जगह बार-बार बदलते हुए अमित दी से सहमत है, सिर हिलाकर जता ज़रूर दिया। होंठ गोल करके सीटी बजाने की कोशिश शुरू कर दी उसने। चार-छः बार सू-सू से मिलती जुलती आवाज उसके मुंह से निकली लेकिन सीटी नहीं बज पायी। अब बाद में कभी सीटी बजाने की प्रैक्टिस की जायेगी।
"मीनू और दीपक हेलमेट भी पहनेंगे।" अमित ने इन्सट्रक्शन दिये।
अंजना और शीतल, दोनो के लिये दिये गये थे ये इन्सट्रक्शन। दो मिनट के अंदर ही वे दोनो हेलमेट पहने और नी पैड्स बांधे सामने तैयार दिखायी दिये। कुर्सियों तक पहुंचने की बेताबी बढती जा रही थी। मै अपनी बारी की उम्मीद करते हुए इन्तजार कर रही थी किन्तु अब लगा कि मुझे इस तरह के किसी काम के लिये नहीं कहा जायेगा। मैं वालण्टियर थी शायद, इसलिए. वालण्टियर्स के लिए कुछ खास काम ही होते होंगे। या फिर किसी और कारण से? क्या पता।
"तानिश को छोडक़र सभी बच्चे घुटनों के बल कुर्सी तक पहुंच जायें।"।
"तानिश, तुम अपने आप चलकर कुर्सी के पास पहुंचो।" तानिश की अपने तरफ देखते हुए अमित ने देखा तो मुस्कुराकर कर कहा। इतना सुनते ही तानिश जितना हो सकता था उतना तेज चलते हुए कुर्सी की तरफ बढ़ा।
अपने शरीर का पूरा बोझ हाथों पर और घुटनों के बल लगभग दौडते हुए सभी ने एक-एक कुर्सी हथिया ली। तानिश भी पीछे नहीं रहा। लहराकर चलते हुए कमरे के बीच पहुंचा और एक कुर्सी का पीछे का हिस्सा पकडक़र खडा हो गया। इसके बाद आगे क्या करना है, अभी तक अमित दी ने नहीं बताया है। ताली बजाकर सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हुए अमित ने कहा-
"सब ध्यान देकर सुनो नहीं तो खेलते समय तुम लोगों को परेशानी होगी। तुम्हारा पूरा ध्यान म्यूजिक पर होना चाहिए. म्यूजिक आरम्भ होते ही तुम लोग अपनी-अपनी कुर्सियो से उठकर उनके चारों तरफ चलना शुरू कर दोगे। तब तक चलते रहना होगा जब तक म्यूसिक बंद न कर दिया जाय। म्यूजिक बंद होने के साथ ही हर बच्चे की ये कोशिश होनी चाहिए कि वह किसी एक कुर्सी तक पहुंच कर उस पर बैठ जाय। बैठने के लिए जिसको कुर्सी नहीं मिलेगी वह अपने आप गेम से बाहर हो जाएगा।" कहते-कहते अमित ने थोडी देर के लिए चुप होकर सबको देखा और फिर कहा-
"एक बात विशेष रूप से ध्यान देना होगा कि कोई भी बच्चा दौडते-दौडते आधे रास्ते से उल्टा मुडक़र नहीं दौडेग़ा। ऐसा करना खेल के नियम के विरूद्ध है। जो भी ऐसा करता हुआ पाया जाएगा वह बच्चा भी खेल से बाहर कर दिया जायेगा। खेल इसी तरह आगे बढेग़ा और तब तक चलता रहेगा जब तक कि केवल एक कुर्सी नहीं बच जाती। उस कुर्सी पर बैठने वाले बच्चे को ही विजेता कहा जाएगा।"
अमित ने अपनी बात पूरी कर दी थी किन्तु अभी भी सारे बच्चे शांत बैठे थे और एकटक अमित को देख रहे थे।
"तुम लोगों को मेरी बात समझ में आयी या नहीं?"
