म्यूजियम की स्थापना एवं सम्मान / बलराम अग्रवाल
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जिब्रान म्यूजियम की स्थापना
जिब्रान के निधन के उपरान्त उनकी मित्र मेरी हस्कल और बहन मरियाना ने बिशेरी स्थित ‘मार सरकिस’ मठ को खरीदा। तदुपरांत 22 अगस्त 1931 को जिब्रान के अवशेष वहाँ लाकर दफन किए एवं खूबसूरत मकबरा बनवाया। यह स्थान बेरूत से 120 कि॰मी॰ दूर है। जिब्रान के मित्रों और प्रशंसकों के संयुक्त प्रयासों से 10 जुलाई 1934 को लेबनान के शासनादेश संख्या 1618 के अनुरूप एक अव्यावसायिक संस्था ‘जिब्रान नेशनल कमेटी’ का गठन किया गया। खलील जिब्रान के साहित्यिक और कलात्मक धरोहर के कॉपीराइट अधिकार इस संस्था के पास हैं।
सन 1975 में ‘जिब्रान नेशनल कमेटी’ ने मठ को जिब्रान के कार्यों के अध्ययन की दृष्टि से ‘जिब्रान म्यूजियम’ में तब्दील कर दिया। उनके गृहनगर बिशेरी में स्थापित ‘जिब्रान म्यूजियम’ में जिब्रान की 440 मूल पेंटिंग्स और चित्र, उनकी लाइब्रेरी, निजी उपयोग की वस्तुएँ तथा हस्तलिखित पांडुलिपियाँ सार्वजनिक दर्शन हेतु रखी हैं। ये सब वस्तुएँ 1932 में न्यूयॉर्क से लाकर यहाँ रखी गई थीं। इनका प्रबंधन भी ‘जिब्रान नेशनल कमेटी’ के हाथों में है।
अमेरिकी कांग्रेस द्वारा सम्मान
जिब्रान की विश्वख्याति को देखते हुए अमेरिकी कांग्रेस ने 19 अक्टूबर 1984 को एक प्रस्ताव पारित किया। इसके परिणामस्वरूप मेसाचुसेट्स एवेन्यू में, वॉशिंगटन डी॰सी॰ स्थित ब्रिटिश दूतावास के ठीक सामने खलील जिब्रान मेमोरियल गार्डन की स्थापना हुई। तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश ने मेमोरियल गार्डन को भाईचारे में विश्वास, निरीहों के प्रति दयाभाव तथा इन सबसे ऊपर शान्ति-स्थापना हेतु जिब्रान के जुनून की संज्ञा देते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी थी तथा 24 मई 1991 को इसे सामान्य जनता को अर्पित किया था।
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