बच्चे जैसे नींद से जागे। बोले-सारे के सारे, करीब-करीब एक साथ-
"आ गयी दीदी।"
"तब क्या समझूं, सब तैयार हैं?"
"हां जी, तैयार हैं।" जल्दी-जल्दी अपनी गोल-गोल आंखें झपकाते हुए तानिश ने कहा।
उत्सुकता अपने चरम पर थी। अब तक नेहा की उदासी गायब हो चुकी थी। आश्चर्य था उसकी आंखों में। वह खेल का हिस्सा नहीं थी तो क्या, देख तो सकती है। खेल देखने में भी, कम आनन्द नहीं है। नेहा को देखकर यह बात आसानी से समझी जा सकती है।
सावधान हैं सब। एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं और अपने आगे वाली कुर्सी पर निगाहें हैं। तैयारी पूरी है सबकी। सबकी निगाह कुर्सियों पर टिकी है॥
स्विच बोर्ड की तरफ अनिता का हाथ बढ़ा और म्यूजिक चालू हो गया। बच्चे चलने लगें हैं। वे सब चल रहें हैं, पैरों से नहीं 'घुटनो' से। एक भजन की पंक्तियां दिमाग में कौंध गयीं।
"ठुमक चलत रामचन्द्र, बाजत पैजनियां ऽऽऽऽ।"
"घुटनो से चलते हुए रामचन्द्र।" गोस्वामी तुलसी दास ने जिस समय इस गीत की रचना की होगी तब उनके भगवान रामचन्द्र की उम्र साल डेढ साल से ज़्यादा तो नहीं ही रही होगी। लेकिन हमारे इन अनेक रामचन्द्रों की उम्र चार, पांच, ...सात या कुछ ऊपर होगी। उम्र से फर्क भी क्या पडता है। ये हमारे ढेरों रामचन्द्र तुलसी के एक रामचन्द्र से किसी तरह कमतर नहीं।
उधर तानिश अपने दोनो हाथों को सामने लाकर, दसों अंगुलियों को एक दूसरे में जकडे, ग़ेटर्स बंधे पैरों से लडख़डाता हुआ दौड में सबसे आगे रहने की हरसंभव कोशिश के बावजूद बीच-बीच में पीछे मुडक़र देखना नहीं चूकता। घुटनों से चलने वाले बच्चे उससे तेज दौड रहें हैं। कम मुसीबत नहीं है। हल्का फुल्का शरीर होता तब ठीक होता। भारी भरकम शरीर के साथ संतुलन बनाना कोई आसान थोडे ही है।
'साहिल' की स्पीड अच्छी है। घुटनो के बल दौड रहा है किन्तु अपने पर भरोसा नहीं, इसलिए पहले से ही हारने के लिए तैयार है और दुखी भी।
'मीनू' बहुत खुश है। नी पैड्स और हेलमेट के साथ समर में कूद चुकी है। उसके लिए युध्द की तरह ही है यह खेल। पूरे आत्मविश्वास के साथ कुर्सी की तरफ लपकती हुई मीनू।
बच्चों से थोडी दूरी बनाकर हम सब भी लगातार चल रहैं हैं। हमारा सारा ध्यान उन्हीं बच्चों पर केन्द्रित है। न जाने कब उन्हें हमारी ज़रूरत पड ज़ाय।
इस बीच एक कुर्सी हटा दी गयी थी। कुल मिलाकर खेलने वाले बच्चों की संख्या है 'दस' किन्तु कुर्सियां हैं सिर्फ़ 'नौ' । म्यूजिक एकाएक बंद हो गया। अपने-अपने कब्जे में कम से कम एक कुर्सी करने के चक्कर में भगदड-सी मच गयी। मीनू एवं सनी को छोडक़र सभी को कुर्सियां मिल चुकीं हैं। अभी एक कुर्सी खाली पडी है। दोनो में होड-सी लग गयी, कौन पहले पहुंचेगा उस खाली कुर्सी तक। आगे-आगे मीनू और उसके पीछे सनी। लगभग तय था कि मीनू आसानी से खेल में बनी रहेगी। किन्तु नहीं, अचानक संतुलन बिगडा और मीनू का सिर जमीन पर। सिर से जमीन पर अपने को आगे ढकेलती मीनू उठने की भरपूर कोशिश करने में जुटी हुयी थी कि तभी शीतल नेहा को दीवार के सहारे बैठा कर उसके पास पहुंची। उसे सहारा देकर उठा लिया। ये तो शुक्र था कि मीनू के सिर पर उस समय 'हैलमेट' था। नहीं तो काफी चोट लग सकती थी। सुनील सोनी को मौका मिल गया। इन सबके दौरान उसे खाली पडी क़ुर्सी आसानी से हासिल हो गयी। कुर्सी पर बैठकर वह बहुत खुश था।
"मीनू, चोट तो नहीं आयी?" घबराकर अंजना उसके शरीर का मुआयना करने में जुट गयी।
"नहीं।" खिसियानी हंसी के साथ वह घुटुरन चलते हुए कोने में बिछे गद्दे पर जाकर चुपचाप बैठ गयी और दर्शकों में शामिल हो गयी।
"कोई बात नहीं मीनू, तुम्हारी कोशिश अच्छी थी। दोबारा जब यह गेम होगा तब तुम ही इस खेल को जीतोगी।"
अमित ने उसे ढाढस बंधाया। मीनू को चोट लगी थी किन्तु उसका उसे कोई मलाल नहीं था किन्तु खेल से बाहर हो गयी थी इस कारण रोनी-सी सूरत बन गयी थी उसकी और अब किसी भी पल रोने वाली थी लेकिन अंजना दीदी की बातों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। एक उम्मीद हो गयी उसे। अगली बार वही जीतेगी। 'बहादुर बच्ची'। अमित अक्सर कहती है-
"अवर मीनू इज ए ग्रेट फाइटर।"
हमे मालूम है कि योद्धा कभी हारने के लिए युद्ध के मैदान में नहीं उतरता। सोते जागते हमेशा विजेता बनने का ख्वाब उसके मन में चलता रहता है। इसके अलावा उसे दूसरा कुछ नहीं सूझता।
खेल दोबारा आरम्भ हो गया। म्यूजिक स्टार्ट हो गया और बच्चों ने फिर से चलना शुरू किया। ठीक पहले की भांति अपने आगे वाली कुर्सी पर नजरें टिकाये वे कुर्सियों की परिक्रमा कर रहें हैं। एक कुर्सी और कम कर दी गयी। इस बार सुनील वर्मा बाहर हुआ। कुर्सी पहले निकलती फिर बच्चा निकलता और फिर कुर्सी ...॥। लगातार यही क्रम चलता रहा। दोनो, कम होते जा रहे थे। खेल में असफल होने पर बच्चे थोडा मायूस होते और फिर गद्दे पर पहुंचकर अपने-अपने अंदाज में बैठते जा रहे थे। कमरे के किनारे बिछे गद्दे पर बैठने वाले बच्चों की संख्या लगातार बढती जा रही थी। गेम से बाहर निकलने वाले बच्चों की मायूसी कुछ देर रहती लेकिन थोडी देर बाद ही वे भी बाकी बचे बच्चों के खेल का आनन्द उठाने लगते। धीरे-धीरे खेल में मजा बढता जा रहा था। खेल सबकी उत्सुकता बढ़ाने में समर्थ, किन्तु अंत की ओर अग्रसर था।
खेल में कुर्सियां बचीं हैं सिर्फ़ दो और बच्चे रह गयें हैं तीन। इशिता के नी पैड्स ढीले हो गयें हैं और उसके घुटनो का साथ छोड, फ़िसलते हुए टखने के पास पहुंच गयें हैं। लेकिन नी पैड्स का ध्यान किसे है? उसके चक्कर में पडी तो पीछे रहने की संभावना बढ ज़ायेगी। जमीन पर घिसटते हुए घुटनो में दर्द तो ज़रूर हो रहा होगा पर अभी उस बारे में सोचने का समय नहीं है उसके पास। उसकी परवाह किये बिना दौड रही है इशिता।
अंजना ने अमित के कान में कुछ कहा। खेल दो मिनट के लिए रोक दिया गया। अपनी-अपनी जगह पर बच्चे रूक कर खडे हो गये। इशिता का नी पैड ढीला हो गया था उसे दुबारा कस कर बांध दिया गया।
म्यूजिक सिस्टम एक बार फिर ऑन हुआ और एक बार फिर से चलने लगे बच्चे। वे सब चल रहें हैं लगातार। थकान होने लगी है, उन्हें देखकर साफ समझ में आ रहा है। खेल में बचे हुए बच्चों को अपनी थकान महसूस करने का वक्त शायद अभी नहीं आया है। अपने आगे की कुर्सी पर गिद्धदृष्टि जमाये चलते जा रहें हैं निरंतर। हाथ, पैर, मुंह और आंखें सभी कुछ सुर्ख लाल हो चुकें हैं। म्यूजिक चल रहा है। बाहर हवा भी कुछ तेज रफ्तार से चल रही है। यहां इस कमरे में मौजूद ज्यादातर लोग भी चलते हुये बच्चों के साथ लगातार चलते जा रहें हैं।
"तीन बच्चे खेल में अभी हैं। इनमे से कौन खेल जीतेगा? क्या मालूम।" मैने अपना कंधा झटका।
"कोई तो जीतेगा ही।" मन में सोचा।
सनी, शीतल की क्लास का और इशिता एवं विनयना, नर्सरी के-जिसकी क्लास टीचर अंजना है। सभी बच्चे एक बराबर हैं किन्तु न जाने क्यों आज मेरा मन विनयना को ही जीतते हुए देखना चाहता है। ईश्वर को मानती हूँ या नहीं ठीक से नहीं जानती तब भी आज अनजाने में उसी ईश्वर से उसकी जीत की कामना करती मैं भी लगभग उसके साथ-साथ चलती चली जा रही हूँ। उसमे कुछ तो ऐसा ज़रूर है जिसकी वजह से जिस दिन वह स्कूल नहीं आती उस पूरे दिन कहीं कुछ खो जाने का अहसास-सा होता है।
वहां उपस्थित सभी लोगों का ध्यान उन तीनो की तरफ लगा है। लेकिन उन के पास फुर्सत नहीं है कि वे हम सबको एक बार देख भी सकें। तीनो कुर्सियां कमरे के बीचोबीच रखी हुयीं थीं। तीनो बच्चे उनसे हट कर किन्तु उनके चारों तरफ चल रहे थे। जब भी उनमे से कोई किसी कुर्सी के नजदीक पहुंचता उसकी रफ्तार धीमी हो जाती। करीब-करीब थम से जाते। उस समय वे दिल से यह मनाते हुए लगते कि म्यूजिक बंद हो जाय। अमित को बार-बार टोकना पडता। बच्चों को उसकी बात मानते हुए अनमने ढंग से ही लेकिन फिर से चलना पडता। कई बार कुर्सी के नजदीक पहुंचे बच्चे और वहाँ पहुंच कर रूके भी। कई बार अमित को अपनी बात दुहरानी पडी अौर फिर उन्हें कुर्सी को छोडक़र चलना भी पडा। इस खेल में जब तक म्यूजिक बजेगा तब तक बच्चों को चलना होगा, ऐसा अमित दीदी ने आरम्भ में ही कहा था। क्या करते वे? खाली पडी क़ुर्सियों को देखते ही जैसे पिछली सारी हिदायतें उनके दिमाग से गायब हो जातीं और पुरानी हरकत दुबारा करने को वे मजबूर हो उठते। सामने की कुर्सी को छोडक़र आगे बढते समय उनके चेहरे को देखकर ऐसा लगता जैसे किसी कडवी चीज की वजह से उनके मुहं का जायका खराब हो गया हो और उनके चेहरे पर इस तरह का भाव तब तक बना रहता जब तक कि अगली कुर्सी के नजदीक वे नहीं पहुंच जाते।
एक झटके में सब कुछ ठहर गया। इशिता हडबडा गयी। सारे नियम कानून उसके दिमाग से गायब हो गये। अभी-अभी कुर्सी के पास से आगे बढी थी। मुश्किल से एक कदम आगे। बस क्या था। पीछे घूम कर कुर्सी के नजदीक पहुंची। उसने उसे पकड लिया और विजयी भाव से पीछे आते सनी को देखकर मुस्कुरायी। सनी के पास कुर्सी नहीं थी। किन्तु इशिता ग़लत थी। उससे फाउल हुआ था। खेल से बाहर होना पडेग़ा इशिता को। कुछ देर तक कमरे में अफरातफरी मची रही।
दो बच्चे बच गये थे। दो टीम के बीच खेल चल रहा हो जैसे, ऐसा माहौल बन गया था वहां। दरअसल दोनो बच्चे अलग-अलग कक्षाओं से थे। विनयना नर्सरी की और सनी पहली कक्षा का छात्र था। वहां उपस्थित सभी लोगों के नजरों के केन्द्र बन चुके थे ये दोनो बच्चे। सबकी निगाहें चिपक-सी गयीं थीं उनपर।
एक अकेली कुर्सी कमरे के बिल्कुल बीच में रखी हुयी थी। इस कुर्सी का महत्त्व उस समय बहुत बढ ग़या था। बच्चों को एक बार फिर से हिदायतें दीं गयीं। उन्हें चलते रहना है लगातार। रूकना नहीं है। कुर्सी के पास पहुंचकर कोई नहीं रूकेगा और न ही म्यूजिक बंद होने पर वापस लौटकर कुर्सी पर बैठेगा। इस बार उन्हें कुर्सी से दूर-दूर चलना होगा। अमित को ध्यान से सुना उन दोनो ने और सब कुछ ठीक उसी तरह से करने के लिए अपने आप को तैयार भी कर लिया। कमरे के बीच में रखी हुयी कुर्सी को लालसा भरी नजरों से देखते हुए आखिरी बार म्यूजिक सिस्टम ऑन होने का इंतजार करने लगे वे दोनो। अनिता ने हाथ बढ़ाकर अंतिम बार म्यूजिक सिस्टम का स्विच ऑन कर दिया।
दो टीमो में लोग विभाजित हो चुके थे। दोनो टीमें अपने-अपने खिलाडी क़ो प्रोत्साहित करते हुए उत्तेजित थे। तानिश की तो हर बात निराली होती है। आंखें मटका-मटका कर विनयना को जोश दिला रहा था। उसकी तल्लीनता देखते ही बन रही थी। इस समय तक सारे नियम बच्चों को अच्छी तरह से याद हो चुके थे। वे उनका बखूबी पालन करते हुये जीतने की पूरी कोशिश कर रहे थे।
"कहीं कोई गलती न हो जाय नहीं तो कुर्सी मिलने के बावजूद इशिता की तरह हार झेलनी पडेग़ी।" कुर्सी के नजदीक पहुंचकर चाल धीरे भी नहीं कर सकते। मन मसोसकर ही सही किन्तु चल रहें हैं वे लगातार।
"इस खेल में मुझे ही जीतना है।" दोनो के मन की यही इच्छा है।
कुर्सी के नजदीक पहुंचने पर मन की यह इच्छा सिर उठाने लगती कि काश म्यूजिक रूक जाये परन्तु जब ऐसा नहीं होता तब आगे बढना पडता और उनके चेहरे तनावग्रस्त हो जाते।
"मुझे लग रहा है कि विनयना जीतेगी।" मैने फुसफुसाते हुए कहा।
घुटनों चलती विनयना के कांपते हाथों के ऊपर नजरें जमाये हुए मुझे-अंजना देखती रही कुछ देर, किन्तु उसने कुछ कहा नहीं सिर्फ़ हल्के से मुस्कुरायी। उसे मालूम है, मेरी कमजोरी है विनयना।
अचानक जैसे समय ठहर गया। अनिता ने इस बार स्विच ऑफ करके प्लग भी निकाल दिया। अब उसे वहाँ लगे रहने का कोई मतलब नहीं। एक मिनट के लिए सबकी सांस थम-सी गयी। भाग रही है विनयना। भाग रहा है सनी। दोनो भाग रहें हैं। प्लग निकाला गया तब जब विनयना ने कुर्सी के आगे मुश्किल से दो कदम बढ़ाया होगा। कुर्सी के बेहद नजदीक किन्तु दो कदम आगे। सनी बहुत पीछे था किन्तु अब आगे पहुंच गया है। पीछे मुडक़र कुर्सी के नजदीक विनयना नहीं पहुंच सकती। फाउल होगा। शीतल उछलने लगी। विनयना की जीत अब नहीं होगी। हम सब को जैसे सन्नाटे ने अपने घेरे में लपेट लिया। हल्की-सी आवाज भी किसी के मुंह से नहीं निकल पा रही है। उधर सनी के कक्षा के बच्चे ताली बजाने में मगन हो गये। उन लोगो ने उसके नजदीक पहुंचकर उसे चारों तरफ से घेर लिया और शीतल उसकी पीठ थपथपाने लगी। सनी का चेहरा खुशी से सराबोर था लेकिन अपनी खुशी कैसे जाहिर करे उसकी समझ में नहीं आ रहा था।
विनयना ने कुछ भी नहीं कहा। न जाने क्या हुआ उसे। अपनी जगह पर रूक गयी। एक दम खामोश। पहले अमित की तरफ देखा फिर अंजना को भी। अपने उम्र के बच्चों में सबसे ज़्यादा आई क्यू है उसका। हार बर्दाश्त करने की आदत नहीं है विनयना को। आंखें भरभरा आयीं उसकी। अब उसे कैसे संभाला जायेगा? आसान नहीं है ये हममे से किसी के लिए भी। थोडी देर पहले ताली बजाकर खुश होते बच्चों ने भी विनयना को देखा और वे सब भी चुप हो गये। सनी जीतने के बावजूद दुखी हो गया। न जाने क्यों, उसने सोचा कि अच्छा नहीं हुआ। उसे देख कर लग रहा था, जैसे हार उसी की हुयी है। सबने उसे घेर रखा था, किन्तु सबकी आंखें अब विनयना की तरफ मुड चुकीं थीं। उस घेरे से बाहर निकल कर वह आगे बढ़ा। उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं गया। विनयना के पास पहुंचकर उसे सांत्वना देते-देते वह भी रोने लगा। विनयना उसे रोते हुए देखती रही कुछ देर। फिर जाने क्या हुआ और उसने अपनी लडख़डाती जबान में सनी से पूछा-
"सनी तुम तो जीत गये हो फिर क्यों रो रहे हो?"
"तुम रो रही हो न, इसलिये मुझे भी रोना आ रहा है।"
उसकी बात सुनकर विनयना हंसने लगी। उसके हंसते ही सब लोग मुस्कुराने लगे। बच्चे एक बार फिर से तालियां बजाने लगे। खेल के ऐसे अंत की तो किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। एक बार फिर सनी की जीत हुयी थी।